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Friday, April 23, 2010

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 22-4-10

शाम 5:30 बजे गाने सुहाने कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

4 अप्रैल से कार्यक्रमों में हुए परिवर्तनों से यह सभा बहुत प्रभावित रही। 7:45 से 15 मिनट के लिए प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में ही परिवर्तन किया गया और बड़ा परिवर्तन हुआ। सप्ताह में दो बार प्रसारित होने वाले पत्रावली और राग-अनुराग कार्यक्रम अब एक ही बार प्रसारित हो रहे हैं, यह ठीक हैं लेकिन बड़ा धक्का लगा यह देख कर कि बज्मे क़व्वाली और लोकसंगीत कार्यक्रम गायब हो गए हैं। पिछले परिवर्तन के दौरान दोपहर के प्रसारण से शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनी बंद कर दिया गया था। आशा थी कि इस परिवर्तन में अनुरंजनी को कही स्थान मिलेगा पर दो और महत्वपूर्ण गैर फिल्मी संगीत के कार्यक्रम बंद हो गए। इतना ही नही अन्य गैर फिल्मी संगीत के कार्यक्रमों में भी फिल्मी घुसपैठ नजर आई। नतीजा यह हैं कि आज की तारीख में हैदराबाद में सुने जाने वाले केन्द्रीय प्रसारण के सभी कार्यक्रमों में से गैर फिल्मी संगीत का शुद्ध कार्यक्रम एक भी नही हैं जो ठीक नही लग रहा। महत्वपूर्ण बात यह हैं कि इस तरह के कार्यक्रमों के लिए यह एक ही चैनल हैं। अनुरोध हैं कि इन तीनो कार्यक्रमों के प्रसारण की ऐसे समय व्यवस्था करे जो क्षेत्रीय कार्यक्रमों का समय न हो ताकि सभी इसका आनंद ले सके और ऐसे अन्य कार्यक्रमों में कृपया फिल्मी घुसपैठ रोक दीजिए।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल ई-मेल और एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। एकाध दिन यहाँ भी क्षेत्रीय विज्ञापन प्रसारित हुए। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला। फरमाइश में से हर दशक से गीत चुने गए। इस तरह नए पुराने सभी समय के गीत सुनने को मिले।

शुक्रवार को - मैंने प्यार किया, यादो की बारात, होटल जैसी नई पुरानी फिल्मे शामिल रही। रोमांटिक गीतों के साथ यह नया कुछ अलग भाव लिए गीत भी फरमाइश में से चुन कर सुनवाया गया, रेफ्यूजी फिल्म से -

पंछि नदिया पवन के झोके
कोई सरहद इन्हें न रोके

रविवार को हीरो, वांटेड, जो जीता वही सिकंदर फिल्मो से विभिन्न मूड के रोमांटिक गीत सुनवाए गए, यह गीत भी शामिल था -

खुदी से तुम प्यार करो कही न फिर मेल हो जाए

सोमवार को शुरूवात बड़ी अच्छी रही, फर्ज फिल्म का यह युगल गीत बहुत लम्बे समय बाद सुना -

हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने
चाहे तो माने चाहे न माने

इसके अलावा मिलन, ब्लैक कैट के साथ नई फिल्मो के गीत भी शामिल रहे जैसे फिल्म अजब प्रेम की गजब कहानी।

मंगलवार को भी शुरूवात जोरदार रही, गोपी फिल्म का भक्ति गीत बहुत दिन बाद और वो भी फरमाइश पर सुनना अच्छा लगा -

सुख के सब साथी दुःख में न कोई

इसके साथ पुरानी नई फिल्मो के गीत शामिल रहे - नागिन, गाइड, विवाह और धड़कन फिल्म का शीर्षक गीत।

बुधवार को बेटा, क्रान्ति फिल्मो के गीतों के साथ नीलकमल का गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा और बार्डर तथा एकाध नई फिल्म के गीत भी शामिल थे।

गुरूवार को भी बार्डर फिल्म का गीत सुनवाया गया पर रोमांटिक गीत था। इसके साथ तेरे नाम फिल्म का शीर्षक गीत, दिलवाले, अपने, जानेमन फिल्मो के साथ पुरानी फिल्मे कटी पतंग और लैला मजनूं का गीत बहुत दिन बाद सुनवाया गया।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया ख्यात चरित्र अभिनेत्री बिन्दु ने। पुरानी रिकार्डिंग थी। बताया गया संग्रहालय से चुन कर सुनवाई जा रही हैं। पुरानी रिकार्डिग में अक्सर सम्पादन कर सुनवाया जाता हैं। इस बार कार्यक्रम सुन कर लगा शायद कुछ मुख्य अंश संपादित हो गए। जहां तक मुझे याद हैं पहले हमने सुना था कि बिन्दु ने बताया था कि उनकी पहली फिल्म दो रास्ते मानी जाती हैं पर वास्तव में उनकी पहली फिल्म हैं अनपढ़ जिसमे उन्होंने माला सिन्हा की बेटी की भूमिका की थी, उन पर एक गीत भी फिल्माया गया था जिस पर उनका नृत्य हैं, यह गीत भी शायद सुनवाया था -

