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Saturday, May 24, 2008

यह विविध भारती का विज्ञापन कार्यक्रम है

अन्नपूर्णाजी,
आपने स्थानीय विज्ञापन प्रसारण सेवा के केन्द्रों के झरोखा की बात प्रस्तुत की है उसमें मुम्बई विज्ञापन प्रसारण सेवा कुछ: इस तरह से अलग रही है । एक समय उस पर मराठी भाषा सिर्फ़ कुछ: गिने चुने विज्ञापनों तक ही सीमीत थी । यह बात करीब १९६७ से १९७० तक की है । यह केन्द्र केन्द्रीय विज्ञापन प्रसारण सेवा से अलग हुआ था । इस लिये शुरूमें वहाँ से सभा की शुरूआत में , बीचमें बार बार और सभा के अन्तमें कहीं भी मुम्बई नाम नहीं था पर सिर्फ़ यह विविध भारती का विज्ञापन कार्यक्रम इस प्रकार से उद्दघोषणा होती थी ।
बादमें अन्य केन्द्रों की तरह ’विविध भारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा का यह मुम्बई केन्द्र है ’ बादमें एक दौर इस तरह का आया कि, आमी विविध भारती ची जाहेरात सेवा चे मुम्बई केन्द्रावरण बोलत आहे बोला जाता और बादमें मराठी नाटकरंग और मराठी सुगम और फिल्म संगीत के स्थानीय या कहिये कि केन्द्र के प्रसारण मर्यादा को देख़ते हुए अर्धक्षेत्रीय कार्यक्रमो को छोड़ कर इस मराठी उद्दघोषणा के साथ बोला जाता था कि अब सुनिए झरोखा या मधुमालती या बेलाके फूल जो बही मराठी वाले उद्दधोषक हिन्दीमें बोलना शुरू करते थे। (जिसमें विविध भारती की केन्द्रीय सेवाके आज दिनों के और भूतकाल के भी जानेमाने उद्दघोषक श्री अमरकान्त दुबे जी भी थे) ।
रात्री ११.३० पर अन्तिम स्थानीय कार्यक्रम के बाद सभा समाप्‍ती के पूर्व स्थानीय हवामान सूचना भी हिन्दी में रहती थी पर सभा समाप्ती वही उद्दघोषक मराठी में करते है; हाँ हिन्दी फिल्म संगीत के स्थानिय कार्यक्रमो में वे लोग प्रस्तुति माध्यम अन्य वि.प्र.सेवा की तरह क्षेत्रीय भाषा नहीं पर हिन्दी ही रख़ते है ।

एक बात का ताज्जूब हो रहा है, कि श्री अमीन सायानी साहब को पहेले तकनीकी कारणो सर नहीं देख़ पाने पर जो एक श्री अमीन साहब को सुनने-देखनेकी की इन्तेजारी पाठ़कोमें थी उसकी खुशी यह मोका मिलने के श्री कान्तीभाई, श्रीमती लावण्याजी ,श्री खु़शबूजी और श्री सागरजी (श्री हर्षद भाई तो पुरानी पोस्ट पर देख़ पाने पर ही अपना ख़याल बता चूके थे ) बाद गायब हुई क्यों दिखी यह समझमें नहीं आया । मैंने तो कम बोल कर श्री अमीन साहब को ही ज्यादा बोलने का मोका दिया है ।
इन प्रतिभावो को मैं श्री अमीन साहब को पहोंचाने वाला हूँ । और श्री एनोक डेनियेल्स की पोस्ट वाली धून जो आपका शौक़ की बात है बह भी पता नहीं वला की आपने धूनें सुनी भी या नहीं । श्रीमती ममताजी (गोवा) के भी यह रूचि के विषय है ।
पियुष महेता ।
सुरत ।

1 comment:

Anonymous said...

पीयूष जी मैं आपके सभी चिट्ठे पढती हूँ और रिकार्डिंग सुनती भी हूँ। कभी-कभार शायद टिप्पणी नहीं लिख पाती।

अन्नपूर्णा

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