रेडियोनामा: साप्ताहिकी 7-5-09
श्रीमती अन्नपूर्णाजी,
समीक्षा सुन्दर रही । एक जानकारी देना काहता हूँ, कि फिल्मी हंगामा शाम ६:३० पर कर दिया गया है और ६.३० पर सांध्य गीत नाम का कार्यक्रम फिल्मी भजनो पर आधारित होता है वह फ़िर से शुरू किया गया है और इस प्रकार अर्पण बंध होने पर निराश हुए श्रोता को शांत किया गया है । रहा सिर्फ़ फिल्मी धूनो के कार्यक्रम को डीटीएच के दायरे से बाहर निकाल कर रेडियो के दायरेमें लाना जो लगता है कि विविध भारती किसी भी बाहने करना ही नहीं चाहती । नहीं तो रविवार के दिन सदा बहार गीत को जो नियमीत आधे घंटे के स्थान पर एक घंटे का किया गया है इस की जगह एक साप्ताहीक कार्यक्रम के रूपमें तो प्रस्तूत किया ही जा सकता है । पर इसके लिये विविध भारती को मन मनाना होगा और एक और बात की अगर ऐसा कार्यक्रम शुरू किया भी गया तो इसकी शुरूआती किस्तों की ध्वनि-मूद्रीत करके थोड़े लम्बे अरसे के बाद पुन; प्रसारित करने के लालच से बचना होगा । जिस तरह अभी एक ही फिल्म से के लिये किया जाता है । यहाँ एक बात स्पस्ट करता हूँ, कि मेरा इशारा सुबह की रेकोर्डिंग को रात्री पुन: प्रसारित करने की और हरगीझ नहीं है । पर उसी कार्यक्रम को वो ही उद्दघोषक की आवाझ के साथ कुछ: महिनो या एक दो साल के बाद वैसे का वैसा फ़िर से प्रस्तूत करने की और है, जिससे एलपी या सीडीमें जो गाने पहेले होते है, वे दूबारा प्रस्तूत होते रहते है और पिछे रहने वाले गाने छुटते ही रहते है । और जिस पूरानी फिल्म की एल पी या सीडी बाझारमें नहीं आयी हो उनके गीत ७८ या ४५ आरपीएम पर अगल अलग होते है वे फिल्में इस कार्यक्रम में कभी शामिल नहीं होगी । जब की रेडियो श्रीलंका पर ऐसा नहीं है । वहाँ ७८ या ४५ आरपीएम वाले गाने बजाने के कारण गानों में एक अन्तरा कम बजता है पर सभी गाने शामिल हो जाते है । एक और बात कि आपने इज्जत के गाने की तो मैंनें फिल्म देख़ी तो नहीं है पर रेडियो सिलोन का श्री अमीन सायानी साहब का अपनी ही आवाझ को समान आवाझ वाले दो अलग अमीन साहब की विषेष असर खडी करने वाला विज्ञापन याद आता है तो इस गाने को शायद तनूजाजी के नाम से जूड़ा गया था और जागी रे बदन में ज्वाला गीत को जय ललीताजी के नाम के साथ जूडा गया था । फ़िर भी अगर मेरी गलती हो रही हो तो माफ़ करना । रही बात आपकी कोई एक कार्यक्रम के लिये साप्ताहीक समीक्षा लिख़ने की तो मेरे पास आप और युनूसजी या संजय पटेलजी जैसा शब्दो का चयन नहीं है पर जब भी कोई बात दिलमें किसी कार्यक्रम के लिये दिलमें आ जाती है तो उसको शब्दोंमें परिवर्तीत कर देता हूँ, पर अच्छे कार्यक्रमों, जिसमें नामी कलाकारों की मुलाकातें या मुलाकातों की शृंखलायें शामिल है तो जो पहेली बार लिख़ा जा सकता है उनको ही विविध भारती की तरह पुन: प्रकाशित करें क्या ? यहाँ भी एक बात स्पस्ट करता हूँ , कि मैं पुन: प्रसारण का सम्पूर्ण विरोधी नहीं हूँ, पर अगर एक किस्त वाला कार्यक्रम होता है तो दो या तीन साल और मुलाकातों की शृंखला की बात हो तो ५ या ६ साल मूझे साल उपयूक्त लगते है । यह बात उजाले उनकी यादों के के सुबह और रात्री प्रसारण के लिये नहीं है ।
पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत-३९५००१.
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Friday, May 8, 2009
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1 comment:
पीयूष जी, एकाध कार्यक्रमों की समीक्षा लिखना आप शुरू तो कीजिए धीरे-धीरे शब्द चयन भी अच्छा हो जाएगा. मैं अनुरोध इसीलिए कर रही हूँ कि आप कार्यक्रम ध्यान से सुनते है. मैं बहुत दिनों से लिख रही हूँ और मेरा एक अलग नजरिया है और कार्यक्रमों के बारे में अलग तरह से भी लिखा जा सकता है और दूसरी बात कि हैदराबाद में क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण सभी कार्यक्रम नही सुन पाते है.
फिल्मी हंगामा की जानकारी मैनें रविवार तक दी उसके बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम की समस्या आई जिसके बारे में यहाँ लिखना मैनें ठीक नही समझा. हमें केवल अनुरंजनी में ही परिवर्तन मिल रहा है.
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