इस सप्ताह का पहला और अंतिम दिन दिन ख़ास रहा। पहले दिन यानि 3 अक्तूबर को विविध भारती के स्वर्ण जयन्ति वर्ष के समारोह का अंतिम आयोजन हुआ।
सुबह-सवेरे पहला कार्यक्रम वन्दनवार रहा जो 6 बजे से 7:45 तक चला जिसे प्रस्तुत किया विख़्यात गायक अनूप जलोटा ने, मेजबान थी निम्मी (मिश्रा) जी और इस कार्यक्रम को तैयार किया कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने। शुरूवात हुई पंडित भीमसेन जोशी के इस भजन से -
सुन-सुन साधो जी राजा राम कहो
उसके बाद एम एस सुब्बालक्ष्मी का मीरा भजन -
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई
पुरूषोत्तम दास जलोटा, हरिओम शरण जैसे विख़्यात भजन गायको के भजन सुने। सूफ़ी रचना सुनवाई गई फ़रीदा ख़ानम से। हरिहरन ने प्रस्तुत किया - बुद्धम शरणम गच्छामि। यूँ कहिए कि विविध भारती ने अपना भजनों का ख़ज़ाना खोल दिया और ऊपर से बोनस ये कि अनूप जलोटा जी इन सभी गायकों के बारे में बताते रहे। भक्ति संगीत से संबंधित रोचक अनुभव सुनवाते रहे। मैं बचपन से रेडियो सुन रही हूँ पर इतना लम्बा और इतना सरस वन्दनवार मैनें पहली बार सुना।
7:45 को त्रिवेणी लेकर आए खुद महेन्द्र मोदी जी, विषय रहा विविध भारती का श्रोताओं से संबंध जिसमें आलेख कहीं नज़र नहीं आया क्योंकि बातें सीधे विविध भारती के दिल से निकल कर महेन्द्र मोदी जी की आवाज़ में श्रोताओं तक पहुँच रही थी तभी तो पहला गीत सुनवाया गया -
हमने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इलज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
और समापन हुआ इस गीत से - कभी अलविदा न कहना
12 बजे से गायिका सुनिधि चौहान से युनूस जी ने बातचीत की। कई गानों और कलाकारों की बातें हुई। गाने बनने की रोचक बातें भी हुई और उनके पसंदीदा गीत भी। इस तरह सुबह के प्रसारण से हट कर यह प्रसारण नई पीढी के नाम रहा। जिसके बाद राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी और शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने प्रस्तुत किए विशेष गोल्डन जुबिली मन चाहे गीत जो पूरी तरह से श्रोताओं का और श्रोताओं के लिए था। इसके बाद आया लाजवाब कार्यक्रम जो पूरे साल भर में शायद ऐसा कार्यक्रम पहला ही रहा, गायक तलत अज़ीज़ द्वारा प्रस्तुत ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का गुलदस्ता। प्रस्तुति भी ज़ोरदार रही, गायक ने अपने अनुभव सुनाए, संस्मरण सुनाए।
शाम 7 बजे विशेष जयमाला प्रस्तुत किया शत्रुघ्न सिन्हा ने। शुरूवात की ख़ुद की लोकप्रिय फ़िल्मों के संवादों से जैसे फ़िल्म कालीचरण। अपने लाजवाब अंदाज़ में कई अंतरंग बातें बताई जैसे अपने जीवन साथी से पहली मुलाक़ात, अपने घर-परिवार की बातें बताई और रोचक किस्से बयाँ किए अपने नाम से हुई ग़लतफ़हमियों के। गाने भी बढिया सुनवाए जिनमें से उनके नायक के रूप में असफ़ल फ़िल्म मिलाप का यह लोकप्रिय गीत भी था -
कई सदियों से कई जन्मों से तेरे प्यार को तरसे मेरा मन
अंत में रात 9 बजे प्रसारित हुअ छाया गीत जिसे प्रस्तुत किया संगीतकार रवि ने। कई गीतों के बारे बताया। यह भी बताया कि कैसे मिनटों में गीत लिखे गए और धुनें बनी और कभी-कभी कैसे धुनें बनने में बरसों लगे। कार्यक्रम अच्छा लगा पर आज के मेहमान कार्यक्रम जैसा लगा। अगर बातचीत के निम्मी (मिश्रा) जी के अंश हट जाते और सारी बाते खुद संगीतकार रवि बताते तो लाजवाब छायागीत अपने मूल रूप में झिलमिलाता।
शेष दिनों में चिंतन में गाँधीजी सहित विभिन्न विद्वानों के विचार बताए गए। वन्दनवार में आरंभ में नवरात्र के अवसर पर माँ दुर्गा के भजन सुनवाए गए। दशहरा को युनूस जी की ने बेहतरीन कार्यक्रम दिया, चिंतन में युवा शक्ति पुंज स्वामी विवेकानन्द के विचार बताए फिर शुरूवात हुई मुकेश की आवाज़ में रामचरित मानस के रामजन्म के अंश से जिससे जुड़ा यह भजन भी सुनवाया गया -
भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हिताकारी
इसके बाद सुनवाए गए सभी भजनों से सुबह-सवेरे दशहरा का आनन्द आ गया। सप्ताह भर अंत में बजते रहे लोकप्रिय देशगान।
