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Saturday, May 10, 2008

जी हुज़ूर, बहुत फ़र्क है आकाशवाणी और एफ़एम स्टेशनों के कार्य-कल्चर में !

अब आप पूछेंगे क्या...तो एक ख़ास फ़्रर्क तो है कामकाजी कल्चर का. हुआ यूँ कि एक स्थानीय एफ़एम स्टेशन ने एक इश्तेहार के वॉइस ओवर के लिये मुझे बुक करना चाहा. पहले भी एक दो बार उनके लिये काम किया था लेकिन बस चाय-कॉफ़ी यानी सौजन्य पर लौट कर आ गया. इस बार जब कॉल किया तो मैने याद दिलाया कि पिछली बार तो आपके ही स्टेशन के प्रोमोज़ करने थे तो राज़ी खु़शी काम कर दिया लेकिन इस बार मेरी आवाज़ को कमर्शियली इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सौजन्य सेवा संभव नहीं होगी. बातचीत करने वाला बंदा मार्केटिंग का था बोला सर ! प्रोग्रामिंग हेड से बात कर के आपको फ़ोन करता हूँ...आप अपनी अपेक्षाएँ बता दें. मैने कहा
हम आकाशवाणी संस्कृति के लोग हैं ...हम अपना रेट बताने के आदी नहीं आपके स्टेशन के जो भी व्यावसायिक मानदंड हैं , मुझे मंज़ूर होंगे.मैने सोचा इस बार बात हो ही जानी चाहिये ....क्योंकि आख़िर आप भी मेरी आवाज़ को बेच ही रहे हैं न. ख़ैर थोड़ी ही देर बाद बंदे का फ़ोन आया...कहने लगा सर ! हमारे पैकेज इस तरह से हैं . मैने कहा बात राशि की नहीं व्यावसायिक अनुशासन की है.
मैं पहुँच गया उनके स्टेशन ...स्क्रिप्ट देखा....स्टुडियोज़ में पहुँचे...एक दो टेक में काम हो गया....वाह ! वाह !...चलें ...जी सर !मज़ा आ गया...ये ही तो हम चाहते थी...हमारे आर.जे. से बात बन नहीं रही थी.
अपन तारीफ़ सुन कर लस्सी लस्सी (दैनिक भास्कर इन्दौर के कार्टूनिस्ट और मेरे मित्र इस्माईल लहरी का ईजाद किया मुहावरा) हुए जा रहे..आइये सर ! आपको हमारे स्टेशन हेड से तो मिलवा दूँ...मार्केटिंग वाले बंदे ने कहा.मैने
सोचा चैक वहाँ मिलेगा...उनके कैबिन में पहुँचे...बातचीत हुई...कैसे हैं...क्या चल रहा है...(चैक की कोई बात नहीं) मैने इजाज़त ली श्रीमान से. मार्केटिंग वाला युवक साथ साथ दरवाज़े तक छोड़ने आया...कहता है सर ! वो जो अमाउंट की बात हुई थी...एक बिल हमारे स्टेशन के नाम से भेज दीजिये...मुंबई से पेमेंट आ जाएगा...मैं क्या करता मन मसोसकर भरी धूप में घर चला आया.
रास्ते में आकाशवाणी के सुनहरे दिन याद आए...आपको प्रोड्यूसर का फ़ोन आया है, संजय भाई....नाटक के लिये आपको कल आना है ...कितनी बजे...ठीक वक़्त पर पहुँचिये आकाशवाणी के ड्यूटी रूम पर प्रोड्यूसर या निर्देशक बाक़ायदा आपका इंतज़ार कर रहा है.
आइये संजय भाई...यहाँ एक दस्तख़त कर दीजिये....चलिये रिहर्सल के लिये चलते हैं... एक दो घंटे में काम हो गया है...रेकॉर्डिंग हो गई है...बाहर निकलिये ...ड्यूटी रूम में आइये...बीस पैसे (आजकल एक रूपये का ) लाल रेवेन्यू स्टैंप निकालिये...नहीं है तो उतने पैसे चुकाइये और दस्तख़त कीजिये ...आपका चैक तैयार है...शाम को रेकॉर्डिंग पूरी करते ड्यूटी ऑफ़िसर जा चुका है तो नाटक का निर्देशक आपसे कहेगा संजय भैया कल ग्यारह बजे प्लीज़ आ जाइयेगा...और चैक ले जाइयेगा...
ये थी आकाशवाणी की तहज़ीब,जिसमें अतिथि कलाकार (केज़्यअल आर्टिस्ट) के लिये एक ख़ास तरह का आदर भाव और यह एहसास कि फ़लाँ कलाकार अपना समय निकाल कर हमारी प्रस्तुति को बेहतर बनाने आया है.

