सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद चितन में पुराणों के कथन और अम्बेडकर, गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी के विचार बताए गए। सप्ताह भर भजन भी अच्छे सुनवाए गए जैसे सूरदास की भक्ति रचना -
अँखियाँ हरिदर्शन की प्यासी
इसके अलावा अनूप जलोटा, पिनाज़ मसाणी की गाई भक्ति रचनाएँ भी सुनवाई गई। कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा।
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम इस सप्ताह भी अच्छा रहा। एक दिन यह कार्यक्रम संगीतकार शंकर-जयकिशन के शंकर को समर्पित रहा। उनके कुछ लोकप्रिय तो कुछ भूले बिसरे गीत सुनवाए गए। इसके अलावा एक ही रास्ता फ़िल्म का - भैय्या लाए गोरी मेम जैसे बोलों का गीत अच्छा लगा, यह भूला बिसरा गीत मैनें पहली बार सुना। ऐसा ही मधुबाला झवेरी का गुड्डे-गुड्डी के ब्याह वाला गीत भी था। साथ ही कुछ लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए। कार्यक्रम का समापन के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गाए गीतों से होता रहा।
7:30 बजे संगीत सरिता में नई श्रृंखला आरंभ हुई - एक राग दो मध्यम -इसमें ऐसे रागों की चर्चा की जा रही है जिसमें दो मध्यमों का प्रयोग होता है, इसे प्रस्तुत कर रहीं हैं भारती वैशमपायन और आपसे बातचीत कर रहे है आशीष (दवे) जी। बताया गया कि संधिप्रकाश के समय गाए जाने वाले रागों में प्राःत कालीन राग में शुद्ध मध्यम और सांय कालीन रागों में तीव्र मध्यम लगता है। शुरूवात की गई राग ललित से। चर्चा में रहे राग भिलावल के लिए बताया गया कि इसमें फ़िल्मी गीत बहुत है। दो मध्यम के विभिन्न रागों के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है, राग के थाट के अलावा वादी संवादी भी बताए जा रहे है और आरोह अवरोह गाकर समझाया जा रहा है। आलाप और बंदिशें भी सुनवाई गई। वादन और फ़िल्मी गीत भी इन रागों पर आधारित सुनवाए जा रहे है जैसे राग नट पर आधारित मेरा साया फ़िल्म का गीत -
तू जहाँ-जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा
7:45 को त्रिवेणी में अच्छा लगा वह अंक जिसमें खुद भी ख़ुश रहने और दूसरों को भी ख़ुश रखने की बात कही गई। इसके अलावा मंज़िल पहचान कर रास्ता तय करने की बात कही गई। गाने भी अच्छे सुनवाए गए जैसे इम्तिहान फ़िल्म का गीत -
रूक जाना नहीं तू कहीं हार के
ज़िन्दगी की भी बातें हुई, कुछ नए अंदाज़ और गानों के साथ।
दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को रेणु (बंसल) जी नई फ़िल्मों के साथ एकाध पुरानी फ़िल्म भी ले आई जिसमें से श्रोताओं ने संदेश भेजें इन फ़िल्मों के लिए - मुझसे शादी करोगी, बीवी नं 1 जैसी नई और बहारों के सपने जैसी पुरानी फ़िल्म के लिए। शनिवार को भी रेणु जी ही पधारी फ़ना जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में लेकर। मंगलवार को नया दौर जैसी पुरानी सदाबहार फ़िल्में रही। बुधवार को रेणु (बंसल) जी ले आई प्रोफेसर, तेरे घर के सामने जैसी पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को निम्मी (मिश्रा) जी लाई टशन, दोस्ताना, हलचल जैसी नई फ़िल्में लेकर। हर दिन श्रोताओं ने भी इन फ़िल्मों के लोकप्रिय गीतों के लिए संदेश भेजें।
