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Thursday, December 31, 2009

नये साल में नहीं सुनाई देगा वर्ल्डस्पेस का सुरीलापन....

मेरे शहर के सांध्य दैनिक प्रभात-किरण में कल जब ये ख़बर पढ़ी कि वर्ल्डस्पेस सैटेलाइट रेडियो बंद हो रहा है तो मन भारी हो गया.आर्थिक संकटों से जूझ रही पूरी दुनिया के असर की गाज आख़िर वर्ल्डस्पेस पर भी गिर ही गई.एक शानदार सिलसिले के बंद हो जाने की ये ख़बर आपके साथ बाँटते हुए मन बड़ा दु:खी है....



बीतते जा रहे २००९ ने जाते जाते संगीतप्रेमियों को आख़िर वह मनहूस ख़बर सुना ही दी है. एक ईमेल के ज़रिये वर्ल्डस्पेस सैटेलाइट रेडियो ने अपनी भारतीय अनुशंगी इकाई को बंद करने की घोषणा कर दी है. सैटेलाइट के ज़रिये वर्ल्डस्पेस ने जिस ख़ूबसूरती से सुरीलापन परोसा था वह बेजोड़ ही नहीं था रोमांचकारी भी था. भारतीय शास्त्रीय संगीत,ग़ज़ल,चित्रपट संगीत के अलावा गुजराती,बांग्ला,मराठी,पंजाबी और तमिल भाषाओं में इसके प्रसारणों ने एक लम्हा तो हमारी देसी प्रसारण संस्थाओं को घबराहट दे ही दी थी. बेहतरीन क्वालिटी का डिजीटल प्रसारण, फ़िज़ूल की उदघोषणाओं से परहेज़,और दुर्लभ रचनाओं का संकलन वर्ल्डस्पेस को अन्य रेडियो प्रसारणों से अलग करते थे. वर्ल्डस्पेस ने अपने आपको आर्थिक रूप से स्वतंत्र रखने के लिये इश्तेहारों के बजाय श्रोताओं के सदस्यता शुल्क पर ज़्यादा ऐतबार किया. उसे हाथों हाथ लिया भी गया लेकिन लगता है वैश्विक मंदी और एक जगह जाकर रूक सी गई उसकी सदस्यता ने उसके वजूद को मुश्किल में डाल ही दिया. वैसे वर्ल्डस्पेस के बंद होने की ख़बर पिछले एक बरस से आ रही थी लेकिन अब यह एक सचाई है कि वर्ल्डस्पेस बंद हो रहा है. इस ख़बर ने संगीत के उन श्रोताओं को निश्चित ही दु:खी कर दिया है जो जुनूनी कहे जा सकते हैं.

इसमें की शक़ नहीं कि संगीतप्रेमियों को सीडी,इंटरनेट और आकाशवाणी और विविध भारती का आसरा तो है ही और सुनने वाला तो कैसे भी अपनी प्यास बुझा ही लेगा लेकिन वर्ल्डस्पेस ने जिस उत्कष्टता से अपनी महफ़िलें सजाईं थीं वह अब शायद ही सुनने को मिले. कुमार गंधर्व,अमीर ख़ाँ,गिरिजा देवी,सिध्देश्वरी देवी,बेगम अख़्तर,प्रभा अत्रे पर किये गये कार्यक्रम तो श्रोताओं को भुलाए नहीं भुलेंगे.वर्ल्डस्पेस की सबसे बड़ी ख़ासियत यह रही कि उसने प्रसारणकर्ताओं की अपनी टीम एकदम नई आवाज़ों को शुमार किया और भाषा,कंटेट और प्रसारण क्वालिटी के ख़ालिस नया अंदाज़ गढ़ा. रागों की जानकारी देने और शास्त्रीय संगीत की ओर नये श्रोताओं को लाने के लिये राग-रागिनियों पर आधारित गीतों का प्रसारण किया. अपने उर्दू चैनल फ़लक पर शायरों के साथ तीन से चार घंटों के इंटरव्यू प्रसारित किये. इनमें मुनव्वर राना का इंटरव्यू तो अविस्मरणीय था. प्रसारणकर्ताओं की फ़ेहरिस्त में भी वर्ल्डस्पेस ने माणिक प्रेमचंद जैसे फ़िल्म संगीत के गूढ़ ज्ञाता को अपने साथ जोड़ा. वर्ल्डस्पेस पर सीएनएन और बीबीसी सुनना एक अदभुत अनुभव होता था. मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले को जिस तरह से बीबीसी के संवाददाताओं ने कवर किया था वह तो अपने आप में नायाब था ही लेकिन स्पष्ट आवाज़ के साथ बीबीसी को अपने घरों में बजते सुनना किसी करिश्मे से कम नहीं था वरना मीडियम वेव और शार्टवेव पर बीबीसी को खरखराहट के साथ सुनने में सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है.

वर्ल्डस्पेस ने एक और ख़ास आदत से भारतीय श्रोताओं को रूबरू करवाया. और वह थी संगीत को पैसा देकर सुनने की आदत डालना.कई लोगों को याद होगा कि हम भारतीय लोग किसी ज़माने में रेडियो की लायसेंस फ़ीस भरने पोस्ट-ऑफ़िस जाया करते थे.धीर धीरे वह फ़ोकट का माल हो गया. वैसे भी हम संगीत और नाटक सुनने/देखने का काम मुफ़्त में करने के लिये कुख्यात हैं. वर्ल्डस्पेस ने उस मूर्खता को सुधारा. कभी भी कोई भी श्रोता बिना सदस्यता शुल्क दिये इस सैटेलाइट रेडियो के प्रसारण नहीं सुन सकता था. बहरहाल वर्ल्डस्पेस विदा हो रहे २००९ के साथ विदा ले रहा है लेकिन उसने सुननेवालों को जो सुकून,तसल्ली और परमानंद दिया है वह कई बरसों तक याद किया जाता रहेगा....

Tuesday, December 29, 2009

फ़िल्म हाथ की सफ़ाई से देवदास की हास्य नाटिका का गीत

हाथ की सफ़ाई फ़िल्म के इस गीत के दो संस्करण है। एक किशोर कुमार जी का गाया है इसमें शायद आशा जी की भी आवाज़ है। इसी गीत का दूसरा संस्करण स्टेज नाटिका के रूप में है।

यह देवदास का नाटक है पर हास्य रूप में जिसमें रणधीर कपूर और हेमामालिनी की आवाज़ों में संवाद है और आगे गीत किशोर कुमार का ही है। पहले कभी-कभार यह संस्करण सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से सुना नहीं। जो कुछ याद आ रहा है वो इस तरह है -

चन्द्रमुखी - मैं पारो नहीं चन्द्रमुखी हूँ
देवदास - लेकिन मैं बड़ा दुःखी हूँ
चन्द्रमुखी - देवदास तूने पी ली है ज्यादा
देवदास - क्या कहा आधा, अरे मेरा तो है पूरी पीने का इरादा क्योंके

गीत -

पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए
देवदास बाज़ आओ चन्द्र मुखी के पास आओ

चन्द्रमुखी हो या पारो कोई फ़र्क नहीं है यारों
यारों को तो पीने का बहाना चाहिए

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, December 28, 2009

श्री गोपाल शर्माजी को जनमदिन की बधाई

आज 'आवाझ की दुनिया के दोस्तो' सम्बोधन के सर्वप्रथम प्रयोग करनेवाले रेडियो सिलोन (श्री लंका) की हिन्दी सेवाके भूतपूर्व उद्दघोषक (1956-1967) और बादमें कई सालों तक भारतमें रेडियो विज्ञापन और प्रायोजित कार्यक्रम तथा फिल्म्स डिवीझन के दस्तावेजी फिल्मों के प्रवक्ता तथा नेशनल ज्योग्राफ़िक और डिस्कवरी जैसी चेनल्स के हिन्दी प्रवक्ता जैसी प्रवृतिमें व्यस्त रहे श्री गोपाल शर्माजी का जनमदिन है । तो इस अवसर पर आप आज तक उनको इस मंच से या रेडियो श्रीलंका से हर साल के इसी दिन केवल सुनते ही आये है उनको न केवल सुन सकेंगे पर बोलते हुए देख भी सकेगे और फिल्म संगीत के कार्यक्रमो के उस समय बिलकुल नये नते रूप के संकलन अपने निज़ी और मौलीक तरीके से किये या उनके गुरु और इस कार्यक्रमके एक ख़ास मेहमान श्री विजय किशोर दुबे के शुरू किये कार्यक्रममें किस तरह श्रोतालोगो की हिस्सेदारी बनाई वे सब बाते सुन पायेंगे और मूझे विश्वास है कि आप ऐस मेहसूस करेंगे जैसे पूराने समय का रेडियो सिलोन एफ एम पर सुनन मिल रहा है । इस कार्यक्रम, जो उनकी अत्मकथा 'आवाझ की दुनिया के दोस्तो-रेडियो सिलोन' नाम से ही प्रकाशित हुई है उस के जारी करने के समारंभ, था जानेमाने पूरानी फिल्मों के गीतो पर आधारित स्टेज-शॉझ के आयोजक और मंच संचालक तथा कुछ पोपगीत या अल्बम गीतों के शब्दकार श्री मनोहर आय्यरजी द्वारा संचालित किया गया है ।
तो सुनिये देख़ीये और जन्मदिन की बधाईयाँ दिजीये श्री गोपाल शर्माजी को और उनके लम्बे, बड़े (फिल्म आनंद के आनंद की जूबानमें) तथा स्वस्थ आयु की शुभ: कामना ।
भाग 1

भाग 2

भाग 3

भाग 4


भाग 5

भाग 6


भाग 7

इस कार्यक्रम के मूख़्य अतिथी श्री मनोज कूमार तथा अन्य खास मेहमानो के व्यक्तव्यों को श्री गोपाल शर्माजी की शादी की सालगिराह के दिन जो इस किताब का भी जारि करनेका दिन है, इसी मंच पर दिख़ानेका इरादा है ।
(श्री अन्नपूर्णाजी से अनुरोध है कि कल आप की गाने की पोस्ट का दिन है तो स्वाभाविक है कि इस पोस्ट कुछ ही घंटे मूख़्य पृष्ठ पर रह पायेंगी तो अगर हो सके तो आप कम से कम शाम तक़ अपनी पोस्ट के किये थंभ जाये, जिससे शायद श्री गोपाल शर्माजी को शायद सर्व-प्रथम इस मंच से दिख़ानेकी और इतने सारे विडीयो क्लिपींग्स बना कर यू-ट्यूब पर अपलोड करनेमें जो समय खर्च हुआ है वह बेकार नहीं जाय, जैसे मेरी हार्मोनियम वादक मास्टर कान्तिलाल के जन्मदिनवाली पोस्ट पर आप सहित किसी के प्रतिभाव नहीं आये, हाँ उस ट्यून रेडियो सिलोन से रेकोर्ड करने के कारण थोड़ी डिस्ट्रबंस से भरी हुई जरूर है पर रेर भी है।)

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।
दि. 28-12-2009

Friday, December 25, 2009

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 24-12-09

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला।

हर दिन गीतों का चुनाव संतुलित रहा। फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश में से समय और विषय की दृष्टि से मिले-जुले गीत चुने गए। शुक्रवार को उपकार फ़िल्म का देशभक्ति गीत - मेरे देश की धरती सोना उगले

कुछ समय पहले की फ़िल्म हम साथ साथ है का गीत - ये तो सच है के भगवान है

नीलकमल का विदाई गीत - बाबुल की दुआएँ लेती जा

और रोमांटिक गीत इन नई-पुरानी फ़िल्मों से - सरस्वतीचन्द्र, दादा, सीता और गीता और तेरे नाम फ़िल्म का शीर्षक गीत।

रविवार को दुनिया की, समाज की स्थिति बताते मुकेश के गाए तीसरी क़सम फ़िल्म के गीत से शुरूवात की -

दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनिया बनाई

शास्त्रीय संगीत में ढला रफ़ी साहब का लोकप्रिय गीत सुनवाया -

मधुबन में राधिका नाचे रे

जीवन-मृत्यु, गीत, वीर ज़ारा, प्रेमरोग फ़िल्मों के रोमांटिक गीत भी शामिल थे। सोमवार को फ़ौजी भाइयों के दो गीत सुनवाए गए - बार्डर फ़िल्म से - संदेशे आते है और अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों का शीर्षक गीत। इसके अलावा बंटी और बबली से कजरारे और एक दूजे के लिए फ़िल्म से प्यार का तराना गूँजा। मंगलवार को करण-अर्जुन फ़िल्म का अर्थपूर्ण गीत सुनवाया गया -

सूरज कब दूर गगन से चंदा कब दूर किरण से
यह बँधन तो प्यार का बँधन है

इसके साथ राजा हिन्दुस्तानी, रंग, बाबी, लव फ़िल्मों के रोमांटिक गीत सुनवाए गए। बुधवार को सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए - जाने-अनजाने, लैला मजनू, पत्थर के सनम, फकीरा, एक दूजे के लिए, मोहब्बते जैसी नई-पुरानी फिल्मों से।

हर गीत के लिए दो-तीन फ़ौजी भाइयों के ही संदेश थे। कार्यक्रम में शुरू और अंतराल में बजने वाली धुन इस बार जानी-पहचानी फ़िल्मी धुन नहीं थी, यह समझ में नहीं आया कि नई फ़िल्मी धुन थी या आधुनिक संगीत था।

इस सप्ताह दो विशेष जयमाला प्रसारित हुए। एक हमेशा की तरह शनिवार को और दूसरा गुरूवार को।

24 को रफी साहब और 25 को नौशाद साहब का जन्मदिन है। गायक और संगीतकार की इस अनमोल जोडी को नमन करते हुए संग्रहालय से नौशाद द्वारा रफी की याद में प्रस्तुत जयमाला कार्यक्रम की रिकार्डिंग चुन कर प्रसारित की गई। नौशाद साहब ने रफी साहब की गायकी और निजी जीवन के विभिन्न पहलुओ पर बात की और नायाब गीत सुनावाए। बढ़िया चुनाव।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गीतकार इन्दिवर ने। बहुत अच्छा प्रस्तुत किया, अपने बारे में कम ही बताया और साथी संगीतकारों कल्याणजी आनन्द जी, श्यामल मित्रा, रोशन को याद किया। कैबरे के लिए पहला गीत लिखने का अनुभव बताया। गीत बहुत अच्छे सुनवाए जो विविध भारती से आजकल कम ही सुने जाते है - एक बार मुस्कुरा दो, अनोखी रात और ख़ासकर अमानुष का यह गीत -

ग़म की दवा तो प्यार है ग़म की दवा शराब नहीं

बताया गया कि यह रिकार्डिंग संग्रहालय से निकाल कर प्रसारित की गई। संग्रहालय से बढिया चुनाव…

7:45 पर शुक्रवार को सुना लोकसंगीत कार्यक्रम। पहले गीत का विवरण पता नहीं चला क्योंकि कुछ समय के लिए केवल खरखराहट सुनाई दी। पर इन बोलों को सुनकर लगा यह शायद उत्तर प्रदेश का लोकगीत है -

बासन्ती रंग बृजवासी बृजमंडल छायो रे

इसके बाद केशवचन्द्र बैनर्जी की आवाज़ में बांग्ला गीत सुना - बन्धु रे ! हालांकि बोल समझ में नहीं आए पर गीत सुनकर आनन्द आया। समापन किया धनीराम महतो के गाए इस मैथिली गीत से जिसे बहुत बार सुनते रहे -

मैय्या बाड़ी दूर जाए रे (बोल लिखने में ग़लती हो सकती है)

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। पत्रों की संख्या ई-मेल से अधिक ही रही। संगीत सरिता, यूथ एक्स्प्रेस, सेहतनामा और नाटक के साथ धर्मेन्द्र और उदितनारायण के जन्मदिन पर उनसे की गई बातचीत भी पसन्द की गई। कार्यक्रम संबम्धी या तकनीकी कोई ख़ास शिकायत नहीं की गई। एक महत्वपूर्ण जानकारी दी गई कि बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम फिर से शुरू किया जा रहा है।

मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में मज़ा आ गया। शुरूवात हुई मेरे हमदम मेरे दोस्त फ़िल्म की क़व्वाली से -

अल्ला ये अदा कैसी इन हसीनों में

जिसके बाद थोड़ी और पुरानी क़व्वाली सुनवाई गई -

शरमा के ये क्यूँ सब पर्दा नशीं आँचल को सँवारा करते है

लेकिन अंत में उस्तादों के उस्ताद फ़िल्म की रचना समय कम होने से पूरी नहीं सुनवाई गई -

मिलते ही नज़र तुम से हम हो गए दीवाने

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में ख़्यात पार्श्व गायिका उषा तिमोती से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी की बातचीत सुनवाई गई। उषा जी ने बताया रफी साहब के बारे में उनके साथ गाए फ़िल्म हिमालय की गोद में के इस गीत के बारे में जो उनका पहला गीत है।

ओए सोनिये हिरीऐ हाय

शंकर जयकिशन नाईट के कार्यक्रमों में लता जी के लगभग सभी गीत गाने की बात बताई। घर के सन्गीत के माहौल से आरंभिक शिक्षा घर पर ही ली फिर शास्त्रीय सन्गीत सीखा। गैर फिल्मी गीत भी गाए, एलबम भी निकाले, बहुत शी भाषा में गाया। बढ़िया बातचीत, पर समझ में नही आया यह बातचीत इनसे मिलिएकार्यक्रम में क्यों प्रसारित की गई, अच्छा होता उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम के लिए बातचीत होती।

गुरूवार और रविवार को दो दिन प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। रविवार को विभिन्न रागों की झलक लिए यह फ़िल्मी गीत सुनवाए गए -

राग सिन्धु भैरव - प्यार से देखे जो कोई (फ़िल्म डार्क स्ट्रीट)
राग नट - छलके तेरी आँखों से (आरज़ू)
राग देशगार - इन हवाओं में इन फ़िजाओं में तुझको मेरा प्यार पुकारे (गुमराह)

गुरूवार को इन रागों पर आधारित यह गीत सुनवाए गए -

राग यमन - नाम गुम जाएगा (फ़िल्म किनारा)
राग बागेश्री - दीवाने तुम दीवाने हम (बेजुबान)
राग वृन्दावानी सारंग - गोरी तोरी पैजनिया (महबूबा)

