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Friday, October 3, 2008

रेडियोनामा की विशेष पेशकश---विविध भारती के शुरूआती दिनों की विकल याद---लावण्‍या शाह के शब्‍दों में

( लावण्‍या जी रेडियोनामा पर लिखती रही हैं । वे विविध भारती के पितृपुरूष पंडित नरेंद्र शर्मा की सुपुत्री हैं और आजकल परदेस में रहती हैं । विविध-भारती के शुरूआती दिनों की यादों पर केंद्रित ये आलेख उन्‍होंने रेडियोनामा के विशेष आग्रह पर लिखा है----) 

बधाई हो जी बधाई ..
आप सारे श्रोताओँ को और दूर परदेस मेँ बसे या भारत मेँ विविध भारती के रंगारंग कार्यक्रमोँ को सुन रहे अनगिनत रसिक श्रोताओँ को विविध भारती के स्‍वर्ण जयँती के उपलक्ष्य मेँ अनेकोँ बधाईयाँ ! आशा है आपकी ईद बढिया मनी होगी और नवरात्र के उत्सव का आप भरपूर आनँद ले रहे होँगेँ ...आज आपके सामने विविध भारती की शिशु अवस्था की यादेँ लेकर लौटी हूँ ..
 
जनाब रिफत सरोश जी ने हमेँ यह बतलाया था कि, कैसे  पहले इन्डियन पीपल्स थियेटर यानी इप्टा रंगमंच की दुनिया में सक्रिय था ..वहीँ किसी कार्यक्रम मेँ रि‍फत साहब ने नाटक के सूत्रधार की आवाज़ सुनी और ये भी जान लिया कि श्रोता जिस आवाज़ के जादू से बँधे हुए से थे वह हिन्दी कविता से नाता रखते कवि नरेन्द्र शर्मा थे.
 
भारत की स्वतँत्रता के बाद आकाशवाणी की नीति मेँ परिवर्तन आया और रेडियो के लिये हिन्दी लेखकोँ और कवियोँ की तलाश जारी हुई. नीलकँठ तिवारी, रतन लाल जोशी, सरस्वती कुमार दीपक, सत्यकाम विध्यालँकार, वीरेन्द्र कुमार जैन, किशोरी रमन टँडन,डा. शशि शेखर नैथानी, सी. एल्. प्रभात, के. सी. शर्मा भिक्खु, भीष्म साहनी जैसे हिन्दी के अच्छे खासे लोग रेडियो प्रोग्रामोँ मेँ हिस्सा लेने लगे.

अब रि‍फत सरोश जी के शब्दोँ मेँ आगे की कथा सुनिये ..
 
" उन्हीँ दिनोँ हम लोगोँ ने पँ. नरेन्द्र शर्मा को भी आमादा किया- एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया- " कवि और कलाकार" उसमेँ सँगीत निर्देशक अनिल बिस्वास, एस्. डी. बर्मन, नौशाद और शैलेश मुखर्जी ने गीतोँ ,गज़लोँ की धुनेँ बनाई । शकील, साहिर और डाक्टर सफदर "आह" के अलावा नरेन्द्र जी भी इस प्रोग्राम के लिये राजी हो गये - नरेन्द्र जी के एक अनूठे गीत की धुन अनिल बिस्वास ने बनाई थी, जिसे लता मँगेशकर ने गाया था - " युग की सँध्या कृषक वधू -सी, किसका पँथ निहार रही "
पहले यह गीत कवि ने स्वयँ पढा, फिर इसे गायिका ने गाया उन दिनोँ आम चलते हुए गीतोँ का रिवाज हो गया था और गज़ल के चकते दमकते लफ्ज़ोँ को गीतोँ मेँ पिरो कर अनगिनत फिल्मी गीत लिखे जा रहे थे - ऐसे माहौल मेँ नरेन्द्र जी का यह गीत सभी को अच्छा लगा, जिसमेँ साहित्य के रँग के साथ भारत भूमि की सुगँध भी बसी हुई थी - और फिर नरेन्द्र जी हमारे हिन्दी विभाग के कार्यक्रमोँ मेँ स्वेच्छा से आने लगे - एक बार नरेन्द्र जी ने एक रुपक लिखा - " चाँद मेरा साथी " उन्होँने चाँद के बारे मेँ अपनी कई कवितायेँ जो विभिन्न मूड की थीँ एक रुपक लडी मेँ इस प्रकार पिरोई थी कि मनुष्य की मनोस्थिति सामने आ जाती थी - वह सूत्र रुपक की जान था - मुझे रुपक रचने का यह विचित्र ढँग बहुत पसँद आया और आगे का प्रयोग किया -

