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Tuesday, May 19, 2009

एक गीत रसोई से, सखि सहेली कार्यक्र्म को समर्पित

आजकल गर्मी की छुट्टियाँ चल रही है। हमारे देश में चलन है कि इन दिनों में महिलाएँ अपने बच्चों को लेकर अपने मायके यानि माता-पिता के घर छुट्टियाँ मनाने जाती है। ऐसे में घर में अकेले रह जाते है पति महोदय और उनके सामने सबसे बड़ी समस्या आ जाती है खाने-पीने की। यही ध्यान में रख कर आज याद कर रहे है अस्सी के दशक की एक चर्चित फ़िल्म का गीत।

इस फ़िल्म का नाम है मेरी बीवी की शादी। इसके मुख्य कलाकार है अमोल पालेकर और रंजीता और एक महत्वपूर्ण भूमिका में है अशोक श्रौफ़ जो आजकल फ़िल्मों और सीरियलों में कामेडी करते नज़र आते है। यह गीत इन्हीं पर फ़िल्माया गया है।

वैसे भी अमोल पालेकर की फ़िल्में उस दौरान बहुत पसन्द की जाती थी। अशोक श्रौफ़ की शायद यह दूसरी हिन्दी फ़िल्म है इससे पहले उन्होनें अमोल पालेकर के ही साथ दामाद फ़िल्म में काम किया था।

इस गीत को सुरेश वाडेकर ने गाया है। देखने और सुनने में मज़ेदार है यह गीत। पहले रेडियो से भी बहुत सुनवाया जाता था फिर बजना बन्द हो गया। जो बोल मुझे याद आ रहे है वो इस तरह है -

राम दुलारी मैके गई जोरू प्यारी मैके गई
खटिया हमरी खड़ी कर गई

हमसे बने न बैंगन का भर्ता
बने ए ए ए ए न
हमसे बने न बैंगन का भर्ता
मिर्ची मसाले से जिया बड़ा डरता
दाल भात खाने की ॠत नाहीं भइय्या
भूखा न मर जाऊँ ओ मोरी मइय्या
दो दिन में तबीयत चकाचक भई रे भय्या
राम दुलारी मैके गई

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पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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