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। शुक्रवार को सुना दिनेश भारती का लिखा हास्य नाटक तमाचा कांड। शीर्षक से ही समझा जा सकता है शुरूवात एक तमाचे से होती है और हो जाता है बड़ा कांड। पुलिस को इसकी जानकारी, तमाचे की जांच फिर राजनीति जो ढल जाते है भ्रष्टाचार उन्मूलन नारों में। हँसी के साथ-साथ बहुत सी ऐसी बातें भी बता गया यह नाटक जिनसे हम अनजान भी नहीं है। मधुप श्रीवास्तव के निर्देशन में यह इलाहाबाद केन्द्र की प्रस्तुति थी।

शनिवार को सुनवाई गई झलकी - बाल बने जंजाल जिसके रचयिता है एस एस रतनपाल और निर्देशक है दीनानाथ। जादू-टोना जैसे अंधविश्वास पर अच्छी रही यह झलकी। रविवार को सुदर्शन पानीपति की लिखी झलकी सुनवाई गई - चतुरराज जिसके निर्देशक है आनन्द किशोर माथुर। विषय पुराना था - पृथ्वी लोक में फैली अराजकता की स्वर्ग लोक में चर्चा लेकिन नए परिवेश के उदाहरणों से झलकी नई लगी। प्राण हरने में हुई गड़बड़ी मे स्वर्गलोक के काम में भी गड़बड़ी होने लगती है। यह जयपुर केन्द्र की प्रस्तुति थी। सोमवार को गंभीर नाटक सुनवाया गया - ठंडी धूप जिसके लेखक है अभिलाष। बहुत अच्छा संदेश है इसमें कि बड़ी बेटी घर-परिवार को बेटे की तरह सँभालने लगती है तो परिवार में सबको इसकी आदत हो जाती है। कोई अपनी ज़िम्मेदारी समझ नहीं पाते है और सभी उस एक बेटी पर निर्भर हो जाते है जिससे उस बेटी के जीवन का उद्येश्य ज़िम्मेदारियाँ निभाना ही रह जाता है निजी जीवन वो जी नहीं पाती। प्रस्तुति गंगाप्रसाद माथुर की और सहायिका कुमारी परवीज़ (नाम लिखने में शायद ग़लती हो)

मंगलवार को विनोद कुमार सेनगुप्ता का लिखा नाटक सुना - मुखौटा पड़ौसियों के चेहरे का। एक परिवार मुहल्ले में नया आता है। उनके घर के सामान से पड़ौसी उनकी अमीरी का अंदाज़ा लगाते है पर बाद में भ्रष्टाचार का पता चलता है। इस तरह का नाटक तीन दशक पहले सुनना अच्छा लगता था पर आज के समय में जँचता नही है। बुधवार को अनूप कश्यप की लिखी झलकी सुनी नौकर और बीवी जिसके निर्देशक है गोपाल सक्सेना। अच्छी थी झलकी, घरेलु नौकर के लिए इंटरव्यू लिया जाता है, तरह-तरह के लोग आते है और अंत में जो उससे अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव लेकर आता है उसे भी नौकर ही समझा जाता है। गुरूवार को चिरंजीत की लिखी नाटिका सुनी - उलझ गए विवाह की धूम में। हमेशा की तरह लेखक ने हंसते-हंसाते सच्ची तस्वीर देखा दी। कम विकसित क्षेत्रो में अक्सर दूर स्थानों के परिवार में विवाह तय हो जाता है जिसे परिवार के एकाध सदस्य ही देखकर तय करते है। ऐसे ही एक विवाह के घर बरात आती है तब सबको लगता है वर ठीक नहीं है बाद में पता चलता है राह भटक कर यह बरात आई है। पहचान नहीं पाने से उलझन होती है, स्थिति भी बिगड़ने लगती है। इसके निर्देशक है मुख्तार अहमद।

सप्ताह में कभी-कभार जयमाला मे क्षेत्रीय केन्द्र से और केन्द्रीय सेवा से विज्ञापन प्रसारित हुए। समझ में नहीं आता कि विशेष जयमाला और हवामहल जैसे कार्यक्रम प्रायोजित क्यों नहीं होते।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें यह बताया गया कि फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अपनी पसन्द का गाना सुनने के लिए ई-मेल और एस एम एस कैसे करें। हैलो सहेली कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बुधवार को फोन-इन-कार्यक्रम की रिकार्डिंग की सूचना दी। इसके अलावा साल के अंतिम सप्ताह में प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रम चित्रलोक टाप 10 की सूचना भी दी गई।

इस प्रसारण को हम तक पहुँचाने वालों के नाम हर दिन नहीं बताए गए। कभी-कभार मिली जानकारी के अनुसार यह प्रसारण सविता (सिंह) जी, कमल (शर्मा) जी, संगीता (श्रीवास्तव) जी ने जयंत (महाजन) जी, शशांक (काटगरे) जी, के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी - आशा नायकम।

हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर रात के प्रसारण के लिए हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, December 22, 2009

फ़िल्म उमर क़ैद का गीत जिसके बोल याद नहीं

उमर क़ैद नाम की एक पुरानी फ़िल्म फ़िल्म है जिसके मुकेश के गाए गीत अक्सर हम भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में सुनते रहते है।

उमर क़ैद नाम की एक फ़िल्म सत्तर के दशक में भी आई थी जिसके नायक है विनोद मेहरा जो शायद पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में है। शायद फ़रीदा जलाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फ़िल्म का भी एक रोमांटिक युगल गीत मुकेश ने गाया है जिसमें साथी आवाज़ लता जी या आशा जी की है जो अक्सर विविध भारती से सुनवाया जाता है -

याद रहेगा प्यार का ये रंगीन ज़माना याद रहेगा

इसी फ़िल्म का एक समूह गीत है जो लोकगीत जैसा है। बहुत सारी गायिकाओं की आवाज़े है। यह शायद शादी-ब्याह का गीत है। यह गीत लम्बा है। पहले भी कभी-कभार ही सुनवाया जाता था। अब तो लम्बे समय से इसे सुना ही नहीं। इसके मुख्य बोल कुछ अलग है जो शायद हिन्दी नहीं किसी बोली के है, वैसे मुझे इसका एक भी बोल याद नहीं आ रहा।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, December 21, 2009

श्री अमीन सायानी साहबको जन्मदिन की मुबारकबाद

आज रेडियो प्रसारण और विज्ञापन की दुनिया के बेताज बादशाह और लिविंग लिजन्ड श्री अमीन सायानी साहबका जन्मदिन है । तो रेडियोनामा की औरसे उनको जन्मदिन की तथा स्वस्थ जीवन के लिये तथा इसी क्षेत्रमें उनकी सक्रीयता कायम रहे और हमें वे नयी नयी पूरानी बातों से रेडियो या सीडी के माध्यम से अवगत कराते रहे वैसी शुभ: कामना ।
मेरे साथ की गयी मुलाकात के समय की बातचीत आप

http://radionamaa.blogspot.com/2008/03/blog-post_2082.html

उपर की लिन्क पर देख़ सकेंगे ।


पियुष महेता ।
सुरत-395001.

Sunday, December 20, 2009

युनूसजी को जन्मदिनकी बधाई दो रे ।

आज हमारे रेडियोनामा के एक सम्पादक श्री युनूसजी की जन्मतारीख़ है । तो मेरी और रेडियोनामा के पूरे वाचक एवं पाठ्क दल की और से उनको जन्मदिन की शुभ: कामनाएँ । आज इस मंच पर जो लोगो से दोस्ती हुई है उसकी मेरे लिये पहली कड़ी श्री युनूसजी ही है । भगवान उनको लम्बी भी और बड़ी (जो फिल्म आनंद में आनंद बोलते है वैसी) भी आयु दे ।
इस मंच पर या रेडियोवाणी पर युनूसजीने मेरे लिये एक बार मेरे प्रति आदर के साथ ही लिख़ा था कि मेरी टिपणीयाँ भी पोस्ट से ज्यादा लम्बी कभी कभी होती है । तो यही बात सच साबित करके आज की सबसे छोटी पोस्ट को समाप्त करता हूँ ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।

हार्मोनियम वादक श्री कानतिलाल सोनछत्राजी-जन्म दिनकी बधाई

आज यानि दि. 18 दिसम्बर के दिन राजकोट निवासी प्रखर हार्मोनियम वादक श्री कानतिलाल सोनछत्राजी अपनी आयु के 80 साल पूरे करके 81वें सालमें प्रवेश कर चूके है । तो इस अवसर पर उनकी हारमोनियम पर बजाई फिल्म पतिता के गीत किसीने अपना बनाके मूझको की धून जो कई साल पहले रेडियो श्रीलंका से वहाकी अस्थायी उद्दघोषिका श्री नलिनी माअलिका परेरा की उद्दग्होषणा के साथ सुन पायेंगे नीचे : (आज भी श्रीमती ज्योति परमारने मेरे बधाई संदेश के साथ उनको बधाई देते हुए अन्य गीत की धून उनकी ही बजाई हुई प्रस्तूत की थी जो अपलोड नहीं हो पा रही है । अगर कामयाबी मिली तो इस पोस्टको सुधारा जायेंगा ।

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पियुष महेता । सुरत-395001.

Friday, December 18, 2009

दोपहर बाद के जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 17-12-09

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। रतनपुर से सुमन उपाध्याय का पहला फोनकाल आया, यह सखि अक्सर पत्र भेजती रहती है, पर कोई विशेष बात नहीं की। विभिन्न क्षेत्रों जैसे जबलपुर, उदयपुर, झाड़खण्ड, छतीस गढ़ और पटना के गाँव से फोन आए और एक लोकल काल भी था। कार्यक्रमों के बारे में बात हुई, विविध भारती के कार्यक्रम पसन्द करने की भी बात की। छात्राओं ने अपनी पढाई के बारे में बताया, कुछ कम शिक्षित घरेलु महिलाओं ने भी बात की। अपने सिलाई कढाई के शौक के बारे में बताया। एक सखि ने बताया कि पसन्दीदा विषय हिन्दी साहित्य है और उदयपुर की सखि ने नए देखने योग्य पार्क के बनने की बात बताई। एक सखि ने खीर बनाना बताया। खीर देश में सभी जगह बनाई जती है, अच्छा होता किसी क्षेत्रीय व्यंजन के बारे में बताते।

सखियों ने नए-पुराने विभिन्न मूड के गानों की फ़रमाइश की।

सुन री सखि मोहे सजना बुलाए
मोहे जाना है पी की नगरिया

साजन साजन मेरे साजन तेरी दुल्हन सजाऊँगी

सोमवार को पधारे रेणु (बंसल) जी और अंजू जी। यह दिन रसोई का होता है। श्रोता सखि द्वारा भेजा गया व्यंजन बताया गया - मक्का के ढोकले जो अच्छे लगे, हालांकि बनाना थोड़ा कठिन है। इसे अलग-अलग विधियों से बनाना भी बताया गया। एक विधि में गेहूँ के आटे का प्रयोग मक्का की जगह बताया यानि दाल ढोकली जैसा। हम इसे बहुत आसान तरीके से बनाते है, मोटी रोटी बेल कर उसके चौकोर टुकड़े काट कर उबलती दाल में डाल देते है। चलिए… अच्छा लगा एक ही व्यंजन को कई तरीके से जानना। इस दिन गाड़ियों की भी चर्चा की गई कि ग़ायब होते अन्य वाहनों के साथ कम होते दुपहिया वाहन और बढती मोटर गाड़ियाँ।

सखियों की पसन्द पर इस दिन पुराने गीत सुनवाए गए जैसे पतंगा फ़िल्म का यह लोकप्रिय गीत -

मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से टेलीफून

एक मज़ेदार गाड़ी का गीत भी सुना -

कभी न बिगड़े किसी की मोटर

मंगलवार को पधारी सखियां निम्मी (मिश्रा) जी और अंजू जी। इस दिन हमेशा की तरह सखियो के अनुरोध पर गाने नए ही सुनवाए गए जैसे दिल्ली 6, रैट, मुस्कान फ़िल्मों के गीत और यह गीत भी -

आँखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएँ है

इस दिन सखियों के पत्र कुछ अधिक ही पढे गए। अलग-अलग विषयों के पत्र, किसी पत्र के आधार पर सेना में महिलाओं को फ्रंट पर भेजने की भी जानकारी दी, कुछ पत्रों में प्रकृति की बातें थी, कुछ ने अच्छे विचार बताए, कुछ ने बचपन की बातें की। कुल मिलाकर कार्यक्रम सुन कर लगा - कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा

बुधवार को सखियाँ पधारीं - रेणु (बंसल) जी और चंचल जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। संतरे, पपीता, आँवला के उपयोग की सलाह… कौन सी नई बात है, हर तरह का उपयोग सभी जानते है। श्रोता सखियों ने पत्रों से सर्दियों के मौसम को ध्यान में रख कर कुछ नुस्ख़े बताए, मेकअप के सुझाव बताए, सभी पुराने।

इस दिन सखियों के अनुरोध पर कुछ पुराने समय के गाने सुनवाए गए - हीर रांझा, तीन देवियाँ, रोटी कपड़ा और मकान, हरे रामा हरे कृष्णा, प्यासा सावन और प्रेमरोग फ़िल्म का यह गीत -

अब हम तो भए परदेसी के तेरा यहाँ कोई नहीं

सभी गाने अच्छे सुनवाए गए, प्यार के अलग-अलग रूप भी नज़र आए, अच्छी फ़रमाइश भेजी सखियों ने।

गुरूवार को पधारीं राजुल जी और अंजू जी। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस बार क्रान्तिकारी कमला देवी चट्टोपाध्याय के बारे में जानकारी दी गई। सखियों की पसन्द पर मिले-जुले गीत सुनवाए गए, नई पुरानी फ़िल्में और विषय और भाव भी अलग-अलग जैसे तीन देवियाँ, बातों बातों में और नितिन मुकेश का गाया यह गीत -

थोड़ा दुःख है थोड़ा सुख है, दुःख में सुख छिपा है

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ पत्रों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी, कुछ पत्रों में सखियों ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार भी बताए। गुरूवार को कुछ नयापन रहा। इस कार्यक्रम में सखियों से भी कुछ बौद्धिक कसरत करने के लिए कहा गया है, इसी सिलसिले में सखियों से कहा गया कि ऐतिहासिक व्यक्तित्व झंकारी बाई के बारे में जानकारी भेजे। यह भी पूछा गया कि सखि-सहेली कार्यक्रम की किसी बात से अगर आपका मन व्यथित हुआ है तो बताए।

सखि ने एक प्रश्न भेजा कि श्रोता सखियाँ इसका उत्तर दे - सत्तर के दशक की कौन सी ऐसी फ़िल्म है जिसमें एक भी गीत नहीं था। इस प्रश्न को विविध भारती ने विस्तार दिया और एक प्रश्न जोड़ दिया कि ऐसी पहली फ़िल्म का नाम भी बताए जिसमें एक भी गीत नहीं था। सत्तर के दशक की यह फ़िल्म मेरी पसन्दीदा फ़िल्म है। उत्तर मैं अलग से मेल से भेज रही हूँ।

इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें सुनवाई गई - एक तो रोज़ सुनी और एक विशेष धुन हैलो सहेली की शुक्रवार को सुनी।

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कांचन (प्रकाश संगीत) जी, कमलेश (पाठक) जी ने प्रदीप शिन्दे जी, मंगेश (सांगले) जी और सुभाष (कामले) जी के तकनीकी सहयोग और रमेश (गोखले) जी की सहायता से।

सदाबहार नग़में कार्यक्रम में गीत तो सदाबहार थे पर विविधता दिखाई नहीं दी। वही प्यार-मोहब्बत के गाने बजते रहे। रविवार को सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए, जोशीला, आकाशदीप, सूरज, परवरिश, आमने-सामने, गीत और गैम्बलर फ़िल्म का यह गीत -

चूड़ी नहीं मेरा दिल है

3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम रविवार को अच्छा रहा, इस्मत चुगतई का लिखा नाटक सुनवाया गया - बाँदी। बहुत मार्मिक कहानी थी। दस सेर अनाज के बदले लड़की खरीदी जाती है जिसे बाँदी यानि नौकरानी की तरह रखा जाता है, पर इस घर के संस्कार निराले, बाँदी से संबंध बनाते है और उसे उसी हाल में छोड़ देते है। यहाँ तक कि महिलाओं का व्यवहार भी वैसा ही है। लेकिन नायक यह संबंध स्वीकारता है और घर छोड़ने से भी नहीं झिझकता। इस नाटक क्स कलाकारों का नम बताया गया पर निर्देशक का नाम नहीं बताया गया। मुंबई केन्द्र की प्रस्तुति थी। रिकार्डिंग पुरानी ही लगी पर कोई जानकारी नहीं दी गई।

शाम 4 से 5 बजे तक सुनवाया जाता है पिटारा कार्यक्रम जिसकी अपनी परिचय धुन है।

शुक्रवार को सुना कार्यक्रम पिटारे में पिटारा जिसमें कुछ चुने हुए कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण होता है। इस बार प्रसारित हुआ कार्यक्रम चूल्हा चौका। रेणु (बंसल) जी का यह कार्यक्रम मुझे बहुत पसंद है। रेणु जी ने पाक शास्त्री संजीव कपूर से कुछ व्यंजनों पर बात की। ख़ास बात यह रही कि इन व्यंजनों को घर के अलावा ढाबे पर बनाने का भी तरीका बताया गया। यह व्यंजन है - पारंपरिक सरसों का साग, मांसाहारी व्यंजन मटन और जानी पहचानी घरेलु मिठाई खीर।

रविवार को पर्यावरण को बचा कर चलाते हुए यूथ एक्सप्रेस लेकर आए युनूस खान जी। पूरी गाड़ी पर्यावरणमय रही, विश्व स्तर पर चल रहे पर्यावरण संबंधी कार्यक्रम से ओत-प्रोत। जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लिए आए सभी मुद्दों और देशों की जानकारी दी। ऊर्जा के विकल्प पर रामचरण मिश्र की वार्ता सुनवाई गई। ऊर्जा की बचत के घरेलु उपाय भी बताए युनूस जी ने। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान (नैशनल पार्क) की सैर भी करवाई। गाने भी इसी विषय पर चुन कर सुनवाए -