जिया ले गयो जी मोरा सावरिया

बाद में लम्बे अंतराल के बाद दो रास्ते फिल्म में अलग भूमिका में आने पर यही पहली फिल्म मानी गई।

7:45 से परिवर्तित कार्यक्रमों का प्रसारण हुआ। रोज रात में 9 बजे प्रसारित होने वाले गैर फिल्मी रचनाओं के कार्यक्रम गुलदस्ता को अब यहाँ सप्ताह में तीन दिन शुक्रवार, रविवार और मंगलवार को प्रसारित किया जा रहा हैं और इसे गजलो का कार्यक्रम ही कर दिया गया हैं, यह अच्छा परिवर्तन हैं, क्योकि वैसे भी इसमे गजले ही ज्यादा सुनवाई जाती थी। कार्यक्रम का अंदाज भी बदला हैं। हर कार्यक्रम में एक ही गुलोकार की गाई गजले सुनवाई जा रही हैं। गैर फिल्मी
गजले लम्बी होती हैं इसीलिए दो ही गजले सुनवाई जा रही हैं। लेकिन एक कार्यक्रम फिल्मी गजलो का रहा जो ठीक नही लगा।

शुक्रवार को गुलोकार रहे गुलाम अली। शुरूवात बढ़िया हुई, परवेज शाकिर के कलाम से -

वो तो खुशबू हैं हवाओं में बिखर जाएगा
मसला फूल का हैं फूल किधर जाएगा

समापन हुआ नाजिर के कलाम से -

कोई रात ऎसी आए के ये मंजर देखूं
तेरी पेशानी हो और अपना मुकद्दर देखूं।

रविवार को गुलोकार रहे जगजीत सिंह। शुरूवात हुई - आपसे गिला आपकी कसम सोचते रहे कर सके न हम

दूसरी गजल भी अच्छी थी - समझते थे मगर फिर भी न थी दूरियां हममे

बढ़िया रहा चुनाव।

मंगलवार को मोहम्मद रफी की गाई फिल्मी गजले सुनवाई गई। पहली दो गजले साहिर लुधियानवी की थी -

इश्क के गरम जज्बात किसे पेश करूं (फिल्म गजल)
तुम एक बार मोहब्बत का इम्तिहान तो लो (फिल्म बाबर)
न किसी की आँख का नूर हूँ (फिल्म लाल किला - शायर बहादुर शाह जफ़र)
तुझे क्या सुनाउ ए दिलरूबा ( फिल्म आखिरी दांव - शायर मजरूह सुलतान पुरी)

ये सारी गजले सदाबहार नगमे कार्यक्रम सहित अन्य कार्यक्रमों में भी हम सुनते रहते हैं, यहाँ सुनवाने का कोई औचित्य नही लगा। अच्छा होता अन्य दो दिनों की तरह इस दिन भी दो गैर फिल्मी गजले सुनवाई जाती तो सप्ताह भर गुलदस्ता कार्यक्रम अच्छा हो जाता।

शनिवार को युनूस (खान) जी लेकर आए सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम जिज्ञासा। खेल जगत से कबड्डी में विश्व कप जीतने वाले भारत की चर्चा हुई, क्रिकेट जगत में सहवाग को मिले सम्मान की चर्चा हुई। विज्ञान की चर्चा में सेटेलाईट की बाते हुई, .कॉम के सफ़र की बात बताई गई और इस मौसम के ख़ास फल आम की खासुलखास बाते हुई। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने पी के ऐ नायर जी के तकनीकी सहयोग से।

सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। पूरा कार्यक्रम तारीफों का पुलिंदा था। श्रोताओं ने विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ की। एक जानकारी अच्छी दी गई, एक पत्र के उत्तर में बताया गया कि विविध भारती का इतिहास बताने का प्रयास किया जा रहा हैं जो जिज्ञासा या सखि-सहेली कार्यक्रम के माध्यम से बताया जाएगा।

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में सूफी गायिका कविता सेठ से रेणु (बंसल) जी की बातचीत प्रसारित हुई। सूफी गायिका से मिलना अच्छा लगा क्योंकि इस क्षेत्र में नई गायिकाएं शायद ही कोई हैं। बातचीत से पता चला कि कम उम्र से ही सूफी गायन से जुड़ी हैं, बरेली में पिता के साथ दरगाह पर सूफी गायन से प्रभावित हुई। बाद में अलग-अलग स्थानों से शिक्षा ली जैसे ग्वालियर घराना, गन्धर्व महाविद्यालय। अमीर खुसरो की पंक्तियाँ - छाप तिलक छब छीनी जब गुनगुना कर सुनाई तो आनंद आ गया। नई फिल्मो में भी उनके गीत हैं, वादा फिल्म के गीत की झलक सुनवाई -

