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Monday, May 5, 2008

इलाहाबाद आकाशवाणी, बालसंघ और बड़े भैया विजय बोस

हमारे एक मित्र हैं डाकसाब। बाक़ायदा पेशे से डॉक्‍टर और रेडियो के अपार प्रेमी । उन्‍होंने पिछले दिनों एक ऑडियो क्लिप भेजा और कहा कि ममता जी की परीक्षा होगी इससे । उनसे कहिए कि इस आवाज़ को पहचानें । सारा इलाहाबाद इस आवाज़ से प्रेम करता है । वो ऑडियो क्लिप इस पोस्‍ट का हिस्‍सा भी है ।
दरअसल इलाहाबाद में बल्कि देश के लगभग सारे आकाशवाणी केंद्रों में रविवार को बच्‍चों का एक कार्यक्रम आया करता था । मैंने आपको पहले ही बताया है कि मैंने जीवन में पहली बार रेडियो तभी देखा था जब इस कार्यक्रम में पापा मुझे लेकर गए थे ।
.... ये देखकर बड़ा अफसोस होता था कि बड़े भैया की नज़रों के सामने उनकी पत्‍नी तिल तिल करके खत्‍म हो रही हैं । तब मुझे ये अहसास हुआ कि किस तरह रेडियो कलाकार अपनी निजी जिंदगी के दुखों को सीने में दबाए हुए दूसरों को खुश करते रहते हैं ।
और मैंने कोई कविता सुनाई थी । भोपाल में मकबूल हसन साहब और शायद    पुष्‍पा तिवारी इस कार्यक्रम को करते थे । इलाहाबाद आकाशवाणी केंद्र से बच्‍चों के इस कार्यक्रम को 'बाल संघ' के नाम से प्रस्‍तुत किया जाता था । याद रहे कि वो ज़माना कंप्‍यूटर गेमों और टेलीविजन का नहीं था । और बच्‍चों के कार्यक्रम सारे शहर में सुने जाते थे, बल्कि दूर दराज़ के गांवों तक । पास पड़ोस के शहरों तक सब जगह । इलाहाबाद आकाशवाणी के बालसंघ कार्यक्रम को बड़े भैया प्रस्‍तुत करते थे । जो करेले के फैन होते थे । उनका कहना था कि बड़ों की सीख करेले की तरह कड़वी लेकिन फायदेमंद होती है । उनकी आवाज़ कमाल की थी और सुनने वालों ने इस आवाज़ से अपने मन में उनकी एक तस्‍वीर बना रखी थी कि 'बड़े भैया' ऐसे होंगे, बड़े भैया वैसे होंगे । बड़े भैया ने कई रेडियो नाटकों में भी काम किया और लोकप्रियता हासिल की ।
                                 Vijay Bose
डाकसाब लिखते हैं---'बड़े भैया से मिलना या उनको देखना हमारा सपना होता था । खैर बचपना बीता और हम बड़े हो गये । बचपन की यादें मन में कहीं दबी पड़ी रह गयीं । फिर उन दिनों की बात याद आती है जब मैं SRN अस्‍पताल इलाहाबाद में RSO था । मुझे डॉक्‍टर तहिलियानी ने बुलाया और कहा कि स्‍तन कैंसर से ग्रस्‍त इस महिला की नियमित रूप से कीमोथेरेपी करनी है । महिला के साथ एक अधेड़ उम्र के कम बालों वाले व्‍यक्ति थे । उनसे पूछताछ की तो पता चला कि वो इलाहाबाद आकाशवाणी में काम करते हैं । तब तक मैं उन्‍हें नहीं पहचान पाया । फिर जब उन्‍होंने अपना नाम बताया- विजय बोस । तो मुझे जैसे पूरा का पूरा अपना बचपन याद आ गया । फिर उनसे मलाक़ातें होती रहीं और बालसंघ के बारे में बातें भी होती रहीं  । उन्‍होंने बताया कि अभी भी वो बालसंघ करते हैं । तो मैंने उन्‍हें एक पहेली दी । जो बचपन में मारे संकोच के नहीं भेज सका था । उन्‍होंने इस पहेली को कार्यक्रम में शामिल किया और मैंने हॉस्‍टल के अपने कमरे में किसी तरह उसे रिकॉर्ड भी किया ।



