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Tuesday, December 25, 2007

रेडियो की जान मानी हस्‍ती गोपाल दास जी का निधन


कल जयपुर से राजेंद्र प्रसाद बोहरा जी का अंग्रेज़ी-मेल आया ।
उन्‍होंने लिखा था--' भले कोई भी प्रसिद्ध ब्रॉडकास्‍टर गोपालदास जी के निधन पर आंसू नहीं बहाये, भले उनके निधन की ख़बर आज के रेडियो चैनलों पर जगह ना बना सके, पर रेडियोवाणी पर गोपालदास के निधन की ख़बर ज़रूर जानी
चाहिए ।
कल यानी चौबीस दिसंबर को गोपालदास जी का जयपुर में निधन हो गया ।
अगर आप रेडियो के अटूट प्रेमी हैं तो गोपालदास जी के नाम से अवश्‍य परिचित होंगे । अगर आप पत्रकारिता और प्रसारण के विद्यार्थी रहे हैं तो भी गोपाल दास जी का नाम आपके लिए अपरिचित नहीं होगा । गोपाल दास जी भारत में रेडियो प्रसारण के शिखर-पुरूषों में से एक रहे हैं । अभी तीन अक्‍तूबर को विविध भारती की स्‍वर्ण जयंती के मौक़े पर ये तय किया गया कि विविध भारती के सबसे कम उम्र के उद्घोषक यानी मेरी भारत में रेडियो प्रसारण के वयोवृद्ध व्‍यक्तिव से बात कराई जाये और पुरानी यादें दोहराई जाएं । सितंबर के आखिरी दिन रहे होंगे । हमारे सहायक केंद्र निदेशक महेंद्र मोदी ने विविध भारती के स्‍टूडियो से जयपुर फोन लगाया गया । गोपालदास जी से कहा गया कि विविध भारती की स्‍वर्ण जयंती के मौक़े पर उनके आशीर्वचन रिकॉर्ड करने की हमारी तमन्‍ना है । वे विविध भारती के शुरूआती केंद्र निदेशक जो रहे हैं । उन्‍होंने दो टूक कह दिया--मैं कभी ये नहीं चाहता कि मेरे बोले को संपादित किया जाये । आप बता दें कि मैं कितने मिनिट बोलूं । जितना आपको चाहिए उससे ज्‍यादा बिल्‍कुल नहीं बोलूंगा और ना ही कम बोलूंगा । उस समय हमारे साथ विविध भारती से लंबे समय से जुड़े रहे प्रोड्यूसर लोकेंद्र शर्मा भी मौजूद थे । फोन उनको पकड़ा दिया गया कि आप ज़रा गोपाल दास जी को पुरानी यादें दिलाईये । चौरानवे साल के गोपाल दास जी की स्‍मृतियों को ताज़ा करना ज़रूरी था । ख़ैर बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो गोपालदास जी लोकेंद्र जी को ना जाने कौन कौन सी पुरानी बातें याद दिलाते रहे और ताकीद कर दी कि इसे रिकॉर्ड ना किया जाए । इस दौरान कोई एक कार्यक्रम था जिसका नाम उन्‍हें याद नहीं आया । तो उन्‍होंने निर्देश दिया कि दिल्‍ली में सत्‍येंद्र शरत को फोन लगाईये और उनसे पूछिये । फिर मुझे बताईये । उसी के बाद मैं अपनी रिकॉर्डिंग करूंगा ।

ज़ाहिर है कि बात अगले दिन के लिए मुल्‍तवी हो गयी । अगले दिन शायद मैं विविध भारती में नहीं था । और ना ही गोपाल दास जी सवाल जवाब की कोई गुंजाईश थी । उन्‍होंने कह दिया था कि वे लगातार पांच मिनिट बोलेंगे । और सारी यादें दोहरा देंगे । ख़ैर ये रिकॉर्डिंग कर ली गयी । ऐसी नौबत ही नहीं आई कि मेरी उनसे बातचीत हो सके । तीन अक्‍तूबर को विविध भारती से सुबह सवा नौ बजे ये रिकॉर्डिंग प्रसारित की गयी । और देश भर के लोग दंग रह गये कि हमने कहां से रेडियो की इतनी पुरानी हस्‍ती को खोज लिया । और उनके आर्शीवचन भी लिए ।