एयर कंडीशनर से लकदक एफ़एम कल्चर में स्कर्ट पहनी,फ़र्राटे से अंग्रेज़ी में चपड़ चूँ..करती युवतियों का शोर है....ठहाके हैं, बेतक़ल्लुफ़ी है लेकिन वह तमीज़ गुम है जो हमारे भारतीय जनमानस को फ़बती है. हो सकता है मैं पारम्परिक सोच वाली बात कर रहा हूँ या ये भी हो सकता है कि मैं आउट डेटेड हो चुका हूँ लेकिन फ़िर भी न जाने क्यूँ आकाशवाणी का वह सादा, आत्मीय,और संस्कारित परिवेश मुझे आज भी हाँट करता है ।

तलत महमूद की आवाज़ में विविध भारती पर बजता तराना गुनगुनाते हुए मैं आज फ़िर आकाशवाणी को
याद करते नहीं अघाता…लेकिन कर क्या भी सकता हूं …सिवा गुनगुनाने के

ऐ ग़में दिल क्या करूँ
ऐ वहशते दिल क्या करूँ


टीप: ये न समझ लीजिये कि मेरी ये पोस्ट सिर्फ़ भुगतान के विलम्बित हो जाने की झल्लाहट है . ये सिर्फ़ एक कार्य संस्कृति का शब्द चित्र है जिसमें बाज़ार की घुसपैठ है ...और तक़ाज़े हैं किसी काम को कैसे भी करवा लेने के.

8 comments:

Anonymous said...

यह तहजीब तो अब भी है आकाशवाणी में है, कल ही मैं अपनी रिकार्डिंग समाप्त कर निकली तो मेरी प्रोड्यूसर ने बताया प्लीज थोडा रूक जाइए शाम छ बजे तक चैक मिल जाएगा मैनें कहा मुझे जल्दी है. शनिवार रविवार छुट्टी होती है मुझे सोमवार सुबह चैक लेना है मैनें कहा सुबह मुझे मुश्किल होगी प्लीज आप ड्यूटी आफिसर से कह दीजिए मैं शाम में आकर ले लूंगी. लगता है एफएम होता तो...

annpurna

काकेश said...

आपकी बात से सहमति.

Kirtish Bhatt said...

बड़े बेशरम होते हैं जी इस प्रजाति लोग....अच्छा किया आप ने उस एफ एम् स्टेशन का नाम नही लिखा वरना आपके पेमेंट में से कुछ राशी काट ली जाती कि आपने अपनी पोस्ट में उनके ब्रांड के नाम का उपयोग किया.

Yunus Khan said...

संजय भाई । इसकी तुलना हम पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी से कर सकते हैं । गणित पढ़ाने वाले कंड्या मास्‍साब बजार में भी मिल जाएं तो हम चरण स्‍पर्श के लिए ( सचमुच चरणों तक ) झुक जाते थे । आज मास्‍साब मिलें तो घुटनों तक ही झुकते हैं बच्‍चे । चरणों तक नहीं पहुंचते । इसी तरह आकाशवाणी केंद्रों और प्राईवेट एफ एम केंद्रों में फर्क है । ये सच है कि आकाशवाणी से उतने पैसे नहीं मिलते जितने शायद ये नए चैनल दें, लेकिन तहज़ीब के नाम पर ये चैनल शून्‍य हैं । और ये बात आकाशवाणी परिवार का सदस्‍य होने के नाते नहीं कह रहा हूं बल्कि बिल्‍कुल तटस्‍थ भाव से कह रहा हूं ।
दरअसल पीढियों के बदल जाने से संस्‍कार जैसे कहीं बिला गए हैं । आकाशवाणी का अपने अतिथियों से पुराना नाता होता था ।
ज़रा सोचिए कि अपने अपने क्षेत्रों में कामयाब हो चुके ना जाने कितने लोग विविध भारती या आकाशवाणी पर सिर्फ इसके सम्‍मान की खातिर आते हैं । जैसे सुधीर पांडे, पंकज उधास, अमीन सायानी, जैकी श्रॉफ कितनी लंबी लिस्‍ट है ।
ये लोग केवल रेडियो से जुड़ी यादों की वजह से और रेडियो के प्रति प्‍यार की वजह से आते हैं ।
जावेद अख्‍तर के घर जब हम रिकॉर्डिंग के लिए गए और कॉन्‍ट्रैक्‍ट साईन करवाते हुए कहा कि आपको कुछ पैसे भेजे जायेंगे तो उनका कहना था कि अरे वाह...और ये प्राईवेट एफ एम तो डायरी और पेन वगैरह देकर इतना बुलवा लेते हैं ।
अब आप खुद समझ जाईये

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आकाशवाणी के प्रति आज भी आपका स्नेह झलकता है सँजय भाई
नयी सँस्कृति,
भारत को कहाँ ले जा रही है ? :(
-- लावण्या

Anonymous said...