ए नीले गगन के तले धरती का प्यार पले

बाग़ों में फूल खिलते है

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में पेट के रोगों पर डा समीर पारिख से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि खान-पीने के अलावा भी पेट रोग के कारण होते है। पीलिया (जानडिक्स) पर विस्तार से जानकारी दी। एक बात अख़र गई। डाक्टर साहब ने बताया कि वो गाने सुनते है पर निम्मी जी हर बार कहती रही, डाक्टर साहब यह गीत सुन लीजिए, क्यों भई, ऐसा क्यों ? डाक्टर साहब से पूछ कर उनकी पसन्द का गीत क्यों नहीं सुनवाया।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा से यूनूस (ख़ान) जी की बातचीत की कड़ी प्रसारित हुई। पिछले सप्ताह की कड़ी से बातचीत को आगे बढाया गया। यह जानकारी मेरे लिए तो नई है कि अभिनय के साथ-साथ गायक भी है पर ख़ुद को बाथरूम सिंगर ही बताया। अपने निजी जीवन के बारे में बताया। बहुत खुल कर बातचीत हुई। पूरी बातचीत इस कड़ी में सिमटी नहीं थी इसीलिए अभिनय यात्रा की बहुत सी बातें पता नहीं चली।

एक बेहतरीन कलाकार को पर्दे से हट कर जानने का मौका मिला इस कार्यक्रम से। प्रस्तुति कल्पना (शेट्टी) जी की रही। तकनीकी सहयोगी रहे दिलीप (कुलकर्णी) जी और सुधाकर (मटकर) जी।

हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बात की रेणु (बंसल) जी ने। कुछ श्रोताओ ने बहुत ही कम बात की। एक ड्रेस डिजाइनर से बातचीत अच्छी लगी। अपने काम की विस्तार से जानकारी दी इस महिला ने। नए पुराने अलग-अलग मूड के गाने श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाए गए। पुरानी फ़िल्म संघर्ष का गीत -

मेरे पैरो में घुँघरू बंधा ले तो फिर मेरी चाल देख ले

कुछ पुरानी फ़िल्म कर्तव्य का गीत -

चन्दा मामा से प्यारा मेरा मामा

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। इस बार भी कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की, एक महिला ने तो फोन-इन-कार्यक्रम का उपयोग भी फ़रमाइशी पत्र की तरह किया, इतना ही कहा कि वो कुछ नहीं करती है, मनोरंजन के लिए रेडियो सुनती है, पुराने गाने पसन्द है और बस, फ़रमाइश की चोरी-चोरी फ़िल्म के गीत की। समझ में नहीं आता ऐसे फोनकाल क्यों शामिल किए जाते है, फोन पर बात का कुछ तो फ़ायदा हो, कुछ तो बातचीत हो। पर इस दिन गाने कुछ अलग ही सुनवाए गए श्रोताओं की पसन्द पर जो अच्छे रहे -

नया गीत - जय माँ काली

गीत गाया पत्थरों ने फ़िल्म का शीर्षक गीत।

और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की युनूस (ख़ान) जी ने। बौद्धिक स्तर के फोनकाल भी थे। एक महिला ने छोटी सी रचना सुनाई और गीत भी उच्च स्तर का पसन्द किया। हरीशचन्द्र तारामती फ़िल्म का -

सूरज रे जलते रहना

एक आटोमोबाइल का काम करने वाले श्रोता ने भी ऐसा ही अंकुश फ़िल्म का गीत पसन्द किया। एक श्रोता ने सउदी अरब से फोन किया। पता चला वहाँ मौसम ठंडा है और उनके अनुरोध पर नीलकमल फ़िल्म का रफ़ी साहब का गाया लोकप्रिय गीत सुनवाया गया -

बाबुल की दुआएँ लेती जा

पर इन श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। अधिक बात होती तो अच्छा लगता, दूसरों के कुछ अच्छे विचार पता चलते।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारित हुआ नए फिल्मी गीतों का कार्यक्रम फिल्मी हंगामा। शुक्रवार को दीवाने हुए पागल, सिलसिले फिल्मों के गीत शामिल थे। शनिवार को जाने तू या जाने न, युवराज, अजनबी फिल्मों के गीत सुने। रविवार को नई फ़िल्म डान का जाना-पहचाना गीत सुना-

खईके पान बनारस वाला

जागर्स, आँखों में सपने लिए फ़िल्मों के गीत भी शामिल रहे। सोमवार को 42 किलोमीटरस के अलावा निगेबान फ़िल्म का यह देसी गीत सुनना अच्छा लगा -

मैं की करा दिल है तुमपे आशना

मंगलवार को टशन जैसी जानी-पहचानी फ़िल्मों के गाने शामिल रहे। बुधवार की फ़िल्में उतनी जानी-पहचानी नहीं थी, हाईजैक, इक़बाल फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। गुरूवार को डार्लिंग जैसी कम जानी-पहचानी फ़िल्मों के गीतों के साथ जाने-पहचाने गीत भी शामिल थे -

प्यार तुमको ही किया, दिल भी तुमको ही दिया

इस कार्यक्रम में के के की आवाज़ बहुत गूँजती है। इस दौर में उन्हीं के गाने लगता है ज्यादा है। इस कार्यक्रम को प्रायोजित किया जा सकता है पर न यह कार्यक्रम प्रायोजित था और न ही विज्ञापन प्रसारित हुए।

प्रसारण के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों में साल के अंतिम सप्ताह में प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रम चित्रलोक टाप 10 और 31 दिसम्बर को श्रोताओं के फोनकाल पर आधारित हैलो मन चाहे गीत की सूचना दी गई। मन चाहे गीत कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए श्रोताओं से 23 दिसंबर को फोन करने के लिए कहा गया।

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, December 15, 2009

फ़िल्म उस पार का हिंडोला गीत

सत्तर के दशक में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी - उस पार जिसके मुख्य कलाकार है विनोद मेहरा और मौसमी चटर्जी

आज इसी फ़िल्म का एक गीत याद आ रहा है जिसे बहुत दिनों से रेडियो से नहीं सुना है। लताजी के गाए इस गीत के कुछ बोल मुझे याद है -

प्यारा हिंडोला मेरा
प्यारा हिंडोला मेरा उड़न खटोला मेरा

घूमे घूमे घूमे
घूमे तो आकाश सारी धरती मगन होके घूमे घूमे घूमे
प्यारा हिंडोला मेरा

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, December 10, 2009

प्यार-मोहब्बत के गानों की दुपहरियों की साप्ताहिकी 10-12-09

सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। कभी-कभार एकाध मिनट देर से जुड़ते है। रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम 12:30 बजे के बाद भी जारी रहा।

दोपहर 12 बजे का समय होता है इंसटेन्ट फ़रमाइशी गीतों के कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने का। हमेशा की तरह शुरूवात में 10-11 फ़िल्मों के नाम बता दिए गए फिर बताया गया एस एम एस करने का तरीका। पहला गीत उदघोषक की खुद की पसन्द का सुनवाया गया ताकि तब तक संदेश आ सके। फिर शुरू हुआ संदेशों का सिलसिला और इन संदेशों को 12:50 तक भेजने के लिए कहा गया ताकि शामिल किया जा सकें।

शुक्रवार को साठ सत्तर अस्सी के दशक की यह फ़िल्में रही - आँधी, हीरो, हरे काँच की चूड़ियाँ, आमने-सामने, समाधि, कन्यादान, अँखियों के झरोके से, जवानी दीवानी, आप तो ऐसे न थे, इन फ़िल्मों से रोमांटिक गानों के लिए ही सदेश आए और बहुत दिन बाद श्रोताओं ने हरे काँच की चूड़ियाँ फ़िल्म के इस गीत की फ़रमाइश की -

पंछी रे ओ पंछी उड़ जा रे ओ पंछी
मत छेड़ तू ये तराने
हो जाए न दो दिल दीवाने

इन फ़िल्मों के गीत सुनवाने आईं रेणु (बंसल) जी। शनिवार को नई फ़िल्में रही - जब वी मेट, मैं ऐसा ही हूँ, देवदास, ग़दर एक प्रेम कथा, डोर, गुरू, । इस दिन अच्छा लगा, कुछ अलग गीतों के लिए संदेश भेजे श्रोताओं ने जैसे रंग दे बसन्ती फ़िल्म से दलेर मेहन्दी और चित्रा का गाया शीर्षक गीत जिसमें पंजाबी लोक संगीत झलका। भूलभुलैय्या का शास्त्रीय रंग में रंगा गीत -

मेरे ढोलना सुन मेरे प्यार की धुन

इन फ़िल्मों के गीत सुनवाने आईं निम्मी (मिश्रा) जी। सोमवार को 1942 ए लव स्टोरी, आज का गुन्डाराज, अमर अकबर एन्थोनी, साजन, त्रिशूल, लव स्टोरी फ़िल्में लेकर आए अजेन्द्र (जोशी) जी। मंगलवार को अभिनेता धर्मेन्द्र को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देते हुए उनकी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए अजेन्द्र (जोशी) जी - शोले, इज्ज़त, आए दिन बहार के, अपने, धर्मवीर, प्यार ही प्यार, काजल।
बुधवार को दोस्त फ़िल्म के प्रेरणादायी गीत से शुरूवात हुई -

आ बता दे के तुझे कैसे जिया जाता है

इसके अलावा इजाज़त, रोटी, कपड़ा और मकान, सिलसिला, मेरे अपने जैसी कुछ पुरानी फ़िल्मों के साथ आईं रेणु (बंसल) जी। इस दिन 12:15 से क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ फिर 12:30 बजे से हम केन्द्रीय सेवा से जुड़े। आज अशोक कुमार की पुण्य तिथि और रति अग्निहोत्री के जन्मदिन पर उन दोनों की महत्वपूर्ण फ़िल्मों को शामिल किया गया - सफ़र, बहू बेगम, हावड़ा ब्रिज, वक़्त, मिली, विक्टोरिया नम्बर 203, एक दूजे ले लिए, ग़ुलामी, शौक़ीन, ख़ामोशी, यह फ़िल्में लेकर आए अजेन्द्र (जोशी) जी। इस दिन की शुरूवात भी बढिया गीत, वक़्त के शीर्षक गीत से हुई -

वक़्त के दिन और रात, वक़्त की हर शय ग़ुलाम

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बताए गए और फिर से बताया गया एस एम एस करने का तरीका। एक घण्टे के इस कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10-11 फ़िल्मों के नाम बताए गए।

इस सप्ताह भी पुराने पचास के दशक से लेकर आज के दौर की फ़िल्में शामिल रही, यानि हर उमर के श्रोता के लिए रहा यह कार्यक्रम।

इस सप्ताह संदेशों की संख्या अधिक रही बिल्कुल उसी तरह जैसे फ़रमाइशी पत्रों के नामों की सूची पढी जाती है। सप्ताह भर इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

1:00 बजे शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि संतुलित रहा। एक दिन गायन और दो दिन वादन तथा शेष हर दिन गायन को अधिक समय देते हुए दोनों सुनवाए गए, इस तरह दोनों का बराबर आनन्द मिला। लोकप्रिय राग नन्द, यमन के अलावा राजकल्याण जैसे कम सुने जाने वाले राग भी सुनवाए गए और विभिन्न वाद्य सुनवाए गए।

शुक्रवार को शास्त्रीय गायन में विदुषी अंजली बाई लोलेलकर का गाया राग जयजयवन्ती, केदार, शुद्ध कल्याण और छाया नट सुनवाया गया। उस्ताद अल्लारखा खाँ का तबला वादन द्रुत गति एक ताल में सुनवाया गया। शनिवार को पंडित राजन मिश्रा और पंडित साजन मिश्रा का गायन सुनवाया गया, राग राजकल्याण में ख़्याल और तराना। मंजुला जगन्नाथ राव का सरस्वती वीणा वादन राग बैरागी भैरव में सुनवाया गया। रविवार को बब्बन राव हल्लण का गायन सुनवाया गया, अंत में वायलन वादन में बहुत छोटी धुन सुनवाई गई। सोमवार को पंडित जितेन्द्र अभिषेकी का गायन और उस्ताद साबरी खाँ का सारंगी वादन सुनवाया गया। मंगलवार को हब्बू खाँ और बाबू खाँ का बजाया वायलन पर राग मधुवन्ती और यमन सुनवाया गया।

बुधवार को गायन सुनवाया गया - विदुषी प्रभा अत्रे से मिश्र ख़माज ठुमरी - कौन गली गयो श्याम
पंडित कुमार गन्धर्व से राग नन्द - अब तो आ जा रे राजन
विदुषी परवीन सुल्ताना से राग नन्द कौंस - पय्या पड़ू तोरे रसिया मोहे छेड़ो न
पंडित जसराज से राग नागर ध्वनि कानड़ा - हमको बिसार कहाँ चले

आज सुनवाया गया रईस खान का बजाया सितार वादन - तीन ताल में राग तिलक कामोद और दरबारी कानड़ा तथा छोटी सी दादरा धुन। तबले पर संगत की वसीर खान ने।

1:30 बजे का समय रहा मन चाहे गीत कार्यक्रम का। पत्रों पर आधारित फ़रमाइशी गीतों में शुक्रवार को पुरानी नई फ़िल्मों के मिले-जुले गीत सुनवाए गए - अपना देश, कलाकार, कुछ कुछ होता है, साँवरिया, विवाह, सिर्फ़ तुम। सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए जैसे जुदाई फ़िल्म से यह गीत -

मौसम सुहाने आ गए प्यार के ज़माने आ गए

केवल एक गीत बेटा फ़िल्म से शादी-ब्याह के माहौल का गीत था।

शनिवार को सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्मों के अलावा नई फ़िल्मों - महबूब की मेहन्दी, बैराग, फ़ासले, क्या दिल ने कहा, तलाश, जिस्म, बादशाह के गीत सुनवाए गए। इस दिन एक ख़ास बात हुई, प्यार-मोहब्बत से हट के भी गीत सुनवाए गए जैसे जवानी-दीवानी फ़िल्म की अंताक्षरी -

अगर साज़ छेड़ा तराने बनेगें

रविवार को फिल्मकार शेखर कपूर का जन्मदिन था। शुभकामनाओं के साथ उनके बारे में बताया गया। पद्मश्री और विश्व स्तर के सम्मान की जानकारी देते हुए उनकी फिल्मों के श्रोताओं की फरमाइश पर गीत सुनवाए गए। टूटे खिलौने, मिस्टर इंडिया के साथ मासूम फ़िल्म का यह गीत शामिल था -

मुझसे नाराज नही जिन्दगी हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं

इसके अलावा दिल तो पागल है, धनवान जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत शामिल रहे। सोमवार की फ़िल्में रही - शर्मिली, सोहनी महिवाल, वीर ज़ारा, सिंग इज़ किंग, हीरो, दिल माँगे मोर, किस्मत कनेक्शन जैसी नई फ़िल्मों के साथ एकाध पुरानी फ़िल्म का गीत शामिल था। मंगलवार को सुना साजन, सच्चा झूठा, लाखों में एक फ़िल्मों के रोमांटिक गीत और इन्कार फ़िल्म का उदास गीत -

दिल की कलि खिलती रहे बगिया तुम्हारी महकती रहे

इस दिन 2:00 बजे से धर्मेन्द्र के जन्मदिन पर विशेष कार्यक्रम प्रसारित हुआ। कमल (शर्मा) जी की धर्मेन्द्र से हुई टेलीफ़ोन पर बातचीत सुनवाई गई। धर्मेन्द्र ने भी पुराने दिनों में विविध भारती को याद किया। अपने संघर्ष की बात बताई। अपनी ख़ास फ़िल्में सत्यकाम, हक़ीकत की बातें बताई और फ़ौजी भाइयों को संदेश दिया। अपनी संस्कृति से जुड़ने को सुखद बताया। दिलीप कुमार को अपनी प्रेरणा बताया। उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में नायिकाओं द्वारा उनको याद किए जाने की बात पर धर्मेन्द्र ने उन्हें याद करते हुए पुराने शूटिंग के दिन याद किए। अपने लिखने के शौक के बारे में बताया। उनकी ही पसन्द पर शोला और शबनम, हक़ीक़त, ब्लैक मेल, मेरे हमदम मेरे दोस्त, शालीमार फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। बहुत स्वाभाविक बातचीत। धर्मेन्द्र की आवाज़ बहुत दिन बाद सीधे सुनना बहुत अच्छा लगा।

बुधवार और गुरूवार को श्रोताओं के ई-मेल से प्राप्त संदेशों पर फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए। इस सप्ताह भी ज्यादातर लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। विवाह, जब वी मेट, आँधी, आशा, हम आपके है कौन, अमर अकबर एंथोनी, बहुत पुरानी फ़िल्म गंगा जमुना और आज़ाद के इस गीत की फ़रमाइश मेल से आई तो अच्छा लगा -

कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफ़र है

आज जब प्यार किसी से होता है, आँखें, जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली, लम्हें, अमृत, मेरे हुज़ूर, जोश, रब ने बना दी जोड़ी, जब वी मेट फ़िल्मों के गीतों के लिए मेल आए जिससे नए पुराने मिलेजुले गीतों का आनन्द मिला।

इस सप्ताह भी अधिकतर गीत एक-एक मेल प्राप्त होने पर ही सुनवा दिए गए, अभी भी मेल संख्या बढी नहीं है जबकि पत्रों की स्थिति पहले जैसी ही रही और एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में संदेशों की संख्या बढी।

इस कार्यक्रम में अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें यह बताया गया कि फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अपनी पसन्द का गाना सुनने के लिए ई-मेल और एस एम एस कैसे करें। सोमवार को कार्यक्रम के दौरान महत्वपूर्ण सूचना दी गई प्रसिद्ध अभिनेत्री बीना राय के निधन की और उन पर प्रस्तुत किए जाने वाले विशेष सदाबहार नग़में कार्यक्रम की।

इस सप्ताह यह देख कर अच्छा लगा कि विविध भारती के श्रोता कुछ सुधर गए, लगता है उन्हें समझ में आने लगा है कि औए भी ग़म है ज़माने में मोहब्बत के सिवा। प्यार-मोहब्बत के अलावा दूसरी तरह के गानों के लिए भी फ़रमाइशें आईं।

इस सप्ताह इस समय के प्रसारण में एक भी कार्यक्रम प्रायोजित नहीं था, पहले की तरह मन चाहे गीत भी नहीं। हालांकि एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम को प्रायोजित किया जा सकता है।

