आज हम याद कर रहे है रफ़ी साहब के एक गीत को जिसे बहुत ही चुलबुले अंदाज़ में गाया है रफ़ी साहब ने।
इस गीत के फ़िल्म का नाम मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा, शायद अधिकार फ़िल्म का गीत है यह पर यह जानकारी पक्की है कि यह गीत वर्ष 1972 के आस-पास का है। विविध भारती सहित सभी स्टेशनों से इसे बहुत सुना है। बाद में धीरे-धीरे कम होकर बजना बन्द हो गया।
इस गीत के बोल मुझे कुछ-कुछ याद है -
रेखा ओ रेखा जब से तुम्हें देखा
खाना पीना सोना दुश्वार हो गया
मैं आदमी के काम का बेकार हो गया
होए रेखा ओ रेखा जब से तुम्हें देखा
तुमसे दिल का लगाया है तुमको साथी बनाया है
दिन रात सताती हो दीवाना बनाती हो
मेरा भी एक दिन ज़रूर आएगा
ओए ओए ओए रेखा ओ रेखा जब से तुम्हें देखा
खाना पीना सोना दुश्वार हो गया
मैं आदमी के काम का बेकार हो गया
काफी महँगा ये प्यार है शादी का इंतेज़ार है
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ओए ओए ओए रेखा ओ रेखा जब से तुम्हें देखा
खाना पीना सोना दुश्वार हो गया
मैं आदमी के काम का बेकार हो गया
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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Tuesday, May 5, 2009
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2 comments:
Annapurna,
Here I upload the song for you:
http://life-amusicalfilm.blogspot.com/
शुक्रिया क़ासिम जी !
पर जिस दिन मैंनें यह चिट्ठा लिखा यानि मंगलवार को ही रात में एक ही फ़िल्म के गीतों के कार्यक्रम में अधिकार फ़िल्म के गीत सुनवाए गए जिसमें इस गीत को सुना गया।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।