कल रात जयमाला के बाद इनसे मिलिए कार्यक्रम में बीएसएफ़ के फ़ौजी भाई की पत्नी से ममता (सिंह) जी की बातचीत प्रसारित हुई। ऐसी और भी बातचीत के कार्यक्रम प्रसारित हुए। इनसे मिलिए कार्यक्रम में फ़ौजी अधिकारियों से शायद अशोक सोनावणे जी ने भी बातचीत की।
पिछले रविवार यूथ एक्सप्रेस में मीडिया को लेकर जो बातचीत कमल (शर्मा) जी ने विश्लेषक विनोद जी से की उनके तार भी जैसलमेर से जुड़े थे।
सखि-सहेली में जयपुर आकाशवाणी केन्द्र में तैयार कार्यक्रम दुबारा भी प्रसारित किया गया। दुबारा सुनना भी बहुत अच्छा लगा लेकिन…
अब लग रहा है जैसे विविध भारती को जैसलमेरिया हो गया जैसे मच्छर काटने से मलेरिया होता है वैसे ही विविध भारती की टीम जैसलमेर क्या गई, बस सबको जैसलमेरिया हो गया।
एक कहावत है अंग्रेज़ी में - डू नाँट पे टू मच फ़ाँर ए विज़ल। इस कहावत से संबंधित छोटी सी कहानी है - एक ग़रीब लड़का था। जब वह दूसरे बच्चों को स्टील से बनी सीटी (विज़ल) बजाते देखता तो उसका भी मन करता बजाने को। जैसे-तैसे पैसे जोड़ कर उसने सीटी खरीदी। बहुत ख़ुश हुआ। एक कोने में बैठ कर सीटी बजानी शुरू की। बजाया बहुत बजाया फिर बजाते बजाते थक गया और सोचने लगा अब इसे क्या बजाऊँ ? कब तक बजाऊँ ? इसीलिए कहते है डू नाँ पे टू मच फ़ाँर ए विज़ल
कुछ ऐसी ही स्थिति नज़र आ रही है विविध भारती के कार्यक्रमों में। जहाँ सुनो वहाँ जैसलमेर, चाहे इनसे मिलिए हो या सखि-सहेली या यूथ एक्स्प्रेस वग़ैरह वग़ैरह…
शायर ने क्या ख़ूब कहा - और भी ग़म है ज़माने में मुहब्बत के सिवाय। भई सच में ज़िन्दगी में मुहब्बत ही सब कुछ नहीं है। वैसे ही और भी रज्य है इस देश में राजस्थान के अलावा, एक जैसलमेर ही इकलौता शहर नहीं है।
विविध भारती की टीम का दौरा कोई कुंभ का मेला तो है नहीं जो चौदह साल में एक बार लगे। अरे भई… और राज्यों के भी दौरे कीजिए। हम मानते है कि राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति की छटा ही निराली है पर पूर्वोत्तर राज्यों का प्राकृतिक सौन्दर्य कुछ कम नहीं है। वहाँ के लोक संगीत को भी बटोर लाते।
अगर फ़ौजी भाइयों के पास ही जाना है तो असम में भी बहुत से फ़ौजी भाई है। कच्छ की सीमा सुरक्षा के जवानों से भी बात करेगें तो मज़ा आएगा। कच्छ के रेगिस्तान को जानेंगें तो भी मज़ा आएगा।
हमें इतना ज्ञान नहीं है कि जैसलमेर की सीमा अन्य सीमाओं से कितनी विशेष है और इसकी बहुत अधिक जानकारी भी नहीं मिली। पर इतना जानते है अपने देश में निराली विविधता है जो विविध भारती जैसलमेर की तर्ज पर समेट कर अपने श्रोताओं तक पहुँचा दे तो मज़ा आ जाए।
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Thursday, June 19, 2008
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1 comment:
छोरी तू कदी कदी ठीक बोलै है.
विविध भारती को नाम केसरिया भारती रख दाँ के ?
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