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Friday, January 23, 2009

साप्ताहिकी 22-1-09

इस सप्ताह देश भक्ति का रंग विभिन्न कार्यक्रमों में नज़र आया। दोपहर के कार्यक्रम में कुछ ऐसी फ़िल्में भी चुनी गई जिसमें देशभक्ति गीत है और श्रोताओं ने भी इन देशभक्ति गीतों के लिए एसएमएस भेजें। सखि-सहेली में भी चर्चा की गई।

सुबह 6 बजे समाचार के बाद उपनिषदों से कथन के अलावा स्वामी रामतीर्थ, बाल गंगाधर तिलक, कालीदास के विचार बताए गए। वन्दनवार में नए पुराने भजन सुनवाए गए। एक नया मीरा भजन बहुत अच्छा लगा जिसमें शास्त्रीय पुट था। हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा।

7 बजे भूले-बिसरे गीत शुक्रवार को संगीतकार ओ पी नय्यर को समर्पित रहा। उनके कुछ भूले बिसरे गीत सुनवाए गए तो यह लोकप्रिय गीत भी सुनवाया गया -

मैं बंगाली छोकरा करूँ प्यार को नमस्कारम
मैं मद्रासी छोकरी मुझे तुझसे प्यारम

रविवार को यह कार्यक्रम कुन्दनलाल (के एल) सहगल की पुण्य स्मृति में समर्पित किया गया। सहगल साहब के गीत सुनवाए गए साथ ही सामान्य बातें बताई गई जैसे उनकी आवाज़ कुन्दन की तरह है वग़ैरह वग़ैरह… पर उनके जीवन और काम के बारे में जानकारी नहीं मिल पाई। यहाँ तक कि हर गीत के साथ यह भी नहीं बताया गया कि यह फ़िल्म किस वर्ष में और किस बैनर तले रिलीज़ हुई थी। गीत अच्छे रहे जिन्हें हम रोज़ ही सुनते है जैसे ज़िन्दगी फ़िल्म की यह लोरी -

सो जा राजकुमारी सो जा

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन के चौथे खण्ड के समापन के साथ ही श्रृंखला भी समाप्त हुई। इस चौथे खण्ड में ऐसे रागों की चर्चा की गई जिसमें गंधार का प्रयोग नहीं होता है। आमंत्रित कलाकार विख्यात गायिका शुभा जोशी जी से अशोक (सोनावणे) जी ने बातचीत करते हुए राग शुद्ध सारंग, सरस्वती, मौसमी राग मेघ और सुर मल्हार पर चर्चा की। हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी जैसे वृंदावनी सारंग में मन्नाडे का गाया महबूबा फ़िल्म का गीत - गोरी तोरी
पैजनिया

इनमें कुछ राग ऐसे भी रहे जिसमें फ़िल्मी गीत शायद ही तैयार किए गए हो ऐसे में नाट्य संगीत सुनवाया गया। कांचन (प्रकाश संगीत) जी की एक और श्रृंखला शुरू हुई - मेरी संगीत यात्रा जिसमें प्रख़्यात संगीतज्ञ पंडित जसराज अपने बालसखा स्वामी हरिप्रसाद से अपनी संगीत यात्रा बता रहे है। पहली कड़ी में बचपन की बातें हुई और संगीत यात्रा की शुरूवात की जो हैदराबाद में बीता। यह बताया कि अपने परिवार में ही आरंभिक शिक्षा मिली। बचपन से ही बेगम अख़्तर को सुना करते थे। ये सारी बातें उन्होंने मुझसे भी बताई थी जब मैनें हैदराबाद दूरदर्शन के लिए बातचीत की थी।

7:45 को त्रिवेणी में आज में जीने वाले और आने वाले कल की चर्चा हुई, नए पुराने ज़माने की बातें हुई, काल से होड़ लेने की चर्चा हुई, ज़िन्दगी के सफ़र की बातें अच्छी लगी और उसके साथ सुनवाए गए गीत भी।