बहरहाल उस दिन की कुछ और यादें आपके साथ दोहराना चाहूंगा जब गोपालदास जी लोकेंद्र जी से पुरानी यादें बांट रहे थे । और लोकेंद्र जी के पास हां हां करने के सिवा और कोई रास्‍ता नहीं था । बीच में उन्‍हें एकाध वाक्‍य ही बोलने का मौक़ा मिल रहा था । हम छह सात लोग स्‍टूडियो में थे । शाम सात साढ़े सात बजे का वक्‍त । गोपालदास जी की बैरीटोन आवाज़ स्‍टूडियो के स्‍पीकर पर गूंज रही थी । फोन पर भी इस आवाज़ के दाने स्‍पष्‍ट महसूस हो रहे थे । एकदम कड़क आवाज़ । बोलने का एकदम शाही अंदाज़ । बहुत तसल्‍ली से रूक रूक कर बोलना । एक प्‍यारी सी आत्‍मीयता । और एक बेहद अदृश्‍य मासूमियत । जब वो कहीं हल्‍का सा हंसते तो लगता जैसे कोई मासूम बच्‍चा हंस रहा हो । कितनी कितनी बातें उन्‍होंने याद कीं कि किस तरह विविध भारती को दूरदर्शन परिसर के एक गैरेज से शुरू किया गया था । छोटी सी जगह । देश भर से बुलवाया गया कार्यक्रम स्‍टाफ । जिन दिनों गोपाल दास जी को विविध भारती के पहले निदेशक के तौर पर आमंत्रित किया गया वो विदेश में थे । उन्‍हें खास तौर पर उस असाइनमेन्‍ट को छोड़कर यहां आने को कहा गया था ।
शुरूआती कार्यक्रमों के कंसेप्‍ट से लेकर एक्‍जीक्‍यूशन तक सब कुछ गोपालदास जी और उनकी टीम पर निर्भर था । ये कहा जा सकता है कि विविध भारती के बचपन को संभालने वालों में गोपालदास जी प्रमुख थे ।

उच्‍चारण की शुद्धता की मिसाल था उनका बोलना । शब्‍दों का कमाल का चयन और गजब का आत्‍मविश्‍वास । एक तरह की ठसक भी थी उनके बोलने में । राजेंद्र जी ने लिखा है-- 'गोपालदास जी जब बोलते थे तो लगता था कि फूल झर रहे हों ।' ............. अगर मुमकिन हुआ तो मैं उनकी पांच मि. वाली रिकॉर्डिंग यहां चढ़ाने की व्‍यवस्‍था करूंगा । ताकि आप भी इस आवाज़ से वाकिफ हो सकें । उनकी हस्‍ती ऐसी थी कि साहित्‍य हो या कोई और क्षेत्र, उनके बुलाने पर बड़ी सी बड़ी हस्तियां आकाशवाणी के स्‍टूडियो में चली आती थीं ।

गोपालदास जी का जन्‍म 29 सितंबर 1914 को हुआ था । आकाशवाणी में उनका कार्यकाल सन 1943 से लेकर सन 1973 तक यानी तीस सालों जितना लंबा रहा है । वे भारत सरकार के principal information officer के तौर पर सन 1955 से लेकर सन 1957 तक संयुक्‍त राष्‍ट्र में भी रहे थे । सन 1957 में विविध भारती की स्‍थापना से ठीक पहले उन्‍हें भारत बुलवा लिया गया था और विविध भारती को अपने पैरों पर खड़े करने की जिम्‍मेदारी सौंप दी गयी थी । रेडियो से रिटायर हो जाने के बाद उन्‍हें कथक केंद्र दिल्‍ली का निदेशक बना दिया गया था । जहां उन्‍होंने 1974 से लेकर 1978 तक काम किया । सन 1982 से लेकर 1985 तक वे आकाशवाणी के producer emiratus रहे और विशेषज्ञों की एक टीम का नेतृत्‍व करते हुए जंजीबार गये जहां उन्‍होंने इस देश के लिए रेडियो और टी वी का पूरा ढांचा तैयार किया ।

गोपाल दास जी ने अपने संस्‍मरण 'जीवन की धूप छांव' शीर्षक से लिखे हैं । इसे संस्‍मरणों की एक अनमोल पुस्‍तक माना जाता है । भारत में दूरदर्शन के आगमन की योजना तैयार करने वाली कमेटी में भी गोपालदास जी का योगदान रहा है । गोपालदास जी ने कहानियां और नाटक भी लिखे । उन्‍होंने आकाशवाणी पर एक पुस्‍तक लिखी थी ।

राजेंद्र जी ने अपने मेल में लिखा है कि गोपालदास जी राजस्‍थान पत्रिका में दस सालों तक दूरदर्शन के कार्यक्रमों की समीक्षा लिखते रहे थे और उनका ये कॉलम काफी लोकप्रिय रहा था ।

आज मीडिया में जिस खिचड़ी भाषा का इस्‍तेमाल किया जा रहा है उससे वो काफी नाराज़ थे । राजेंद्र जी ने अपने मेल में लिखा है कि उनके अखबार की भाषा पर ऐतराज़ करते हए एक बार गोपाल दास जी ने उन्‍हें फोन करके कहा था--राजेंद्र जी ये कैसी भाषा लिख रहे हो । और राजेंद्र जी का जवाब था--सर हमें माफ नहीं किया जा सकता क्‍योंकि हम जानते हैं कि हम क्‍या कर रहे हैं ।

रेडियो के सभी चाहने वालों की ओर से गोपालदास जी को विनम्र श्रद्धांजलि ।


gopal_das, गोपाल_दास

10 comments:

Rajendra said...

