त्रिवेणी विविध भारती का बहुत पुराना कार्यक्रम नहीं है और न ही नया-नवेला है। छोटे से इस कार्यक्रम की जिस ने भी कल्पना की वो वाकई तारीफ़ के काबिल है।
यथा नाम तथा गुण है इस कार्यक्रम के। शायद पूरे पन्द्रह मिनट का भी नहीं है यह कार्यक्रम पर है गागर में सागर। वैसे भी विविध भारती की सुबह की सभा में विशुद्ध भारतीय संस्कृति झलकती है। वन्देमातरम के बाद मंगल ध्वनि फिर भक्ति गीत जिसके बाद देश भक्ति गीत फिर पुराने गीत जो जिसके बाद शास्त्रीय संगीत और उसके बाद त्रिवेणी।
इसका स्वरूप छाया गीत की तरह होते हुए भी आधारिक रूप से अलग है। यहाँ भी छाया गीत की तरह ही गीतों के साथ उदघोषक भाव-विचार प्रस्तुत करते है पर यहाँ विषय हमेशा ख़ास रहते है। कोई न कोई उपदेश ज़रूर होता है। इस तरह हर दिन मिलती है एक सीख।
विषय ज़रूरी नहीं कि भारी भरकम हो। टेलीफ़ोन भी विषय हो सकता है तो डाक भी। बड़े विषयों की तो बात ही क्या है ज़िन्दगी का हर फ़लहफ़ा समेट लेते है। थोड़े से अर्थ पूर्ण शब्दों में बात कही और तीन गीत सुनवा दिए।
गीत पूरे तो नहीं सुनवाए जाते पर बहुत ही अर्थपूर्ण संकेत धुन शुरू में ज़रूर बजती है जिसे सुन कर ऐसा लगता है जैसे नदी की धाराएँ कलकल कर रही हो और अक्सर इस धुन के बाद ही उदघोषक कह देते है आज त्रिवेणी की धाराएँ मिल रही है … विषय पर।
पहले यह कार्यक्रम दुबारा दोपहर में मन चाहे गीत से पहले भी प्रसारित होता था पर अब दुबारा प्रसारण बन्द कर दिया गया है। अब केवल एक ही बार सवेरे पौने आठ बजे संगीत सरिता के बाद प्रसारित होता है। रोज़ सुनने से कोई एक ख़ास बात जीवन में ज़रूर सीख लेते है। अच्छा लगता है इस शिक्षाप्रद कार्यक्रम को सुनना हालांकि इसमें विषय के अनुसार नए गाने भी शामिल रहते है पर वो भी विषय के अनुसार होने से अच्छे लगते है।
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Saturday, August 2, 2008
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2 comments:
बहुत ही भाव प्रवण कार्यक्रम त्रिवेणी की बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने.
धन्यवाद.
उम्दा लेख है। बधाइयां! शायद आप "फलसफ़ा" कहना चाहते थे न कि "फलहफ़ा" :)
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।