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Friday, August 22, 2008

साप्ताहिकी 21-8-08

इस सप्ताह लगातार दो दिन विशेष रहे - 15 अगस्त शुक्रवार को और शनिवार को राखी।

शुक्रवार को विविध भारती के प्रसारण की शुरूवात अच्छी हुई। एक तो 15 अगस्त और फिर दिन शुक्रवार, इन दोनों बातों का अच्छा ध्यान रखा कमल (शर्मा) जी ने और 6:05 पर वन्दनवार में सुनवाए ऐसे भजन जिसमें देवी माँ की स्तुति रही। आख़िर भारत माता की स्तुति भी देवी माँ की स्तुति है। फिर सात बजे से शुरू हुआ लाल क़िले से सीधा प्रसारण।

कार्यक्रम के समापन पर बजने वाले देशगान का विवरण सप्ताह भर में एकाध बार ही बताया गया।

6:30 बजे तेलुगु भक्ति गीतों के कार्यक्रम अर्चना में शुक्रवार को देश भक्ति गीत सुनवाए गए और सोमवार को श्रावण मास को ध्यान में रख कर मल्लिकार्जुन स्वामी शिवलिंग के अभिषेक के समय पर गाया जाने वाला सुप्रभात सुनवाया गया। शेष दिन सामन्य भक्ति गीत रहे।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में शनिवार का कार्यक्रम राखी के रंग में रंगा था। लागी नाही छूटे राम फ़िल्म के राखी के गीत से शुरूवात हुई जो वास्तव में एक भूला-बिसरा गीत था। सप्ताह भर एकाध लोकप्रिय गीत के साथ भूले-बिसरे गीत बजते रहे और अंत में सहगल साहेब के गीत।

7:30 बजे संगीत सरिता में पिछले सप्ताह से चल रही श्रृंखला इस सप्ताह भी जारी रही - भारतीय ताल वाद्य और फ़िल्म संगीत जिसमें चर्चा में रहे तबला, ढोलक, पखावज। प्रार्थना गीतों में तालवाद्य अच्छा लगा। मंगलवार को ढोलक-ढोलकी पर जानकारी दी गई यह भी बताया गया कि इनका उपयोग शादी ब्याह के गानों में होता है पर ऐसा गीत नहीं सुनवाया गया जबकि बाज़ार फ़िल्म में पैमिला चोपड़ा और साथियों का गाया ऐसा एक गीत है -

चले आओ सैंय्या रंगीले मैं वारि रे
सजन मोहे तुम बिन भाए न गजरान
न मोतिया चमेली न जूही न मोगरा

यह दक्खिनी यानि हैदराबादी उर्दू का लोक गीत है जिसे सिर्फ़ ढोलकी पर ही गाया जाता है साथ में सिर्फ़ हारमोनियम होता है और कोई साज़ नहीं होते। इन गीतों को कहा ही जाता है ढोलक के गीत। बहुत कमी खली इस उपयुक्त गीत के न बजने की।

त्रिवेणी में जानकारी बढाने की बातें और ज्ञान की बातें सप्ताह भर होती रही और बजते रहे संबंधित गीत।

त्रिवेणी के बाद सवेरे 8 बजे से क्षेत्रीय भाषा के कार्यक्रम होते है। इस समय होता है फ़रमाइशी तेलुगु फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम जनरंजनि - इस नाम के हिन्दी अनुवाद की आवश्यकता नहीं है। मन चाहे गीत और आपकी फ़रमाइश की तरह ही है यह कार्यक्रम।

मन चाहे गीत दोपहर 1:30 से 2:30 बजे तक प्रसारित होता है और आपकी फ़रमाइश रात 10:30 से 11 तक, दोनों कार्यक्रम एक जैसे है फिर भी कार्यक्रम का नाम अलग-अलग है पर जनरंजनि का प्रसारण में 4 बार होता है पर नाम एक ही है - जनरंजनि। एक और ख़ास बात - जनरंजनि की संकेत धुन भी है जो कार्यक्रम के शुरू और अंत में बजती है जिसमें बीच में महिला स्वर में गाकर कहा जाता है - जनरंजनि मी जनरंजनि - यहाँ मी का अर्थ है -आपकी। कार्यक्रम की अवधि लम्बी हो तो पूरी धुन बजती है कम अवधि होने पर थोड़ी सी धुन बजती है। फ़रमाइश करने वालों के औसतन पाँच पत्र मन चाहे गीत में शामिल किए जाते है जिनमें नाम 2 से लेकर 8-10 तक होते है, जनरंजनि में भी उतने ही नाम होते है पर औसतन पत्र 2-3 होते है। गाने तो दोनों ही जगह नए, पुराने और बीच के समय के होते है साथ ही दोनों ही भाषाओं में माहौल भी एक जैसा रहता है जैसे इस सप्ताह दो विशेष दिन रहे 15 अगस्त और राखी पर शुरूवाती 1-2 विशेष गीतों के बात फिर शुरू हो गया वही सिलसिला प्यार-मुहब्बत के गानों का।