7 बजे भूले-बिसरे गीत में एकाध लोकप्रिय गीत भी बजते रहे। समाप्ति के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गीतों से होती रही।
7:30 बजे संगीत सरिता में इस सप्ताह भी प्रसिद्ध गायिका शकुन्तला नरसिंहन की प्रस्तुति में हिन्दुस्तानी और दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक जैसे रागों की चर्चा चली और दोनों विधाओं के कलाकारों से गायन और वादन सुनवाए गए।
त्रिवेणी में इस सप्ताह भी अहिंसा की, गाँधी जी की बातें हुई, कुछ नए रंग भी रहे जैसे कोई ऐसी बात न कहे जिससे दूसरों को ठेस लगे। गीत गाने नए पुराने बजते रहे। पर दशहरा के दिन युनूस जी ने वन्दनवार की भावना बनाए रखी और असत्य पर सत्य की विजय की प्रतीक विजयदशमी की बातें कही और इससे जुड़े गीत भी अच्छे चुने।
12 बजे से प्रसारित होने वाले सुहाना सफ़र कार्यक्रम का अंदाज़ वही पुराना रहा जो जतिन-ललित, दिलीप सेन और समीर सेन (दिलीप-समीर) जैसे नए संगीतकारों के नए फ़िल्मी गीतों का रहा।1 बजे म्यूज़िक मसाला में चार्लस वैस का संगीत बद्ध किया एक गीत सुना जिसके गीतकार का नाम बताया गया योगेश, समझ में नहीं आया क्या ये वही योगेश है जो हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार है और जिनके गीत मन्नाडे जैसे गायकों ने भी गाए है। इस गीत के बोल थे -
लड़की हूँ मैं गोरी-गोरी
चोरी-चोरी ले लूँगी दिल तेरा
गोरी-गोरी
वैसे सुनने में गाना अच्छा ही है। शेष गाने सामान्य रहे।
1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में मिले-जुले गाने सुनवाए गए जिसमें सत्तर के दशक के गीत भी थे जैसे आप की कसम और नए गाने भी। एक बात ध्यान देने लायक रही कि कुछ गीत ऐसे सुनवाए गए जो बहुत दिन बाद सुनने को मिले जैसे फ़िल्म मिलन का यह गीत -
बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया
3 बजे सखि-सहेली में सोमवार का दिन होता है रसोई का, नवरात्र के अवसर पर व्रत के लिए सिंघाड़े की बर्फ़ी बनाना बताया गया। मंगलवार को सविता (सिंह) जी पहली बार आई और साथ में थी चंचल जी, करिअर मार्ग दर्शन के अंतर्गत वीडियो संपादन के क्षेत्र में कोर्स करने और करिअर बनाने की जानकारी दी गई। बुधवार को एक अजीब बात हुई। कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही थी ममता (सिंह) जी और चंचल जी। आते ही चंचल जी ने बताया कि आज है राम नवमी, मैं हैरान हो गई, फिर ममता जी ने बताया कि नवरात्र का आज अंतिम दिन है, मुझे लगा कि मुझसे सुनने में ग़लती हुई और मैनें महानवमी को रामनवमी सुना पर शाम में 7 बजे समाचारों में लोचनीय (अस्थाना) जी ने समाचार पढे कि आज रामनवमी है और कलकत्ता में पंडालों में विशेष पूजा हो रही है। यहाँ थोड़ी सी (शायद गंभीर) सांस्कृतिक ग़लती हो गई। चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) की नवरात्रि के नौवें दिन को रामनवमी होती है क्योंकि इस दिन राम का जन्म हुआ था। वैसे दक्षिण भारतीय मानते है कि इस दिन राम का विवाह हुआ था। वैसे चौमासे की नवरात्र से भी राम जुड़े है पर राम और रावण ने भी शक्ति की आराधना की थी इसीलिए यह नवरात्र पूरी तरह से माता को समर्पित है। इसीलिए रामनवमी नहीं कहना चाहिए। इस दिन बुधवार होने से सजने-सँवरने की बातें हुई और गरबा खेलेने जाने के लिए और वैसे भी पार्टियों के लिए मेकअप करने के लिए कुछ ख़ास बातें बताई गई।
शनिवार रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में दिल ही तो है, मेरे सनम, घूँघट, साधना, दिल भी तेरा हम भी तेरे, नया दौर, धूल का फूल जैसी फ़िल्मों के लोकप्रिय गाने सुनने को मिले पर सबसे अच्छा लगा राजकुमार फ़िल्म का यह गीत सुनना -
नाच रे मन बतकम्मा ठुमक ठुमक बतकम्मा
मैं भी नाचूँ तू भी नाचे हर कोई नाचे बतकम्मा
बतकम्मा यहाँ आन्ध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र के वैश्व समुदाय का लोकपर्व है। जिस तरह दशहरा से पहले अन्य स्थानों पर नवरात्र मनाई जाती है उसी तरह यहाँ बतकम्मा मनाया जाता है। हैदराबाद और वरंगल ज़िले में बहुत धूम-धाम रहती है। पार्वती के गौरी रूप का नाम यहाँ बतकम्मा है। इस मौसम में एक तरह के जंगली फूल खिलते है जिनका प्रयोग इस पर्व में किया जाता है इसीलिए इन फूलों को बतकम्मा के फूल कहते है। इस बारे में बहुत सी बातें है जो इस चिट्ठे के लिए उचित नहीं है।