1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में सपना अवस्थी का गाया यह गीत सुनना अच्छा लगा जो लोकगीतों की याद दिलाता है -
मेरी छोटी सी उमर में सगाई कर दी
तुझे क्या दुःख देउँ मेरी प्यारी अम्मी
अपनी लाड़ली बेटी को पराई कर दी
1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में कुछ पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए जैसे धनवान फ़िल्म का यह गाना -
यह आँखे देख कर हम सारी दुनिया भूल जाते है
तुम्हें पाने की धुन में हर तमन्ना भूल जाते है
तुम अपनी महकी महकी ज़ुल्फ़ के पेंचों को कम कर दो
मुसाफ़िर इनमें घिर कर अपना रास्ता भूल जाते है
और नई फिल्मों के गीत भी सुनवाए गए जैसे सपने फ़िल्म का यह गीत -
चंदा रे चंदा रे कभी तो ज़मीं पर आ बैठेगें बातें करेंगें
3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। शोलापुर के एक गाँव से, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न स्थानों से फोन आए। ऐसे स्थान से भी फोन आया जहाँ देखने लायक केवल एक पुराना मन्दिर ही है। अपने बारे में एक सखि ने बताया कि उसके घर में साड़ियों पर काम करने का व्यवसाय किया जाता है। कुछ छ्त्राओं ने बात की। इस तरह विभिन्न क्षेत्रों की सखियों से बात हुई। गाने नए ही पसन्द किए गए जैसे -
चूड़ी मज़ा न देगी कंगन मज़ा न देगा
मंगलवार को करिअर संबंधी विशेष जानकारी नहीं दी गई पर इस बात की ओर इशारा किया गया कि अपने शौक को चाहे तो करिअर बनाया जा सकता है। बुधवार को सौन्दर्य और स्वास्थ्य पर चर्चा पिछले सप्ताहों की तरह इस बार भी कुछ यूँ ही रही, वही नुस्क़े जैसे संतरे के छिलकों के पाउडर का लेप, कमलेश (पाठक) जी से अनुरोध है कि बुधवार के अंक को सुधारने की कृपया कोशिश कीजिए। गुरूवार को सफल महिलाओं के बारें में बताया जाता है, इस बार कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ भारत रत्न एम एस सुब्बालक्ष्मी के बारें में जानकारी दी गई। उनका बचपन, शिक्षा, संगीत के क्षेत्र में योगदान, जीवन शैली, विवाह आदि के संबंध में जानकारी दी गई। सामान्य जानकारी में इजिप्ट के रहस्यमयी पिरामिडों की जानकारी दी गई। सखियों की पसन्द पर सप्ताह भर नए पुराने और बीच के समय के अच्छे गीत सुनवाए गए जैसे दो रास्ते फ़िल्म का यह गीत -
छुप गए तारे नज़ारे होए क्या बात हो गई
तूने काजल लगाया दिन में रात हो गई
शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में सदाबहार गीत सुनवाए गए जैसे सरस्वती चन्द्र फ़िल्म का मुकेश का गाया यह गीत -
चन्दन सा बदन चंचल चितवन धीरे से तेरा ये मुस्काना
3:30 बजे शनिवार को नाट्य तरंग में सुनवाया गया हरिशंकर परसाई का लिखा नाटक एक लड़की पाँच दीवाने। मज़ेदार नाटक ! पचास साल का हलवाई भी लड़की का दीवाना है पर बाद में लड़की की शादी… और सब लड़की और उसकी माँ की बुराई करने लगते। चुटीला व्यंग्य जैसे कि लेखक की विशेषता है, समाज की सच्ची तस्वीर दिखाने की।
शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में केरल की सैर करवाई गई, पृथ्वी दिवस पर चर्चा हुई, करिअर के लिए क्रिकेट के युवा अंपायर द्वारा इस क्षेत्र में विभिन्न दिशाओं में करिअर बनाने की जानकारी दी गई।