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आए अशोक (सोनावणे) जी, फ़िल्में रही सुहाग रात, रखवाला, हमारी याद आएगी, बूट पालिश जैसी पुरानी और कुछ पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में जैसे अनपढ, एक मुसाफ़िर एक हसीना, बाप रे बाप, अदालत, आरती लेकर आए अशोक (सोनावणे) जी। रविवार को के एल सहगल की पुण्य स्मृति को ध्यान में रखकर चुनी गई फ़िल्म प्रेसीडेन्ट, अन्य फ़िल्में रही भाई भाई, साथी, काला बाज़ार, काजल, टैक्सी ड्राइवर, धूल का फूल, गुमराह। सोमवार को रही कुछ पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में जैसे हमसाया, बीस साल बाद, हमराही, उमराव जान, सफ़र, वो कौन थी, जानेमन। मंगलवार को युनूस जी ले आए सदाबहार फ़िल्मों के सदाबहार गीत रोटी, आराधना, आनन्द, सौतन, महबूबा, अमर प्रेम, प्रेम पुजारी। बुधवार को अमरकान्त जी लाए पूरब और पश्चिम, मिली, चुपके-चुपके, कालिया, बैराग जैसी सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर हाज़िर हुए कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही बाम्बे टू गोवा, सच्चा झूठा, अन्नदाता प्यार किए जा, ज़हरीला इंसान, डार्लिंग डार्लिंग, खेल खेल में

यह कार्यक्रम बीच में 20 मिनट तक 12:15 से 12:35 तक क्षेत्रीय भाषा के प्रायोजित कार्यक्रम के प्रसारण के कारण हम नहीं सुन पाते है।

किशोर कुमार की आवाज़ में अन्नदाता फ़िल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुन कर अच्छा लगा -

गुज़र जाए दिन दिन दिन
के हर पल गिन गिन गिन
किसी की हाय यादों में किसी से मुलाक़ातों में
जब से हुए सिलसिले ख़्वाब हुए रंगीन

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में इस सप्ताह अच्छा लगा तन्हा दिल अलबम से शान का लिखा, स्वरबद्ध किया और गाया यह गीत जिस पर साँवरिया फ़िल्म के उनके लोकप्रिय गीत जबसे तेरे नैना की छाप दिखाई दी -

पास आओ न रूठे हो यूँ
मान जाओ न गुमसुम हो क्यों
दिल में हो जो खुल के बताओ न
गुमसुम हो क्यों

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में नए गीत अधिक सुनवाए गए। एकाध दिन लगभग पूरा कार्यक्रम कुछ पुराने गीतों का रहा। नागिन का यह गीत बहुत दिन बाद श्रोताओं ने पसन्द किया -

तेरे इश्क का मुझपे हुआ ये असर है
न अपनी खबर है न दिल की खबर है

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। महानगरों से फोन कम ही आते है, इस बार मुंबई से भी फोन आया। बिहार के एक छोटे से गाँव से कम उमर में ब्याही कम पढी लिखी सखि ने भी फोन किया। विभिन्न स्थानों से फोन आए जिससे वहाँ की हल्की जानकारी मिली जैसे नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक के बारे में। छात्राओं ने अपने करिअर की योजना के बारे में बताया जैसे कोई सेना में जाना चाहती है कोई अध्यापिका बनना चाहती है। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए जैसे अपनापन फ़िल्म का यह गीत -

आदमी मुसाफ़िर है आता है जाता है

सोमवार को भुट्टे की नमकीन और मीठी गुझिया बनाना बताया गया। इसे घर में बनाया जा सकता है। मुझे याद नहीं आ रहा इस तरह की गुझिया के बारे में मैनें पहले कभी सुना हो। मंगलवार को शिक्षा के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए स्कूल से लेकर कालेज तक में शिक्षक की नौकरी पाने के लिए क्या शैक्षणिक योग्यता होनी चाहिए, यह बताया गया। बुधवार को बताया गया कि फल खाने और फलों का रस लगाने से त्वचा की सुन्दरता भी बढती है और त्वचा कटना और झांइया दूर होती है और भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे मुँह की दुर्गन्ध दूर होती है। जानकारी नई नहीं है। लेकिन विविध भारती जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से फल (phal) को फ़ल (Fal) कहा जाता है तो अच्छा नहीं लगता। गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी दी जाती है। इस सप्ताह गणतंत्र दिवस के अवसर पर महिला क्रान्तिकारी मैडम कामा के बारे में बताया गया। इलाज के लिए यूरोप गई मैडम कामा ने यूरोप में भारतीयों के साथ मिलकर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था।

शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार मस्त-मस्त गीत सुनवाए गए जैसे -

