इस सप्ताह परिवर्तन की हल्की सी, पर ख़ुशनुमा लहर आई - दोपहर एक बजे म्यूज़िक मसाला की जगह शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि शुरू किया गया।
सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद चितन में भगवद गीता का कथन, गौतम बुद्ध जैसे मनीषियों के विचार बताए गए। बहुत पुराने भजन इस सप्ताह भी नहीं सुनवाए गए पर सप्ताह भर भजन अच्छे ही सुनवाए गए -
मैं तो राह निहारूँ मेरे राम आएगें
शबरी के राम आएगें
ओ मैं तो राह निहारूँ
कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा जैसे शुक्रवार को सुनवाया गया - हम होंगे कामयाब
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम इस सप्ताह भी अच्छा रहा। कुछ लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए जैसे सीआईडी का शमशाद बेगम का गाया गीत -
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
रविवार को भूले-बिसरे गीत अधिक सुनवाए गए। अन्य दिनों में भी कुछ ऐसे गीत सुनवाए गए जैसे ज़िद्दी फ़िल्म का गीत। कार्यक्रम का समापन के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गाए गीतों से होता रहा।
7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला एक राग दो मध्यम राग बसन्त की चर्चा से समाप्त हुई। इसमें ऐसे रागों की चर्चा की जा रही थी जिसमें दो मध्यमों का प्रयोग होता है। इस सप्ताह कल्याण थाट के लोकप्रिय राग केदार, कामोद, मारू बिहाग की चर्चा की गई। बंदिशें भी सुनवाई गई। फ़िल्मी गीत भी इन रागों पर आधारित सुनवाए गए जैसे राग छाया नट पर आधारित तलाश फ़िल्म का मन्नाडे का गाया गीत - तेरे नैना
सप्ताह के अंतिम दिन से नई श्रृंखला शुरू हुई - भिंडी बाज़ार घराने की बंदिशें। पहली ही कड़ी में समझा दिया कि सुर ताल में शब्दों को ऐसे पिरोना की भाव अच्छी तरह समझ में आ जाए, यही बंदिश है। बंदिशें छोटी 4-5 लाइनों की होती है। शास्त्रीय संगीत की बंदिशें और सुगम संगीत की बंदिशें अलग होती है। शुरूवात की गई सुबह के राग वैरागी से।
7:45 को त्रिवेणी शुक्रवार को बहुत अच्छी रही, गुणों अवगुणों की बात हुई, दूसरों को सुखी करने की बात हुई गाने भी उचित और अच्छे सुनवाए गए जैसे साजन बिना सुहागन का गीत -
मधुबन ख़ुशबू देता है
पर प्रसारण किसी और दिन भी हो सकता था क्योंकि इस दिन थी पहली मई यानि मज़दूर दिवस, विश्व भर में श्रमिकों को सम्मान देने का दिन, अगर इस दिन सुबह सवेरे त्रिवेणी में विविध भारती भी मज़दूर भाई-बहनों को सलाम करती तो अच्छा लगता।
इसके अलावा ज़िन्दगी के अँधेरों की, स्वाभिमान की चर्चा हुई। रविवार का अंक अच्छा रहा, प्रकृति की पर्यावरण की बातें हुई।
दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को युनूस जी लाए लोकप्रिय फ़िल्में - चाँदनी, त्रिशूल, सिलसिला जिसमें से श्रोताओं ने रोमांटिक गीतों के लिए संदेश भेजें। शनिवार को रेणु (बंसल) जी पधारी ऐसी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर जिनके सभी गीत अच्छे है जैसे जानी मेरा नाम, लोफ़र, कन्यादान। सोमवार को अस्सी के दशक के डिस्को गीत लेकर आए युनूस जी - क़ुर्बानी, डान्स डान्स। मंगलवार को अमरकान्त जी लाए लोकप्रिय फ़िल्में - लव इन टोकियो, तीसरी मंज़िल, सत्ते पे सत्ता। बुधवार को कमल (शर्मा) जी ले आए अनुपमा, दो बदन, ख़ामोशी, तीसरी कसम जैसी संजीदा फ़िल्में। गुरूवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी लाए धूम, रब ने बना दी जोड़ी, गुप्त, दिल का रिश्ता जैसी नई फ़िल्में। हर दिन श्रोताओं ने भी इन फ़िल्मों के लोकप्रिय गीतों के लिए संदेश भेजें।
1:00 बजे पहले की तरह शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि शुरू हो गया। गायन प्रस्तुति में सोमवार को पंडित भीमसेन जोशी का गायन सुनवाया गया - राग यमन कल्याण में - पिया बिन रतिया बैरन, राग यमन में - पिया की नजरिया। बुधवार को उस्ताद अमीर खाँ का गायन सुनवाया गया - राग बैरागी भैरव - तुमरो नाम।
वादन प्रस्तुति में मंगलवार को उस्ताद अमजद अली खाँ का सरोद वादन जिसमें रचना शुभलक्ष्मी सुनवाई गई, शिवकुमार शर्मा का संतूर वादन जिसमें राग कलावती सुनवाया गया और अंत में हरि प्रसाद चौरसिया का बाँसुरी वादन सुनवाया गया। गुरूवार को पंडित विजय राघव राव का बाँसुरी वादन सुनवाया गया - तीन ताल में राग नटहंस, द्रुत एक ताल में राग हिंडोल।
बहुत आनन्द आ रहा है। इस कार्यक्रम को दुबारा इसी समय शुरू करने के लिए धन्यवाद महेन्द्र मोदी जी।
1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में श्रोताओं ने मिले-जुले गीतों के लिए फ़रमाइश की और विविध भारती ने भी हर दिन बड़े चाव से ये गीत सुनवाए जैसे कभी-कभी फ़िल्म का यह गाना -
कभी-कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है
इस गीत को सुनवाते समय शुरूवात का वो हिस्सा भी शामिल किया जहाँ इसे नज्म की तरह पढा गया।
नई फिल्म बाग़बान का अलका याज्ञिक और अमिताभ बच्चन का गाया यह गीत -
मैं यहाँ तू वहाँ ज़िन्दगी है कहाँ
तू ही तू है सनम देखता हूँ जहाँ
3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। श्रीनगर की बातें तो सभी जानते है कि वहाँ सूखे मेवे बहुत होते है और शिकारे तथा डल झील के बारे में भी, अच्छा होता अगर उनसे वहाँ के कुछ लोक गीतों और पर्वों के बारे में पूछा जाता या वहाँ की खान-पान की संस्कृति के बारे में बात होती जैसे चाय की जगह कहवा पिया जाता है। सतारा, महाराष्ट्र से फोन आए और उत्तर प्रदेश से तो छोटी सी सखि ने बात की। कुछ छात्राओं ने भी बात की अपने करिअर की योजना बताई। एक सखि ने बीकानेर से बात की पर पूछने पर भी उसने स्पष्ट नहीं बताया कि बीकानेरी रसगुल्ले किस तरह से अलग होते है, पर भई, हमें तो याद आ गए छोटे-छोटे रंगबिरंगे, ठेठ राजस्थानी रंग - गहरे गुलाबी, चटक पीले, हरे, सफ़ेद रसगुल्ले, प्लेट में आकर्षक दिखने वाले जिसे चम्मच से पूरा एक रसगुल्ला मुँह में भरकर खाया जा सकता है, सामान्य रसगुल्ले की तरह नहीं कि एक पूरा रसगुल्ला मुँह में रखना ही मुश्किल हो जाता है। इस तरह विभिन्न क्षेत्रों की बात हुई। नए गाने भी पसन्द किए गए पर इज्ज़त फ़िल्म के इस यह गीत की बहुत दिन बाद फ़रमाइश आई जिसे जयललिता पर फ़िल्माया गया है -
रूक जा ज़रा किधर को चला मैं सदके तेरे रे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
सोमवार को ख़जूर की खीर बनाना बताया गया। मंगलवार को करिअर संबंधी बातें बताई जाती है। इस बार इंटरव्यू में कैसे जाए, व्यवहार कैसे हो, तैयारी कैसे करें आदि बातें बताई गई। यह सब पहले भी बताया गया था, ख़ैर… इस तरह की बातें कई बार बताई जा सकती है। बुधवार को सौन्दर्य और स्वास्थ्य पर चर्चा में कुछ नई बातें बताई गई जैसे आम का फेस पैक, इसके अलावा यह भी बताया गया कि गर्मी में तैराकी तो अच्छी लगती है पर तैरना और उसके बाद गर्मी, ऐसे में त्वचा की सुरक्षा के लिए सन स्क्रीन का प्रयोग किया जाना चाहिए।
सखियों की पसन्द पर सप्ताह भर नए पुराने और बीच के समय के अच्छे गीत सुनवाए गए जैसे कलाकार फ़िल्म का यह गीत - नीले नीले अम्बर पर चाँद जब आए, नई फ़िल्म जब वी मेट का यह गीत - ये इश्क हाय बैठे बिठाए जन्नत दिखाए, पुरानी फ़िल्म शगुन का यह गीत - तुम अपना रंजोग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में सदाबहार गीत सुनवाए गए जैसे सगाई फ़िल्म का रफ़ी साहब और आशा जी का गाया यह गीत -
न ये ज़मीन थी न आसमाँ था
न चाँद तारों का ही निशाँ था
मगर ये सच है के उन दिनों भी
तेरा मेरा प्यार यूँ ही जवाँ था
3:30 बजे शनिवार को नाट्य तरंग में सुनवाया गया नाटक - लेकिन अब वो नहीं रहा। गोकुलानन्द महापात्र के उड़िया नाटक का हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर किया राधाकान्त मिश्रा ने जिसके निर्देशक है मुख़्तार अहमद। दुर्घटना में याददास्त चली जाती है। एक दंपती उसे बेटा कहते है, पर वो कहता है उसका परिवार है, जहाँ जाने पर उसे कोई नहीं पहचानता, उसका चेहरा बदल गया है। वह अपनी बातों से याद दिलाने की कोशिश करता है। बहुत ही भावुक था नाटक।
शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में गरमी की छुट्टियों का पूरा ख़्याल रखा गया। कुछ अलग दिशा में ध्यान लगाकर समय के सदुपयोग की बात कही गई जिसके लिए इंटरनेट पर उपलब्ध हिन्दी अंग्रेज़ी द्विभाषी और तेलुगु सहित त्रिभाषी शब्दकोशो की जानकारी दी गई, हिन्दी सीखने के लिए उपलब्ध सरकारी साफ्टवेयरों की भी जानकारी दी गई, कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण नृत्यकला मोहिनीअट्टनम की और अभिनय कला की जानकारी दी गई।
पिटारा में शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम चूल्हा-चौका जिसमें महाराष्ट्र के व्यंजन बताएँ अपर्णा जी ने, आपसे बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। व्यंजन बनाने में आसान है जिसका आनन्द घर-घर के चूल्हे-चौके में लिया जा सकता है। अरवी के पत्तों की बेसन की वड़ी अच्छी लगी। झुनका व्यंजन हरे प्याज़ का बताया गया और कहा गया कि इसके बजाय शिमला मिर्च भी ले सकते है जबकि हम शिमला मिर्च का ही बनाते और इसे बेसन की शिमला मिर्च कहते है, यही तो है हमारे देश की ख़ासियत, पकवान वही पर नाम और रंग-रूप थोड़े से बदले-बदले।
पिटारा में सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा हेच आर झुनझुनवाला से निम्मी (मिश्रा) जी ने अस्थि रोग पर बातचीत की। घुटने के रोग, नी रिप्लेसमेन्ट पर विस्तृत जानकारी मिली कि इसमें उमर और मोटापा ख़ासकर माँसपेशियो की गति से बहुत असर होता है। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक हैरी बवेजा से यूनूस जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को हैलो फ़रमाइश में श्रोताओं से फोन पर बातचीत हुई और उनकी पसन्द के गीत सुनवाए गए। कुछ ख़ास बात नहीं हुई श्रोताओं से।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद फ़िल्मी हंगामा में एक दो तीन जैसी नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
7 बजे जयमाला में हर दिन नए पुराने गीत सुनवाए गए जैसे नई फ़िल्म ढोल का गीत और पुरानी फ़िल्म समाधि का लोकप्रिय गीत - काँटा लगा
शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत हुआ विविध भारती के संग्रहालय से जिसका संयोजन किया कल्पना (शेट्टी) जी ने, यह कार्यक्रम है निर्माता निर्देशक चेतन आनन्द द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला। सुनकर लगा वाकई हकीकत का फ़िल्मकार बोल रहा है। सारी प्रस्तुति, एक एक शब्द फ़ौजी भाइयों के लिए था। कुछ अपने शूटिंग के अनुभव बताए और बढिया गीत सुनवाए।
7:45 पर शुक्रवार को लोकगीतों का आनन्द लिया। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। इस बार भी कुछ कार्यक्रमों की तारीफ़ तो कुछ पुराने कार्यक्रमों को फिर से शुरू करने का अनुरोध था। मंगलवार को सुनवाई गई फ़िल्मी क़व्वालियाँ जैसे मुग़ले आज़म की। बुधवार को राजस्थान के लोकवाद्य के बारे में वादक कलाकार किशोर सिंह जी से बातचीत की गई। लोक संगीत में तो यह वाद्य एक तार का होता है पर फ़िल्मी गीतों में प्रयोग के लिए दो और तीन तार का भी होता है। वैसे भी नई फ़िल्मों में राजस्थानी लोकगीत कुछ ज्यादा ही आ गए है। इस वाद्य का चलन भी नई फ़िल्मों में ही है। बातचीत अच्छी लगी। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग मिश्र शिवरंजनी पर आधारित ज़िद्दी फ़िल्म का आशा भोंसले का गाया गीत।
8 बजे हवामहल में सुना नाटक - वो कचरा कर दिया (रचना सीमा मिश्रा निर्देशक विजय दीपक छिब्बर), शादियाँ (निर्देशक अनूप सेठी), कदरदान ( रचना महेश्वर दयाल निर्देशक सुशील बैनर्जी), हाय हाय (निर्देशिका चन्द्रप्रभा भटनागर), अशर्फ़ीलाल बी काम (रचना पी डी मिश्रा निर्देशक मुख़्तार अहमद)
9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें सुनवाई गई।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में बनारसी बाबू, आहिस्ता आहिस्ता, अधिकार, अराउंड द वर्ल्ड, पवित्र पापी जैसी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में गीतकार नक्शलायल पुरी से कमल (शर्मा) जी की बातचीत प्रसारित हो रही है। इस कड़ी में सपन जगमोहन के साथ काम करने और उनके साथ नाराज़गी की बातें बताई, इन्दीवर के साथ अनुभव बताए गए।
10 बजे छाया गीत में सोमवार को अमरकान्त जी ने बहुत अच्छे गीत सुनवाए। बुधवार को भी अच्छे रोमांटिक गीत सुनवाए गए।
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Friday, May 8, 2009
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