मैँ  बम्बई रेडियो पर हिन्दी विभाग मेँ स्टाफ आर्टिस्ट था और अब्दुल गनी फारुकी प्रोग्राम असिस्टेँट ! फारुकी साहब नरेन्द्र जी से किसी प्रोग्राम के लिये कहते , वे फौरन आमादा हो जाते - आते , और अपनी मुलायम मुस्कुराहट और शान्त भाव से हम सब का मन मोह लेते ! 

 
समय ने एक और करवट बदली उस समय के सूचना तथा प्रसारण मँत्री डा. बी.वी. केसकर फिल्मी गानोँ से आज़िज थे मगर पब्लिक गाना सुनना चाहते थे - केसकर साहब ने एक व्यापक कार्यक्रम बनाया कि आकाशवाणी के बडे बडे केन्द्रोँ पर लाइट म्युजिक यूनिट ( प्रसारण गीत विभाग ) बनायेँ जायेँ, परन्तु उनमेँ फिल्मी गानोँ जैसा छोछोरापन और बाजारुपन न हो ! बम्बई मेँ इस भाग के प्रोड्युसर नरेन्द्र जी नियुक्त किये गये - कल तक नरेन्द्र शर्मा हमारे अतिथि बनकर आया करते थे , अब वे, जिम्मेदार और प्रभावशाली अफसर बन गये जिनकी डायरेक्ट पहुँच मँत्री महोदय तक थी और हमने देखा कि बी. पी. भट्ट जैसे स्टेशन डायरेक्टर उनके आग पीछे घूमने लगे परन्तु नरेन्द्र जी की मुस्कुराहट मेँ वही मुलायमियत और वही रेशमीपन था ! वह सहज भाव से हम लोगोँ से बातेँ करते - 
 
उनको एक अलग कमरा दे दिया गया था प्रसार गीत विभाग भारतीय सँगीत का एक अँग नहीँ, बल्कि हमारे हिन्दी सेक्शन का एक हिस्सा था और नरेन्द्र जी की वजह से सेक्शन चलाने मेँ हमेँ बडी आसानी थी - कहीँ गाडी नहीँ रुकती थी , चाहे आर्टिस्‍टों का मामला हो या टेपोँ और स्टुडियो
का ! उन्होँने हिन्दी सेक्शन के अन्य कामोँ मेँ हस्तक्षेप करना उचित नहीँ समझा उन्हेँ प्रसार गीत से ही सरोकार था आधे दिन के लिये दफ्तर आते थे - या तो सुबह से लँच तक या लँच के बाद शाम तक ! अपने ताल्लुकात की वजह से उन्होँने फिल्मी दुनिया के मशहूर सँगीतकारोँ से प्रसार गीतोँ की धुनेँ बनवाईँ जैसे नौशाद , एस. डी बर्मन, सी. रामचन्द्र, राम गांगुली, अनिल बिस्वास, उस्ताद अली अकबर खाँ और कोई ऐसा फिल्मी गायक न था जिसने प्रसार गीत न गाये होँ - लता मँगेशकर, आशा भोँसले, गीता राय, सुमन कल्याणपुर, मुकेश, मन्ना डे, एच. डी. बातिश, जी. एम्. दुर्रानी, मुहम्मद रफी, तलत महमूद, सुधा मल्होत्रा - सब लोग हमारे बुलावे पर शौक से आते थे - यह नरेन्द्र जी के व्यक्तित्त्व का जादू था -
एक सप्ताह मेँ एक दो गाने जरुर रिकार्ड हो जाते, जो तमाम केन्द्रोँ को भेजे जाते आज मैँ अनुभव करता हूँ कि, नरेन्द्र जी का एक यही कितना बडा एहसान है आकाशवाणी पर कि उन्होँने उच्चकोटि के असँख्य गीत प्रसार विभाग द्वारा इस सँस्था को दिये !
 