मेरे पैरों में घुँघरू बँधा दे तो फिर मेरी चाल देख ले (रफ़ी साहब की अवाज़ - फ़िल्म संघर्ष)
चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो (रफ़ी साहब और लता जी - फ़िल्म पाकीज़ा)

इस आधे घण्टे में गाने भी ज्यादा सुनवाए जाते है क्योंकि विवरण कम बताया जाता है इसीलिए यह कार्यक्रम अच्छा लगता है।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना नाटक - हाय कुत्ते ने काट लिया। वहम हो गया कि कुत्ते ने काटा है और पेट में लगने वाले बड़े 14 इंजेक्शनों के डर से वह बौखला उठता है, ऊपर से एक के बाद लोग देखने आते है और सलाह देते जाते है। ऐसे हवामहलनुमा नाटक भी कभी-कभी इस कार्यक्रम में अच्छे लगते है।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में सेना दिवस पर सेना की बातें हुई। कुछ सामान्य जानकारी दी गई। लाइट हाउज़ स्तम्भ में अधिकतर (लगभग हर रविवार) खेल जगत की हस्तियों के बारे में बताया जाता है। इस बार भी त्रिपुरा के टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देव बर्मन के बारे में बताया गया जिसके बाद ए आर रहमान के बारे में बताया गया, यह कुछ अटपटा लगा। इस बार सिर्फ़ के आर रहमान पर ही बात होती और विस्तार से होती, साथ ही संगीत जगत की कुछ और हस्तियों से इस पर फोन पर टिप्पणी ली जाती तो अच्छा लगता, आख़िर विश्व स्तर पर बहुत बड़ा सम्मान भारत को रहमान ने दिलाया। किताबों की दुनिया में इस बार भी विदेशी साहित्यकार की चर्चा हुई। साथ ही विभिन्न कोर्सों के लिए प्रवेश की सूचना दी गई।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम के अंतर्गत लोकेन्द्र शर्मा ने बताई हिन्दी फ़िल्मों के हास्य कलाकारों की बातें। फ़िल्मों के सीन भी सुनवाए जैसे गोविन्दा की फ़िल्में - आँटी नं 1 और दूल्हे राजा। लोकप्रिय चरित्र वाले सीन भी सुनवाए गए जैसे शोले के सूरमा भोपाली यानि जगदीप, चुपके चुपके के प्यारे मोहन यानि धर्मेन्द्र। ऐसे कार्यक्रम किशोर कुमार, महमूद, जानी वाकर और जानी लिवर के बिना तो होते ही नहीं है सो उनकी चर्चा तो हुई पर टुनटुन की कमी खली। कलाकारों के विचित्र अंदाज़ से, भाषा से कामेडी की बातें हुई। गीत भी अच्छे सुनवाए गए -

प्रिय प्राणेश्वरी, हृदेश्वरी
यदि आप हमें आदेश करी तो
प्रेम का हम श्रीगणेश करी (फ़िल्म हम तुम और वो)

