सुबह 6 बजे समाचार के बाद चिंतन में विदेशी चिंतक, जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गाँधी के विचार बताए गए लेकिन 27 मई को जवाहरलाल नेहरू की पुण्य तिथि थी इस दिन स्वामी विवेकानन्द के युवा शक्ति संबंधी विचार बताए गए, क्या ही अच्छा होता अगर इस दिन नेहरू के विचार बताए जाते। वन्दनवार में हर दिन अच्छे भजन सुनवाए गए। यह भजन बहुत दिन बाद सुन कर अच्छा लगा -
सतगुरू नानक परकटया
कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा। इस सप्ताह भी अच्छे गीत सुनवाए गए जैसे -
हज़ार बार स्वर्ग से हसीन है मेरा वतन
मेरा वतन मेरा वतन मेरा वतन
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में इस सप्ताह भी गीतों में कुछ भूली बिसरी आवाज़े सुनवाई गई जैसे मीना लपूर की। एक भूला बिसरा गीत बहुत अच्छा लगा - फ़िल्म का नाम बड़ी माँ और आवाज़ नूरजहाँ की, दिया जला कर आग बुझाई… कुछ ऐसे ही बोल है। हर दिन कार्यक्रम का समापन के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गाए गीतों से होता रहा।
7:30 बजे संगीत सरिता में मंगलवाद्य शहनाई पर श्रृंखला - शहनाई के रंग शहनाई के संग समाप्त हुई, जिसे प्रस्तुत कर रहे थे ख़्यात शहनाई वादक कृष्णाराम चौधरी। आपसे बात कर रही थी कांचन जी। इस श्रृंखला में फ़िल्मी गीतों में शहनाई के प्रयोग पर चर्चा हुई। इस सप्ताह विभिन्न फ़िल्मी गीत सुनवाए गए और गीत सुनवाने से पहले इन गीतों को शहनाई की धुन पर सुनवाया गया। साथ ही इन गीतों के रागों की भी चर्चा हुई। यह बताया गया कि कौन सा गीत किस राग पर आधारित है और किस गीत में किस राग की झलक है जैसे हीर रांझा के गीत -
दो दिल टूटे दो दिल हारे
यह गीत राग पहाड़ी पर आधारित है और इसमें राग मांड की झलक है। जब बात हो शहनाई की और शादी-ब्याह के गीतों की चर्चा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता, शनिवार का अंक ऐसा ही रहा। प्रसिद्ध बिदाई गीत सुनवाया गया जो फ़िल्म नीलकमल के लिए रफ़ी साहब ने गाया है -
बाबुल की दुआएँ लेती जा जा तुझको सुखी संसार मिले
सभी गीतों को शहनाई पर भी सुनवाया गया। अधिकतर गीत शहनाई पर ही ज्यादा अच्छे लगे लेकिन अनोखी रात फ़िल्म का विदाई गीत -
महलों का राजा मिला के रानी बेटी राज करेगी
शहनाई पर अच्छा नहीं लगा। शुरू में तो गीत पकड़ में ही नहीं आया कुछ धुन सुनने के बाद ही गीत को पहचान पाए। एक अच्छी बात इस सप्ताह यह हुई कि सेहरा फ़िल्म के गीतों की चर्चा के समय संगीतकार रामलाल की अहमद वसी से इस संबंध में की गई बातचीत का अंश भी सुनवाया गया। वैसे इस श्रृंखला में संगीतकार रामलाल की बहुत चर्चा हुई, शायद उनके ही संगीत में शहनाई का बहुत प्रयोग हुआ है। समापन कड़ी अच्छी रही जिसमें विभिन्न गीतों के अंश सुनवाए गए जहाँ शहनाई की धुन है।
7:45 को त्रिवेणी में असामाजिक तत्व और उन्हें निकाल फेंकने की पहल की बात अच्छी लगी। छुट्टियाँ है इसीलिए छुट्टियों की बात भी हुई, गाने भी नए पुराने उचित सुनवाए गए जैसे -
कोलम्बस छुटटी है आज
आजा कोई देश खोजे भाई
शादी के बंधन की, दाम्पत्य की भी चर्चा हुई और जल की समस्या भी उठी तो कटुवचन और ग़लतफ़हमी की भी बात चली। 27 मई को जवाहरलाल नेहरू की पुण्य तिथि पर त्रिवेणी उन्हें समर्पित की जा सकती थी, इस दिन बात हुई मंज़िल की, वहाँ तक पहुँचने की, इसी बात को थोड़ा मोड़ देकर नेहरू के नवनिर्माण की बात की जा सकती थी।
दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को डान, खून पसीना, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी जैसी नई पुरानी फ़िल्में लेकर आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी। शनिवार को झलक दिखला जा जैसी नई फ़िल्में रही। सोमवार को आँधी, राम और श्याम, रफ़ूचक्कर जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं शहनाज़ (अख़्तरी) जी। मंगलवार को दिल्ली 6 जैसी नई फ़िल्मे लेकर आई सलमा जी। बुधवार को रेणु (बंसल) जी लाईं बारादरी, अनुपमा, काला पानी जैसी पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को कमल (शर्मा) जी लाए लोकप्रिय फ़िल्में - मर्यादा, सफ़र, पारसमणि। इस कार्यक्रम में पचास के दशक की फ़िल्म से लेकर आजकल चल रही फ़िल्में तक शामिल रहती है। इस तरह यह कार्यक्रम हर पीढी के श्रोता का है जिसके लिए हम धन्यवाद देते है इस कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता विजय दीपक छिब्बर जी को।
1:00 बजे शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम अनुरंजनि में शुक्रवार को पंडित राजन मिश्रा और साजन मिश्रा, शनिवार को विदुषी माणिक वर्मा का गायन सुनवाया गया। सोमवार को पंडित किशन महाराज का तबला वादन और विदुषी गंगुबाई हंगल का शास्त्रीय गायन सुनवाया गया। मंगलवार को विदुषी किशोरी अमोलकर का शास्त्रीय गायन सुनवाया गया। बुधवार को पंडित शिवकुमार शर्मा संतूर का वादन सुनवाया गया। गुरूवार को उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खाँ का गायन सुनवाया गया।
1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में श्रोताओं ने मिले-जुले गीतों के लिए फ़रमाइश की जैसे साठ के दशक की फ़िल्म जीने की राह का यह गीत -
आ मेरे हमजोली आ खेले आँख मिचोली आ
नई फ़िल्म क्या यही प्यार है का यह गीत -
मेरी तरह तुम भी कभी प्यार करके देखो न
बीच के समय की फ़िल्म दुल्हन वही जो पिया मन भाए का हेमलता का गाया यह गीत -
ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में
प्यार की छाँव में बिठाए रखना
सजना सजना
3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। इस बार अधिकतर फोनकाल घरेलु महिलाएँ के आए, कुछ छात्राओं ने भी बात की। हल्की-फुल्की बातचीत हुई। एक सखि ने महाराष्ट्र की पैठनी साड़ियों के बारे में बताया कि इस पर सोने के तार से काम होता। लगभग सभी अच्छे गीतों की फ़रमाइश हुई पर बीते समय की फ़िल्म खिलौना फ़िल्म का यह लोकप्रिय गीत सुनना अच्छा लगा -
खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी
सोमवार को खुद कमलेश (पाठक) जी का एक व्यंजन बताया गया - गवार की दानेदार सब्जी जो गवार की फली, आलू और दरदरा पिसी मूँगफली मिलाकर बनाई जाती है। अच्छा लगा, मैने पहली बार सुना पर लगा यह तो हम भी बनाते है फर्क इतना है कि दरदरी मूँगफली के बजाय कैरी (कच्चा आम) को घिस कर यानि कदूकस कर डाले, अच्छी लगती है सब्जी। मंगलवार को करिअर संबंधी बातें बताई जाती है। इस बार आर्केटेक्चर के क्षेत्र की बातें बतायी गई। बुधवार को जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि और राणा प्रताप की जयंति थी। इस अवसर पर दोनों ही के बारे में बताया गया। गुरूवार को सफल महिलाओं की गाथा बताई जाती है। इस बार कल्थक नृत्यांगना सितारा देवी के बारे में बताया गया। यह नई जानकारी रही कि उनका असली नाम धनलक्ष्मी है। सखियों की पसन्द पर सप्ताह भर नए पुराने और बीच के समय के अच्छे गीत सुनवाए गए जिनमें से पुराने गीत - लरलप्पा लरलप्पा के लिए बहुत दिन बाद सखियों ने फ़रमाइश भेजी। नई फ़िल्म जोधा अकबर का यह गीत -
कहने को जश्ने बहारा है
शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में सदाबहार गीत सुनवाए गए जैसे जानवर फ़िल्म का रफ़ी साहब का यह गीत -
मेरी मोहब्बत जवाँ रहेगी सदा रही है सदा रहेगी
3:30 बजे शनिवार को नाट्य तरंग में सुनवाया गया नाटक - अपना अपना सच जिसके लेखक है एक़बाल मजीद और निर्देशक है राकेश भौडिंयाल। आधुनिक जीवन शैली को दर्शाता संवेदनशील नाटक जो कामकाजी महिला पर केन्द्रित है।
पिटारा में शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में किताबों की दुनिया स्तम्भ में पूर्व राष्ट्रपति डा ए पी जे अब्दुल कलाम की पुस्तक अग्नि की उड़ान पर जानकारी मिली। हिमाचल प्रदेश की एक ख़ास कोठी के बारे में जानकारी दी गई। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को श्रृद्धांजलि दी गई, सुनवाया गया मेरे जीवन साथी फ़िल्म का गीत, युनूस जी आपने वाकई बहुत बढिया गीत चुना। विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश की सूचना भी दी गई।
शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे जो गीतकार शकील बदायूँनी पर केन्द्रित था। इसकी दूसरी और अंतिम कड़ी प्रसारित हुई। सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) विषय पर डा उर्वशी अरोरा से बातचीत हुई। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में अभिनेत्री रवीना टंडन से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। अच्छी जानकारी मिली कि कैसे पहली फ़िल्म की। शुरूवात में किस तरह प्रस्ताव मिलते रहे और वहां से पूरा सफ़र। शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को हैलो फ़रमाइश में श्रोताओं से फोन पर बातचीत हुई। विभिन्न स्तर के श्रोताओं ने बात की जैसे एक छात्र ने कहा कि इस समय वह परिक्षा के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है और वह फ़ौज में जाना चाहता है। श्रोताओं की पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद सप्ताह भर फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम में नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
7 बजे जयमाला में शनिवार को निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा को श्रृद्धांजलि दी गई। उनके द्वारा प्रस्तुत पूर्व प्रसारित विशेष जयमाला सुनवाई गई। खुद की फ़िल्मों के बारे में बताया, गीत सुनवाए। कुछ बातें साथियों की याद की। सोमवार से एस एम एस द्वारा भेजी गई फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश पर गीत सुनवाए जा रहे है।
7:45 पर शुक्रवार को सिंधी और भोजपुरी लोकगीत सुनवाए गए। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। श्रोताओं ने संगीत सरिता, सेहतनामा कार्यक्रम की तारीफ़ थी, कुछ कार्यक्रम सुनवाने का अनुरोध किया। क्षेत्रीय केन्द्रों के विज्ञापन से आते व्यवधान की शिकायत हुई जिसका जवाब वही मिला कि डीटीएच लगवा लो। दिलचस्प बात यह हुई कि एक श्रोता ने लिखा कि उन्होनें बैंग्लोर में मन्नाडे साहब से मुलाक़ात की और उनसे विविध भारती के कार्यक्रम में पधारने के लिए कहा, इस पत्र का पत्रावली में स्वागत हुआ, हमने सोचा - अच्छा है मियाँ को घर बैठे ही बीवी मिल गई। मंगलवार को सुनवाई गई ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ। बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में कर्नाटक संगीत की कलाकार श्री विद्या श्रीराम से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। दक्षिण भारतीय शैली में हिन्दी सुनने को मिली। निम्मी जी ने कहा कि यह पहला प्रयास है। यह नया अंदाज़ कैसा है अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग भीमपलासी पर आधारित कोहरा फ़िल्म का लताजी का गाया गीत।
8 बजे हवामहल में इस सप्ताह भी जाने माने रचनाकार जैसे के पी सक्सेना, राजकुमार दाग़, मुमताज़ शकील, कमल दत्त, अरूणा कपूर, सुल्तान अहमद और गंगाप्रसाद माथुर की झलकियाँ सुनवाई गई।
9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें सुनवाई गई।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में दिल तो पागल है, ख़ानदान, कभी ख़ुशी कभी ग़म, आन जैसी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक शक्ति सामन्त से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी प्रसारित हुई जिसमें फ़िल्म हावड़ा ब्रिज बनाने के अनुभव बताए।
10 बजे छाया गीत में सभी का अंदाज़ वही रहा, गीत भी जाने-पहचाने, विषय भी वही, कहीं कुछ भी नया नज़र नहीं आया।
10:30 बजे से श्रोताओं की फ़रमाइश पर गाने सुनवाए गए जिनमें बीच के समय की फ़िल्मों के गीतों की अधिक फ़रमाइश थी। 11 बजे समाचार के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।
सबसे नए तीन पन्ने :
Friday, May 29, 2009
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