रेडियोनामा: गुलदस्ता
आपने जो सुगम संगीत के और गुल्दस्ता के बारेमें लिखा़ है, वह सही है, पर यह बात संगीत के सभी प्रकारो को लागु होती है, यहा~ तक, कि फिल्म संगीत की भी कई रचनाएं इस तरह की है, उदाहरण के तौर पर गोल्डन ज्यूबिली मन चाहे गीत्तमें स्व. किशोर दा का गाना करीब ३ अक्तूबर,२००७ के दिन बजा था, जो फिल्म मूसाफि़ऱ से था और सलिलदा के संगीतमें था, जिसके बोल थे मून्ना बडा प्यारा जो विविध भारती की केन्द्रीय सेवा से पहेली बार बजा था, जो अभी तक तो अन्तीम बार ही है । मेरी फोन इन फरमाईश पर, जो किशोरदा के लिये विषेष था, फिल्म मेम साहब का गाना दिल दिल से मिला कर देखो, भी प्रथम बार और अभी तक़ अन्तीम बार बजा था । फिल्मी धूनो का तो क्या कहना ? सन २००० के मिलेनियम छाया गीत के दौरान एक और सिर्फ़ एक दिन श्री युनूसजीने अन्तराल के दौरान श्री एनोक डेनियेल्स की पियानो-एकोर्डियन पर बजाई ७८ आरपीएममें रेकोडमें प्रस्तूत फिल्म दिल अपना और प्रित पराई के गीत मेरा दिल अब तेरा हो साजना सुनाई थी, जो भी प्रथम बार और अब तक अन्तीम बार थी ।
क्षेत्रीय सुगम संगीत के कलाकारों का भी आकाशवाणी के क्षेत्रीय चेनलोनए यही हाल किया हुआ है । आकाशवाणी अहमदाबाद के एक समय के सहायक केन्द्र निर्देषक श्री तुषार शुक्ल साहबने उस समय एक साप्ताहिक श्रंखला कंकुनो सुरज नाम से शुरू की थी जिसमें इस प्रकार के सभी गुजराती नाट्य संगीत, सुगम संगीत और फिल्म संगीत को परस्तूत करके सभी की सभी रचनाओंसे इन्साफ़ किया था। जिसमें श्रोताओं के प्रतिभाव (मेरे दो बार सहित) भी प्रस्तूत होते थे और कई श्रोताओंने तो अपने निजी़ संग्रहमें से भी इस प्रकार की रचनाओं को आकाशवाणी को भेंट के रूपमें दिया था । पर अब काफी़ लम्बा समय इस श्रंखला को बंध हुए हो गया ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१
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Saturday, May 31, 2008
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