दोपहर के इस प्रसारण को हम तक पहुँचाने में तकनीकी सहयोग रहा गणेश शिन्दे जी, विनायक तलवलकर जी, सुनील भुजबल जी, तेजेश्री शेट्टी जी, पी के ए नायर जी का और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रहे कमला कुन्दर, आशा नायकन

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

Tuesday, December 8, 2009

गीत का एक भी बोल याद नहीं

आज एक ऐसा गीत याद आ रहा है जिसका एक भी बोल याद नहीं।

फ़िल्म का नाम है - प्यासी नदी जो 1974 के आसपास रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म के नायक है - विक्रम (जूली फ़ेम) जिनकी शायद यह पहली फ़िल्म है। शायद उनकी ड्राइवर की भूमिका थी।

नायिका वाणी गणपति है जो प्रसिद्ध नृत्यांगना और कमल हसन की पूर्व पत्नी है और सहनायिका है शाहीन, इन दोनों ने शायद इस एक ही फ़िल्म में काम किया है। यह रोमांटिक युगल गीत शायद मुकेश और वाणी जयराम ने गाया है। मुझे इसके अलावा और कुछ भी याद नहीं आ रहा। एक समय था जब यह गीत बहुत सुना करते थे रेडियो से।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, December 3, 2009

सुबह के पंचरंगी प्रसारण की साप्ताहिकी 3-12-09

इस सप्ताह एक ख़ास दिन था - बकरीद, जिसकी झलक सुबह के प्रसारण में मिली।


सप्ताह भर सुबह पहले प्रसारण की शुरूवात परम्परा के अनुसार संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। क्षेत्रीय केंद्र से अभिवादन अच्छा लगता है, तेलुगु में जो कहा जाता है वह मैं यहाँ लिख रही हूँ जिसे आसानी से समझा जा सकता है - श्रोतलुकु नमोः सुमान्जलि ! शुभोदयम !! इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात प्रायोजकों के एकाध विज्ञापन से होती रही जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।

चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - आचार्य चाणक्य का कथन कि विद्वानों में अनपढ तिरस्कृत होते है जैसे हंसों में बगुला, इसीलिए जो माता-पिता अपनी संतान को शिक्षा के लिए प्रेरित नहीं करते वे संतान के शत्रु होते है। पंचतंत्र में आचार्य विष्णु शर्मा ने कहा कि कटु वचन बोलना विष फैलाना है। जवाहर लाल नेहरू का कथन कि शान्ति और सौहार्द की स्थिति अच्छी होती है। स्वामी स्वरूपानन्द का कथन कि भक्ति में शक्ति असीम होती है। शनिवार को बच्चो के लिए जवाहर लाल नेहरू के विचार बताए गए कि बच्चो की आँखों में देश का भविष्य होता है इसीलिए बच्चो के प्रति जागरूक रहकर उन्हें अच्छे संस्कार देने चाहिए। इस दिन बकरीद थी, क्या ही अच्छा होता अगर बलिदान, त्याग संबंधी किसी महर्षि का विचार बताया जाता। आज बताया गया स्वामी विवेकानन्द का कथन कि अग्नि अपने आप में न अच्छी होती है न बुरी उसी तरह होती है हमारी मानसिक स्थिति भी।

इस बार भी प्रस्तुति संकलित करने योग्य रही।

वन्दनवार में भक्ति गीतों में विविधता रही। शुक्रवार को शुरूवात में एक पुराना भजन नए रूप में सुनवाया गया -

श्री रामचन्द्र कृपालु भाजमन

इसे गायिका (लताजी) की आवाज़ में हम सुनते रहे पर इस बार गायक और साथियों की आवाज़ में सुनना अच्छा लगा।

साकार रूप के भक्ति गीत और पुराने लोकप्रिय भजन इस सप्ताह नहीं सुनवाए गए। निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - मैं एक दिया हूँ तू रोशनी है

भक्तों के भक्ति गीत जैसे -

हे मनमोहन हे चतुरशान तुझको मेरा शत शत प्रणाम

प्रभुजी मेरे अवगुन चित्त न धरो शास्त्रीय पद्धति में ढले भक्ति गीत - सुभान तेरी कुदरत के क़ुर्बान

नया भजन भी सुनवाया गया -

राधा कहे कृष्ण कृष्ण सीता कहे राम राम

कृष्ण हो या राम दोनों है प्रथम नाम

हालांकि भाव के अनुसार यह अनूप जलोटा के लोकप्रिय भजन की नकल ही लगी।

कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे -

हम अपने पथ पर, मिले-जुले सब धर्मों से

तेरी उतारे आरती, जय जननि जय भारती

चलना है नई डगर पर

सबसे प्यारा देश हमारा प्यारा हिन्दुस्तान

और अल्ताफ़ हुसैन के संगीत से सजी एन के सिन्हा की ये रचना जिसे सप्ताह में दो बार सुनवाया गया -
ये भूमि हमारी वीरों की हम हिन्दों की सन्तान है

हम भारत माँ की शान है

कम सुना जाने वाला देश गान भी सुनवाया गया -

हर तरफ़ अँधेरा है दीप तू जलाता चल रास्ते चमक उठे रोशनी लुटाता चल

नया देश गान भी शामिल रहा -

भारत एक दिया है, हम सब इस दिए की बातियाँ

यही बातियाँ धर्म-कर्म है और देश की जातियां

इस तरह इस सप्ताह देशगान अच्छे रहे पर एक बात खटकती रही कि सभी गीतों के लिए विवरण नहीं बताया गया।

6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के दूसरे भाग से हम जुड़े। सप्ताह में अधिकतर लोकप्रिय गीत ही सुनवाए गए। मंगलवार को लगा कि सदाबहार नग़में कार्यक्रम सुन रहे है। वक़्त, सावन की घटा, मेरे लाल, जौहर महमूद इन गोवा (गोवा) फ़िल्मों के हमेशा सुने जाने वाले गीत और यह गीत -

नैन मिले चैन कहाँ दिल है वहीं तू है जहाँ

अन्य दिनों में भी ऐसे गीत शामिल रहे - रविवार को फ़िल्म वीर दुर्गा दास से - थाने काजलिया बना लूँ और सोमवार को बरसात की रात फ़िल्म का शीर्षक गीत। याद नहीं आ रहा कि ये गीत कब भुलाए-बिसराए गए।

एकाध ऐसा गीत भी शामिल रहा जो कम सुनवाया जाता है पर लोकप्रिय इतना है कि भूला-बिसरा गीत नहीं लगता जैसे शुक्रवार को सुनवाय गया मदर इंडिया फ़िल्म का गीत -

मतवाले पिया डोले जिया

आज सुनवाया गया हिमालय की गोद में फ़िल्म का गीत - कंकरिया मार के जगाया, इसी तरह नया दौर फ़िल्म का गीत।

कुछ कम सुने, भूले-बिसरे गीतों को सुनना अच्छा लगा। भूली-बिसरी आवाज़ों में अनमोल घड़ी का गीत शमशाद बेगम और ज़ोहरा बाई अम्बाले वाली की आवाज़ों में -

उड़न खटोले पे उड़ जाऊँ तेरे हाथ न आऊँ

गीता दत्त का फ़िल्म 12 ओ क्लाक का गीत - कैसा जादू बालम तूने डाला

इसके अलावा कुछ और गीत -

मैं राही भटकने वाला हूँ कोई क्या जाने मतवाला हूँ

शनिवार को बकरीद की शुभकामना दी और सुनवाया किशोर कुमार का गाया हम सब उस्ताद है फ़िल्म का यह गीत - प्यार बाटते चलो

एकाध वाकई भूला बिसरा गीत सुना -

दिखा दो जलवा हमें एक बार थोड़ा सा

तेरा दिल है मेरा,

जबसे हमने दिल बदले है सारा जग है बदला

लालारूख़ और हंगामा फ़िल्म से भी भूले-बिसरे गीत शामिल थे।

हर दिन कार्यक्रम का समापन कुंदनलाल सहगल के गीत से होता रहा।

इस कार्यक्रम में कुछ सामान्य जानकारी भी दी गई जैसे महबूब प्रोडक्शनस की फ़िल्म मदर इंडिया में 12 गाने है। कुछ फिल्मों के रिलीज का वर्ष और बैनर बताया गया।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला आरंभ हुई - शास्त्रीय संगीत में अष्टपदी जिसमें आमंत्रित कलाकार है ख़्यात गायिका कल्पना जोगलकर। बातचीत कर रही है निम्मी (मिश्रा) जी। शुरूवात में ही बताया गया कि 19वी सदीसे ग्वालियर घराने से अष्टपदी आरंभ हुई। इससे शास्त्रीय संगीत अधिक सुलभता से अधिक लोगों तक पहुँचने लगा। ख्यात कवि जयदेव जी की रचना गीत-गोविन्द से अष्टपदी की शुरूवात हुई। विभिन्न रागों में अष्टपदी सुनवाई गई। इन रागों का पहले चलन बताया गया फिर बंदिशें भी सुनवाई गई जिसमें हारमोनियम पर संगत की चैतन्य कुंटे जी और तबले पर संगत की ओंकार गुलपाणी जी ने। हर दिन अलग-अलग रागों में अष्टपदी में पहले बंदिशे गाकर सुनवाई गई फिर जाने-माने कलाकारों की गई अष्टपदी सुनवाई गई। इन दोनों ही रागों का चलन बताया जाता रहा। राग मियाँ की मल्हार, देस, पूर्वी, झिंझोटी, बहार, वृन्दावनी सारंग, कामोद सुनवाए गए। जितेन्द्र अभिषेकी, पंडित कृष्ण राव शंकर पंडित, पंडित बाला साहेब का गायन सुनवाया गया। पूरा कार्यक्रम साहित्य और शास्त्रीय संगीत को समर्पित रहा इसीलिए सप्ताह भर कोई फिल्मी गीत नहीं सुनवाया गया। इस श्रृंखला की प्रस्तुति कांचन (प्रकाश संगीत) जी की है जिसमें सहयोग दिया वसुन्धरा अय्यर ने और तकनीकी सहयोग है विनायक तलवलकर का।

7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार को बताया गया विचार था - जीवन में सावधान रहना चाहिए, थोड़ी सी असावधानी से भी भारी नुकसान हो सकता है। सुनवाया गया गीत शिक्षा फ़िल्म से -

तेरी छोटी सी एक भूल ने सारा गुलशन जला दिया

इसके साथ मेरा नाम जोकर का ऐ भाई देख के चलो और चलती का नाम गाड़ी का बाबू समझो इशारे, पो पो गाना भी शामिल था।

शनिवार को बकरीद का रंग था, विचार था - ज़मीन की ख़ातिर जंग में दुनिया में अशान्ति फैली है। ताजमहल के इस गीत से शुरूवात की -

तेरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यों है

फिर सुनवाया गया - इंसान का इंसान से हो भाईचारा

रविवार का विषय था - लड़का और लड़की में अंतर। आलेख अच्छा था। गीत भी, ख़ासकर यह गीत -

गुड़िया हमसे रूठी रहोगी कब तक न हंसोगी

सोमवार का विचार था - रिश्तों का आधार दिखावा होने से कई बार ये डगमगाने लगते है। आलेख भी अच्छा था और गाने भी अच्छे चुने गए -

ज़िन्दगी इम्तेहान लेती है

और जैसा कि अक्सर होता है, सप्ताह में भूले-बिसरे गीत में सुनवाए गए गीतों में से एक गीत चुन लिया जाता है। इस दिन शामिल किया यह गीत - प्यार बाँटते चलो

मंगलवार का विचार था - जीवन में फूलों के साथ काँटे भी है। पहला गीत अच्छा लगा -

तेरे फूलों से भी प्यार तेरे काँटों से भी प्यार

उसके बाद गाइड का गीत सुना पर अंत में अनोखी रात का यह गीत विषय के साथ नहीं जँचा -

मेरी बेरी के बेर मत तोड़ों कोई काँटा चुभ जाएगा

शुरू से आलेख की जो ऊँचाई बनती आई थी वो अंत में गिर गई।

बुधवार का विचार सुन-सुन कर थक गए - सबके लिए जीवन की परिभाषा अलग-अलग है और गीत भी वही -

ज़िन्दगी है खेल कोई पास कोई फेल

और आज का विचार था - कटुवचन न बोलो। आलेख अच्छा था पर गीतों के चुनाव में असावधानी हो गई, दोस्ती के गीत ही हावी रहे -

मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया सुना है के तू बेवफ़ा हो गया

मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे

शायद अन्य रिश्तों पर गीत कम है।

इस तरह इस सप्ताह भी हर दिन की शुरूवात के लिए अच्छे प्रेरणादायी विचार रहे।

इस समय के प्रसारण में दो ही कार्यक्रम प्रायोजित रहे - भूले-बिसरे गीत और त्रिवेणी और दोनों का एक ही प्रायोजक है जिसके विज्ञापन भी प्रसारित हुए। संगीत सरिता कार्यक्रम को भी कोई संगीत कंपनी प्रायोजित कर सकती है।

त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

Tuesday, December 1, 2009

संवादों से भरा गीत

आज सत्तर के दशक का एक ऐसा गीत याद आ रहा है जो संवादों से भरा है। शायद राजा रानी फ़िल्म का गीत है जिसे राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर पर फ़िल्माया गया। यह युगल गीत शायद मुकेश और आशा भोंसलें की आवाज़ों में है। जो बोल याद आ रहे है वो इस तरह है -

आसमाँ पे चाँदनी का एक दरिया बह रहा था
हाँ तो मैं क्या कह रहा था
हाँ तो मैं क्या कह रहा था

कह रहे थे तुम कहानी जब से आई है जवानी
हाँ मुझे अब याद आया जब से मैनें दिल लगाया
आज कौन सी तारीख़ है
आज पच्चीस

कह रहे थे तुम हसीना
इश्क में मुश्किल है जीना
हाँ --
जब से ये अरमान जागे
------------
आज कौन सा दिन है
आज सोमवार

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यह कौन सा महीना है
मई

ॠत सुहानी कह रही है
यह पुलिस, पुलिस किसे ढूँढ रही है
अरे बाबा तुम्हें नहीं किसी चोर को ढूँढ रही है
मैं तो धोखा खा रहा था
हाँ तो मैं क्या कह रहा था

पहले रेडियो से फ़रमाइशी और ग़ैर फ़रमाइशी कार्यक्रमों में बहुत सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से नहीं सुना।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, November 30, 2009

रेडियोनामा के जन्मदाता और ब्लोगींग की दूनियामें मेरे पिता श्री सागर नहार से रूबरू

आदरणिय पाठक गण,

रेडियोनामा के हमारे युनूसजी के रेडियोवाणी द्वारा परिचीत और ब्लोगींग की दुनियामें मेरे 'पिता' (यह प्रयोग एक रूपसे जानेमाने रेडियो प्रसारक श्री मनोहर महाजनजी की 'नकल' है, जिन्होंनें श्री हरमंदिरजी 'हमराझ'के हिन्दी फिल्मी गीतकोष के के वोल्यूमके रिलीझ कार्यक्रममें श्री गोपाल शर्माजी के लिये 'दादा', उनके पहेले आये पर गोपल शर्माजी के बाद रेडियो सिलोन गये स्व. शिवकूमार 'सरोज' के लिये 'पिता' और उनके बाद रेडियो श्रीलंका गये श्री रिपूसूदन कूमार ऐलावादीजी के लिये 'पुत्र' के रूपमें रेडियो प्रसारण की दुनिया के सम्बन्धमें परिचय दिया था, जो रेकोर्डिंग मूझे मेरे सुरत निवासी मित्र श्री हरीशभाई रघुवंशीजी के यहाँ देख़नेको काफ़ी समय पहेले देख़नेको मिली थी ।) श्री सागरभाई नहार जो एक लम्बी अवधी के ब्लोग और चेट परिचय के बाद आज मेरे घर आये थे , तो मैंनें सोचा की उनके शौख़ या उनके विचार सब तो ब्लोग पठको के लिये जाने पहचाने है । मैं सुरज को रोशनी क्या दिख़ाऊँ ! पर आप सबने उनके ब्लोगमें या रेडियोनामा पर युनूसजी की पोस्टमें उनको तसवीरमें सिर्फ़ देख़ा है , तो उनको बोलते हुए भी सुनाऊँ , जो सुन्दर भाषा बोलते है सुन्दर आवाझमें । तो सिर्फ़ थोडी सेकंड्स की छोटी अनौपचारिक बातचीत यहाँ प्रस्तूत की है ।



पियुष महेता ।
सुरत-395001.

