आदरणिय पाठक गण,
इस ब्लोग पर अन्नपूर्णाजी ने कई बार साझ और आवाझ कार्यक्रम का जिक्र किया जिस पर मैंनें तथा कई पाठक लोगने अपने प्रतिभव दिये । पर आज एक बात कार्यक्रम के इस नाम को सबसे पहेले किस रेडियो चेनलने अपने कार्यक्रम के लिये चूना यह बात आज इस पोस्टमें बताऊँगा ।
आपको याद होगा कि 1966 में स्व. सुबोध मुकर्जी के निर्देषनमें स्व. नौशादजी के संगीत के साथ फिल्म साझ और आवाझ आयी थी । उस समय विविध भारती पर रात्री 10.30 पर सिर्फ़ 5 मिनीट का सिर्फ़ एक धून का कार्यक्रम नूपूर चलता था । करीब इस फिल्म की रिलीझ के बाद इसी नाम से (शायद) दो पहर दो बज कर 15 मिनीट पर 15 मिनीट का कार्यक्रम ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस (उस जमाने में बोला जाता था-ऑल इंडिया रेडियो का उर्दू प्रोग्राम) ने फिल्मी धून और सम्बंधीत गानों का कार्यक्रम शुरू किया । बादमें यही नाम से कार्यक्रम विविध भारती सेवाने शुरू किया जो शुरूमें शास्त्रीय वाद्य संगीत और उसी राग वाले शास्त्रीय कंठ्य संगीत पर आधारित हुआ करता था, जो बादमें संगीत सरिता की शुरूआत के बाद फिल्मी धूनों और फिल्मी गानों का हो गया, जो पहेले दो पहर को 11.45 पर था जो बादमें बंध किया गया था । फ़िर कोई एक समय रात्री 9 से 9.15 पर होता था । इसी दौरान रेडियो श्रीलंका से भी 1969 या 1970में वहाँ की आज की उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमार के पिता स्व. दलवीर सिंह परमार साहब (जो श्री मनोहर महाजन साहब के साथ ही वहाँ सेवा नियूक्त हुए थे)ने शुरू किया था । उर्दू सर्विस पर यह कार्यक्रम आज पाक्षिक रूपमें शायद दूसरे और चौथे सोमवार को जारी है और मेरे सुनने में विविध भारती के सिने पहेली कार्यक्रम की शुरूआत के कुछ: साल पहेले से माह के पहेले और तीसरे रविवार दोपहर तीन से साढे तीन बजे तक साझ पहेली कार्यक्रम आता है जिसमें सिने पहेली की शुरूआत तक मैं नियमीत रूपसे हिस्सा लेता था । बादमें उनके ट्रांसमिसन की तक़लीफ के कारण और सिने पहेली के समय टकराव के कारण मेरा वह सुनना छूट गया था जो उस समय एस एम सफ़ी प्रस्तूत करते थे पर आज उनके प्रसारण के सुधार और डी टी एच से उपलब्धी के कारण मैं साझ पहेली का श्रोता फ़िरसे बना हूँ । हाँ, एक बात जरूर है कि श्री एस एम सफ़ी साहब एल्पीझ, ईपीझ और 78 आरपीएम से भी पूराने गानों की और कभी कभी पूरानी धूने भी बजाते थे । उनकी अवेजीमें कभी यह कार्यक्रम अनवार अंजूम प्रस्तूत करते थे । उनका एक अलग अन्दाझ था । वे लोग साझ और कालाकार के नाम बताते थे और गाने की और फिल्म की पहचान पूछी जाती थी । आज के दिनों यह कार्यक्रम फूला पंडिता प्रस्तूत करती है पर ज्यादा तर वे साझ और वादक कालाकार के नाम बताती नहीं है पर मेरे जैसे धून सुनने के अनुभवी श्रोता पहचान जाते है । ब्रियान सिलाझ की पियानो पर बजायी पूराने गानो की नयी धूनों का बोलबाला है और पूराने गानों की पूरानी धूनों में सिर्फ़ और सिर्फ़ मास्टर इब्राहीम की क्लेरीनेट पर बजाई धूनों का बोलबाला है, जो मोनो रेकोर्डिंगमें है, जिसकी वजह सिर्फ़ और सिर्फ़ यही है कि मास्टर इब्राहीम की इन 78 आर पी एम वाली रेकोर्ड्झ को प्रकाशन कम्पनीने सीडी पर पुन: प्रकाशित किया है । मैंनें इस ब्लोग पर जब मास्टर इब्राहीम की गंगा जमूना की धून नैन लड गई है प्रस्तूत कि थी, वह साझ पहेली के इसी उर्दू चेनल के प्रसारण से ली थी और उसमें शुरूमें जो उद्दघोषणा सुनाई पड़ी थी, वह आवाझ फूला पंडिता की ही है पर ताज्जूब यह है कि किसी पाठक ने इस बारेंमें कोई जिज्ञासा प्रगट नहीं की ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
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Saturday, August 16, 2008
साझ और आवाझ तथा साझ पहेली सबसे पहेले
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