आकाशवाणी के लिये उपर जो लिखा़ गया है, यह ९९% सच है, पर एक प्रसंग मैं इस प्रकार का जानता हू~, कि एक बहोत बडे़ राष्ट्रीय कक्षा के कलाकार सुरतमॆं रहते है, वे करीब १३ साल पहेले आकाशवाणी पर इन्टर्व्यू हुआ था । उनसे कोन्ट्राक्ट पर हस्ताक्षर भी करवाये गये थे, पर उस महिला कार्यक्रम अधिकारी की, जो सुरत की ही रहेने वाली है, वगैर प्रमोशन तबादला कर दिया गया था । तो उसने अपना इस तरह का काम अधूरा छोड़ना चाहा और चली गयी । तो इस तरह के बडे़ कलाकार किसी को याद करवाना ठी़क नहीं समझते । तो वे नुकसानमें रहे । मेरा निजी अनुभव ९९ % सही रहा है, पर एक केन्द्र निर्देषक को सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय शाश्त्रीय संगीत का ही पागल पन था । तो एक उद्दधोषकने मेरा इन्टरव्यू करना चाहा तो कोई कोन्टाक्ट नहीं बनाने कि शर्त पर ही मंजूरी मिली थी। करीब १९९९ की बात है । बडे लोग चेक़ मांगने के लिये फिरसे जाना अपने स्वमान के बाहर की बात समझते है ।
पियुष महेता
सुरत

सागर नाहर said...

यह अंग्रेजी में गिटर पिटर करने वाली संस्कृति हर जगह मिल जायेगी। उन्हें कलाकार के सम्मान से क्या लेना देना?
उन्हें बस किसी भी तरह अपना काम निकलवाना होता है।

@संजय भाई साहब
आपकी पोस्ट किसी कारण से एक और हो गई थी पैरा सही नहीं बन रहे थे, सो मैने उसे संपादित करने की गुस्ताखी की है, आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे।

Pavan said...

कुछ अनुभव जो पहले आर.एम.आई.एम पे सुना चुका हूं.. २-३ साल पुरानी बात है, मगर इस मंच के लिये उपयुक्त है



22.Aug.05

Usually this is the time for Vividh Bharati to take a short evening
sleep of about 45 minutes from 5.30 PM to 6.15 PM (atleat it is
scheduled at Jaipur and If I recall the other day, the announcer did
mentioed ki 'its 5.30 and we will resume the VBS at 6.15 PM but VBS on DTH will continue).. I prefer VBS on DTH as in Jaipur the FM provider
is Vividh Bharati Jaipur only and they have given a big slot to a local private vendor.. so most of the times (from 9 AM to 3 PM and then 5 PM to 7PM) on Radio its local private party (Radio PonkCity) presenting their own garbage.. aping other FM stations).. but on DTH I receive the genuine VBS programmes all the times..

Let me tell you how good our local programmers are..

This 4th august they had a special tribute to Kishore da in tribute
program of his songs.. and they played "Tum bin jaaoon kahan" by Rafi saab.. (seems they are heavily dependent on MP3 Playlists and not even reherse for the show)

And a few weeks back, day in one of the phone in programmes, the
listener on phone requested to play Lata Ji's song by singing a couple
of lines "ki ye wala sun-na hai".. and the announcer (RJ or the Radio
Jockers) acknowleged "Oh yes what a beautiful song you've selected..
and Vandana Vajpayee ne kitna achha gaya hai ye gaana." and she played
VV's version of the song..

These were some moments when I wanted to relive the Phoolan Devi act.. anyway I never put on the local FM since then..


Another one, when I incidentally put on the Local FM again

14.Dec.05
The High Profile Jaipur FM station does it again.. Was surfing the car stereo's radio for the audio commentary of India-SL test match in the morning while driving to the office.. During the switching, I was delighted to hear "Mujhko apne gale laga lo ai mere hamraahi" on the FM station.. As soon as the song stopped I came to know that its being played in a tribute programme to Late Sh. Ramanand Sagar. I thought, this time the FM wallas are quick in coming up with a tribute programme.. but suddenly I realised something's wrong.. what Sagar saab
has to do with this song? Sagar saab did produced one of the 'Hamraahi' (Randhir Kapoor-Tanuja) but that has nothing to do with this song...
anyway the highly knowledgable Radio Jockey(r) continued to praise
Ramanad Sagar as if he's the greatest of all times.. She also informed us that Sagar saab made 25 films out of 15 were super hits.. then she told us some of his films even run for 75 weeks.. then she named a few silver jubilee hits including Ghunghat, Zindagi, Arzoo, Geet, Lalkaar, Hamraahi, Charas.. aur unki diamond jubilee "Aankhein" ko kaun bhool
sakta hai, she told us.. (Later I found that the words of her script
were taken as it is from Sagar arts/rediff web site, with not even a change in the order).. but the climax was even horrible.. when she told about the Diamond jubilee "aankhein", ki lijiye iska geet sun-te hain..
and she played..

Shaadi tujhi se ho meri, aur shaadi ke din mar jaaon".. (David
Dhawan's Aankhein)

What a TRIBUTE.... I wish ki ye log swarg me to sagar saab ko chain se
jeene dein.. No tribute is better tribute than this one..

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