Friday, November 20, 2009

रात के सुकून भरे कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 19-11-09

हवामहल के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम रात 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। इस सप्ताह एक ख़ास दिन रहा - बालदिवस, वैसे तो देश में बाल सप्ताह मनाया जाता है इसका असर इस प्रसारण में भी नजर आया।

9 बजे गुलदस्ता कार्यक्रम की शुरूवात हुई परिचय धुन से जो अंत में भी बजी। यह गैर फिल्मी रचनाओं का कार्यक्रम है। इस बार भी विभिन्न मूड की रचनाएँ सुनवाई गई।

शुक्रवार को शुरूवात हुई निदा फ़ाज़ली के कलाम से, इसे आवाजे दी चन्दन दास ने. इसके बाद कुछ ऐसे नाम आए जो इस कार्यक्रम में कम ही सुनाई देते है। हसन काजमी का कलाम तलत अजीज की आवाज में -

ख़ूबसूरत है आँखे तेरी रात को चाँद न छोड़ दे
ख़ुद ब ख़ुद नींद आ जाएगी मुझे सोचना छोड़ दे

हसन रिजवी का कलाम भी सुनवाया गया गुलाम अली की आवाज में।

शनिवार को शुरूवात हुई ग़ुलाम अली और आशा भोंसले की आवाज़ में नक्शलयल पुरी के गीत से -

नैना तोसे लागे सारी रैन जागे

इसके अलावा जगजीत सिंह की आवाज़ में वली आरसी का कलाम सुनवाया गया। छाया गांगुली की आवाज़ में कृष्ण बिहारी नूर की रचना और रविन्द्र रावल की रचना सुनी भूपेन्द्र-मिताली के युगल स्वरों में। इस दिन कुछ विविधता रही। रविवार को गीतकार और शायर नक्शलायल पुरी की रचनाएँ सुनवाई गई। शुरूवात बड़ी अजीब रही, वही गीत सुनवाया गया जिसे पिछली रात शुरू में सुनवाया गया था - नैना तोसे लागे सारी रैन जागे। लगातार दो दिन इसी रचना से शुरूवात ठीक नहीं लगी।
इसके बाद जगजीत सिह की आवाज़ में सुना - रिश्तों में दरार आई

फिर आशा भोंसले की आवाज़ और उसके बाद गूँजी दिलीप कपूर की आवाज़ जो शायद ही सुनी जाती है। सोमवार को शुरूवात में ज़फ़र गोरखपुरी का कलाम पंकज उदहास की आवाज़ मे सुनवाया गया। चंदन दास की आवाज में बशीर बद्र का कलाम, अलका याज्ञिक और हरिहरन की आवाजो में जावेद अख्तर का कलाम सुनवाया गया। अच्छी लगी यह रचना -

ढलते जाए शाम के साए लेकिन तुम न आए

मंगलवार को कुछ पुरानी स्वर लहरी उठी। शुरूवात नूरजहाँ से हुई, फिर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कलाम सुनवाया शकीला ख़ानम की आवाज़ में। सुषमा श्रेष्ठ की आवाज़ में यह ग़ज़ल अच्छी लगी -

आज किसी ने दस्तक दी है वो भी इतनी रात गए
आहट तो ये उनकी सी है वो भी इतनी रात गए

इसके अलावा वली आरसी का कलाम अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की युगल आवाज़ों में और बशीर बद्र का कलाम भी सुनवाया गया।

बुधवार को हेमन्त कुमार के गाए हसरत जयपुरी के गीत से शुरूवात हुई -

कल तेरी तस्वीर के सजदे किए रात हम

उसके बाद गूँजा भूपेन हज़ारिका का स्वर - ओ गंगा बहती हो क्यों

गीत रचना पंडित नरेन्द्र शर्मा की जिसके बाद वीनू पुरूषोत्तम की आवाज़ में बेख़ुद देहलवी का कलाम -

जब ख़्याल आपका नहीं होता
दर्द दिल से जुदा नहीं होता

इसके बाद एक एलबम से चन्दन दास की ग़ज़ल सुनवाई गई, कलाम बशीर बद्र का। समापन हुआ मिताली मुखर्जी की आवाज़ मे अश्क अंबालवी के कलाम से। वाह ! आनन्द आ गया !! वाकई गुलदस्ता महका, रंग-बिरंगे फूलों का।

गुरूवार को फैय्याज हाशमी के कलाम से शुरूवात हुई। गुलाम अली की आवाज में सुना कातिल शिफाई को, गुलज़ार की रचना गूंजी -

एक परवाज दिखाई दी है
एक आवाज सुनाई दी है

आवाज जगजीत सिंह की। रीता गांगुली की आवाज भी सुनी जो ज़रा कम ही सुनी जाती है।

सप्ताह में सिर्फ़ बुधवार को ही बढिया विविधता रही, हर दिन गजलों का ही बोलबाला रहा। एकाध बार विज्ञापन भी प्रसारित हुए और विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों में फ़रमाइश भेजने के संदेश तो थे ही।

हर दिन इस वाक्य से समापन अच्छा लगा - सुनने वालों के लिए ये था विविध भारती का नजराना - गुलदस्ता

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में बालदिवस ही नही बाल सप्ताह नजर आया।

शुक्रवार को राजू बन गया जेन्टलमैन फ़िल्म के गीत लेकर आए युनूस खान जी। ख़ास जानकारी यह दी कि 17 साल पहले इसी दिन यह फ़िल्म रिलीज हुई थी और इसी दिन जूही चावला का पच्चीसवा जन्म दिन था। ऎसी ख़ास बातें जानना अच्छा लगता है।

शनिवार को बाल दिवस पर विशेष फ़िल्म लेकर आई निम्मी (मिश्रा) जी - धनपत मेहता की फ़िल्म - हम बच्चे हिन्दुस्तान के
बहुत दिन बाद सुने यह गीत -

शीर्षक गीत - हम बच्चे हिन्दुस्तान के

ये रक्षाबंधन सबसे बड़ा त्यौहार

मानचित्र पर कितना सुंदर देश हमारा है ये देश हमारा है

गीत लिखे है सनम गोरखपुरी ने। गायक कलाकार है - शमसी (पूरा नाम नोट नहीं कर पाई), अनूप जलोटा, प्रीति सागर, ज्ञानेश्वर और दिलराज कौर, इस फ़िल्म के रिलीज का वर्ष और कलाकारों के नाम नही बताए गए। मेरी जनकारी के अनुसार मुख्य भूमिका में बाल कलाकार के रूप में पल्लवी जोशी है।

सोमवार को 1965 में रिलीज फ़िल्म मेरे सनम के गीत सुनवाए गए। ओ पी नय्यर का संगीत और सिर्फ़ नायक नायिका के नाम बताए गए - विश्वजीत और आशा पारिख। इसके अलावा रेणु (बंसल) जी ने कोई जानकारी नही दी जैसे बैनर का नाम और अन्य कलाकारों के नाम। गाने सभी सुनवाए गए।

मंगलवार को 1971 में रिलीज़ आप आए बहार आई फ़िल्म के गीत सुनवाए शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। फ़िल्म के नायक राजेन्द्र कुमार नायिका साधना, गीतकार, संगीतकार और बैनर का नाम बताया गया और सभी गीत सुनवाए। लेकिन फ़िल्म से संबंधित कुछ ख़ास बातें नहीं बताई। जहाँ तक मेरी जानकारी है इस फ़िल्म में प्रेम चोपडा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फ़िल्म का विषय बलात्कार है और इस विषय पर बनी शायद यह पहली फ़िल्म है। इस फ़िल्म से राजेन्द्र कुमार ने एक ऐसे ड्रस का फ़ैशन चलाया जिसे सुना है उन दिनों कालेज के लडके बहुत पहना करते थे - दो गहरे रंग - हल्दी जैसा पीला और गहरा गुलबी रंग। एक ही कपडे से पैंट और शर्ट जिस पर काला चौडा बेल्ट और शर्ट के कालर चौडे।

बुधवार को 1947 मे रिलीज़ फ़िल्म दर्द के गीत सुनवाए गए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने और फ़िल्म से जुड़े सभी प्रमुख नाम बताए गए जैसे बैनर, निर्माता निर्देशक का नाम, गीतकार शकील बदायूँनी, संगीतकार नौशाद, गायक कलाकार सुरैया, उमादेवी, शमशाद बेगम और अभिनय श्याम कुमार और सुरैया का। नामों से ही समझा जा सकता है कार्यक्रम सुनने में कितना आनन्द आया होगा। शुरूवात हुई लोकप्रिय गीत से -

अफ़साना लिख रही हूँ दिले बेक़रार का
आँखों में रंग भरके तेरे इंतेज़ार का

इतनी पुरानी फ़िल्म की इससे अधिक जानकारी देना भी कठिन है। लेकिन एक बात छूट गई जो बताई जा सकती थी कि दर्द नाम से एक फ़िल्म सत्तर के दशक में भी आई थी जिसके मुख्य कलाकार राजेश खन्ना और हेमामालिनी है।

गुरूवार को बच्चो की फ़िल्म बूट पालिश के गीत सुनवाए गए। यह फ़िल्म 1954 में रिलीज हुई थी। इसका विषय है बाल मजदूरी।

इस तरह इस सप्ताह भर लगभग हर दशक से एक फ़िल्म के गीत सुनवाए गए। हर दिन फिल्म से जुड़े नाम बताए गए और दर्द और बूट पालिश को छोड़ कर बाक़ी फिल्मो के लिए कुछ ही सामान्य जानकारी भी दी गई लेकिन कई ख़ास बातें नही बताई, लगता है विविध भारती के उदघोषक फ़िल्में नहीं देखते।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में ख़्यात गायिका शमशाद बेगम से कमल (शर्मा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। कार्यक्रम की शुरूवात परम्परा के अनुसार परिचय धुन से हुई। इस कड़ी में मुंबई आने के बाद की बातें बताई गई। बताया कि पहली फ़िल्म महबूब साहब की तक़दीर रही। इसके बाद पन्ना फ़िल्म के सभी गीत गाए, यह फ़िल्म और गाने बहुत लोकप्रिय हुए। जब यह पूछा गया कि पर्दे पर पहली बार अपना नाम कब देखा तब बताया कि उन दिनों नाम पर इतना ध्यान नहीं होता था, कभी कहा भी नहीं नाम देने के लिए, फ़िल्मकार खुद नाम देने लगे। एक पुराने स्टूडियो को याद किया जो आज के रंजीत स्टूडियो के पास था। आज के संगीत को शोर बताया। ख़ास बात यह कही कि अंत तक उन्होनें रेडियो नहीं छोड़ा। उनकी आवाज़ में उमर का असर साफ़ नज़र आ रहा था। बीच-बीच में उनके गाए अधिक सुने जाने वाले और कम सुने जाने वाले दोनों ही तरह के गीत सुनवाए -

कहाँ चले जी प्यार में दीवाना करके
मैं तो नीम तले आ गई बहाना करके

दिल तुझको दे दिया किसी को क्या
रात रंगीली गाए रे मोसे रहा न जाए रे
मैं क्या करूँ

इस कार्यक्रम का संयोजन सुभाष (भावसरे) जी के तकनीकी सहयोग और पी के ए नायर जी के प्रस्तुति सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने किया और प्रस्तुति कमल (शर्मा) जी की रही। ऐसे कार्यक्रमों को प्रायोजित किया जा सकता है।

10 बजे छाया गीत प्रसारित हुआ जो प्रायोजित था। शुक्रवार को कमल (शर्मा) जी की प्रस्तुति रही। पचास साठ के दशक के कुछ लोकप्रिय और कुछ कम सुने गीतों से कार्यक्रम को सजाया गया।

फिर वही शाम वही गम वही तन्हाई

से आरम्भ कर गम, उदासी और अकेलेपन की चर्चा हुई। कम सुने गीत रहे -

दिल उनको ढूँढता है हम उनको ढूँढते है

रात में ऎसी काव्यात्मक प्रस्तुति अच्छी तो लगती है पर माहौल को उदास कर देती है।

शनिवार को अशोक जी ने इस बार भी मोहब्बत की बातें की, गीत लोकप्रिय और कम सुने दोनों ही सुनवाए -

आप से प्यार हुआ आप खफा हो बैठे

मेरे पहलू में आके बैठो खुदा के वास्ते

रविवार को युनूस (खान) जी की प्रस्तुति रही। एक ख़ास बात रही सभी गीत मुकेश के रहे अन्य गायिकाओं के साथ। लोकप्रिय गीत -

प्यार का फ़साना बनाए दिल दीवाना

और कम सुने जाने वाले गीत भी शामिल थे - तारों कि ठण्डी छैंया याद रहे

सावन, वीर दुर्गादास फ़िल्मों के गीत भी शामिल थे। आलेख में तो नई बात नहीं थी पर समापन नए ढंग से किया। सभी सुनवाए गए गीतों की झलक सुनवाते हुए विवरण यानि फ़िल्म, गीतकार, संगीतकार और गायक के नाम बताए। यह अच्छा रहा क्योंकि अक्सर इस कार्यक्रम में विवरण नहीं बताया जाता।

सोमवार को छायागीत प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने, सुन कर लगा कि एक विषय पर दो त्रिवेणी कार्यक्रम तैयार किए गए और इसे जोड़ कर छाया गीत के नाम से सुनवा दिया गया। विषय सुनवाए गए इन गीतों में स्पष्ट है -

मुसाफिर हूँ यारो

जिन्दगी एक सफर है सुहाना

इसके अलावा फकीरा, सम्बन्ध फिल्मो के गीत शामिल थे।

मंगलवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी की प्रस्तुति रही। ख़ुशियों के जहाँ की तलाश हुई, प्यार-मोहब्बत की बात हुई। कुल मिलाकर कोई नई बात नहीं थी। गाने साठ सत्तर के दशक के अच्छे सुनवाए गए। लोकप्रिय गीत -

आ जा मेरे प्यार के सहारे कभी कभी

कम सुना हुआ गीत -

ऐसा होता तो नहीं है
ऐसा हो जाएगा
तुम्ही मिल जाओ

बुधवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए। सप्ताह भर के इस समय के प्रसारण में यह एक्लौता कार्यक्रम रहा जिसमें नए गीत सुनवाए गए। इसीलिए यह प्रस्तुति ख़ास लगी।

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी की प्रस्तुति रही, प्यार की बातें हुई -

दिल की बातें दिल ही जाने

वो चाँद खिला वो तारे हसे

इस बार भी किसी भी दिन कोई नयापन नही रहा, वही प्यार, चाँद, रात की बातें। कम से कम एक दिन बच्चो के लिए प्रस्तुत करते तो कुछ तो नया रहता।

10:30 बजे प्रसारित हुआ आप की फरमाइश कार्यक्रम जिसमे श्रोताओं की फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। यह कार्यक्रम प्रायोजित रहा। हर गीत की फ़रमाइश में देश के विभिन्न भागों से औसत 5 पत्र आए और हर पत्र में नामों की लम्बी सूची। अधिकतर कुछ पुराने गीतों की फ़रमाइश की गई। बुधवार और गुरूवार को एस एम एस से प्राप्त फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। अक्सर एकाध एस एम एस पर ही गीत सुनवाए गए।

शुक्रवार को साठ के दशक के अच्छे गीत सुनवाए गए। फ़िल्म गूँज उठी शहनाई से -

जीवन में पिया तेरा साथ रहे

और हरियाली और रास्ता, इन्तेकाम, प्रिंस और एक सत्तर के दशक की फ़िल्म हम किसी से कम नहीं भी शामिल रही।

शनिवार को बाल दिवस को ध्यान में रख कर श्रोताओं ने फरमाइश भेजी। शुरूवात हुई बेटी फ़िल्म के इस गीत से -

बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान की

इसके बाद घराना फ़िल्म का गीत सुना - दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ

सन आफ इंडिया फ़िल्म का शान्ति माथुर का गाया गीत भी शामिल था - नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूँ

इसके साथ काला बाजार फ़िल्म से खोया खोया चाँद जैसे अन्य गीत भी शामिल रहे।

रविवार को साठ सत्तर के दशक के लोकप्रिय गीत गूँजे। वक़्त, ख़ानदान, आप आए बहार आई और दुल्हन वही जो पिया मन भाए फ़िल्म से -

ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में
प्यार की छाँव में बिठाए रखना
सजना सजना

सोमवार को अनाडी, नई उमर की नई फसल, ताजमहल और ममता फ़िल्म का यह गीत सुनवाया गया -

रहे न रहे हम महका करेगे

मंगलवार को लव मैरिज, साथी, प्रेम पुजारी फ़िल्मों के गीत के साथ सुनवाया गया यह गीत -

जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
उस दिल को कभी का तोड दिया

बुधवार को नई फ़िल्म इतिहास के साथ कुछ समय पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए - धर्मात्मा, उमराव जान और कभी-कभी फ़िल्म का शीर्षक गीत

गुरूवार को दोस्ताना, रातो का राजा, निकाह, आशिकी के साथ पुरानी फ़िल्म हकीकत का गीत भी शामिल था।

11 बजे अगले दिन के कार्यक्रमों की जानकारी दी गई जिसका प्रसारण सीधे केन्द्रीय सेवा से होने से सभी कार्यक्रमों की जानकारी मिली हालांकि क्षेत्रीय प्रसारण के कारण सभी कार्यक्रम यहां प्रसारित नहीं होते। जिसके बाद दिल्ली से समाचार के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।

विविध भारती का यह प्रसारण हम तक पहुँचाया सविता (सिंह) जी, शेफ़ाली (कपूर) जी, मंजू (द्विवेदी) जी, राजेन्द्र (त्रिपाठी) और संगीत (श्रीवास्तव) जी ने जयंत (महाजन) जी, प्रशांत (काटगरे) जी, अशोक (माहुलकर) जी, साइमन (परेरा) जी, सुनील (भुजबल) जी, मंगेश (सांगले) जी, वन्दना (नायक) जी और निखिल (धामापुरकर) जी के तकनीकी सहयोग से और यह प्रसारण हम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी आफ़िसर रहे मालती (माने) जी, आशा (नाईकन) जी, रमेश (गोखले) जी

Tuesday, November 17, 2009

बारूद फ़िल्म का गीत

सत्तर के दशक में शायद वर्ष 1976 के आसपास एक फ़िल्म रिलीज हुई थी - बारूद

इस फ़िल्म के नायक है ऋषि कपूर और नायिका है शोमा आनंद जिनकी यह पहली फ़िल्म है। यह वही शोमा आनद है जो आजकल धारावाहिकों और फिल्मो में चरित्र भूमिकाओं में नजर आ रही है।

यह फ़िल्म बहुत लोकप्रिय हुई थी और लता जी का गाया यह गीत भी। रेडियो से यह गीत सभी केन्द्रो से बहुत सुनवाया जाता था पर अब बहुत समय से नही सुना। इस गीत का सिर्फ़ मुखड़ा मुझे याद आ रहा है -

दिल काँटों में उलझाया है
इक दुश्मन पे प्यार आया है
शीशा पत्थर से टकराया है
इक दुश्मन पे प्यार आया है
दिल काँटों में

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Saturday, November 14, 2009

14 नवम्बर सेक्षोफ़ोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्यामराजजी को जन्म-दिन की बधाई

14 नवम्बर, 1948 के दिन काठमान्डू नेपालमें जन्में जाने पहचाने सेक्षोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्यामराजजी के श्री एनोक डेनियल्स साहब के साथ बिल्लीमोरा के श्री नरेश मिस्त्री द्वारा 21 फरवरी, 2009 के दिन अयोजीत एक कार्यक्रममें मिलनेका और दोनों को साथ सुननेका मोका मिला था, जिसका जिक्र मैं पिछली कुछ पोस्टोंमें कर चूका हूँ । जिसमें एक 16 अप्रैल, 2009 के दिन श्री डेनियेल्स साहबके जनम दिन के दिन थी और बादमें एक पोस्ट श्री श्यामराजजी से किये गये
विडीयो साक्षात्कार , जो सुरतमें किया था,

http://radionamaa.blogspot.com/2009/03/blog-post_14.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+http%2Fradionamaablogspotcom+%28radionamaa%29
पर थी । और वह इस मंच पर दिख़ाया भी गया था और इन दोनों साझों पर उनके द्वारा छोटी छोटी झलके प्रस्तूत की गयी थी ।
तो आज उनको जनम दिन की ढेर सारी बधाईयाँ रेडियोनामा की और से देते हुए,
1. टेरर सेक्षोफोन पर फिल्म शोले के गीत महेबूबा की धून




