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Monday, June 9, 2008

रेडियोनामा पर मेरी सौ वीं पोस्ट

आज रेडियोनामा पर मैं अपना सौं वाँ चिट्ठा लिख रही हूँ। मैनें अपना पहला चिट्ठा पिछले वर्ष 19 सितम्बर को लिखा था। तब से आज तक मैं अपने अनुभव बाँटने की कोशिश कर रही हूँ। दूसरों के अनुभव पढती हूँ।

वास्तव में रेडियोनामा पर लिखना ही एक सुखद अनुभव है। रेडियो बचपन से मेरा साथी है। मैं अपने बचपन से विविध भारती सुन रही हूँ। इतने ढेर सारे अनुभव है कि नहीं लगता है कि सब के सब मैं सभी से बाँट पाऊँगी। फिर भी हमेशा कोशिश करती रहती हूँ। आज कोशिश करूँगी विविध भारती के कार्यक्रम प्रस्तुति के बारे में कुछ लिखने की।

जब मैं बचपन में सुना करती थी तब प्रस्तुति बेहद सादगी से होती थी। सिर्फ़ इतना कहा जाता था -

ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम या मनोरंजन सेवा या विज्ञापन प्रसारण अब प्रस्तुत है … कार्यक्रम

फिर कार्यक्रम शुरू हो जाता। फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में तो गिने-चुने वाक्य कहे जाते जैसे -

प्रस्तुत है दोगाना या युगलगीत या गीत जिसे आवाज़े दी है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने गीत के बोल लिखे है राजेन्द्र कृष्ण ने और संगीत दिया है मदन मोहन ने और फ़िल्म का नाम है …

वाक्यों में कुछ ही परिवर्तन होता जैसे -

फ़िल्म का नाम है … या यह गीत … फ़िल्म से लिया है या … फ़िल्म का गीत सुनिए
गीतकार है … या गीत लिखा है … या … का लिखा गीत सुनिए या बोल है … के
संगीतकार है … या … का संगीत या स्वरबद्ध किया गीत सुनिए या सुरों में पिरोया है या सुरों से सजाया है … ने
आवाज़ है … की या आवाज़ दी है … ने या … की आवाज़ों में गीत सुनिए
फ़रमाइश करते है या अनुरोध करते है या प्रस्तुत है गीत आप सबके अनुरोध पर और सूची पढ दी जाती।

अन्य कार्यक्रमों में भी सीमित शब्दों में जानकारी दी जाती।

जब कार्यक्रम का समय आधा हो जाता तब पहले तो सिर्फ़ इतना ही कहा जाता था - ये कार्यक्रम आप विविध भारती से सुन रहे है। इसीलिए पहले उदघोषकों की सिर्फ़ आवाज़ ही सुनी जाती थी क्योंकि भाषा तो जानी-पहचानी ही रहती थी।

पर अब तो प्रस्तुति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। पता ही नहीं चलता कि किस कार्यक्रम में उदघोषक क्या-क्या कहेंगें। दुनिया जहान की बातें मौसम की बातें खेल जगत की बातें।

पहले जो श्रोता थे अब दोस्त हो गए। नमस्कार हैलो हो गया। ब्रेक में बाकायदा एक धुन सुनी जाती है। उदघोषक अपना नाम बताते है। शहर में क्या हो रहा है यह भी बताते है यानि कब क्या बताएगें क्या नहीं बताएगें कुछ पता नहीं सब उनके मूड से वे ही तय करते है।

हम तो कहेंगें कि पचास साल की होते-होते विविध भारती हम सब की पक्की सहेली बन गई है। ऐसी सहेली जो पूरी तरह से परिपक्व हो चुकी है और हम से कुछ भी बड़े अधिकार से कहती है।

और अब परिपक्वता की हद को पार करती (पचास के पार जाती) विविध भारती सठियाने (साठ की होने) जा रही है। देखना ये है कि एक दशक के बाद कैसी लगती है सठियाई (साठ की) विविध भारती…

9 comments:

mamta said...

अन्नपूर्णा जी बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें सौंवी पोस्ट की ।
आपके द्वारा दोबारा विविध भरती के बारे मे जानने को बहुत कुछ मिल रहा है।
आगे भी आप अपने अनुभव ऐसे ही बाँटती रहिएगा।

डॉ. अजीत कुमार said...

एक सौवीं पोस्ट के लिए मेरी भी बधाई स्वीकारेँ. रेडियो नामा के इतने अधिक सक्रिय रचनाकार को मेरा सलाम.

anuradha srivastav said...

बधाई............

Yunus Khan said...

हमारी ओर से भी बधाई । लिखती रहें ।

सागर नाहर said...

बहुत बहुत बधाई... बहुत जल्दी आपकी एक हजारवीं पोस्ट पढ़ने को मिलेगी.. :)

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

बधाई । लगता है आप जल्दी ही २०० वी पोस्ट पर जा पहोंचेगी । पर इससे सबको पूरानी बातें याद आ जाती है या पता चलती है । इस लिये जारी रखिये ।

पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.

Girish Kumar Billore said...

अन्नपूर्णा जी
आपको शतक एवं ज्ञान वर्धक आलेख के लिए हार्दिक शुभ काम नाएं

sanjay patel said...

पंचरंगी प्रस्तुतियों के शतक के लिये बधाई !

annapurna said...

ममता जी, अजीत जी, अनुराधा जी, यूनुस जी, सागर जी, पीयूष जी, गिरीष जी, संजय जी आप सबका बहुत-बहुत शुक्रिया।

वास्तव में आप लोग मेरे चिट्ठे पढते है तभी तो मैं सौ चिट्ठे लिख पाई हूँ।

आशा है सिलसिला जारी रहेगा… आमीन !

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