जनरंजनि के 4 प्रसारण का समय है - सवेरे 8 से 10 तक, यहाँ शनिवार को दो प्रायोजित कार्यक्रम भी शामिल हो जाते है, दोपहर 2:30 से 3 तक, शाम में 6 से 7 तक और रात में 8:15 से 8:45 तक

सुहाना सफ़र में दोपहर 12 से 1 बजे तक आजकल गुरूवार को लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल के गीतों को छोड़ कर शेष सभी दिन एकदम नए गाने बजते है। शुक्रवार को ए आर रहमान, शनिवार को आदेश श्रीवास्तव, रविवार को स्माइल दरबार, सोमवार को नए दौर के संगीतकारों के नए-नवेले गीत, मंगलवार को जतिन-ललित, बुधवार को शिवहरि के संगीतबद्ध किए गाने सुनवाए जाते है यानि सप्ताह भर में कुछ पुराने सुरीले गानों से लेकर (लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ), शास्त्रीय संगीत का हल्का रंग लिए गानों (शिवहरि) के साथ रंग दे बसन्ती जैसे नए गाने भी सुनने को मिले।

1 बजे का समय होता है प्राइवेट एलबमों के गानों का जिनमें कभी-कभी कुछ ऐसे गीत सुनने में आते है जो साठ के दशक के गीतों जैसे लगते है जैसे सोमवार को सुना -

ओ सनम ओ सनम ओ सनम ओ सनम

3 बजे का समय मुख्यतः सखि-सहेली का होता है। शुक्रवार को फोन पर सखियों से बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने, हल्का सा माहौल राखी का रहा। एक फ़ोन काल आया सारनाथ, बिहार से जहाँ विश्व प्रसिद्ध बौद्ध मन्दिर है, दूसरा काल आया अजन्ता से, प्रसिद्ध स्थल अजन्ता-एलोरा से। बड़ी बात यह थी कि सीधे इन विश्व प्रसिद्ध स्थलों से फ़ोन आए, किसी शहर, मुहल्ले का नाम नहीं बताया इन सखियों ने, न ही यह बताया कि यह स्थल इनके घर के कितने पास या दूर है और न ही इन प्रसिद्ध स्थलों की जानकारी दी। प्रतीक्षा है अगली कड़ियों में ताजमहल और लालक़िले में रहने वाली सखियों के फ़ोन कालों की…

क्ल यह कार्यक्रम अच्छा लगा। इस में ओलंपिक खेलों के आयोजन के आरंभिक स्वरूप की जानकारी दी गई जब केवल दौड़ प्रतियोगिताएँ होती थीं वो भी एक ही दिन का आयोजन होता था। और एक जानकारी जो शायद बहुत कम लोग जानते है कि खिलाड़ी वस्त्रों के स्थान पर पत्तों का उपयोग करते थे इसीलिए ओलंपिक से संबंधित मूर्तियाँ भी नग्न है। शेष दिन कार्यक्रम सामान्य रहे।

शनिवार और रविवार सदाबहार नग़मों में वाकई हमेशा लोकप्रिय रहने वाले सदाबहार गाने सुनने को मिले। यही एक कार्यक्रम ऐसा है जहाँ अच्छे गाने सुनने की गारंटी होती है। इसके तुरन्त बाद होता है नाट्य तरंग कार्यक्रम जो इस सप्ताह भी ज़ोरदार रहा। गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के बंगला उपन्यास चोखेर बाली का हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर प्रस्तुत किया गया, रूपान्तरकार और निर्देशक है नन्दलाल शर्मा।

4 बजे पिटारा में रविवार को यूथ एक्सप्रेस चली जिसके किताबों की दुनिया के डिब्बे में कमल (शर्मा) जी ने संपादक, लेखक व्यंग्यकार यशवन्त व्यास से बातचीत की। बातें हुई उनकी विज्ञान के क्षेत्र की शिक्षा की, हरिशंकर परसाई जैसे व्यंग्यकारों की उनकी पसंदीदा फ़िल्मों की जहाँ उन्होनें शालीमार फ़िल्म की चर्चा की जो उन्होनें परीक्षा की परवाह न कर देखी शायद यही संकेत रहा लेखक बनने का ख़ैर यहाँ चा चा चा गीत बड़े दिनों बाद सुनना अच्छा लगा। कुल मिलाकर एक व्यक्तित्त्व का अच्छा परिचय मिला। फिर आगे के डिब्बे में खुद युनूस जी ने बात की वादक कलाकार मनोहारी सिंह जी से और चर्चा हुई माया फ़िल्म के गीत की तथा धुन भी सुनी। यह बातचीत की दूसरी कड़ी थी।

सोमवार को सेहतनामा में पेयजल और स्वास्थ्य पर डा जैकब जोसेफ़ से कांचन (प्रकाश संगीत) जी की बातचीत सुनी। जानकारी अच्छी थी पर एक बात रह गई। पेयजल का दूसरा स्त्रोत है बोरवेल का पानी। आजकल कई राज्यों में पेयजल संकट है, यहाँ हैदराबाद में भी है जिससे कहीं-कहीं पीने का पानी भी बोरवेल से लेने की मजबूरी है। बोरवेल का पानी कहीं 25 फीट खोदने पर मिलता है तो कहीं 60 से भी अधिक गहराई में। हालांकि पानी छन कर मिलता है फिर भी यह पानी पीने से अक्सर त्वचा पर ख़ासकर गर्दन पर छोटे काले मस्से या ब्लैक हेड्स निकल रहे है। इस बारे में भी बात हो सकती थी।

