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Saturday, May 2, 2009

नाच रे मयूरा---विविध भारती पर गूंजा पहला गीत । पंडित नरेंद्र शर्मा, अनिल विश्‍वास और मन्‍ना डे का संगम

मन्‍ना डे एक मई यानी मज़दूर दिवस को अपना जन्‍मदिन मनाते हैं । और विविध-भारती अपना जन्‍मदिन मनाती है तीन अक्‍तूबर को । एक ऐसी घटना का जिक्र आज रेडियोनामा पर किया जा रहा है जिसका ताल्‍लुक मन्‍ना डे से है और है विविध भारती से ।

विविध-भारती की स्‍थापना दरअसल रेडियो सीलोन के बढ़ते प्रभुत्‍व का मुक़ाबला करने के लिए की गई थी । जिन दिनों विविध भारती को शुरू करने की तैयारियां चल रही थीं, पंडित नरेंद्र शर्मा इस नए और ऐतिहासिक रेडियो-चैनल की डिज़ायनिंग के काम में अपनी टोली के साथ जुटे हुए थे  । ये तय पाया गया था कि विविध भारती की शुरूआत एक गीत से की जायेगी । पंडित जी ने ये गीत लिखा । इसके संगीत संयोजन की जिम्‍मेदारी सौंपी गयी अनिल बिस्‍वास को और गायक के रूप में मन्‍ना दा का चुनाव किया गया ।

तीन अक्‍तूबर 1957 को जब उदघोषक शील कुमार ने विविध भारती के आग़ाज का ऐलान किया तो यही गीत बजाया गया था । विविध भारती का आरंभ इसी गीत से हुआ । इस मायने में ये बेहद खास है । सागर नाहर  ने इस गाने को यूट्यूब पर खोज निकाला और हमने वहां से इसका ऑडियो निकाल लिया । ताकि मन्‍ना डे को जन्‍मदिन की बधाईयां भी दे सकें और विविध भारती के शुभारंभ से जुड़े इस ऐतिहासिक कालजयी अद्वितीय अदभुत गीत को रेडियोनामा पर आपके लिए संजो सकें ।

मुझे पता है कि आपकी इच्‍छा इसे अपने मोबाइल, आइ-पॉड, सी.डी.प्‍लेयर वग़ैरह पर संजोने की भी होगी । इससे पहले कि आप इसे चुराने का कोई और तरीक़ा खोजें ये रहा डाउनलोड लिंक ।

इस गाने के बारे में पंडित जी की सुपुत्री लावण्‍या जी ने जो लिखा है उसे यहां
पढिये ।


ये रहे इस गीत के बोल--


नाच रे मयूरा!
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगन
देख सरस स्वप्न, जो कि
आज हुआ पूरा !
नाच रे मयूरा !

गूँजे दिशि-दिशि मृदंग,
प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर
छिड़े तानपूरा !
नाच रे मयूरा !

सम पर सम, सा पर सा,
उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान
क्यों रहे अधूरा ?
नाच रे मयूरा !



मन्‍ना डे को रेडियोनामा परिवार की ओर से जन्‍मदिन की बधाईयां ।।

6 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री युनूसजी,
रेडियोनामा पर एक पोस्ट लेखक के रूपमें एक लम्बे अरसे के बाद आपकी उपस्थिती से खुशी हुई । नहीं तो हमें ऐसा मेहसूस होता था कि यह ब्लोग सिर्फ मेरा और श्रीमती अन्नपूर्णाजी का बन कर रह जायेगा क्या ? अगली पोस्टका इंतेझार रहेगा ।
पियुष महेता ।
सुरत

sanjay patel said...

वाह युनूस भाई,
इस बेजोड़ बंदिश से आपने रेडियोनाम पर झमाझम मेह बरसा दिया जैसे आपने.
कैसे अनमोल शब्द,स्वर और धुन..आइये...पं.नरेन्द्र शर्मा,अनिल विश्वास और मन्ना डे जैसे महारथियों करें भाव-वंदन . और इस परिश्रमपूर्ण सुरीली पोस्ट के लिये आपको साधुवाद दें.

annapurna said...

मैं पीयूष जी की टिप्पणी से पूरी तरह से सहमत हूँ।

अब एक निवेदन विविध भारती से कि हर 3 अक्तूबर को अगर यह गीत सुनवा दिया जाए तो अच्छा रहेगा।

अब एक निवेदन पीयूष जी सहित रेडियोनामा के सभी सदस्यों से - मैं हर सप्ताह साप्ताहिकी लिख रही हूँ जो मैं अपने नज़रिए से लिखती हूँ। हो सकता है दूसरे सदस्यों का नज़रिया अलग हो। अगर दूसरे भी साप्ताहिकी लिखें तो कार्यक्रमों को अलग-अलग नज़रिए से देखने का मौका मिलेगा। पूरे कार्यक्रमों की साप्ताहिकी न सही किसी एक कार्यक्रम की भी साप्ताहिकी लिखी जा सकती है। इस तरह सभी सदस्य अलग-अलग कार्यक्रमों की साप्ताहिकी लिखेंगें तो तो अलग-अलग दृष्टिकोणों से कार्यक्रमों की समीक्षा होगी जो अच्छी रहेगी। उम्मीद है कोई तो सदस्य इसकी शुरूवात करेंगे।

शोभना चौरे said...

बहुत हीसुंदर पोस्ट भारी गर्मी मे यह गीत सुनकारबरसात की ठंडक महसुस हुई|
बहुत बहुत बधाई.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

युनूस भाई,
देर से धन्यवाद कह रही हूँ - यात्रा पर थी -
धन्य्वाद , "नाच रे मयूरा " गीत को मन्नादा की साल गिरह पर याद किया
और अनिलदा और पूज्य पापा जी को भी साथ साथ याद कर लिया - सागर नाहर भाई'सा का पुन: धन्यवाद ! आपका भी शुक्रिया
तथा सभी टीप्पणीकर्ताओँ को स स्नेह आभार !
- लावण्या

सागर नाहर said...

आप सभी का धन्यवाद, इन्टरनेट पर मैं अक्सर दुर्लभ चीजों/गीतों की खोज में रहता हूं कभी कभार इस तरह के सुन्दर गीत मिल जाते हैं। और फिर एक पुत्री के लिये इससे बड़ी सौगात क्या होगी?
:)

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