आज प्रसार भारती की रेडियो सेवा आकाशवाणी के सभी चेनल्स सुबह शुरू तो हुई पर बादमें पूरानी फिल्मो के गीतो और संगीत सरीता जैसे क्लासीक कार्यक्रम सुनने वाले काफ़ी श्रोताओनें चित्रलोक के समाप्ती के नियत समय पश्चाद्द किसी समय रेडियो ओन करने गये तो रेडियो सिग्नल्स गायब थे । रेडियो यानि सिर्फ एफ एम, इस प्रकार का अर्थ निकालने वाली नयी पिठी के मोबाईल धारक श्रोता लोगोने इधर उधर फ्रिक्वंसीझ ट्यून करके जन लिया की सिर्फ़ आकाशवाणी ही ठप हुई है और निजी चेनल्स अपना प्रसारण जारि रख़े हुए है । पर जो श्रोता निजी चेनल्स के करीब एक ही प्रकार के प्रसारण से उब गये है और विविध भारती के करीब हर घंटे पर बदले स्वरूप के कार्यक्रम को पसंद करते है वे निराश हो गये और इनमें से कुछ श्रोताओनें मूझे भी फोन करके पूछा की विविध भारती क्यों रूक गई । पूराने रेडियो श्रोता लोगों में से जिन के पास उपग्रहीय रिसीवर्स है जो डीटीएच (बिना शुल्क सेवा) या अन्य निज़ी उपग्रह प्रसारण नेटवर्क के पेय चेनल्स के साथ प्राप्त करते है वे रेडियो के बारेमें निराश हुए । पर विविध भारती की लधू तरंग कम्प संख्या, 9.87 मेगा हट्झ जो मुम्बई से विविघ भारती के उपग्रह प्रसारण को बेन्गलोर में प्राप्त करके भूमीगत प्रसारित कर रही है, वहाँ से बेन्गलोर के किसी स्थानिय स्टूडियो से बजने वाला दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत सुबह तो सुननेमें आया था, फिर कौन कोशिश करें ! दूर दर्शन किसी तरह पूराने कार्यक्रमो को दिख़ा रहा था । और वह भी नेशनल हिन्दी, गुजराती, डी डी भारती, डी डी इन्डीया, सभी सिर्फ़ सेटेलाईट द्वारा पर स्थानिय रिले-केन्द्रो तो बिलकूल ही बंध रहे । आज हमें भी एक बात समझनी चाहीए कि सरकार का यही उपक्रम है कि सभी कोर्पोरेसन्स को डिस-इनवेस्मेन्ट्स द्वारा निज़ी हाथोमें थमा देना । प्रसार भारती अटका है तो अभी तक एक ही कारण है सरकार चलाने वाली पार्टी का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रचार । पर बड़े उद्योग-गृहो कि इतनी पहोंच बढती दिख़ रही है कि प्रसार भारती का भी निज़ी-करण करवा सके तो आश्चर्य की बात नहीं होगी । और आज के निज़ी रेडियो-चेनल्स के प्रसारन को दुनते हुए अगर ऐसा हुआ तो सुनने वालों के क्या हालात होगे वह कल्पना भी डरावनी लगती है । और शायद आज कार्यरत कर्मचारी, अधिकारी भी शायद अपने आपको पेन्सन या अतिरीक्तता जैसी बातों को ले कर अपने आप को असुरक्षित महेसूस करेंगे । सरकारों का एक और उपक्रम आजकल चल रहा है, कि जब हडताल जोर पर होती है, तब बातचीत के लिये बूलावा कर्मचारी संगठनो को भेज़ कर आम जनता की सहानूभूती अपनी और करने की कोशिश करती है पर वह सिर्फ कर्मचारी आन्दोलनो की लडाई के टेम्पो को ठंडा कर देने की कोशीश ही होती है । सरकारओ को अपनी ही बढाई हुई महेंगाई सिर्फ कुछ भी नहीं करके तगडे वेतन पाने वाले सांसदो के सम्बंधमें ही नज़रमें आती है । जब की उसी के हिसाबसे थोडे कम बढे कर्मचारीयों वेतनो ज़्यादा लगते है तो, भरती, बढती पर अंकुश लगा कर रोजाना कर्मचारीयों द्वारा या कोंट्राक्ट द्वारा काम निकलवाने की निती बनायी जाती है । नीचे आकाशवाणी सुरत के सभी वर्ग के कर्मचारीयों द्वारा सामुहीक रूपसे चलाये जाने वाल्रे काम रोको आंदोलन अंतर्गत किये गये दिख़ावो की दो तसवीरें देख़ीये ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
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Tuesday, November 23, 2010
प्रसार भारती की आकाशवाणी और दूर दर्शन सेवा करीब करीब सम्पूर्ण ठप !
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4 comments:
सरकारी अफसर अपनी व्यवस्था चौकस कर लेते हैं और कर्मचारियों की ऐसी तैसी हो जाती है...
सच पीयूष जी, बड़ी बुरी लग रही हैं विविध भारती की यह खामोशी.
कल सवेरे त्रिवेणी सुनने के बाद आराम से रेडियो बंद कर मैं बाहर निकल आई. दोपहर में बारह बजे सेल फोन पर उंगलियाँ फिराती रह गई, कोई हलचल नही, कोई आवाज नही.
शाम और रात का समय टेलीविजन सीरियल देखते गुजर गया. सुबह उम्मीद थी, कुछ तो सुनाई देगा, पर नही... आज बिना वन्देमातरम सुने दिन की शुरूवात हुई. सोच रही थी फिल्मी गीतों के कार्यक्रम प्रभावित होगे लेकिन समाचार तक सुनने को नही मिले. आज का दिन भी सेल पर उंगलियाँ फेरते गुजरा.. जाने कब ख़त्म होगी यह 48 घंटे की अवधि.
हम प्रार्थना करते हैं कि समस्याए सुलझ जाए ताकि विविध भारती फिर यूं खामोश न हो..
Shayad Ye Pehla Mauka Hoga Jab Prasaran Khamosh Huva Hoga
2007 ke baad to V.B.S. s.w.10330khz par to bandh hi ho chuki hai..... ab ek hi channel bajta hai aur wo hai CHAINA RADIO INTERNATIONAL....aakashwani ko bhool jao mitro....
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