सबसे नए तीन पन्ने :

Thursday, November 25, 2010

सदविचारों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 25-11-10 और मेरी 100 वीं साप्ताहिकी

आज मैं अपनी 100 वीं साप्ताहिकी लिख रही हूँ। यह साप्ताहिकी का तीसरा साल हैं। तीनो बार अलग-अलग तरह से साप्ताहिकी प्रस्तुत करने का मैंने प्रयास किया हैं। पहले साल पूरे कार्यक्रमों पर लिखने की कोशिश की थी लेकिन सभी कार्यक्रमों पर ठीक से नही लिख पाती थी क्योंकि पोस्ट बहुत लम्बी होती जाती थी। दूसरे साल एक-एक समय के प्रसारण पर लिखा। इस तीसरे साल श्रेणियों पर आधारित विभिन्न कार्यक्रमों पर लिखने की कोशिश कर रही हूँ। विविध भारती ने आधिकारिक तौर पर कार्यक्रमों की कौन सी श्रेणियाँ बनाई हैं, यह तो मैं नही जानती पर श्रोता की हैसियत से मैंने विभिन्न 10 श्रेणियों में कार्यक्रमों को रखा हैं और उसी के अनुसार लिख रही हूँ।

मुझे महत्वपूर्ण श्रेणी लगती हैं सदविचारों के कार्यक्रमों की जिसमे दो कार्यक्रम हैं चिंतन और त्रिवेणी दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

इस बार की साप्ताहिकी पांच ही दिनों की हैं क्योंकि अंतिम दो दिन विविध भारती खामोश रही। इस सप्ताह एक विशेष अवसर रहा - गुरू नानक जयंति पर दोनों ही कार्यक्रम इससे अछूते रहे।

6:05 पर सुनाया गया चिंतन। शुक्रवार को आचार्य चिरानंदन स्वामी का कथन बताया - संतोष धन के आगे सभी धन फीके हैं। इससे क्लेश नही होता, आनंद होता हैं।

शनिवार को भगवद गीता का सूत्र वाक्य अर्थ सहित बताया गया कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो।

रविवार को वेद व्यास का कथन बताया गया - जो निर्बल हैं वो सर्व गुण संपन्न हो कर भी क्या करेगा, पराक्रम में सभी गुणीभूत होते हैं। अच्छा होता इस दिन गुरू नानक के सन्देश से कोई बात बताते।

सोमवार को महात्मा विधुर का कथन बताया गया - कर्म की सफलता के लिए धर्म की स्थिरता जरूरी हैं। युवावस्था में वो काम करे जिससे वृद्धावस्था में जीवन सुखी रहे। जीवन में वो काम करे जिससे जीवनपर्यंत सुखी रह सके।

मंगलवार को एक लोकोक्ति बताई गई - पराई बुद्धि से राजा होने से बेहतर हैं अपनी बुद्धि से पतित होना।

एक बात की कमी महसूस हुई। देश भक्ति की भावना से प्रेरित कोई कथन नही बताया गया। स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा अपने अनुभव के आधार कहे गए कई ऐसे कथन हैं जो हममे देश प्रेम जगाते हैं।

7:45 को त्रिवेणी कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। यह कार्यक्रम प्रायोजित होने से शुरू और अंत में प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए।

शुक्रवार की कड़ी उच्च स्तरीय रही। उच्च विचार, साहित्यिक भाषा और स्तरीय गीतों का चुनाव जिसमे संगीत से अधिक बोलो, भावों का महत्त्व हैं। कहा गया कि जिस भौतिक जगत का हम आनंद ले रहे हैं वह सुख महापुरूषों ने जगत में पहुंचाया हैं। जिनकी मानसिकता दूषित हैं उन्हें परनिंदा में आनंद मिलता हैं। वास्तविक आनंद मन में छिपा हैं। यहाँ कबीर का दोहा भी सुनाया - कर का मनका डार दे मन का मनका फेर

प्रदीप का गीत सुनवाया - आया समय बड़ा बेढंगा

यह गीत मैंने शायद पहली बार सुना - सफल वही जीवन हैं, औरों के लिए जो अर्पण हैं
समापन किया विजेता के गीत से - मन आनंद आनंद छायो

शनिवार को बताया कि हम जगत में आते हैं और कर्म कर चले जाते हैं। चलना ही नियति हैं - चलेवेति चलेवेति। जीवन में जिन पडावो पर हम रूकते हैं, स्थान बदलते हैं वह प्रगति हुई। गीत भी उचित चुने गए - मुसाफिर हूँ यारों

चल मुसाफिर चल

बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा

अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - परिचय, गंगा की सौगंध और रेलवे प्लेट फ़ार्म। इस तरह पुराने और बहुत पुराने गीतों से सजी इस त्रिवेणी में जगत में जीवन की स्थिति बताई गई।

रविवार को बताया गया कि समाज में अक्सर वादे निभाए नही जाते हैं, जिससे विश्वास टूटता हैं। चाहे कोई पेशा हो या प्यार, जब भी वादा करो इसे गंभीरता से लो और जिम्मेदारी समझ कर निभाओ जिससे विश्वास बना रहता हैं। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए - ये वादा करो चाँद के सामने

ये नया गीत भी सुना - जो वादा हैं ये तुझसे मेरे सनम

अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - दिल भी तेरा हम भी तेरे, 1920 और अंत में जिस फिल्म का नाम बताया वह ठीक से सुनाई नही दिया। अच्छी थी प्रस्तुति पर इस दिन के लिए उचित नही लगी। इस दिन गुरू नानक जयंति जिसे प्रकाशोत्सव भी कहते हैं, को ध्यान में रख कर विषय उठाते तो अच्छा लगता।

सोमवार को बताया कि जीवन का रास्ता आसान नही हैं। कभी काँटों का रास्ता भी मिलता हैं, मंजिल दूर दिखाई देती हैं। कभी रास्ते में कोई हमराही मिल जाता हैं पर कभी अकेले ही मंजिल तक पहुँचना हैं। चर्चा के दौरान तीन गीत सुनवाए गए - इम्तिहान फिल्म से रूक जाना नही तू कही हार के

राही तू रूक मत जाना और अंत में सुनवाया - चल अकेला

मंगलवार को अच्छे विचार रहे, बताया कि जीवन में तनाव, उलझन आते ही रहते हैं। हमें इनसे घबराने के बजाय संघर्ष करना चाहिए। चर्चा करने से गम कम नही होते पर दूसरो के लिए भी उलझन हो जाती हैं। बेहतर यही हैं कि जीवन में हर आने वाले पल का स्वागत करो, वो जैसा भी हो, संभल कर चलो। तीनो गीत बहुत उपयुक्त चुन कर सुनवाए गए - गम छुपाते रहो, मुस्कुराते रहो

यूंही गाते रहो मुस्कुराते रहो, आओ रे

तुम आज मेरे संग हंस लो तुम आज मेरे संग गा लो

इस तरह भारी-भरकम विषय (मन का आनंद) से लेकर हल्के विषय (वादा निभाना) तक से सजी त्रिवेणी से दिन का शुभारम्भ हुआ और शेष दो दिन विविध भारती की खामोशी खलती रही।

दोनों ही कार्यक्रमों के लिए आरम्भ और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई।

1 comment:

જીવન ના િવિવધ રંગો said...

Annapurna Ji 100vi Post Par Badhayi Aap Apna Amulya Samay Yaha Pradan Karti hai.

Atul

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें