रेडियोनामा पर सुरों का धुनों का सिलसिला चल पड़ा है तो मैनें सोचा क्यों न आज ऐसे ही एक कर्यक्रम की चर्चा की जाए - स्वर सुधा
इस कार्यक्रम का प्रसारण समय भी बहुत अच्छा था। शाम में ६:४५ से ७ बजे तक जिसके तुरन्त बाद फ़ौजी भाइयों की जयमाला शुरू होती थी। उन दिनों सात बजे समाचार प्रसारित नहीं होते थे।
15 मिनट के इस कार्यक्रम में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के किसी राग के बारे में मुख्य जानकारी दी जाती थी जैसे राग की उत्पत्ति, जाति, मुख्य स्वर और गाने तथा बजाने का समय।
इस कार्यक्रम की विशेषता ये थी कि इसमें किसी राग में गायन और वादन दोनों प्रसारित किया जाता था। इससे रोज़ एक राग का पूरा परिचय मिल जाता था और पूरा आनन्द लिया जा सकता था।
स्वर सुधा के शुरू में राग का नाम बताने के बाद मुख्य बातें बाताई जाती फिर उस राग पर आधारित एक फ़िल्मी गीत सुनवाया जाता फिर ग़ैर फ़िल्मी गीत सुनवाया जाता फिर वही राग किसी साज़ पर सुनवाया जाता।
विवरण भी पूरा बताया जाता था जैसे गायन में फ़िल्म का नाम और गायक कलाकार का नाम, ग़ैर फ़िल्मी गीत के गीतकार या शायर का नाम और गायक कलाकार का नाम तथा वादन के लिए साज़ का नाम और वादक कलाकार का नाम।
स्वर सुधा कार्यक्रम लंबे समय तक नहीं चला। हैद्राबाद में क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण यहां प्रसारित होना बंद हुआ या विविध भारती से ही बंद हुआ इसकी ठीक से जानकारी मुझे नहीं है।
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Monday, December 3, 2007
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4 comments:
अन्नपूर्णा जी, आपके और पीयूष जी के हम बहुत आभारी है कि आप लोगों के जरिये हमें उन पुराने कार्यक्रमों की याद ताजा कर पाते हैं जिन्हें या तो हमने सूना नहीं था या फ़िर वो हमारे दिमाग से विस्मृत होने लगे हैं. यद्यपि स्वर-सुधा मैंने कभी सुना नही क्योंकि उस समय आकाशवाणी पटना का युववाणी कार्यक्रम आता था.पर मुझे लगता है ये कार्यक्रम काफी सुरीला होता होगा.
धन्यवाद.
अन्नपूर्णाजी,
यह कार्यक्रम का नाम मूझे याद है । पर यह कार्यक्रम जब बंध हुआ था, उस समय लोकल वेरिएसन शायद नहीं था । एड एजंसीझ द्वारा निर्मीत प्राजोजीत कार्यक्रम भी जब शुरू हुए तब मुम्बई पूणे और नागपूर से शुरूमें सिर्फ़ शनिवार और रविवार के दिन दो पहर १२.३० से २.०० बजे तक विविध भारती की दो सभाओ के समाप्ती और शुरूआत के बीच ही आते थे । बादमें जैसे जैसे इस तरह के प्रायोजित कार्यक्रम बढ़ते गये विविध भारती कार्यक्रमों के प्रसारणमें स्थानिय कक्षाकी तकलीफे़ बढ़ती चली गयी । सबसे पहेले तो १५ मिनिट के समाचार बुलेटिन्स स्थानिय केन्द्रों से बन्ध होने लगे और जब प्रायोजित कार्यक्रम नहीं भी होता चित्रपट संगीत या क्षेत्रीय चित्रपट संगीत या नाट्य संगीत या सुगम संगीत के प्रसारण शुरू हुए । और कभी कभी तो लोगो की चाहना के नाम से ही केन्द्रीय विविध भारती सेवा के कार्यक्रमोंमें रूकावट शुरु हुई । और कभी कभी स्थानिय कक्षा पर इस बात की कुछ श्रोताओंने पेशगी की तब विविध भारती नाममेंसे विविध शब्द का अर्थ भी अलग अलग, ऐसा समजा़ने की कोषिश की गयी । और कफी महान लोगो को भी कहीं कहीं कोनसे कार्यक्रम स्थानिय या केन्द्रीय है, वह पता नहीं चलता है । इसका ताझा उदाहरण श्रीमती निम्मी मिश्रा द्वारा अदाकार सुधीर दलवी साहब से की गयी दूर भाषी बात चीत से पता चलेगा की उन्होंने मुम्बई के स्थानिक कार्यक्रम बेला के फूल को विविध भारती का सोने से पहेले का अन्तिम कार्यक्रम बताया और तब भी निम्मीजी या उनके कार्यक्रम अधिकारी ने इसका सम्पादन नहीं किया या बात चीत के दौरान निम्मीजीने उनसे आपकी फरमाईश बुलवाकर संपादन नहीं किया । क्योंकी जब लधू तरंग से "ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम " इस तरह की उद्दधोषणा पूर्व ध्वनि मुद्रीत कार्यक्रमों के जमाने में आती थी, उसको मुम्बई, दिल्ही ओर और भी कई स्थानिय केन्द्रो से स्थानिय सम्पादनमें हटाया जाता था ।
पियुष महेता ।
मुझे लगता है बम्बई में अभी भी मैने यह कार्यक्रम यदाकदा सुना है,
अजीत जी शुक्रिया !
अनीता जी अगर आपको लगता है यही कार्यक्रम या ऐसा ही कार्यक्रम अब भी प्रसारित होता है तो कृपया इसकी अधिक जानकारी दीजिए।
पीयूष जी आपने विविध भारती के केन्द्रीय और क्षेत्रीय कार्यक्रमों के बारे में अच्छी जानकारी दी।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।