यह कडी थोडी़ देरी से आयी है ।
दि. २७ फरवरी २००८ के दिन, मेरे चचेरे भाई श्री जतिन के विले पारले स्थित घर से मैं सुबह का खाना (यानि की मेरा लंच ही) ले कर करीब ११.३० पर निकल कर बोरिवली वाली लोकल ट्रेईन पकड़ कर बादमें बोरिवली स्टेसन से गोराई बस डेपो जाने वाली बेस्ट की बस पकड कर विविध भारती सेवा कार्यालय,जो गोराई बस डेपो के सामने ही है, करीब १२.४५ पर पहोंचा, तो सबसे पहेले आमना सामना रेडियो सखी़ श्रीमती ममताजी से हुआ । तो उन्हॊंने पहेले भी अन्य साथियो~ की तरह पिछ़ली मुलाकातो से पहचान होने के करण नमस्कार और हाल चाल पूछ़ताछ की पर तीन तारीख़ की तैयारीया~ में व्यस्त होने के कारण अपने काम के लिये चली गयी । बादमें श्री कमल शर्माजी, जो मेरे विविध भारतीमें सबसे प्रथम परिचीत है, मिले पर वे भी हाल चाल पूछ़ कर स्टूडियोमें कार्यक्रम निर्माण में व्यस्त हो गये । बादमें श्री युनूसजी आये और कुछ उनका काम इस प्रकारका था कि वे कुछ: समय अपना काम करते हुए कुछ: बातें भी करते रहे । उस समय दौरान मैनें श्री अशोक सोनावणेजी जो करीब़ १९९९में मिल पाये थे पर कुछ: फोन इन कार्यक्रमों में बात होने के कारण उनसे पहचान रही थी, वे सजीव प्रसारणमें व्यस्त थे, उनसे मिलना चाहा तो ३ बजे सखी सहेली के समय वे प्रसारण कक्ष से बाहर आये, जो खबर मूजे़ पहचानने वाले प्रसारण अधिकारी श्री पी के ए नायर साहबने दी तो उनको ढू~ढ रहा था तो ममताजी ने उनसे परिचय ताझा करवाया तब श्री अशोकजीने मेरी करीब २००१ में जल तरंग पर फिल्मी धून की कार्यक्रम हल्लो आपके अनुरोध में कि हुई फरमाईश (जो कभी मैं रेडियोनामा पर रखू~गा) को तूर्त याद किया । तब एक साथीने टिपणी की कि वे लोग बजाने के बाद काफी़ चीझे भूल जाते है पर मेरे जैसे श्रोता याद रखते है । बादमें थोडी देर वे और श्री अमरकान्त दूबेजी भी मेरे साथ कुछ: देर के लिये बातें करने के लिये बैठे । उस दौरान श्री शहनाझ अखतरीजी भी आयी और थोडी़ सी पूरानी पहचान ताझा करके अपने काममें जूट गयी । बादमें श्री महेन्द्र मोदी साहब बाहर से आये तो उन्होंने मूझे पहचान कर मंद हास्य किया । पर वे उस दिन आकाशवाणी के मुम्बई स्थित उप-महानिर्देषक श्री से उनकी बैठक तय थी इस लिये बोल के चले गये । थोडी़ देर के लिये श्रीमती निम्मी मिश्राजी से भी बात हुई, जो भी मूझे श्रोता के रूपमें हल्लो आप के अनुरोध पर और सिने पहेली से जानती ही है पर आमना सामना करीब ७ या ८ साल पहेले हुआ था जो अभी फिरसे हुआ । बादमें आकशवाणी सुरत से ही परिचयमें आये सहायक अभियंता श्री के एस पाटिल साहब से भेट हुई और उनके साहब अभियंता श्री अजय श्रीवास्तवजी से भी तीन साल पहेले हुई पहचान ताझा हुई । कार्यक्रम अधिकारी श्री राकेश जोषीजी और श्रीमती कमलेश पाठक्जी से भी पहचान ताझी हुई और श्रीमती शकुंतला पंडितजी से पहली बार पहचान हुई । अन्तमें कार्यक्रम अधिकारिणी श्रीमती कांचन प्रकाश संगीतजी से (जो मूझे २८ अप्रिल, २००७ के स्वर्ण-स्मृति कार्यक्रमें मेरा टेलिफोनिक इन्टर्व्यू कर चूकी थी और जिसे आप पिछले एक मेरे पोस्टमें सुन चूके है) प्रथम प्रत्यक्ष मुलाकात हुई और कार्यक्रमों के बारेमें काफी़ सारी बातें हुई । वे अपना दूसरा काम भी निपटाती गयी पर उन्होंने पहेले से ही बोल दिया था कि काम का प्रकार ऐसा है कि साथ साथ बात करनेमें उन्हें कोई आपत्ती नहीं है । इस तरह शाम करीब ४.