सबसे नए तीन पन्ने :

Monday, May 5, 2008

शास्त्रीय संगीत का पहला पाठ

दो दिन पहले संगीत सरिता में बत्तीस कड़ियों की श्रृंखला समाप्त हुई - थाट और उसके प्रकार। रूपाली (रूपक) जी की अन्य श्रृंखलाओं की तरह यह श्रृंखला भी ज्ञानवर्धक रही जिसे वीणा (राय सिंघानी) जी और विनीता (ढोलकिया) जी की सहायता से तैयार किया गया।

इस श्रृंखला को तीन संगीतज्ञों ने प्रस्तुत किया - पद्मा तलवलकर, पंडित विद्याधर व्यास और प्रभाकर कालेकर

शुरूवात की पद्मा तलवलकर जी ने और बताया कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में कुल दस थाट है। फिर शुरू हुआ सिलसिला एक के बाद एक सभी थाटों की जानकारी देने का। एक-एक थाट में आने वाले रागों की चर्चा की गई। इन रागों का आरोह-अवरोह चलन बताया गया फिर इन रागों में बंदिशें भी सुनवाई गई।

हर एक थाट के प्रचलित और कम प्रचलित दोनों ही तरह के रागों की चर्चा की गई। शुरूवाती कड़ियों में पद्मा तलवलकर जी ने मालवा थाट के राग मालवा, पूरिया की जानकारी दी। इसके बाद पंडित विद्याधर व्यास ने जिन थाटों की जानकारी दी उनमें है कल्याण थाट का राग कल्याण।

बाद की कड़ियों में प्रभाकर कालेकर जी ने खमाज थाट के राग कलावती की जानकारी दी और इसकी बंदिश में तीन ताल को भी समझाया। बिलावल थाट का राग शंकरा, कठिन राग विहाग और मधुर राग हंसध्वनि की चर्चा की।

अंतिम कड़ियों में आसावरी थाट का राग देसी और कम प्रचलित राग देश गन्धर्व की चर्चा की गई। अंत में प्रस्तुत किया गया थाट भैरवी जैसा कि शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में कार्यक्रम का समापन राग भैरवी से होता है। पहले ऐसे कार्यक्रम रात-रात भर चला करते थे और जब रात की सामप्ति होने लगती तो कलाकार भैरवी के सुर छेड़ देते और श्रोता समझ जाते कि यह अंतिम प्रस्तुति है।

भैरवी थाट में भोपाल तोड़ी और बिलासख़ानी तोड़ी की चर्चा की गई। श्रृंखला में रागों की जानकारी के साथ-साथ सामान्य जानकारी भी दी गई जैसे बिलासख़ानी तोड़ी के लिए बताया गया कि यह तानसेन के पुत्र ने तैयार किया और उन्हीं के नाम से इसे जारी किया गया।

अंतिम प्रस्तुति थी राग भैरवी। इस तरह शास्त्रीय संगीत की आरंभिक जानकारी श्रोताओं को मिल गई।

2 comments:

mamta said...

वाकई विविध भरती की ये तो बहुत ही ज्ञान वर्धक प्रस्तुति रही ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शास्त्रीय सँगीत को जानकार सँगीतज्ञ समझायेँ तो आम लोग भी ज्यादह आनँद उठायेँग़ेँ - बहुत बढिया - इसे भी सुन सकेँ तो और भी अच्छा हो --
-- लावण्या

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें