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Sunday, August 24, 2008

रेडिओ और खेलों से जुड़े वो कभी ना भूलने वाले प्रसारण !

एक समय था जब हम खेल प्रतिस्पर्धाओं के नतीजों को जानने के लिए पूर्णतः रेडिओ पर निर्भर थे। अगर देशी रेडिओ की बात करें तो पूरे दिन भर में एक सात बजे का खेल समाचार ही था, जो कि बाद में सात पाँच पर आने लगा, हम बच्चों की खेल के नतीजों से जुड़ी जिज्ञासा को शांत करता था। इसलिए शाम को पौने सात से ही हम रेडिओ को ट्यून कर के बैठ जाते थे।

इसके आलावा विशेष खेल आयोजनों पर आकाशवाणी से सीधे प्रसारण की व्यवस्था की जाती थी। इस बार जब अभिनव बिंदरा ने भारत के लिए व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जीता तो मुझे १९८० के मास्को ओलंपिक की याद आ गई जब भारत ने हॉकी का अपना आखिरी स्वर्ण पदक जीता था। उस ओलंपिक का अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों ने बहिष्कार किया था। फाइनल में भारत का मुकाबला स्पेन से था। भारत ने वो मैच 3-0 से आगे रहने के बाद भी मात्र 4-3 के अंतर से जीता था। क्या माहौल बाँधा था जसदेव सिंह ने उस शाम को। भास्करन, शाहिद, मरविन और डुंगडुंग जैसे खिलाड़ी अपने प्रभावशाली प्रदर्शन की वज़ह से हमारी यादों में हमेशा के लिए रच बस गए थे।

इसी तरह जब हर साल विबंलडन आता तो हम आकाशवाणी पर अतुल प्रेम नारायण की हर सुबह साढ़े सात बजे की रिपोर्ट में रमेश कृष्णन और विजय अमृतराज के विजय अभियान की गाथा सुन रहे होते।

पर कई बार शाम के खेल समाचार तक का इंतजार कर पाना मेरे लिए असह्य हो जाता। छुटपन में खेल की खबरों की खोज ने मुझे शार्ट वेव के सारे मीटरों के स्टेशन ज्ञान के बारे में पारंगत कर दिया। और उसी वक़्त से मैं बीबीसी की अंग्रेजी वर्ल्ड सर्विस का नियमित श्रोता बन गया। रोज शाम सवा छः बजे पन्द्रह मिनट का स्पोर्ट्स राउंड अप और शनिवार शाम का सैटरडे स्पेशल सुने बिना मेरा कोई दिन नहीं बीतता था। ऐसे ही एक सैटरडे स्पेशल में विंबलडन के दौरान मैं विजय अमृतराज की फ्रांस के खिलाड़ी यानिक नोवा पर ऐतिहासिक जीत को सीधे सुन पाने वाला अपनी क्लॉस में अकेला बच्चा बन गया था :)।

बीबीसी के खेल कार्यक्रमों की गुणवत्ता हमारे यहाँ के कार्यक्रमों से कहीं ज्यादा जानदार थी। रिपोर्टिंग ऍसी होती थी कि लगता था कि हम ही मैदान में पहुँच गए हों। परसों मन हुआ कि बहुत दिनों से अपना प्रिय कार्यक्रम सुना नहीं। बेजिंग ओलंपिक चल ही रहे हैं ज़रा बीबीसी के स्पोर्टस राउंड अप और हमारे आकाशवाणी की FM सर्विस से प्रसारित कार्यक्रमों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए ।

तो पहले सुनिए मेरे चहेते कार्यक्रम की एक झलक.. अंतर सिर्फ starting tune का था बाकी वही पेशेवर अंदाज


और अब सुनें आकाशवाणी की FM सर्विस का ये प्रसारण..संयोग की बात है कि कार्यक्रम में जिस खेल संवाददाता को बुलाया गया है उसका नाम भी मनीष कुमार है :)।




आपको कौन सा बेहतर लगा ?

6 comments:

Anonymous said...

बेहतरीन पोस्ट । तुलनात्मक प्रस्तुति भी पसन्द आई। इस चिट्ठे पर भी लिखते रहें ।

Yunus Khan said...

मनीष बी बी सी अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू तीनों की प्रस्‍तुतियां बेमिसाल होती हैं । और पढ़ाई के दिनों से मैंने लगातार इन प्रस्‍तुतियों को सुना है और इनसे बहुत कुछ सीखा है । समाचार सेवा प्रभाग की लवलीन निगम वाली प्रस्‍तुति बिल्‍कुल बी बी सी से प्रेरित लगती है । दरअसल ये खामखयाली अब मिट जानी चाहिए कि भारतीय रेडियो इन हाउस अच्‍छे कार्यक्रम नहीं कर सकता । इन दिनों समाचारों की जैसी प्रस्‍तुति हो रही है वो कमाल की है । सुबह का विश्लेषण युक्‍त बुलेटिन सुनिए और उसके बारे में भी लिखिए ।
इस पोस्‍ट को सलाम । शानदार । बेमिसाल ।

Anonymous said...

मनीष जी, आपने पुराने दिनो कि याद दिला दी... मुझे खेलों के बारे मे जानना,सुनना, पढना, देखना सब कुछ अच्छा लगता है, हालाँकि एक घरेलु महिला के लिये ये रूचि जरा सी अटपटी है.:).

Nitish Raj said...

वैसे यदि तुलना की जाए तो बीबीसी का मुकाबला नहीं किया जा सकता। एफएम गोल्ड में आवाज थोड़ी ब्लास्ट कर रही है जिस के कारण सुनने में भी थोड़ी दिक्कत हुई। लेकिन बीबीसी तो एल्टीमेट।
सच रेडियो की बात ही अलग है। साथ ही
कृष्ण जन्मोतस्व पर बधाई आपको।

Radhika Budhkar said...

undar aalekh

Radhika Budhkar said...

sundar Aalekh

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