बुधवार को आज के मेहमान थे शायर, कवि राहत इंदौरी जिनसे बातचीत की राजेन्द्र त्रिपाठी जी ने। काफ़ी अच्छी लगी बातचीत। शायर बनने के लिए सीखे गुर, फिर गुलशन कुमार से मुलाक़ात, फ़िल्मों के अलावा अन्य कामों में रही व्यस्तता जैसे पढना-पढाना लिखना और इसी से फ़िल्मी दुनिया में कम समय देना और शायर से गीतकार बनने की भी चर्चा हुई। साथ ही उनकी पसन्द के गाने भी अच्छे बजे।

शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को श्रोताओं के फोन आते रहे, हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा गीत सुनवाए गए।

5 बजे नए फ़िल्मी गानों का कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा सुनकर लगा इस कार्यक्रम के नाम की तरह सभी नए गाने हंगामेदार नहीं होते। अक्सर यही लगता है कि सभी गाने शोर-शराबे वाले होते है पर यह कार्यक्रम सुन कर यह भ्रम टूट जाता है। कभी इतने शान्त गीत सुने लगा जैसे ग़ज़ल सुन रहे है। मंगलवार को विशाल शेखर के संगीत निर्देशन में एक गीत सुना, फ़िल्म का नाम शायद गोलमाल था, इस गीत को सुन कर लगा जैसे पूर्वी प्रदेश का लोकगीत सुन रहे है।

शनिवार को विशेष जयमाला फ़िल्म कलाकार और टेलीविजन धारावाहिक सीआईडी फ़ेम शिवाजी सावंत ने प्रस्तुत किया। रविवार को चिरपरिचित शैली में फ़ौजी भाइयों के जाने-पहचाने संदेशों को लेकर आए कमल जी। शेष दिन नए गाने अधिक बजे।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में सुने कच्छी गीत। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में कुछ शिकायती पत्र और कुछ पत्रों में विविध कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में क़व्वालियाँ ठीक ही थी। बुधवार को उप शास्त्रीय संगीत की गायिका श्रावणी चौधरी से अशोक सोनावणे जी की बातचीत की अंतिम किस्त प्रसारित हुई। प्रसिद्ध गायिका शुभा जोशी की इस शिष्या ने कुछ पंक्तियाँ गा कर भी सुनाई। फ़िल्मी संगीत की भी चर्चा हुई, विशाल शेखर के संगीत में शास्त्रीयता के पुट की बात कही गई। कुल मिलाकर अच्छा लगा इस उभरती गायिका से मिलना। गुरूवार और रविवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे शुक्रवार को हवामहल में बहुत दिन बाद रूपक सुना। मेरी समझ में स्वाधीनता संघर्ष रूपक में ही अच्छा संजोया जा सकता है। 15 मिनट के रूपक में काफ़ी बातें समा गई। सोमवार को गंगाप्रसाद माथुर की प्रस्तुति में उन्हीं के द्वारा साहित्य से चुनी गई बहुत ही भावुक कहानी की रेडियो रूपान्तर की गई झलकी सुनी - व्यथा। बुधवार को मूल कन्नड़ कहानी का नाट्य रूपान्तर था। इस तरह हवामहल में इस सप्ताह साहित्य उभर कर आया।

रात 9 बजे गुलदस्ता में शुक्रवार को न आज़ादी नज़र आई और न ही राखी। ग़ैर फ़िल्मी संगीत में वीनू पुरूषोत्तम, पंकज उदहास के साथ अन्य कलाकारों की आवाज़े सुनी और अलग-अलग शायरों और गीतकारों की रचनाएँ सुनी पर कल यह गीत सुन कर अजीब लगा -

क्रिकेट खेलेंगें, झंडा फ़हराएगें, वन्देमातरम

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में काजल, लेकिन, गोलमाल, जब वी मेट फ़िल्मों के गीतों से नए, पुराने, बीच के समय के सभी तरह के गीतों का आनन्द मिला। रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में संगीतकार नौशाद से अहमद वसी की बातचीत आगे बढी और जानने को मिला पुराने हिन्दी फ़िल्मी संगीत में मराठी संगीत और कलाकारों का योगदान जिनमें विशेष नाम है मास्टर विट्ठल का। जेबउन्नीसा की भी चर्चा हुई।

10 बजे छाया गीत में शुक्रवार को स्वतंत्रता की बड़ी काव्यात्मक प्रस्तुति हुई और गाने बजे लाजवाब। रविवार को भी ममता (सिंह) जी और मंगलवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी की प्रस्तुति बहुत काव्यात्मक रही पर सोमवार को अमरकान्त जी ने बड़े सीधे-सादे अन्दाज़ में कम बोलकर अच्छे गीत सुनवा दिए, यह अंदाज़ भी अच्छा रहा।

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