४५ पर मैं वहा~ से बोरिवली मेरी ममेरी (सागरजी गलती हो तो ध्यान खिंचीये) बहन श्रीमती हर्षदा निरंजन मून्शी के घर मिलने गया । पिछली मुम्बई की कई मुलाकातो के दौरान कई बार उनके यहा~ भी ठहरना हुआ है और उन यात्रा के दौरान उनका, उनके पति श्री निरंजन मुन्शीजी उनके बेटे श्री तुषार और पुत्रवधू श्रीमती अनुराधा तथा उनके बच्चों का मूझे काफी़ सहयोग मिला था और इस बार भी मीठा झगडा किया कि उनके यहा~ मैं रहने क्यों नहीं आया । बस इधर ही रात्री का खाना रखो पर इस बार मैंनें कहा कि मेरे चचेरे भाई के यहा~ मेरा खाना बिगडेगा । इस तरह मैं विले पार्ले चला गया और दूसरे दिन मेरे दूसरी ममेरी बहन के यहा~ और बादमें सुरतमॆं बेन्क की नौकरी के दौरान मेरे बहोत ही अच्छे और कद्रदान मेनेजर रहे मूल कर्नाटक के श्री पी सुरेन्द्र उपाध्या साहब से, मेरे दूसरे चचेरे भाई श्री प्रकाशसे और रेडियो श्रीलंका के प्रखर श्रोता श्री प्रभाकर व्यासजी जो ७८ साल के है पर आज भी भगवान की कृपा से अच्छी शहदसे है से मिला जो विले पार्ले ही रहते है पर नझदीकी समयमें बडौ़दा में बसने वाले है उनसे मिला, जो भी मेरे घर एक बार आ गये है । अगली बार रेडियो श्रीलंका के एक और भूतपूर्व उद्दघोषक श्री रिपूसूदन कूमार ऐलावादीजी से बातचीत का दृष्यांकन आप देखेंगे ।
पियुष महेता ।
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Thursday, June 12, 2008
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4 comments:
बचपन से विविध भारती सुनती हूँ पर आज पहली बार पता चला कि विविध भारती सेवा कार्यालय मुंबई में गोराई बस डिपो के सामने है।
कभी मुंबई आई तो बेस्ट की बस में बैठ कर गोराई बस डिपो ज़रूर उतरूँगी।
आप तो खुशकिस्मत हैं कि विविध भारती के सारे उदघोषक जनोँ से आप परिचित हैँ.
यूनूसजी;
पीयूश भाई की पोस्ट पढ़ी ...
इस तरह की पोस्ट से रेडियोनामा का क्या भला होगा.क्या ये कोई उपलब्धि है कि कोई किसी रेडियो स्टेशन जाए और वहाँ बहुत सारे लोगों से मिले.सर कोई नियत्रंण या संपादन का तरीका निकालिये .मुझ से कई पाठक सहमत होंगे.कोई स्क्रीनिंग तो होनी चाहिये..क्या जा रहा है...कल सो तो कोई इससे भी जादा ऊलूल जुलूल लिख मारेगा..इस कम्युनिटि ब्लाँग पर इस तरह की सामग्री जाने से आप सब लोगों का नाम खराब होता है साहब.
A DAY AT A RADIO STATION....GOOD ESSAY. LEKIN PIYUSHJI IS BAATKA KHULASA NAHI HUAA...AAPNE TIFFIN SAATH ME LIYA THA WOH KAB AUR KAHAN KHAYA..YA IN SABHI MAHANUBHAVONSE MILKAR HI PET BHAR GAYA...HA HA! MAZA AAYA.
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