धन्यवाद यूनुस जी. रेडियो नामा पर गोपाल दास जी को श्रधांजलि देने के लिए. उनकी बेटी ने बताया की कल शाम उनका निधन हुआ और कल सुबह ही उन्होंने अपने निधन के बाद अखबार में छापने के लिए शोक संदेश संदेश का मजमून लिख कर दे दिया था. उन्हें शायद भान हो गया था कि अब चलने कि बेला है. ख़ुद उनके हाथों से लिखा मजमून इस प्रकार है : "पुराने प्रसार कर्मी गोपाल दास को मालिक ने २४ दिसम्बर २००७ को अपने चरणों में बासा दे दिया. उनके प्रियजनों, पुराने साथी संबंधियों और हितेषियों से निवेदन है कि उनकी आत्मा कि शान्ति के लिए प्रार्थना करें. तीये कि बैठक नहीं होगी".
आख़िर तक गोपालदास जी जीवट वाले व्यक्तित्व बने रहे.

इरफ़ान said...

ग़ोपालजी को मेरी भी विनम्र श्रद्धांजलि. इस तरह रेडियो के एक दौर का अवसान हो गया. कृपया बताएँ कि उनकी लिखी किताबें कहाँ से छपी हैं और कैसे मिल सकती हैं. कमाल है मरने वाले ने अपना शोक संदेश ख़ुद ही लिख कर जारी करवाया. कहाँ मिलेंगे अब ऐसे लोग.

और हाँ आपने बडी ही ज़िम्मेदारी से यह सूचना एक संस्मरणांजलि की शक्ल में यहाँ पेश की, इससे आपकी भी लगन और आपका जुडाव सामने आता है. इसे कहते हैं काम के प्रति सच्चा स्नेह.

महेंद्र मोदी का नाम बीच में आया तो मुझे यह भी पता चल पाया कि महेंद्रजी आजकल बंबई में हैं. उन्हें मेरी याद दिलाएं और नमस्ते कह दें.

अफ़लातून said...

धन्यवाद, युनुस भाई एक माहन शख्सियत से तार्रुफ़ कराने के लिए । राजेन्द्रजी की टिप्पणी से पता चलता है कि उन्हें (१) मृत्यु का भय नहीं था तथा (२) वे अपनी मृत्यु के पश्चात कर्मकाण्ड (तीये की बैठक) नहीं चाहते थे ,प्रार्थना के हक़ में थे। उनकी स्मृति में हम प्रार्थना करें ।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

आपने गोपालदास जी को इतनी बढिया तरह श्रद्धांजलि दी है, बहुत अच्छा लगा. वे भारतीय प्रसारण के शीर्ष पुरुष थे. लेकिन हम तो एक स्मृति विहीन समय में जी रहे हैं. आज का प्रसारण जगत भला उन्हें याद करने का स्मय कैसे निकाल सकता है?

Anonymous said...

मैंने गोपाल जी के बारे में जितना भी जाना वो सब आप जैसों की कलम से ही जाना.

मेरी और मेरे परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि !

अन्नपूर्णा

राजीव जैन said...

गोपालदासजी को मेरी भी श्रदधांजलि

पर जिन्‍होंने आपको मेल भेजा वे संभवत श्री राजेंद्र बोडा होंगे, जिन्‍हें राजेंद्र बोहरा लिख दिया गया है।

Rajendra said...

राजीव भाई नाम में क्या धारा है? हम उसे याद करें जिनके जाने से बहुत कुछ रीता हो गया है.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Diwangat Shri Gopa; Das ji ko meri Shradhha mishrit
Vinamra anjali --

Main yatra per hoon isliye Hindi fonts istemal nahee
ker payee hoon uska khed hai.

-- Lavanya

Nikhil said...

बहुत-बहुत धन्यवाद गोपाल जी के विषय में आपने बताया.....हम तो मीडिया में हैं, रेडियो के मुरीद भी, फ़िर भी कहाँ जानते थे इनके विषय में...इनकी आवाज़ सुनने की तमन्ना भी पूरी करें...
निखिल आनंद गिरि

Nikhil said...

www.hindyugm.com

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