जय गोविन्दम जय गोपालम
--------------
बमबम नाचे किशोर कुमारम

एक अच्छे कार्यक्रम के लिए धन्यवाद लोकेन्द्र (शर्मा) जी।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में स्त्री रोग विशेषज्ञ डा राकेश सिन्हा से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। महिलाओं के मासिक धर्म संबंधी समस्याओं पर विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली। विविध भारती ने इस विषय को चुनकर अच्छा निर्णय लिया है क्योंकि अक्सर महिलाएँ ऐसी समस्याएँ छिपा जाती है। डाक्टर से सलाह तो दूर किसी से बताती भी नहीं। कभी-कभी घरेलु इलाज भी कर लेते है। कई बार बात बिगड़ने पर ही पता चलता है और इलाज कठिन हो जाता है। हमारा अनुरोध है कि इस कार्यक्रम को सखि-सहेली कार्यक्रम में दुबारा प्रसारित करें जिससे अधिक सखियों तक यह जानकारी पहुँच सके। बुधवार को हमारे मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता जगदीप से रज़िया रागिनी की बातचीत सुनवाई गई। बातचीत से पता चला कि अभिनय यात्रा के पचास वर्ष पूरे हो चुके। बचपन से उनके जीवन के संघर्ष और करिअर की जद्दोजहद के बारे में विस्तार से चर्चा हुई। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत सुनवाए गए साथ ही हल्की फुल्की बातचीत होती रही।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में हंगामेदार अंग्रेज़ी मिले हिन्दी (हिंगलिश) गीत बजते रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। नए गाने अधिक ही सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक कुमार शानू ने। खुद के गीत सुनवाए और फ़ौजी भाइयों से दिल से बात की, ऐसा नहीं लगा कि कार्यक्रम प्रस्तुत कर औपचारिकता पूरी कर रहे है।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में मन्नाडे, लता जी और साथियों की आवाज़ में कोईली (मराठी) गीत सुनवाया गया जो शायद बरखा गीत था। इसके अलावा रूना लैला की आवाज़ में सिन्धी पारम्परिक रचना (झूलेलाल की दमादम मस्त कलंदर नहीं) भी अच्छी लगी। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी। इस बार की पत्रावली में नए साल की शुभकामनाएँ थी और कुछ तारीफ़ें और शिकायते थी, कुछ सुझाव भी थे। एक सुझाव अच्छा लगा कि जयमाला में रविवार को देश भक्ति गीत ही सुनवाए जाए पर विविध भारती की असमर्थता भी वाजिब रही कि इतने देश भक्ति गीत है नहीं। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। बुधवार को निर्माता राकेश सावन्त से रेणु (बंसल) जी की बातचीत प्रसारित हुई। 15 साल से काम कर रहे इस युवा निर्माता से एक ही फ़िल्म वफ़ा के बाद की गई बातचीत यूथ एक्सप्रेस में अच्छी लगती थी, इनसे मिलिए कार्यक्रम में कुछ और उपलब्धियों के बाद बात की जाती तो ठीक रहता। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग देशगारा पर आधारित गीत - ओ रसिया रसिया रे… वैसे यह गीत बहुत दिन बाद सुनने को मिला।

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकी मेन होल का ढक्कन (रचना राघवेन्द्र नारायण दीक्षित और निर्देशक जयदेव शर्मा कमल), अजीब मुकदमा ( रचना और निर्देशिका डा मधुवन्ती) प्रहसन सुना - दूसरी लहर (लेखक और निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर) मेहमान (रचना मधुकर सिंह निर्देशक जनार्धन राव) एक झलकी नया वेतनमान (निर्देशन गोवेन्द तिवारी) नई तो थी पर मसाला पुराना था जैसे पहले पहली तारीख़ के लिए जो सुनवा कर चटकारे लिए जाते थे वही अब नए वेतनमान पर सुनवाए गए। हल्का सा अंतर भी कोई अंतर है। लगता है अब हवामहल लिखने वाले रहे नहीं। सच है कि के पी सक्सेना जैसे लोग बिरले होते है।

9 बजे गुलदस्ता में इस सप्ताह भी नए पुराने गायक कलाकारों शायरों के गीत और ग़ज़लें सुनवाई गई।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में यस बास, दिल तो पागल है, अलबेला, जोश जैसी नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश से युनूस जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। अपनी लोकप्रिय फ़िल्म अपनापन के बारें में बताया विशेषकर इस फ़िल्म के अंत के बारे में बताया कि यह अंत उन्हीं का सोचा हुआ है जो दर्शकों को पसन्द आया। वैसे इसके बारे में हम यूनवर्सिटी में बहुत चर्चा किया करते थे। कुछ को इसका अंत अटपटा लगता था कि क्यों रीनाराय ने सुलक्षणा पंडित से यह नहीं कहा कि यह बच्चा उसका है। यहाँ तक कि दूरदर्शन पर यह फ़िल्म देखकर मेरे पिताश्री ने भी यही कहा पर मुझे लगा कि अगर वो कह देती तो इस एक सीन से पूरी फ़िल्म हल्की हो जाती। यही बात खुद जे ओमप्रकाश जी से सुनना अच्छा लगा। बहुत भावुकता से उन्होनें अपनी पढाई की बात की और इसका अहसास उनके पिताश्री ने उनकी पहली फ़िल्म आस का पंछी की रजत जयन्ती के समय दिलाया कि वो अधिकारी बनकर अपनी सृजनशीलता को इतने लोगों तक नहीं पहुँचा पाते। यह बात बहुतों की प्रतिभा देखकर सच साबित होती है।

10 बजे छाया गीत में युनूस जी ले आए वो नग़में जो इतने कम बजे कि जनता तक पहुँच नहीं पाए। एकाध गीत को छोड़ कर सभी गीत मैनें पहली बार सुने पर गीत मुझे साधारण ही लगे।

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