जिन्दगी को संवार दे मौला

पिछले रविवार को ही यह फिल्म दोपहर में दूरदर्शन पर दिखाई गई थी। गैंगस्टर फिल्म के गीत की झलक भी सुनवाई। शायद गीतों की झलक इस कार्यक्रम में पहले नही सुनवाई जाती थी। इस कार्यक्रम के रिकार्डिंग इंजीनियर रहे विनायक (तलवलकर) जी और प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही। बातचीत जारी हैं, अगले सप्ताह अगला भाग प्रसारित होगा।

गुरूवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। इस बार चयन अच्छा रहा। विभिन्न रागों की झलक लिए यह फ़िल्मी गीत सुनवाए गए -

राग पहाडी - मोहब्बत बड़े काम की चीज हैं (फिल्म त्रिशूल)
राग देसी में बहुत ही कम सुना जाने वाला गीत फिल्म हीर से - गले से लगा ले नजर झुक गई
राग चारुकेशी - कृष्ण कन्हैय्या बंसी बजैय्या (संत ज्ञानेश्वर)
बहुत ही कम प्रचलित राग जिसका नाम भी अलग हैं - राग मालगुंजी की झलक, यह अच्छा हुआ कि अमरकांत जी ने नाम दो बार बताया वरना राग का नाम पहली बार मैं नोट ही नही कर पाई थी। ऐसे राग पर आधारित हैं यह लोकप्रिय गीत, यह जान कर भी अच्छा लगा -
हम आज कही दिल खो बैठे (फिल्म अंदाज)

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है। शुक्रवार को सुनवाई गई झलकी - लखपति की मौत जिसके निर्देशक है दीनानाथ। घर सजाने के लिए खरीदी गई वस्तु वापस लेने आता हैं और कहता हैं यह उसके बुजुर्गो की निशानी हैं जिसके लिए वह एक लाख रूपये देने के लिए भी तैयार हैं। इन्हें लगता हैं उसमे हीरे जवाहरात हैं, तोड़ने पर कुछ नही मिलता यानि लखपति बन नही पाते। लेखक दिलीप सिंह की इस झलकी में रेस की घोड़ी का मजा नही आया। यह दिल्ली केन्द्र की प्रस्तुति थी।

शनिवार को डा शंकर शेष की लिखी नाटिका सुनवाई गई जो ऐतिहासिक घटना पर आधारित हैं, एक कुत्ते का नाम राणा सांगा रखकर महल के द्वार पर बाँध दिया जाता हैं जिसे छुडाने युद्ध होता हैं जिसमे वीरांगना रजिया मुकाबला करती हैं और शहीद होती हैं। इसके प्रस्तुतकर्ता हैं पुरूषोत्तम दारवेकर।

रविवार को ई एम रायजादा की लिखी झलकी सुनी - लोभी गुरू और लालची चेला। धोखेबाज गुरू चेला सट्टा बाजार से पहचाने जाते हैं। निर्देशक हैं कमल दत्त। यह दिल्ली केंद्र की प्रस्तुति रही।

सोमवार को सुनवाई गई नाटिका - शिकार जिसके लेखक है के एल यादव जीवहिंसा पर बढ़िया प्रस्तुति रही। पति दोस्तों के साथ शिकार पर जाने वाला हैं, पिछली रात सपने में शेर देखता हैं, उससे डरता भी हैं और सन्देश भी मिल जाता हैं फिर शिकार पर नही जाता। लखनउ केन्द्र की इस प्रस्तुति की निर्देशिका देखता चंद्रप्रभा भटनागर।

मंगलवार को सलाम बिन रज्जाक की लिखी नाटिका सुनी - शरारत जिसके निर्देशक है गंगा प्रसाद माथुर। एक नोट लेकर वह एक-एक के पास जाता हैं और कहता हैं यह ले लो। कोई समझता हैं वह जाली नोट का धंधा करता हैं, कोई कुछ और समझता हैं, चलता हैं.... मनोरंजन तो हुआ। मुम्बई केंद्र की यह प्रस्तुति रही।

बुधवार को प्रोफ़ेसर चन्द्र शेखर पाण्डेय की लिखी झलकी सुनी - उपचार जिसकी निर्देशिका हैं अनुराधा शर्मा। विविध भारती की यह प्रस्तुति आधुनिक समाज पर थी। पत्नी को लगता हैं पति का बाहर कुछ चक्कर हैं, वो भी किसी को घर में बुलाकर नाटक करती हैं।

गुरूवार को झलकी सुनी -दौरा। पति को दौरे पर जाना हैं। सभी अपनी-अपनी चीजे लाने के लिए कहते हैं और अंत में वह जरूरी फ़ाइल ले जाना ही भूल जाता हैं। दिल्ली केंद्र की इस प्रस्तुति के लेखक हैं के आर भटनागर और निर्देशक वी पी दीक्षित।

इस तरह हवामहल में विविधता रही - जीवहिंसा, साधु के भेष में ठगी जैसे मुद्दे उठाए गए, इतिहास से प्रेरणादायी प्रसंग लिए गए और मनोरंजन भी हुआ।

प्रसारण के दौरान संदेश भी प्रसारित किए गए, कार्यक्रमों के बारे में बताया। एकाध बार क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 बजे से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

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