अजी नही ! हम किसी तब्बस्सुम टीचर की बात नहीं कर रहे है। हम तो आपको एक चुटकुला बताने जा रहे है जिसे रेडियो पर तब्बस्सुम से सुना था।
चुटकुला उस दौर का है जब रेडियो तो देश के कोने - कोने में गूंज रहा था पर टेलीविजन अभी नया ही था और देश के दूरदराज के लोग इससे परिचित नहीं हुए थे।
चुटकुला कुछ ऐसा है -
एक छोटे से शहर में एक स्कूल में एक क्लास में छोटे से बच्चे ने अपने टीचर से पूछा -
रेडियो और टेलीविजन में क्या फर्क है ?
टीचर ने सोचा कि बच्चे को अच्छी तरह समझाना चाहिए इसीलिए उन्होनें उदाहरण दे कर बताना चाहा और कहने लगे -
देखो बेटा अगर मैं और तुम्हारी ताई भीतर कमरे में झगडा कर रहे हो और बाहर तुम्हे सुनाई दे तो वह रेडियो है और अगर हम झगड़ते हुए बाहर आ जाए और तुम हमें झगड़ते देखो तो वह टेलीविजन है।
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Wednesday, December 12, 2007
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2 comments:
अन्नपूर्णा जी,
आपने तबस्सुम जी का अच्छा चुटकुला सुनाया.
मैंने तबस्सुम जी को उतना नहीं सुना है. पर मुझे याद आता है एक प्रायोजित कार्यक्रम जिसे पारले जी बिस्किट बनाने वालों ने. नाम टू मुझे याद नहीं है, पर उसमे तबस्सुम जी एक छोटी बच्ची की आवाज़ निकालती थीं और साथ मे रहते थे कोई गोपाल अंकल. मुझे तो बहुत दिनों तक लगता रहा कि ये तो किसी बच्ची की ही आवाज़ है. जब मुझे पता चला तो मैं दंग रह गया. उस प्रोग्राम में बच्चों के द्वारा भेजे गए चुटकुले, कविताएँ पढी जाती थीं.
धन्यवाद अजीत जी !
ये कार्यक्रम मैं भी सुनती थी जिसमे तबस्सुम उस छोटी सी बच्ची का नाम तरन्नुम बताया करती थी .
अन्नपूर्णा
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