आज मैं चर्चा करना चाहती हूँ विविध भारती के संदेशों की। साथ ही कुछ संकेत धुनों की भी। वास्तव में बात है आवाज़ के स्तर की।
कभी आपने सुना होगा यह संदेश -
थोड़े से संगीत के बाद कहा जाता है - आप सुन रहे है विविध भारती और इसके बाद फिर बज़ उठता है संगीत जिसकी आवाज़ का स्तर बहुत ऊँचा है। इतना ऊँचा है कि अगर तुरन्त आवाज़ कम न की गई तो लगता है कि घर की छत ही उड़ जाएगी।
आवाज़ कम करने के लिए रेडियो के पास ही जाकर नाँब घुमाना पड़ता है क्योंकि रेडियो को तो रिमोर्ट कन्ट्रोल नहीं होता है कि आप दूर से कहीं से भी आवाज़ कम करें और बढा लें।
अक्सर शाम में ये कसरत हो जाती है। सात बजे राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन के लिए आवाज़ बढानी पड़ती है। समाचार समाप्त होने के बाद तुरन्त आवाज़ कम करना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि संदेश की आवाज़ बहुत बढ जाती है और यही समय होता है दूरदर्शन के क्षेत्रीय समाचार के मुख्य बुलेटिन का जो पन्द्रह मिनट चलते है और यही वह समय है जब एक पैर रसोई में होता है।
अगर यह सोच कर छोड़ भी दे कि कुछ सेकेण्स का ही तो संदेश है और कभी-कभी संदेश नहीं भी बजता है पर नहीं… उसके बाद बजने वाली जयमाला की संकेत धुन की आवाज़ का स्तर तो… ओफ़्फ़ ! लगता है युद्ध का बिगुल बज उठा है और देश भर के सैनिकों का आह्वान किया जा रहा है। सबसे ऊँची आवाज़ जयमाला के संकेत धुन की ही है।
इतना ही नहीं संकेत धुन के बाद एक बार फिर आवाज़ बढानी पड़ती है तभी तो आप कार्यक्रम सुन पाएगें। जैसे ही उदघोषक की आवाज़ आए रेडियो की आवाज़ बढानी है।
सिर्फ़ शाम ही नहीं दिन में भी कभी-कभार ऐसा हो जाता है। समाचार सुनने के लिए तो आवाज़ ज़रूर बढानी है और समाचार सुनने के बाद ज़रूर कम करनी है।
जहाँ तक संकेत धुनों का सवाल है वन्दनवार की धुन में आवाज़ का स्तर सामान्य है। अन्य धुनों में बढा हुआ है जो जयमाला के लिए ऊँचाई पर है। सभी संदेशों में आवाज़ का स्तर ऊँचा है।
वैसे यह ग़लत भी नहीं कि संदेशों और संकेत धुनों की आवाज़े ऊँची होनी चाहिए पर अब तो स्थितियाँ बदल रही है। आजकल रेडियो सुनते हुए भी टीवी पर समाचार सुने जाते है। सेलफोन से ऐसी जगहों पर भी रेडियो सुने जा रहे है जहाँ से पास बैठे व्यक्ति तक भी आवाज़ न पहुँचे।
ऐसे में क्या प्रसारण के समय कन्ट्रोल रूम से ही सारे प्रसारण की आवाज़ का एक ही स्तर बनाए नहीं रखा जा सकता…
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Friday, May 16, 2008
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