बड़े रेडियो, छोटे रेडियो, ट्रांज़िस्टर, पाँकेट ट्रांज़िस्टर के बाद अब मोबाइल पर रेडियो यानि जीवन स्तर में जैसे-जैसे आपाधापी बढती जा रही है रेडियो भी आपका साथ निभाने के लिए अपने रूप बदलता जा रहा है या यों कहे कि आधुनिक तकनीकी युग में भी तकनीक ने रेडियो को नहीं छोड़ा।
संचार क्रांति के इस युग में तकनीकी कदम तेज़ी से बढ रहे है। सेलफोन पर रेडियो और कैमरे से शुरूवात हुई और देखते ही देखते संदेश भेजने में तस्वीरों के साथ-साथ वीडियो रिकार्डिंग शुरू हुई फिर ई-मेल और इंटरनेट की सुविधा की चर्चा।
इंटरनेट की सुविधा अभी सामान्य भी नहीं हो पाई कि बात चल रही है मोबाइल पर फ़िल्मों की। वैसे आजकल मोबाइल पर गाने तो देखे जा ही रहे है कल शायद फ़िल्में भी देखने को मिले।
यहाँ एक बात चुभ रही है कि मोबाइल कंपनियाँ तेज़ी से आगे बढ कर सुविधाएँ देने की कोशिश कर रही है पर इनको विस्तार नहीं दे रही जैसे रेडियो के मामले में एक सामान्य सेलफोन में बीस स्टेशन है और इतने ही एफ़एम केन्द्र जिनमें केवल केन्द्रीय सेवा के साथ विविध भारती और स्थानीय केन्द्र ही सेट किए जा सकते है।
जब मोबाइल कंपनियाँ इंटरनेट तक सेट करने की कोशिश कर रही है तो क्यों नहीं रेडियो के विभिन्न तरंगों पर होने वाले प्रसारणों को मोबाइल पर सेट करने की कोशिश करतीं जिससे एफ़एम के साथ-साथ शार्टवेव के प्रमुख केन्द्र जैसे रेडियो सिलोन, उर्दू सर्विस, बीबीसी, वायस आँफ़ अमेरिका तथा मीडियम वेव के स्थानीय प्रसारण भी मोबाइल के इन बीस केन्द्र में सेट हो सकें।
इससे न सिर्फ़ रेडियो के सभी केन्द्र लोकप्रिय होंगें बल्कि विज्ञापन सेवा का भी विस्तार होगा क्योंकि सेलफोन तो हाथ में होते है और हमेशा साथ रहते है जबकि टीवी और कंप्यूटर हमेशा साथ नही रखे जा सकते। इसीलिए विज्ञापनों की होड़ भी यहाँ बढेगी जो मोबाइल कंपनियों को भी विस्तार दे सकेगी। यह काम तकनीकी रूप से बहुत कठिन भी नहीं लगता है।
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Thursday, May 22, 2008
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1 comment:
बहुत बढ़िया विचार है आपका.. वाकई ऐसा हो जाए तो अच्छा रहेगा..
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।