आकाशवाणी को बदनामी के दलदल से निकालने और प्रोग्रामोँ को लोकप्रिय बनाने मेँ नरेन्द्र जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है " प्रसार -गीत " तो उसकी एक मिसाल है परन्तु जो अद्वितीय कार्य उन्होँने किया वह था, " विविध भारती " की रुपरेखा की तैयारी तथा प्रस्तुति ! अपने मित्र तथा आकाशवाणी के महानिर्देशक श्री जे. सी. माथुर के साथ मिलकर नरेन्द्र जी ने आल इँडीया वेरायटी प्रोग्राम का खाका बनाया जिसका अति सुँदर नाम रखा " विविध भारती " आकाशवाणी का ऐसा इन्कलाबी कदम था जिसने न सिर्फ उस की खोई हुई साख वापस दिलाई, बल्कि आकाशवाणी के श्रोताओँ मेँ नई रुचि पैदा की और उसमेँ हलके -फुलके प्रोग्रामोँ द्वारा राष्ट्रीयता और देश प्रेम का एहसास जगाया और आगे चलकर यह कार्यक्रम आकाशवाणी के लिये " लक्ष्मी का अवतार " साबित हुआ - इस तमाम आकाशवाणी के इतिहास मेँ उनका नाम सुनहरे अक्षरोँ मेँ लिखा जायेगा -
 
मेरे फरिश्तोँ को भी पता न था कि नरेन्द्र जी जैसे विद्वान मेरे बारे मेँ इतनी अच्छी राय रखते हैँ कि जब "विविध भारती " विभाग की स्थपना होने लगी तो उन्होँने अपने असिस्टँट प्रोद्युसरोँ के लिये जहाँ दिल्ली से बी. एस्. भटनागरजी, विनोद शर्मा, सत्येन्द्र शरत्` और नागपुर से भृँग तुपकरी को चयन किया तो बम्बई से मुझे योग्य समझा और मेरा नाम हिन्दी प्रोड्युसरोँ की सूची मेँ रखा इस प्रकार मेरी ज़िन्दगी मेँ एक नया मोड लाने मेँ नरेन्द्र जी का एह्सान है - उन दिनोँ आकाशवाणी मेँ " आसिस्टेँट प्रोड्यूसर " बनना बडे गौरव की बात समझी जाती थी
 
जब विविध भारती के लिये नमूने के प्रोग्राम तैयार किये जाते थे, तो मैँने नरेन्द्र जी की " चाँद मेरा साथी " वाली टेकनीक को अपनाकर गज़लोँ और गीतोँ का मिलाजुला प्रोग्राम " गजरा " बनाया जिसमेँ हल्की फुल्की चटाखेदार हिन्दुस्तानी जबान की कम्पेयरिँग मेँ पिरोया - यह पहला प्रोग्राम था जो श्री जे. सी. माथुर को सुनाया गया था और उन्हेँ पसँद आया " यह आकाशवाणी का पँचरँगी प्रोग्राम है - विविध भारती, गजरा ! गीत के रँग -बिरँगे फूलोँ से बनाया गया - गजरा "
 
बीच मेँ एक बात याद आ गई - नरेन्द्र जी अच्छे खासे ज्योतीषी भी थे - " विविध भारती " प्रोग्राम पहली जुलाई को शुरु होने वाला था - फिर तारीख बदली आखिर पँडित नरेन्द्र शर्मा ने अपनी ज्योतिष विध्या की रोशनी मेँ तय किया कि यह प्रोग्राम ३ अक्तूबर १९५७ के शुभ दिन से शुरु होगा और प्रोग्राम का शुभारँभ हुआ तो " विविध भारती " का डँका हर तरफ बजने लगा -
लेखक: ज़नाब रीफत सरोश साहब ....

( आगे की कथा ..फिर कभी सुनाऊँगी ..आज इतना ही ..कहते हुए आपसे आज्ञा ले रही हूँ ...और मेरे पापा जी के लगाये इस पवित्र बिरवे को आज हरा भरा सघन पेड़ बना हुआ देखकर विविध भारती व आकाशवाणी सँस्था को सच्चे ह्र्दय से शुभकामनाएँ दे रही हूँ !
 
ईश्वर करेँ कि हर इन्सान जो इनसे जुडा हुआ है कार्यक्रम प्रस्‍तुतकर्ता या श्रोता के रुप मेँ, चाहे देशवासी होँ या परदेसी श्रोता, मित्र व साथी, सभी को बधाई देते अपार हर्ष हो रहा है !
शुभम्-भवति ..
स-स्नेह सादर-
- लावण्या

7 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

आदरणिय श्रीमती लावण्याजी,
अक लम्बी अवधी के बाद रेडियोनामा पर आने के लिये आपको बधाई । कभी आप अमरिका के रेडियो चेनल्स के बारेमें भी लिख़ीये जो हिन्दी और गुजराती भाषामेँ कार्यक्रम प्रसारित करते हो, चाहे वे भारतमें न सुनाई पड़ते हो फ़िरभी एक माहिती के रूपमें उन बातों का महत्व रहेगा ।

Anonymous said...

लावण्या जी , लिखते रहिएगा ,यहाँ ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पियूष भाई...
अवश्य लिखूँगी ..
अमरीका के लगभग हर शहर मेँ या स्टेट / प्राँत मेँ, भारतीयोँ के लिये रेडियो प्रोग्राम चलाया जाता है
-बडे शहरोँ मेँ प्रसारण की अवधि ४ /६ या उससे भी ज्यादा घँटोँ की
हो सकती है --
-जैसे कि "टेक्सास प्राँत मेँ आये ह्युस्टन शहर की बात करेँ तो वहाँ शुक्र, शनि, रवि वार = वीकएन्ड मेँ भारतीयोँ के लिये
कई घँटोँ का कार्यक्रम आता है -टेक्सास के डलास शहर मेँ रेडिय "सलाम नमस्ते " आता है -आगे एक अलग आलेख तैयार करुँगी -अधिक जानकारियोँ के साथ -
आपका आभार !
अफलातून भाई.
.हौसला अफज़ाई के लिये शुक्रिया ! लिखने का प्रयास जारी रहेगा ~~
- लावण्या

यूनुस said...

लावण्‍या जी इतने कम नोटिस पर हमारा आग्रह मानकर लिखने के लिए बेहद शुक्रिया ।

annapurna said...

बहुत अच्छा चिट्ठा !

इतनी बारीकी से जानकारी देने के लिए धन्यवाद !

आगे की कड़ियों की प्रतीक्षा है…

अन्नपूर्णा

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अन्नापूर्णा जी,
युनूस भाई
नमस्ते !
अगर बात "विविध भारती " की हो तब आत्मीयता आ ही जाती है ! :)
अगर वर्तनी मेँ त्रुटीयाँ रह गईँ होँ तब पाठक गण कृपया माफ करेँ ..
समयाभाव और थकान हो जाती है अब `
आप लोगोँ ने क्या क्या किया अपने केन्द्रोँ मेँ उस पर भी लिखियेगा
बहुत स्नेह सहित,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

For : Piyush Bhai :
http://www.udgam.com/archive.html

It is easy to see/ hear the sway of Indian Songs over the NRI community , transplanted though they are, the roots which stem from their faraway homes , still hold them & bind them to : India !

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