मुझे ये देखकर बड़ा अफसोस होता था कि बड़े भैया की नज़रों के सामने उनकी पत्‍नी तिल तिल करके खत्‍म हो रही हैं । तब मुझे ये अहसास हुआ कि किस तरह रेडियो कलाकार अपनी निजी जिंदगी के दुखों को सीने में दबाए हुए दूसरों को खुश करते रहते हैं । बड़े भैया की पत्‍नी नहीं रहीं । आगे चलकर उनकी एक विवाहित बेटी का भी देहांत हुआ । लेकिन बड़े भैया बाल संघ करते रहे । और उनकी आवाज़ की चमक कभी मद्धम नहीं पड़ी । उसमें वही खुशी और उल्‍लास था, जबकि निजी जिंदगी में उनके मन पर दुखों के बादल छाए थे । आज भी हम अच्‍छे मित्र हैं । मैंने पिछले दिनों उनका एक इंटरव्‍यू रिकॉर्ड किया है । ताकि उनके जीवन की यात्रा पर कुछ प्रकाश डाला जा सके ।
टाइम्‍स ऑफ इंडिया में सन 1990 में विजय बोस यानी बड़े भैया पर एक लेख छपा था । जिसमें बड़े भैया ने अपने जीवन की कुछ अनछुई बातें बताई हैं । बड़े भैया कहते हैं कि वो पांच साल के थे जब उन्‍हें संगीत का शौक लग गया था । तब सड़कों पर बजते गाने वो ध्‍यान से सुनते और उन्‍हें याद भी कर लेते । यही नहीं दाढ़ी मूंछें आने से पहले तक मैं महिला पात्रों की तरह नाचता, गाता, उनके संवाद भी बोलता रहा । हालांकि घर में इन बातों को प्रोत्‍साहन नहीं मिलता था । लेकिन भाग्‍यवश मेरी मुलाकात हुई ओमप्रकाश शर्मा से । जो एक मशहूर रंग-निर्देशक थे । ग्‍यारह बरस की उम्र में उन्‍होंने मुझे स्‍टेज पर उतारा । और तब से मैंने पलटकर नहीं देखा ।
मेरे ऊपर लखनऊ रेडियो स्‍टेशन के बेहद मकबूल नाटयकर्मी मुख्‍तार अहमद साहब का गहरा असर था । मुख्‍तार साहब को आपने विविध-भारती के हवामहल में भी सुना होगा । वो मेरे आदर्श और गुरू रहे । हालांकि कभी उनसे सीखने का सौभाग्‍य हासिल नहीं हुआ । 1950 में मैंने NITA (north indian theatrical association) की स्‍थापना की । ये वो समय था जब फिल्‍मों, रेडियो और नाटकों की वजह से रंगमंच की धारा मद्धम पड़ रही थी । 'नीता' के बैनर तले कई मशहूर नाटक खेले गये जैसे- बिराज बहू, अलग अलग रास्‍ते, युगावतार, अनारकली इत्‍यादि । सन 1949 में जब इला‍हाबाद में आकाशवाणी केंद्र खुला तो मुझे बतौर स्‍टाफ आर्टिस्‍ट रख लिया गया । तब के केंद्र निदेशक सुनील बोस ने मेरे लिए विशेष रूप से एक पद निर्मित किया । इसके बाद रेडियो की तमाम विधाओं में काम किया । बाद में मैं उदघोषक बन गया । अनेक नाटकों का निर्देशन किया, बच्‍चों का कार्यक्रम किया । तमाम तरह के काम किये । जिन नाटकों को करके मुझे खासी संतुष्टि मिली उनमें से कुछ के नाम हैं- सत्‍पुत्र, अंजू दीदी, न्‍याय दंड, परम महेश्‍वर, कल्‍लोल, तलवार की आरती, मटिया बुर्ज की एक शाम, शाहजहां, कौमुदी महोत्‍सव वगैरह । 
ये रही डाकसाब द्वारा की गयी रिकॉर्डिंग । जिसमें बड़े भैया अपने जीवन की कथा सुना रहे हैं ।



तो ये थी ब्रड़े भैया विजय बोस को समर्पित पोस्‍ट । बड़े भैया विजय बोस इलाहाबाद में सेवानिवृत्‍त जीवन बिता रहे हैं । हम कामना करते हैं कि वे शतायु हों । अगर आपमें से कोई रेडियोप्रेमी उनसे बात करना चाहे तो मेल कीजिए, उनका नंबर भेज दिया जायेगा । अगर आप रेडियोप्रेमी हैं और आपके जीवन में रेडियो के किसी पुराने प्रस्‍तुतकर्ता की भूली बिसरी याद है तो कृपया संपर्क करें रेडियोनामा से । आईये रेडियो के पुराने मशहूर प्रस्‍तुतकर्ताओं के काम को सलाम करें ।

विकीपीडिया पर बड़े भैया के बारे में यहां पढ़ें 

5 comments:

Anonymous said...

इस चिट्ठे के लिए धन्यवाद !

आपने जो वाक्य लिखा कि रेडियो के किसी पुराने प्रस्तुतकर्ता की भूली-बिसरी यादें…

अरे कोई एक हो तो कहें यहाँ तो लम्बी-चौड़ी सूची है। सिर्फ़ हवामहल की ही लम्बी सूची है बाकी सब कार्यक्रमों की तो अलग बात है। आपने एक नाम लिया मुख़्तार अहमद जो समुद्र में बूँद की तरह है।

मेरा अनुरोध है कि रेडियोनामा पर एक ऐसी श्रृंखला चलाई जाए जिसमें सभी के बारे में एक-एक करके बताया जाए।

अन्नपूर्णा

Anonymous said...