पिटारा में शुक्रवार को अच्छी शुरूवात हुई। गीतों भरी कहानी सुनवाने की शुरूवात की गई। आधे-आधे घण्टे की दो कहानियाँ सुनवाई गई - यादगार और आज मुझे कुछ कहना है। दोनों कहानियाँ रोचक शैली में पढी गई और आवश्यकता होने पर संवादों के साथ सीन भी रखे गए। पहली कहानी यादगार अच्छी लगी इसमें एक ही सीन था, बहुत भावुक कहानी थी पर दूसरी कहानी कुछ-कुछ फ़िल्मी लगी जिसकी शुरूवात ही सीन से हुई, कुछ अधिक ही संवाद थे। सामाजिक स्तर में अंतर को लेकर रची गई इस कहानी में ख़ासकर एक गीत और सीन लोकप्रिय फ़िल्म जब-जब फूल खिले से सीधे उड़ा लिया गया था, गीत है -
यहाँ मैं अजनबी हूँ
हम मानते है कि ऐसी स्थितियाँ समाज में होती ही है पर प्रस्तुति कुछ बदली जा सकती थी। वैसे गाने सभी पुराने ही चुने गए और सही स्थानों पर सुनवाए गए, जबरन ठूँसे नहीं गए थे। कुल मिलाकर कार्यक्रम अच्छा लगा। इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद सत्येन शरत जी। आशा है सिलसिला जारी रहेगा…
बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक हैरी बवेजा से यूनूस जी की बातचीत सुनवाई गई। शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को हैलो फ़रमाइश में श्रोताओं से फोन पर बातचीत हुई और उनकी पसन्द के गीत सुनवाए गए। कुछ श्रोताओं से तो बिल्कुल ही बातचीत न हो पाई, वे सिर्फ़ फ़िल्म का नाम और गाने के बोल ही बता पाए और कुछ अधिक बोल नहीं पाए।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद फ़िल्मी हंगामा में नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
7 बजे जयमाला में नए पुराने गीत सुनवाए गए जिसमें आजकल के फ़िल्मी गीतों के साथ फ़ौजी भाइयों ने सूरज फ़िल्म के शारदा के गाए तितली उड़ी गाने की भी फ़रमाइश की।
शनिवार को विशेष जयमाला निर्माता निर्देशक बासु भट्टाचार्य ने प्रस्तुत किया जिसमें आरंभिक और अंतिम गीत फ़ौजी भाइयों के लिए था। कुछ अपनी बातें बताई कुछ कलाकारों को भी याद किया गया। गाने एक से बढ कर एक सुनवाए जैसे एस डी बर्मन का सुन मेरे बंधु रे। अच्छी प्रस्तुति रही।
7:45 पर शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। कोई विशेष पत्र नहीं था, कुछ कार्यक्रमों की तारीफ़ तो कुछ पुराने कार्यक्रमों को फिर से शुरू करने का अनुरोध था। मंगलवार को सुनवाई गई क़व्वालियाँ। बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में रंगमंच और फ़िल्मों के कलाकार संजय जी से रेणु (बंसल) की बातचीत अच्छी लगी। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग मिश्र काफी पर आधारित साहब बीबी और ग़ुलाम फ़िल्म का आशा भोंसले का गाया गीत -
भँवरा बड़ा नादान रे
8 बजे हवामहल में सुना हास्य नाटक - कहीं दाल न गल जाए, क्या मुसीबत है (निर्देशक गंगाप्रसाद माथुर)
9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें सुनवाई गई।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में लैला मजनूँ जैसी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में गीतकार नक्शलायल पुरी से कमल (शर्मा) जी की बातचीत प्रसारित हो रही है। इस कड़ी में साथी संगीतकार ख़य्याम के साथ काम करने के अनुभव बताए गए।
10 बजे छाया गीत में सोमवार को प्यार की नज़र को समर्पित छाया गीत अच्छा लगा।
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Friday, May 1, 2009
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