इसके बाद नाट्य तरंग में शनिवार और रविवार को दो किस्तों में आलोक भट्टाचार्य के मूल बंगला नाटक का दीप नारायण द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद मृत्युहीन प्राण प्रसारित किया गया जिसके निर्देशक है सुदर्शन कुमार। यह नाटक स्वतंत्रता संग्राम के वातावरण का है।
4 बजे पिटारा में सोमवार को सेहतनामा में मनोरोग चिकित्सक डा देवेन्द्र साधी से रेणु (बंसल) जी ने बातचीत की। डाक्टर साहब ने घबराहट, बैचेनी जैसी बातों पर विस्तार से जानकारी दी। बुधवार को आज के मेहमान में फ़िल्मी दुनिया के जाने-माने कला निर्देशक जयन्त देशमुख से बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। उनके अनुभव, उनके संस्मरण और गीत सभी बढिया रहे। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को श्रोताओं के फोनकाल और उनके पसंदीदा गाने सुने।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानें सामन्य ही रहे।
शनिवार को टुनटुन (उमादेवी) द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला बहुत ही मज़ेदार रहा। संग्रहालय की यह पुरानी रिकार्डिंग बहुत ही रोचक थी। विभिन्न कलाकारों के लोकप्रिय गीत सुनने को मिले जैसे सुरैया, तलत महमूद। रविवार को अन्य दिनों की तरह जयमाला में सामान्य रूप से फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गाने सुनवाए गए यानि जयमाला संदेश कार्यक्रम स्वर्ण जयन्ति के साथ समाप्त हुआ लगता है। शेष दिन नए और कभी-कभार बीच के समय के गाने बजते रहे।
7:45 पर शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पढे गए पत्रों में कुछ ऐसे पत्र थे जो बहुत पुराने श्रोताओं के थे। कई पत्र बहुत लम्बे रहे जिनमें कार्यक्रमों के बारे में कई बातें बताई गई। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी। बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में वृत्त चित्र निर्देशक भीरू भाई मिस्त्री से कमल (शर्मा) जी ने बातचीत की। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।
8 बजे हवामहल में इस सप्ताह टी वी और बीवी, ख़ातिरदारी, शादी की सालगिरह, सुहाना सफ़र जैसी हल्की-फुल्की हास्य झलकियाँ सुनवाई गई।
रात 9 बजे गुलदस्ता में इस सप्ताह भी अच्छी बंदिश की ग़ज़लें सुनवाई गई।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में आए दिन बहार के जैसी बीच के समय की और नसीब अपना अपना जैसी कुछ ही पुरनी और कहो न प्यार है जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत बजे।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अहमद वसी से बातचीत में संगीतकार नौशाद ने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि गीत तैयार करने के लिए पहले केवल सिचुएशन ही नहीं फ़िल्म की पूरी कहानी को ध्यान में रखा जाता था।
10 बजे छाया गीत में राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने अच्छी ग़ज़लें सुनवाई और युनूस जी ने अनमोल गीत सुनवाए जिसमें से कुछ गीत तो मैनें पहली बार सुने।
2 comments:
annapurnaji bahut achhi tarah se apne ye samiksha bhi likhi jaise ki aap likhti aa rahi hai.shatru ji ne jitne bhi song sunvaye bahut madhur the. vaise hi ravi ji dwara parstut geet bhi kafi pasandida the . yunus ji dwara parstut anmol geet chhayyageet mein sun nahi paayi parantu unka chhayyageet hamesha hi pasand hai.vaise hi nimmi ji ,kamal ji aur ashok ji ka chhayageet bhi pasand hai.vaise to sabhi udghosak puri mehnat se sare programme parstut karte hai par kuchh ka andaj jyada pasand aata hai.
mujhe bhi mahanavmi aur ramnavmi ke antar ka pata nahi tha batane ke liye shukriya
aapki post ka hamesha intzaar rehta hai kabhi beech beech mein bhi likha kariye.
MANJOT BHULLAR
शुक्रिया मनजोत जी ! मैं लिखने की कोशिश करूगी.
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।