Respected Yunus sahab & MamtaJi
Thanx from the bottom of my heart because aapne apne blog main baba ko space diya.
kabhi kabhi main bhi aapka yeh blog dekhta hoon,aachch hai aur gyanwardhak bhi hai.
aapko dheroin subhkamnayain

Dr.Tripathi key barey main kya likhuun veh baba ke bachchey hain
unhe bhi dheroin aashirwad

regards
kamalbose-eldest son of Sh.Vijai bose.

सागर नाहर said...

बहुत ही अच्छा लगा पढ़/सुनकर...आपके संग्रेह में से ऐसे ही और इंटर्रव्यू निकालिये सर!
बड़े भैया के बारे में जानकर भी बहुत अच्छा लगा एक सामान्य मिल मजदूर से आप इतने उंचे ओहदे पर पहुंचे। अस्सी वर्ष की उम्र में आप इतना बढ़िया बोलते हैं।
बड़े भैया को सादर प्रणाम।

Anonymous said...

"अगर आप रेडियोप्रेमी हैं और आपके जीवन में रेडियो के किसी पुराने प्रस्‍तुतकर्ता की भूली बिसरी याद है तो कृपया संपर्क करें रेडियोनामा से" - यूनुस
"मेरा अनुरोध है कि रेडियोनामा पर एक ऐसी श्रृंखला चलाई जाए जिसमें सभी के बारे में एक-एक करके बताया जाए।" - अन्नपूर्णा
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आपने तो वाकई मेरे मुंह की बात छीन ली, अन्नपूर्णा जी ।
आपकी बात को यूनुस जी की बात से मिलाते हुए, लीजिये पेश है मेरी पहली फ़रमाइश:
बहुत ही छोटा था, शायद तीन -चार साल का ही, जब की यादों में शुमार है जाडो़ की गुनगुनाती धूप में , इतवार की फ़ुरसतिया दोपहरों में, यही कोई दो-ढाई बजे, सालों तक सारे घर का आँगन में बैठकर, विविध भारती पर " अपना घर " सुनना । घर भर के लिये इसमें कुछ न कुछ होता भी था ।तब एक आवाज़ , जिसका बच्चों से लेकर बडे़- बूढों तक सबको बडी़ ही बेसब्री से इन्तज़ार रहता था , वह थी श्री बृजेन्द्र ( या ब्रजेन्द्र ? ) मोहन की । हास्य-व्यंग्य की रचनाओं को पढ़ने का उनका जो अन्दाज़ था, वैसा आज तक फिर दोबारा देखने-सुनने को नहीं मिला । मुझे तो आज भी लगता है कि हिन्दी की कोई भी हास्य-व्यंग्य की रचना अधूरी है, अगर उसे बृजेन्द्र मोहन का स्वर नहीं मिल पाया,तो ।
हाल में ही अपनी स्वर्ण - जयन्ती के अवसर पर विविध भारती ने अपनी भूली-बिसरी यादों का खज़ाना जो खोला, तो उसमें सबसे नायाब मोती मुझे तो यही नज़र आया ।
ज़िन्दगी की तमाम आधी-अधूरी रह गयी हसरतों में से एक खा़स है - श्री बृजेन्द्र मोहन जी की अवाज़ की सीरत के बाद उनकी सूरत से भी रू-ब-रू होना और उनकी निजी ज़िन्दगी की किताब के भी कुछ पन्ने पढ़ना ।
मेरी यह हसरत पूरी करेंगे क्या; यूनुस भाई ?
- वही
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बडे़ भैया के बारे में भी मेरे मुँह की बात पहले ही छीन ली है-सागर नाहर जी ने !

vanshraja said...

Main apke madhyam se vivid bharati ko ek sandesh bhejna chahta hoon. main vivid bharti bachpan se sun raha hoon aur ab 45 saal ka ho chuka hoon. pehle ham vivid bharti ko bina kisi pareshani ke saaf-saaf sun sakte the par pichhale 5-7 saalon se hum delhi mein Vivid Bharti bilkul bhi nahi sun pa rahe hain, agar kabhi raat ko sunte bhi hai to shor ke saath. Kad-Kad ki awaaz lagataar aati rehti hai. Vivid Bharti ko please FM mode mein shift karne ki kirpa kar varna ek behad purana shrota kho baithenge. Hum AIR ki Urdu Service to pehle hi chod chuke hai (low frequency ke karan) ab Vivid Bharti ki baari hai, jiska hame afsos rahega. Dhanyewaad.

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