तथा 2. वेस्टर्न फ्ल्यूट पर फिल्म जब जब फूल खिले के गीत ए शमा


इधर नरेशभाई मिस्त्री और गुन्जन ललित कला के सौजन्य से प्रस्तूत की है ।
श्यामराज जी ने इस धूनो को अपना स्पर्श बखूबी दिया है । उद्दधोषक थे विज्ञापन प्रसारण सेवा, विविध भारती, पूणे के स्थायी उद्दघोषक श्री मंगेश वाघमारे है {
निख़ील महामूनी (सिंथेसाईझर), विजय मूर्ती (बास गिटार ),कमल निम्बारकर (स्पेनिश गिटार), विजय अत्रे (अक्टोपेड), केदार मोरे (ढोलक और बोन्गा), डो. राजेन्द्र दूरकर (तबला), नरेन्द्र वकील (साईड रिधम) उनके सथी दार है ।

Friday, November 13, 2009

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 12-11-09

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हो जाता है जिसके बाद दुबारा हम 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजने से 2-3 मिनट पहले क्षेत्रीय भाषा में झरोखा प्रसारित हुआ जिसमें 7 बजे के बाद से प्रसारित होने वाले क्षेत्रीय और केन्द्रीय सेवा के कार्यक्रमों की जानकारी दी गई फिर 7 बजे से 5 मिनट के लिए दिल्ली से समाचार प्रसारित हुए।

समाचार के बाद कुछ समय के लिए धुन बजी है ताकि क्षेत्रीय केन्द्र अपने विज्ञापन प्रसारित कर सके। इसके बाद गूँजी जयमाला की ज़ोरदार परिचय (विजय) धुन जिसके बाद शुरू हुआ कार्यक्रम।

सप्ताह भर एस एम एस द्वारा भेजी गई फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश पर ही गीत सुनवाए गए। ज्यादातर एक ही एस एम एस प्राप्त होने पर ही गीत सुनवा दिया गया।

शुक्रवार को नई फ़िल्म तलाश के गीत से शुरूवात हुई जिसके तुरन्त बाद सत्तर के दशक की फ़िल्म प्रेमरोग का यह गीत सुनवाया गया -

मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद क्यूँ तेरा इंतेज़ार करता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ

इसके बाद फ़िल्म राजा हिन्दुस्तानी से शुरू कर अस्सी नब्बे के दशक की लोकप्रिय फ़िल्मों - डर, साजन, कयामत से कयामत तक के लोकप्रिय गीत भौजी भाइयों की फ़रमाइश से चुने गए।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेत्री माला सिन्हा ने। खुद की फ़िल्मों के गीत सुनवाए, शुरूवात अनपढ फ़िल्म से की फिर गुमराह, आँखें, मर्यादा, धूल का फूल, फूल बने अंगारे, सभी अच्छे गीत। हर गीत के साथ उसके भाव को लेकर फ़ौजी भाइयों को संबोधित करती रही। कोई किस्सा बयाँ नहीं किया, जो भी कहा दिल से कहा, अच्छा लगा।

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया शकुन्तला (पंडित) जी ने और संयोजन किया कलपना (शेट्टी) जी ने, सहयोग रहा रमेश (गोखले) जी का।

हर दिन लगभग हर दशक से एक फ़िल्म का गीत फ़ौजी भाइयों के संदे्शों से प्राप्त अनुरोध पर सुनवाया गया। साठ के दशक से अब तक और सुनवाने का क्रम नया-पुराना मिलाजुला रखा।

रविवार की फ़िल्में रही - मोहरा, आराधना, अमरदीप, अंदाज़, लगान, करण-अर्जुन।

सोमवार की फ़िल्में रही - सच्चा झूठा, हरियाली और रास्ता, अनामिका, नसीब, आशिकी, साथी के गीतों के साथ सुनवाया गया नई फ़िल्म कल हो न हो का शीर्षक गीत।

मंगलवार को एक पुराना गीत आख़िरी ख़त फ़िल्म से रहा -

बहारों मेरा जीवन भी सँवारों

और नई फ़िल्में ग़ज़नी और मुस्कान फ़िल्म का यह गीत -

जानेमन चुपके चुपके

इसके साथ कुछ पुरानी फ़िल्म बेताब और कुछ ही समय पहले की फ़िल्म बार्डर के गीत शामिल थे।

बुधवार को शुरूवात की पुराने फ़िल्मी देश भक्ति गीत से, नया दौर फ़िल्म का रफ़ी साहब और बलवीर का गीत -

ये देश है वीर जवानों का

आशिकी, राजा हिन्दुस्तानी और नई फ़िल्म दोस्ताना का यह गीत -

आपके प्यार में हम सँवरने लगे

इस सप्ताह भी फ़ौजी भाइयों ने लोकप्रिय गीतों के लिए ही फ़रमाइश भेजी जिनमें से सुनवाने के लिए गीतों का संयोजन अच्छा रहा। हर दिन के लिए विभिन्न दौर के गीत चुने गए जिससे मिली-जुली आवाज़े गूँजी - लताजी, रफ़ी साहब जैसे पुराने कलाकार, सुरेश वाडेकर, अलका याज्ञिक, अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण और आज के दौर के सुखविन्दर सिंह जैसे कलाकारों की आवाज़ जिससे हर दिन माहौल अच्छा रहा, विविधता रही।

यह कार्यक्रम प्रायोजित नही था। एक भी विज्ञापन प्रसारित नहीं हुआ। हालांकि पहले प्रायोजित हुआ करता था। यहाँ हैदराबाद से भी एक भी क्षेत्रीय विज्ञापन प्रसारित नहीं हुआ। एकाध बार विविध भारती के संदेश प्रसरित हुए जिसमें फ़रमाइश भेजने का तरीका बताया गया।

कार्यक्रम का समापन भी परिचय धुन से होता रहा।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत कार्यक्रम प्रसारित हुआ जो बढिया रहा। बृज का यह पारम्परिक लोकगीत शशि तिवारी और साथियों की आवाज़ों में सुन कर आनन्द आ गया -

मोरे अंगना पवन अइयो हौले-हौले

इसके बाद बदरूद्दीन की आवाज़ में यह राजस्थानी गीत सुनवाया गया जो पारम्परिक तो नहीं लगा पर सुन कर मज़ा आ गया -

अरे हाथ में चूड़ी पग में पायल तेरे गोरे-गोरियाँ
मारवाड़ी बोले छोरी बोले अंग्रेज़ी बोलियाँ

शुरूवात इस मैथिली गीत से हुई इथनीराम महतो और साथियों की आवाज़ों में -

मातुर मैंया बाड़ी दूर जाए रे (बोल लिखने में शायद ग़लती हो)

गीत सुनने में अच्छा लगा पर न भाव पता थे और न ही बोल समझ में आ रहे थे इसीलिए पूरा आनन्द नही मिला। अगर इन गीतों का विवरण बताते समय एक-दो पंक्तियों में इनके भाव भी बता दिए जाए तो अच्छा रहेगा, कम से कम उन गीतों के लिए जिनके बोल सामान्य हिन्दी जानने वालों के लिए समझना कठिन हो। वैसे यह काम कठिन है पर कोशिश तो की जा सकती है…

कार्यक्रम के शुरू और अंत में कर्णप्रिय परिचय धुन बजी।

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। इस बार तारीफ़ों का सिलसिला ख़ूब चला। श्रोताओं ने आज के मेहमान, संगीत सरिता, सेहतनामा, यूथ एक्सप्रेस, उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम की तारीफ़ की। एकाध बड़ी मीठी शिकायत आई जैसे कि कार्यक्रमों के दौरान बार-बार फ़रमाइश भेजने के लिए ई-मेल भेजने का पता क्यों बताया जाता है। एक गाँव से श्रोता ने कहा कि हमें पहले बता दे कि हमारे ई-मेल पर आधारित गीत कब सुनवाया जाएगा क्योंकि इस ग्रामीण क्षेत्र में पहले पता हो तो अच्छा रहेगा, यह शिकायत हजम नहीं हुई (हाजमोला खाने पर भी), जब पहले से सूचना पाने के लिए मेल देख सकते है तब गाना सुनने के लिए दो दिन कार्यक्रम क्यों नहीं सुन सकते, जबकि गाने आजकल सेलफोन में हेडसेट से भी सुने जा सकते है, जहाँ ई-मेल है वहाँ यहँ सुविधा बड़ी बात नहीं, ख़ैर… कुछ फ़रमाइशें भी हुई जैसे उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में दिलीप कुमार और निम्मी को बुलाए। कुछ मेल भी आए पर पत्रों की संख्या ही अधिक रही। विभिन्न क्षेत्रों से पत्र आए जैसे कोल्हापुर, झाड़खण्ड, कर्नाटक और गाँवों से भी पत्र आए।

मंगलवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम बज्म-ए-क़व्वाली। अच्छा संयोजन रहा। शुरूवात हुई प्रभु से लौ लगाने की -

आया तेरे दर पर दीवाना

फिर नई फ़िल्म हज़ारों ख़्वाहिशें की क़व्वाली सुनवाई गई। अच्छा लगा सुनकर क्योंकि आजकल फ़िल्मों में इसका चलन कम हो गया है। हालांकि पुरानी क़व्वालियों जैसा आनन्द नहीं आया। यह कमी पूरी हुई अंतिन रचना से जो जब से तुम्हें देखा है फ़िल्म से सुनवाई गई -

तुम्हें हुस्न देके ख़ुदा ने सितमगर बनाया

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में निम्मी (मिश्रा) जी की चरित्र अभिनेता ज्ञान प्रकाश से बातचीत प्रसारित हुई। बातचीत से अच्छी जानकारी मिली कि शिक्षा नैनीताल में हुई और वही से कालेज के समय से नाटकों में अभिनय की शुरूवात हुई। फिर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एन एस डी) में गुज़ारे समय की बात हुई। बताया कि शुरूवात धारावाहिक से हुई। पहली फ़िल्म मिली महेश भट्ट की ज़ख़्म। आजकल जिन फ़िल्मों में काम कर रहे है उसकी भी जानकारी दी। लगता है रिकार्डिंग कुछ पुरानी है क्योंकि बताया कि तेरे मेरे सपने धारावाहिक आने वाला है जबकि यह आजकल चल रहा है। अपने घूमने और पढने के शौक के बारे में बताया। अच्छा परिचय मिला इस कलाकार का।

राग-अनुराग कार्यक्रम में रविवार को ऐसे फ़िल्मी गीत सुनवाए जिसमें राग तिलक कामोद की झलक है -

संत ज्ञानेश्वर फ़िल्म का भजन - जय जय राम कृष्णहारि

मेरे महबूब - जानेमन एक नज़र देख ले

बेटी-बेटे - अगर तेरी जलवा नुमाई न होती, ख़ुदा की कसम ये ख़ुदाई न होती

8 बजे का समय है हवामहल कार्यक्रम का। इस सप्ताह हवामहल की इमारत बहुत बुलन्द रही आख़िर मज़बूत स्तम्भ जो जुड़े थे। बंगला नाटक पर आधारित धारावाहिक का प्रसारण हुआ। रवीन्द्रनाथ मैत्र के लिखे नाटक मानमई गर्लस स्कूल का कितना सच कितना झूठ शीर्षक से रेडियो नाट्य रूपान्तर किया सत्येन्द्र शरद जी ने और निर्देशक है लोकेन्द्र शर्मा जी, सहयोग पी के ए नायर जी का है । हर दिन शुरूवात में रेणु (बंसल) जी ने पिछली कड़ियों की जानकारी दी जिसे सिर्फ़ कथा की तरह नहीं बताया बल्कि संवादों के अंश भी शामिल किए जिससे हर कड़ी सुनते समय पिछले पूरे भाग से श्रोता जुड़े रहे।

नायक और नायिका है मानस और निहारिका। दोनों एक स्कूल में काम करने के लिए झूठ बोलते है कि दोनों पति-पत्नी है। कई बार परिस्थितियाँ ऐसी आई कि लगा भेद खुलेगा जैसे निहारिका ने छुट्टी माँगी कि तबियत ठीक नहीं और मानस को पता ही नहीं कि निहारिका की तबियत ठीक नहीं पर स्थिति को सँभालते गए। बीमारी में मानस ने निहारिका का ध्यान रखा। निहारिका ने जब देखा कि मानस का कमरा ठीक नहीं है तब सफ़ाई कर दी। निहारिका छुट्टी पर जा राही है तो स्कूल में उसक लिए विदाई समारोह का आयोजन होता है जिसमें स्नेह की धारा फूट पड़ती है और अंत में मानस और निहारिका का मिलन होता है। सहज, स्वाभाविकता बनी रही। सभी कड़ियों में रोचकता भी बनी रही। इसके कलाकार है - कमल शर्मा, सुधीर पाण्डेय, सुलक्षणा खत्री, आशा शर्मा, प्रतिभा शर्मा, शैलेन्द्र गौड़, अमरकान्त, अशोक सोनामणे। बढिया धारावाहिक।

मंगलवार को झलकी सुनवाई गई - आधूरी बात जिसके निर्देशक है विजय दीपक छिब्बर। दफ़्तर में कर्टसी वीक मनाया जा रहा है इसीलिए सभी बेवजह हँसे जा रहे है। बाँस की बेटी आती है और इंजीनियर से बातें करने लगती है, वह हाँ ना करता रहता है और चला जाता है, सुन नहीं पाता कि वह उससे प्यार करती है। बाँस को इंजीनियर पर शक होता है पर बेटी प्यार के बारे में बताती है, वह शादी की बात करने जा रहा है पर बेटी न कह कर उसका नाम लेता है, नाम है - किटी, इंजिनियर समझता है किटी उनकी बिल्ली का नाम है और हाँ सर ना सर करता हुआ चला जाता है। इस तरह न बेटी प्यार की बात पूरी कह पाती है और न बाप शादी की बात पूरी कह पाता है और रह जाती है बात अधूरी… दिल्ली केन्द्र की प्रस्तुति थी। बहुत मज़ा तो नहीं आया पर ठीक ही रहा।

बुधवार को बहुत पुरानी झलकी प्रसारित की गई। झलकी में मनोरंजन के साथ संदेश है पर इतनी पुरानी झलकी कि अब यह संदेश भी लगता है उपयोगी नहीं रहा। संदेश है छोटे परिवार का, आज तो सभी छोटा परिवार ही बना रहे है। राकेश निगम की लिखी यह झलकी है - एक और सावित्री। पति प्रमोशन के लिए बाँस को खाने पर बुलाना चाहता है पर पत्नी कहती है सात बच्चों के इस परिवार में इसका जुगाड़ नहीं हो पाएगा। रात में पति सपना देखता है कि यमदूत उसकी पत्नी सावित्री को ले जा रहा है और कह रहा है कि सात बच्चों को जन्म देने के अपराध में ऊपर की अदालत में सावित्री पर मुकदमा चलेगा। तब उसे समझ में आता है छोटे परिवार का महत्व। लखनऊ केन्द्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक है जयदेव शर्मा कमल।

हर दिन हवामहल के शुरू और अंत में वही पुरानी जानी-पहचानी परिचय धुन बजती रही।

विविध भारती का यह प्रसारण हम तक पहुँचाया अशोक (सोनामणे) जी, शेफ़ाली (कपूर) जी, कमल (शर्मा) जी, संगीत (श्रीवास्तव) जी, राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, निम्मी (मिश्रा) जी ने सुनील (भुजबल) जी, साइमन (परेरा) जी, प्रदीप (शिन्दे) जी, अशोक (माहुलकर) जी, विनय (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से और यह प्रसारण हम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी आफ़िसर रहे मालती (माने) जी, माधुरी (केलकर) जी, पी के ए नायर जी।

गुरूवार को प्रसारण नहीं हुआ। 7 बजे समाचार शुरू होने के एक मिनट बाद ही खरखराहट शुरू हुई। सुई आसपास घुमाने पर दूसरे केन्द्रों का प्रसारण साफ़ सुनाई दे रहा था। यानि इसी फ़्रीक्वेन्सी 102.8 पर ही प्रसारण सुनाई नहीं दे रहा था, शायद रिले ही नहीं हो पा रहा था या फिर कोई और तकनीकी समस्या थी।

हवामहल के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम रात 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

Tuesday, November 10, 2009

पहचान फ़िल्म का एक शरारती गीत

सत्तर के दशक के शुरू में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी - पहचान जो मनोज कुमार की एक लोकप्रिय और हिट फ़िल्म रही।

राजकपूर के बाद मनोज कुमार ही एक ऐसे अभिनेता है जिस पर मुकेश की आवाज़ खूब फबी। इस फ़िल्म में नायिका शायद बबिता है। आज इस फ़िल्म के जिस गीत को हम याद कर रहे है उसे मुकेश, सुमन कल्याणपुर और साथियों ने गाया है। इस गीत में नायक (मनोज कुमार) को विवाह के लिए अलग-अलग तरह की लड़कियाँ दिखाई जा रही है पर उसे हर लड़की में कोई न कोई बुराई नज़र आ रही है जैसे किसी के कटे बाल अच्छे नहीं है तो किसी की ऊँची ऐड़ी की सैन्डिल।

पहले यह शरारतीपूर्ण गीत रेडियो के हर केन्द्र से, सिलोन से बहुत ज्यादा सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से नहीं सुना। इसके कुछ बोल याद है -

वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
के गोरी कोई पसन्द न आए तुझको

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सोलह साल की उमर कोकाकोला सी कमर
कहीं आई हो नज़र
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इससे भँगड़ा कौन कराए
ये गंगाराम की समझ में न आए

ये अंतिम पंक्ति हर अंतरे के अंत में है।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, November 6, 2009

दोपहर बाद के जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 5-11-09

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज (अख़्तरी) जी ने। कार्यक्रम शुरू हुआ, पहला फोनकाल फिर दूसरा तो लगा बालदिवस आ गया, पर इस दिन से तो नवम्बर शुरू भी नहीं हुआ था… छोटी सखियों के फोन से शुरूवात हुई, लगता है बड़ी सखियाँ कार्यक्रम से बोर हो गई ख़ैर… वैसे इस बार छोटी सखियों के फोन ही अधिक आए जिससे विविध जानकारियाँ नही मिल पाई। छात्राओं ने अपनी पढाई के बारे में बताया और अपने सिलाई कढाई के शौक के बारे में बताया। एक सखि ने बताया ज्यादा विषय पसन्द नहीं है आगे भी ज्यादा पढना नहीं चाहती। इससे अधिक बात करना उनके लिए कठिन भी होता है। परिपक्व उमर की सखियों की बातचीत से उस क्षेत्र की जानकारी मिलती है। कुछ कम शिक्षित घरेलु महिलाओं ने भी बात की। विविध भारती के कार्यक्रम पसन्द करने की भी बात की। सखियों की बातचीत से पता चला श्रीनगर का मौसम आजकल अच्छा है पर इस समय वहाँ सैलानी अधिक नहीं है। अलवर बिहार का गाँव है जहाँ आजकल धान की खेती हो रही है। इस बार भी विभिन्न स्थानों से फोनकाल आए जैसे जौनपुर जिला उत्तर प्रदेश, श्रीनगर, बिहार - अलवर, गोकुलपुरा - उदयपुर - राजस्थान।

कुच सखियों ने पुरानी फ़िल्मों के गीतों की फ़रमाइश की जैसे -

दिल का खिलौना हाय टूट गया

और छोटी सखियों ने नई फ़िल्मों के गीत पसन्द किए जैसे ओम शान्ति ओम।

इस बार का कार्यक्रम सुनकर लगा कि इसका शीर्षक हैलो सहेली नहीं बल्कि हैलो बेबी हाय बेबी होना चहिए था।

सोमवार को पधारे सुनीता (पाण्डेय) जी और निम्मी (मिश्रा) जी। यह दिन रसोई का होता है और यह बात सखियों ने बहुत याद से याद रखी। यहाँ हम एक बात कहना चाहेंगे कि कोई भी दिन सिर्फ़ दिन या कोई वार (जैसे सोम, मंगल) नहीं होता उसके अलावा कभी-कभी कुछ और भी होता है। सोमवार को रसोई की बातें जोर-शोर से बताई गई। पौष्टिकता और खाद्य पदार्थों में मिलावट की बातें करते-करते खेतों तक पहुँच गई। मौसम के अनुसार आँवले का मुरब्बा, चूर्ण बनाना बताया। सखियों के पत्र भी ऐसे ही रहे, हरियाणा की सखि ने पशुपालन को बढावा देने की बात की और दूध, दही से पनीर तक बात हुई और पनीर के व्यंजन भी बताए। बात सिर्फ़ यहीं तक नहीं है, आँवले की बात करते हुए आँवला नवमी के पूजन की भी चर्चा हो गई फिर भी याद नहीं आया कि उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी, गुरू नानक जयन्ती थी जिसे प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गुरू नानक जी की कितनी शिक्षाप्रद बातें है, अगर एकाध ज्ञान की बात से कार्यक्रम शुरू होता तो, लेकिन हाय रे पेट ! सच कहा गया है - भूखे पेट भजन न होए गोपाला…

सखियों की पसन्द पर इस दिन पुराने गीत सुनवाए गए जिनमें से कुछ बहुत ही कम सुने गीत सुनकर अच्छा लगा जैसे दुनिया न माने फ़िल्म का शीर्षक गीत -

हो सकता है काँटों से भी फूल की ख़ुशबू आए
दुनिया न माने

कुछ लोकप्रिय गीत भी शामिल रहे - वो चाँद जहाँ खो जाए

मंगलवार को पधारी सखियां शहनाज़ (अख़्तरी) जी और सुनीता (पाण्डेय) जी। इस दिन करिअर की बात होती है। शुरूवात में बताया गया कि घर में तनाव न होने और सकारात्मक माहौल होने से जीवन में आगे बढने में सहायता मिलती है। श्रोता सखि के पत्र के आधार पर सेना में महिलाओं के करिअर बनाने की जानकारी दी गई। इस दिन हमेशा की तरह सखियो के अनुरोध पर गाने नए ही सुनवाए गए जैसे कल हो न हो, जब वी मेट, दस और उमराव जान फ़िल्म का यह गीत -

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

बुधवार को सखियाँ पधारीं - शहनाज़ (अख़्तरी) जी और सुधा जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। इस बार फूलों से इत्र बनाने का प्राचीन समय का तरीका बताया गया जो शायद सभी लोग नहीं जानते इसीलिए अच्छा लगा। इसके अलावा ऐसी बातें बताई गई जो गाँव शहर की सभी महिलाएँ जानती है जैसे हरी सब्जियाँ खानी चाहिए, हद तो तब हो गई जब अंत में कहा गया कि पैरों में मोजे पहनने चाहिए। वैसे बहुत अधिक बोला गया जिनमें इत्र को छोड़ कर बाकी बातें कहना, लगा कि अनावश्यक रूप से विभिन्न कोणों से विषय को विस्तार दिया जा रहा है।

इस दिन सखियों के अनुरोध पर कुछ पुराने समय के गाने सुनवाए गए - आँधी, अभिलाषा और बदलते रिश्ते फ़िल्म का यह गीत -

मेरी साँसों को जो महका रही है
पहले प्यार की ख़ुशबू
तेरी साँसों से शायद आ रही है

गुरूवार को भी पधारीं रेणु (बंसल) जी और सुधा जी। इस दिन सबसे पहले राष्ट्रमंडल खेलों की मशाल आगे बढाने की ख़बर सुनाई गई। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस बार नोबुल शान्ति पुरस्कार प्राप्त स्वीडन की अल्वा मिडाइल के बारे में बताया गया जो समाज सेविका थी।

सखियों की पसन्द पर मिले-जुले गीत सुनवाए गए जैसे मेरे हमसफ़र, आपकी कसम, गोलमाल, नमक हलाल, कामचोर और ज़मीर फ़िल्म का गीत -

ज़िन्दगी हंसने गाने के लिए है पल दो पल

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ पत्रों में कार्य्रक्रमों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी, कुछ पत्रों में सखियों ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार भी बताए और कुछ ने अच्छी जानकारी भी दी जैसे पर्यावरण को प्रदूषित न करने के लिए बिना पटाखों के मनाई गई दीवाली का समाचार। इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें सुनवाई गई - एक तो रोज़ सुनी और एक विशेष धुन हैलो सहेली की शुक्रवार को सुनी।

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया वीणा (राय सिंघानी) जी, कल्पना (शेट्टी) जी, कमलेश (पाठक) जी ने प्रदीप शिन्दे जी के तकनीकी सहयोग से।

सदाबहार नग़में कार्यक्रम में गीत तो सदाबहार थे साथ ही विविधता भी रही। शनिवार को संगीतकार सचिन देव बर्मन को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए उनके सदाबहार गीत सुनवाए। उनके निर्देशन में विभिन्न मूड के और विभिन्न गायकों के गाए गीत सुनवाए गए जैसे हेमन्त कुमार, आशा जी और रफ़ी साहब का गाया फ़िल्म बेनज़ीर का यह रोमांटिक गीत -

दिल में एक जाने तमन्ना ने जगह पाई है
आज गुलशन में नहीं घर में बहार आई है

टैक्सी ड्राइवर फ़िल्म का किशोर कुमार का गाया यह मस्ती भरा गीत -

चाहे कोई खुश हो चाहे गालियाँ हज़ार दे
मस्त राम बनकर ज़िन्दगी के दिन गुज़ार दे

काग़ज़ के फूल फ़िल्म का गाया यह उदास गीत -

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम

और समापन किया उन्ही के गाए सुजाता फ़िल्म के गीत से - सुन मेरे बन्धु रे

इन फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए - तेरे घर के सामने, जाल, तीन देवियाँ, लाजवन्ती, चलती का नाम गाड़ी। प्रस्तुति भी अच्छी थी।

और रविवार को भी विभिन्न मूड के सदाबहार गीत सुनवाए गए - मैं सुहागन हूँ, चन्द्रकान्ता, देवदास, एक रात, नीला आकाश और नागिन फिल्म का यह गीत -

मेरा दिल ये पुकारे आजा

इस सप्ताह इस कार्यक्रम में प्रायोजकों के विज्ञापन भी प्रसारित हुए।

3:30 बजे नाट्य तरंग में शनिवार को लक्ष्मी देवी का लिखा नाटक सुनवाया गया - सदियों पहले जिसके निर्देशक है- गंगा प्रसाद माथुर। शेरगढ के ग़ुलाम हैदर शाह और उनकी बेगम गुल बेगम की कहानी थी। प्राचीन समय की सत्ता को लेकर राजघरानों के राज और षडयंत्रो की कहानी थी। रविवार को हरीश थापलिवाल का लिखा नाटक सुनवाया गया - श्रीमान टोपीबाज जिसके निर्देशक है अनूप सेठी। जैसे की नाम से ही पता चलता है झूठ बोलना, हेरा फेरी करना बताया गया और वैसे इससे मनोरंजन हुआ।

शाम 4 से 5 बजे तक सुनवाया जाता है पिटारा कार्यक्रम जिसकी अपनी परिचय धुन है।

शुक्रवार को सुना कार्यक्रम पिटारे में पिटारा जिसमें कुछ चुने हुए कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण होता है। इस बार 3 अक्तूबर यानि विविध भारती का जन्मदिन और साथ ही स्वर्ण जयन्ती छायी रही। स्वर्ण जयन्ती के दौरान प्रसारित विशेष कार्यक्रम सुहाना सफ़र याद किया गया, उसकी परिचय धुन के साथ। संगीतकार शंकर जयकिशन के गीतों पर आधारित कार्यक्रम की झलक सुनवाई गई। लोकधुनों पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम की भी झलक मिली जिसमें शामिल रहा यह गीत -

घूँघट नहीं खोलूँगी सैंय्या तोरे आगे

फोन-इन-कार्यक्रम में रेणु (बंसल) जी द्वारा श्रोताओं से की गई बातचीत के अंश भी सुनने को मिले।

रविवार को यूथ एक्सप्रेस लेकर आए युनूस खान जी। इसकी परिचय धुन बदली सी लगी। पूरा कार्यक्रम जानकारियों का पुलिंदा था। सबसे अच्छी जानकारी थी कि इंटरनेट पर अब हिन्दी समेत अन्य भाषाओ में भी डोमेन नाम दिए जा सकेगें। कार्टूनिस्ट और व्यंग्यकार आबिद सुरती के बारे में यह बताया गया कि आजकल वो पानी बचाओ अभियान चला रहे है और नलाकारियो (प्लंबर) को साथ लेकर बहते नालो को दुरूस्त करवाते है। आस्ट्रेलिया से ख़बर कि वहां बिजली की बचत और पर्यावरण पर अच्छे असर के लिए सप्ताह में एक दिन रेल नही चलती। साथ ही विभिन्न सर्वेक्षणो की जानकारियाँ कि सिगरेट पीने वाले के सामने खड़े होने वाले पर भी इसका असर पङता है, सेल फोन के अधिक उपयोग से ब्रेन ट्यूमर का खतरा है, इसके अलावा रामचंद्र मिश्र की वार्ता का विषय - शीतल पेय से नुकसान - यह सभी जानकारियाँ युनूस जी पुरानी है। ब्रेन स्ट्रोक दिवस की भी जानकारी दी गई और हमेशा की तरह विभिन्न पाठ्यक्रमो की सूचना भी दी। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में मधुमेह और हृदय रोग विषय पर डा प्रफ़्फ़ुल पटेल से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि मधुमेह अनुवांशिक होता है। कठिनाई यह है कि इसके लक्षण नहीं दिखने से अन्य लोगों में रोग का पता नहीं चलता। ब्लड शुगर की जाँच करवाने से पता चलता है। मोटापे से इस रोग को ख़तरा है। जीवन शैली के कारण गाँव की महिलाओं में कम और शहर की महिलाओं में इस रोग का ख़तरा अधिक रहता है। इंसुलिन के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। इस रोग के विभिन्न स्तर भी समझा कर बताए गए।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में चरित्र अभिनेता लिलिपुट से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। उनको पर्दे पर देख कर जो आनन्द आता है वही आनन्द बातचीत से आया। पूरी बातचीत अच्छी रही जिसमें जीवन के आरंभिक समय यानि बचपन और शिक्षा की बात बताई जो गया शहर में हुई। अच्छा लगा कि उस दोस्त को याद किया जिसकी सहायता से मुंबई पहुँचे इस क्षेत्र में क़दम रखने। खुल कर बताया अभिनय यात्रा को, संवाद की शैली में। सबसे बड़ी बात रही असली नाम जानना जो मोहम्मद मिस्बाउद्दीन फ़ारूकी है और लिलिपुट नाम ख़ुद ही रख लिया मुंबई आते समय रेलवे के रिज़र्वेशन में। यह सुन कर बड़ा अच्छा लगा कि अभिनय के साथ-साथ गायक भी है। निम्मी जी के अनुरोध पर गाकर सुनाई यह पंक्तिया -

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा

एक बेहतरीन कलाकार के बारे में अधिक जानने का मौका मिला इस कार्यक्रम से। प्रस्तुति कल्पना (शेट्टी) जी की रही।

हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बात की युनूस खान जी ने। श्रोताओ से इतनी सहज बातचीत हुई की लगा आमने-सामने बैठ कर ही बात हो रही है। कुछ श्रोताओं ने अच्छी विस्तार से बात की, एक श्रोता ने अपने कांच लकडी के काम को विस्तार से बताया जिससे जानकारी अच्छी मिली और थोडा ज्ञान भी बढा। कुछ श्रोताओ ने बहुत ही कम बात की। नए पुराने गानों के लिए अनुरोध किया, सुहाग रात फिल्म का गीत -

अरे ओ रे धरती की तरह हर दुःख सह ले

पडोसन का गीत - सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकडा रहता है

और मुझसे शादी करोगी जैसी नई फिल्मों के गीत सुनवाए गए।

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। कुछ श्रोताओं ने अपने स्थान के बारे में बताया जैसे झाँसी से बताया गया कि वहाँ एक मन्दिर में राजा के रूप में है राम। इस दिन बातचीत में अधिक आनन्द नहीं आया पर जिन गीतों का अनुरोध किया गया उन्हें सुन कर बहुत आनन्द आया -

मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू (फ़िल्म आराधना)

फ़िल्म अवतार का भजन - चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है

एक श्रोता ने फ़िल्म एक फूल दो माली का यह गीत अपने भैय्या-भाभी को उनके पुत्र-रत्न के जन्म पर समर्पित किया -

तुझे सूरज कहूँ या चन्दा

इस तरह कुछ संवेदनशील बातें भी हुई।

और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। अन्य दिनों की तरह इस दिन भी कुछ श्रोताओं ने बातचीत खुल कर की पर कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। एक श्रोता ने बताया कि अंधेरी शहर पहले कैसा था और अब कैसा है, अल्मोड़ा के बारे में बताया गया कि वहाँ फूलों के बाग़ बहुत है, छत्तीसगढ से बात हुई और भी कई शहरों से फोन आए। बातचीत के साथ नए-पुराने गानों की फ़रमाइश की जैसे लव स्टोरी फिल्म से यह गीत -

याद आ रही है तेरी याद आ रही है

एक बात पर मेरा ध्यान गया कि छत्रों खासकर नवीं दसवीं के छात्रों से अधिक बात नहीं की गई जबकि की जानी चाहिए थी, पता तो चलता कि विभिन्न मुद्दों पर आने वाली पीढी क्या सोचती है जैसे पहले कैरिअर शिक्षा-नौकरी से ही बनता था अब तो और भी रास्ते है, ऐसी बहुत सी परिवर्तन की बातें है।

इस कार्यक्रम को सुभाष जी, प्रदीप शिन्दे जी, जयंत महाजन जी के सहयोग से महादेव (जगदल) जी ने प्रस्तुत किया।

हैलो सहेली और हैलो फरमाइश के तीनो दिन के प्रसारण के अंत में रिकार्डिंग का दिन और फोन नंबर बताए गए।

हैलो फ़रमाइश, यूथ एक्सप्रेस और आज के मेहमान कार्यक्रमों की अपनी परिचय धुन भी बजाई गई।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के दिल्ली से प्रसारित होने वाले बुलेटिन के बाद प्रसारित हुआ नई फ़िल्मों का कार्यक्रम - फ़िल्मी हंगामा जो पूरी तरह व्यावसायिक स्तर का रहा। शुरू में 15 मिनट रिलीज़ होने वाली फ़िल्मों के विज्ञापन प्रसारित हुए। अंत के 15 मिनट में नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए साथ में विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इस कार्यक्रम में सिर्फ हंगामा ही नही रहा बल्कि संजीदा गीत भी शामिल रहे।

शुक्रवार को दोस्ताना, बचना ऐ हसीनों के साथ दशावतार फ़िल्म का के के की आवाज़ में यह भक्ति सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ -

श्री राम जय राम जय जय राम

ऐसे हंगामेदार कार्यक्रम में यह भजन, वैसे लम्बे समय के बाद शायद किसी फ़िल्म में भजन रखा गया है।

शनिवार के गीत अच्छे थे। विक्टोरिया नंबर 203 फिल्म का गीत जो इसके पुराने संस्करण के गीत जैसा ही था - दो बेचारे बिना सहारे

दलेर मेहदी का हैलो फिल्म से हंगामेदार गीत था और सबसे अच्छा लगा खोया खोया चाँद फिल्म से श्रेया घोषाल का गाया गीत जो पुरानी गजलो की याद दिला गया - चले आओ सैय्या

रविवार को भी हैलो फिल्म का गीत सुनवाया गया लेकिन गीत अलग था। इसके अलावा बाम्बे टू गोआ और ढूँढते रह जाओगे का यह गीत सुनवाया गया - आँखे है तेरे सपने

सोमवार को भी हंगामेदार गीत शामिल रहे। मंगलवार को जहाँ भी जाएगा हमें पाएगा फ़िल्म के इस गीत -

नज़रों को कोई शिकार चाहिए

के साथ पिछले समय की फ़िल्म अक्सर का गीत भी सुनवाया गया।

बुधवार को आने वाली फ़िल्म 42 किलोमीटर्स के साथ लकी फ़िल्म का धमाकेदार गीत भी शामिल था - नच ले, और यह संजीदा गीत भी -

कहने को जश्ने बहारा

ऐसा ही एक रोमांटिक गीत अन्य गीतों के साथ गुरूवार को भी सुना -

प्यार दीवाना होता है

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हो जाता है जिसके बाद दुबारा हम 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, November 3, 2009

महिलाओं की पारम्परिक भारतीय छवि को दर्शाता गीत

आज महिलाओं की पारम्परिक भारतीय छवि को दर्शाता एक गीत याद आ रहा है जो पहले रेडियो से बहुत सुनवाया जाता था। अब तो एक अर्सा हो गया यह गीत सुने।

इस गीत को गाया है लता जी ने, यह एक ही पक्की जानकारी है मेरे पास। फ़िल्म का नाम मुझे न याद आ रहा है और न ही मैं कोई अंदाज़ा लगा पा रही हूँ, न ही इतने अच्छे बोल देने वाले गीतकार का नाम याद आ रहा है और न ही संगीतकार का नाम जिसने कम वाद्यों का प्रयोग करते हुए केवल आवाज़ को ही उभार कर इस गीत की मधुरता से ज्यादा भाव के महत्व को उभारा है। इतना अंदाज़ा है कि यह फ़िल्म शायद साठ के दशक की है। इसकी धुन मुझे याद है और जितने बोल याद आ रहे है वो इस तरह है -

नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी
होठों पे मधुर मुस्कान कभी आँखों में असुवन धार कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

दिए की तरह ख़ुद जलती है दुनिया को उजाला देती है
दुनिया को उजाला देती है
कभी --------- और ------------- कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

दुनिया को सब सुख देती है माँ बेटी बहन पत्नी बन कर
माँ बेटी बहन पत्नी बन कर
कभी --------- और ------------- कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

यही सीता बनी यही मीरा बनी यही रानी बनी थी झाँसी की
यही रानी बनी थी झाँसी की
कभी फूल चढाए श्रृद्धा के और हाथों में ली तलवार कभी
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, October 30, 2009

श्री अमीन सायानी साहब रेडियो श्री लंका से बोले करीब 20 साल बाद !

आदरणिय पाठकगण,

अभी कुछ समय पहेले रेडियो श्रीलंका की वहाँ की ही रहेनेवाली वैसी निवृत पर केझ्यूल उद्दघोषिका श्रीमती पद्दमिनी परेरा एक लम्बे समय भारतमें घूम कर फ़िर सिलोन पहोँच कर रेडियो पर प्रवृत्त हुई । वे जब भारतमें थी, उस दौरान अपनी सुविधा अनुसार कई श्रोतालोगो से मिली (जिसमें मैं शामिल नहीं हूँ ।) और रेडियो श्रोता संधकी सभाओमें भी गयी और रेडियो श्रीलंका से जूडे कई पूराने लोगो से मिली । उनमें श्री गोपाल शर्माजी तो स्वाभावीक ही है पर श्री अमीन सायानी साहब से भी मिली और उनकी व्यस्तता होते हुए भी आगंतूक को उनकी और से प्राप्त होते हुए बहूमान के स्वानुभवसे बहोत ही प्रभावीत हुई और उनके साथ की गयी बातचीत की ध्वनि-मूद्री अपने साथ ले गयी जो दि. 21 अगस्त, 2009 की बात थी । और परसों यानि दि. 29 अक्तूबर, 2009 के दिन सुबह 8 बजे अपने नियमीत कार्यक्रम को स्थगीत करके उसके स्थान पर सुनवाई । हालाकी मैं रेकोर्ड तो नहीं कर सका । पर 1989 में सिलोन रेडियो से सिबाका गीतमाला के साप्ताहीक प्रसारण की समाप्ती के बाद कुछ समय श्री मनोहर महाजन द्वारा प्रस्तूत एक अगरबत्ती बनानेवालो द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमके दौरान उस उत्पादन के विज्ञापन तक करीब एक साल तक सीमीत रही थी । बादमें उनके जन्मदिन पर कुछ साल पहेले एक प्रायोजित कार्यक्रमकी पूरानी रेकोर्डिंग से सिर्फ शुरूके उद्दबोधन को ही प्रसारित किया गया था । तो यह तो एक चमत्कार जैसा ही लगा । रेडियो श्रीलंका से जूडे कई लोगोमें से सिर्फ़ कुछ ही लोगोने उस संस्था को प्यार और आदर से याद रख़ा है, उनमें श्री गोपाल शर्माजी, श्री अमीन सायानी सहब और उनके अलावा शी रिपूसूदन कूमार औलावादी और श्री मनोहर महाजन प्रमूख़ है ।
पद्द्मिनीजी और अमीन सायानी साहब को धन्यवाद और बधाई ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।

प्यार-मोहब्बत के गानों की दुपहरियों की साप्ताहिकी 29-10-09

त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम के कारण 12:30 बजे से जुड़ते है।

दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में हमेशा की तरह शुरूवात में 10-11 फ़िल्मों के नाम बता दिए गए फिर बताया गया एस एम एस करने का तरीका। पहला गीत उदघोषक की खुद की पसन्द का सुनवाया गया ताकि तब तक संदेश आ सके। फिर शुरू हुआ संदेशों का सिलसिला और इन संदेशों को 12:50 तक भेजने के लिए कहा गया ताकि शामिल किया जा सकें।

शुक्रवार को सत्तर अस्सी के दशक की यह फ़िल्में रही- बाबू, एक चादर मैली सी, आहिस्ता-आहिस्ता, मनचली, महबूबा, दुल्हन, गीत गाता चल, अपनापन, आपकी कसम, पलकों की छाँव में। इन फ़िल्मों के गीत सुनवाने आईं शहनाज़ (अख़्तरी) जी। शनिवार को नई फ़िल्में रही - चमेली, रेफ़्यूज़ी, अशोका, बेटा, परिणीता, चीनी कम, बीवी नं 1, विरासत, तेज़ाब, राम लखन, दिल तो पागल है, इन फ़िल्मों के गीत सुनवाने आईं रेणु (बंसल) जी। रविवार को नई फ़िल्में रही - ग़ुलाम, ओंकारा, हम, देवदास। सोमवार को कार्यक्रम विशेष रहा। इस दिन याद किया गया दो महान हस्तियों को शायर गीतकार - साहिर लुधियानवी और फ़िल्मकार व्ही शान्ताराम को साथ ही जन्मदिन पर याद किया अभिनेत्री रवीना टंडन और संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर को। इनकी फ़िल्में लेकर शहनाज़ (अख़्तरी) जी आई और श्रोताओं ने भी इनके लोकप्रिय गीतों के लिए संदेश भेजे -

साहिर लुधियानवी की नई पुरानी फ़िल्में लैला मजनूँ, काजल, कभी-कभी, गुमराह और हमराज़ का यह गीत -

न मुँह छुपा के जिओ और न सर झुका के जिओ

व्ही शान्ताराम की फ़िल्म नवरंग का यह गीत - आधा है चन्द्रमा रात आधी

अभिनेत्री रवीना टंडन की फ़िल्में - पत्थर के फूल, बड़े मियाँ छोटे मियाँ और उनका मोहरा फ़िल्म से यह लोकप्रिय गीत - तू चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त

संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर की फ़िल्म लेकिन का यह लोकप्रिय गीत - यारा सिलीसिली

सुनवाया गया। व्ही शान्ताराम की दो आँखें बारह हाथ फ़िल्म को शामिल नहीं किया तो अच्छा नहीं लगा। उनकी दो-तीन फ़िल्में शामिल होती तो अच्छा लगता क्योंकि न केवल वो वरिष्ठ फ़िल्मकार है बल्कि सिनेमा के विकास में भी उनका योगदान है।

मंगलवार को सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में रही - कटी पतंग, निकाह, बाबी, दूसरा आदमी, दिल है कि मानता नहीं, साजन, अभिमान, कर्ज़। इनके सीडी लेकर आईं मंजू (द्विवेदी) जी।

बुधवार को मुझ से शादी करोगी, ओम शान्ति, रब ने बना दी जोड़ी, सिंह इज़ किंग, जैसी नई फ़िल्मों के साथ आईं मंजू (द्विवेदी) जी। इस दिन 12:15 से क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ फिर 12:30 बजे से हम केन्द्रीय सेवा से जुड़े। गुरूवार को लाल पत्थर, महल, अलबेला, किनारा, अभिलाषा, भूत बंगला, ममता, कश्मीर की कलि, नमक हराम - इनके सीडी लेकर आईं शायद राजुल जी

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बताए गए और फिर से बताया गया एस एम एस करने का तरीका। एक घण्टे के इस कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10-11 फ़िल्मों के नाम बताए गए। इस कार्यक्रम में यह सप्ताह महिला सप्ताह रहा, हर दिन उदघोषिका (महिला उदघोषक) पधारी। आवाज़ों में विविधता होती तो अच्छा लगता एकरसता अच्छी नहीं लगी।

इस सप्ताह भी पुराने पचास के दशक से लेकर आज के दौर की फ़िल्में शामिल रही, यानि हर उमर के श्रोता के लिए रहा यह कार्यक्रम। अलग-अलग उम्र के श्रोता के लिए अलग-अलग दिन जैसे शनिवार, रविवार और बुधवार सिर्फ नए गाने, इस तरह हर दिन एक दौर के गाने। हर दिन के लिए अच्छी फिल्में चुनी गई।

अधिकतर संदेश लोकप्रिय गीतों के लिए आए इसीसे इन फ़िल्मों के कम लोकप्रिय गीत सुनवाए नहीं जा सके। कभी कुछ गीत लम्बे होने से 10 से कम गीत बजे। अधिकतर रोमांटिक गीत सुनवाए गए पर कुछ अलग तरह के गीतों के लिए भी संदेश आए जैसे -

आदमी मुसाफ़िर है आता है जाता है (फ़िल्म अपनापन)

नाम गुम जाएगा (किनारा)

इस सप्ताह लगा संदेशों की संख्या बढी, हर गाने के लिए औसत 8 संदेश आए। सप्ताह भर इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने। तकनीकी सहयोग रहा प्रदीप शिन्दे, सुभाष कामले, सुनील भुजबल, विनायक तलवलकर…

यहां एक और बात, यह नई उदघोषिकाएं अपना नाम तक बताने में इतना शर्माती है कि ठीक से हम सुन नहीं पाते, अरे भई... अपना और साथियों का नाम जोर-शोर से बताया करो आखिर विविध भारती का प्रसारण पहुंचा रहे हो।

1:00 बजे शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम अनुरंजनि में शुक्रवार को वेंकटेश गौड़चिन्दी का गायन सुनवाया गया, राग मुल्तानी में ख़्याल, राग पूरिया और राग यमन में तराना सुनवाया गया जिसमें हारमोनियम पर संगत की मधुसूदन पंडित ने और तबले पर संगत की भावसाहब दीक्षित ने। शनिवार को विनायक पाठक का तबला वादन तीन ताल में, जगन्नाथ और साथियों का बजाया शहनाई वादन - राग अहीर भैरव और भैरव सुनवाया गया। रविवार को के जी गिंडे का गायन सुनवाया गया, राग भीमपलासी के बाद छोटी-छोटी बंदिशे सुनवाई गई - राग यमन में धुपद, धमाल, राग ललित में होरी धमाल की जिसके लिए हारमोनियम पर संगत की थी गुरूदत्त हेपलेकर और तबले पर लोकेश शमसी ने। सोमवार को पंडित बी वी पलोसकर का गायन सुना राग आसावरी, केदार, गौड़ सारंग, हमीर, मियाँ की मल्हार, मालकौंस, विभास में ख़्याल और राग तिलक कामोद में -

कोयलिया बोले अमवा की डाल पर

सुनकर वाकई आनन्द आ गया, मुझे तो बचपन की याद आ गई, मैनें बचपन में यह सीखा था। मंगलवार को वीरेश्वर गौतम का उप शास्त्रीय गायन सुनवाया गया। सबसे पहले सुनवाई गई राग मिश्र गारा में ठुमरी -

गुज़र गई रतिया पिया नहीं आए

उसके बाद हमने आनद लिया बारहमासी और दादरा का। वादक कलाकारों के नाम नहीं बताए गए।

बुधवार को शरत केलवडे का गायन सुनवाया गया, राग रस रंजनि में बोल थे - अबुहन आए पिया, राग मधु रंजनि में बोल थे - आए बलमा मोरे अंगना जिसके लिए हारमोनियम पर संगत की थी गुरूदत्त हेपलेकर और तबले पर विश्वनाथ मिश्र ने। गुरूवार को उप शास्त्रीय गायन सुनवाया गया - माधुरी देवलकर की आवाज़ में राग काफ़ी में ठुमरी जिसके बोल थे - होली खेलत गिरधारी और सविता देवी की आवाज़ में मिश्र काफ़ी में होरी - उड़त अबीर गुलाल।

सप्ताह में उप शास्त्रीय गायन और गायन में एक दिन में कम से कम तीन और अधिक से अधिक आठ प्रस्तुतियाँ रही। छोटी-छोटी बंदिशें सुनने में भी आनन्द आया। लेकिन एक बात अखर गई वादन केवल एक ही दिन सुनवाय गया।

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम जो प्रायोजित था। इस कार्यक्रम और अन्य कार्यक्रमों के केवल प्रायोजक के विज्ञापन ही प्रसारित हुए। पत्रों पर आधारित फ़रमाइशी गीतों में शुक्रवार को पुरानी नई फ़िल्मों के अधिक लोकप्रिय कम लोकप्रिय मिले-जुले गीत सुनवाए गए - कल आज और कल, प्रिंस, पराया धन, आदमी खिलौना है, हवालात, पत्थर के फूल, लुटेरे, बड़े मियाँ छोटे मियाँ। शनिवार को सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्मों जैसे शान, मर्यादा, अमर अकबर एंथोनी, प्रेमरोग और अंतिम दौर में दो-तीन नई फ़िल्मों जैसे क्यों हो गया न के गीत भी सुनवाए गए। रविवार को तलाश, दुश्मन, जुगनू, डिस्को डांसर, यादों की बारात, पराया धन, दूसरा आदमी, अलबेला, साथिया फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। सोमवार की फ़िल्में रही - पिया का घर, पुलिस पब्लिक, पराया धन, हमजोली, ख़ानदान, जब वी मेट। मंगलवार को अधिकतर सत्तर अस्सी के दशक के गीत शामिल रहे - मस्ताना, देस परदेस, धर्मात्मा, मन मन्दिर, लगान, विजयपथ, हथकड़ी, हमराज़ और इस तरह एकाध नई फ़िल्म के गीत भी सुनवाए गए।

इस तरह पिछली सदी यानि सत्तर अस्सी के दशक के गीत सुनवाए गए एकाध गीत साठ और नब्बे के दशक से भी था। अंतिम दौर में दो-तीन नई फ़िल्मों के गीत भी सुनवाए गए।

बुधवार और गुरूवार को श्रोताओं के ई-मेल से प्राप्त संदेशों पर फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए। इस सप्ताह भी कुछ पुरानी फ़िल्मों के गीत अधिक सुनवाए गए। ज्यादातर लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। अधिकतर गीत एक-एक मेल प्राप्त होने पर ही सुनवा दिए गए, अभी भी मेल संख्या बढी नहीं है जबकि पत्रों की स्थिति पहले जैसी ही रही। देश के दूरदराज से कई फ़रमाइशी पत्र और हर पत्र में नामों की लम्बी सूची।

सप्ताह भर सुनवाए गए गीतों में ज्यादातर गीत रोंमांटिक ही रहे, और रोमांटिक गाने भी ऐसे…

चुपके से दिल दे दे नई ते शोर मच जाएगा

हाय रे हाय नींद नहीं आए चैन नहीं आए

कमाल की पसन्द है हमारे श्रोताओं की भी। मुझे याद आ गई फ़िल्म नरम-गरम जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा को स्वरूप सम्पत से प्यार हो जाता है और वो गैरेज काम-काज छोड़ कर विविध भारती के प्यार-मोहब्बत के गाने सुनते है।

हालांकि कई बढिया विषयों पर उम्दा गीत है फ़िल्मों में और कुछ श्रोता ऐसे गीतों के लिए अनुरोध भी करते है। जैसे बुधवार को संयोजन बड़ा अच्छा रहा - आपकी क़सम का यह गीत -

ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते है जो मक़ाम
वो फिर नहीं आते

रोमांटिक गाना भी अच्छा रहा - फ़िल्म अँखियों के झरोके से का शीर्षक गीत। इसके अलावा इन फ़िल्मों के गीतों से विविधता बनी रही - दिल-ए-नादाँ, अर्पण, कटी पतंग, प्यार झुकता नहीं और नई फ़िल्मों में धड़कन और स्लम डाग करोड़पति का - जय हो

वैसे सप्ताह भर में एकाध गीत प्यार-मोहब्बत का बड़ा अच्छा भी सुनवाया गया, विजयपथ फ़िल्म से -

राह में उनसे मुलाक़ात हो गई
जिससे डरते थे वही बात हो गई

कम सुने गीत भी सुनवाए गए जैसे हवालात फ़िल्म से शैलेन्द्र सिंह का गाया यह गीत -

शायद तू मुझसे प्यार करती है
लेकिन ज़माने से डरती है

नोक-झोक, छेड़छाड़ के गीत भी शामिल थे जैसे -

बच के जाने न दूँगी दिलदार तेरी मेरी लागी शरत
खाली गाएगें नैनो के वार तेरी मेरी लागी शरत (फ़िल्म - प्रिंस)

गुरूवार को भी अच्छे मिलेजुले गीतों के लिए मेल आए जैसे नई फ़िल्म के लिए पंडित जसराज का गाया गीत और शारदा की आवाज़ में पुरानी फ़िल्म सूरज से -

देखो मेरा दिल मचल गया

चाहे ई-मेल हो, एस एम एस या पत्र एक बात देखी गई दोनों ही फ़रमाइशी गीतों के कार्यक्रम में देश के कई भागों से फ़रमाइश आई जैसे राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश

दोपहर के इस पूरे प्रसारण के दौरान संदेश भी बहुत बार प्रसारित हुए जिसमें यह बताया गया कि फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अपनी पसन्द का गाना सुनने के लिए ई-मेल और एस एम एस कैसे करें।

दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

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