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Saturday, October 6, 2007

विज्ञापन जो भुलाए नहीं भूलते

विज्ञापनों से श्रोताओं को परिचित करवाया रेडियो सिलोन ने। सबसे अधिक विज्ञापन सवेरे ८ से ९ तक प्रसारित होने वाले आप ही के गीत कार्यक्रम में प्रसारित होते। इस कार्यक्रम में नए फ़िल्मी गीत बजते और वो भी फ़रमाइश पर।

साठ और सत्तर के दशक का तो फ़िल्मी संगीत बहुत ही बढिया रहा। ऐसे में साथ प्रसारित होने वाले विज्ञापनों को भूलना कठिन ही है। हर गीत के बाद विज्ञापन प्रसारित होते। विज्ञापनों की संख्या तो आज की तुलना में कम ही थी पर बार-बार प्रसारित होते थे।

कुछ विज्ञापन तो हर दूसरे तीसरे गीत के बाद आते। कभी-कभी तो लगातार हर गीत के बाद आते। मुझे अच्छी तरह से याद है तीन विज्ञापन जिसमें से दो तो अक्षरक्षर याद है। अक्सर ये तीनों विज्ञापन गीत समाप्त होते ही एक के बाद एक आते -

पहला सरकारी विज्ञापन परिवार नियोजन का जो इस तरह है -

फ़िल्मी गीत समाप्त होते ही लगभग उसी से जुड़ कर आवाज़ आती बस में कंडक्टर द्वारा बजाई जाने वाली घण्टी की जिसके बाद बस रूकने की आवाज़ फिर बस अड्डे का शोर। तभी कंडक्टर कहता -

जगह नहीं है, जगह नहीं है, इतने ज्यादा बच्चों के साथ किसी ख़ाली बस का इंतज़ार करें।

फिर घण्टी की आवाज़ और बस चली जाती। फिर महिला स्वर उभरता -

बेटियां हो या बेटे, बच्चे दो ही अच्छे

तब ये सब साथ-साथ हम भी बोला करते और मज़ा लेते। इसकी गंभीरता तब तो समझ में नहीं आती थी पर आज विस्फ़ोटक जनसंख्या में समझ में आता है।

इसी के पीछे दूसरा विज्ञापन आता साड़ियों का -

एक महिला स्वर - शीला ज़रा पहचानो तो मैनें कौन सी साड़ी पहन रखी है।

दूसरा स्वर - उं उं उं हार गए भई

पहला स्वर - ये है नाइलैक्स 644 और वो जो हैंगर पर लगी है न, वो है टेट्रैक्स 866

दूसरा स्वर - नाइलैक्स 644 और टेट्रैक्स 866

और विज्ञापन समाप्त। टेट्रैक्स की साड़िया तो इस देश में शायद ही कभी रही हो पर नाइलैक्स उस समय ख़ूब चली। मेरी मां ने भी पहनी और पसन्द की पर आज कहीं नज़र नहीं आती।

इसके बाद तीसरा विज्ञापन सोनी कैसेट का होता जो एक जिंजल (गीत) होता। बहुत अच्छा था पर मुझे याद ही नहीं आ रहा।

आज मार्किट में उत्पाद बढने से विज्ञापन भी बहुत बढ गए है। सुनते-देखते इतने ऊब गए है कि बड़े स्टार इन विज्ञापनों में होने के बावजूद भी विज्ञापन याद नहीं रहते। जब तक बजते तब तक एकाध मुख्य पंक्ति याद रह जाती लेकिन बजना बंद होते ही सब भूल जाते।

10 comments:

Dr Prabhat Tandon said...

गुजरे हुये कल की यादों को याद दिलाने के लिये धन्यवाद ! पहले प्रोग्राम कम थे , सुनने मे एक मजा था , शाय्द इंतजार का , अब वह कहाँ !

Anonymous said...

सोनी का जिंजल
प्यार की रुत है सलोनी,
सूरत बनायी क्यों रोनी
लाया में नज़राना सोनी
आडिओ कैसेट सोनी.

एक एड और
डायरेक्टर साब आज शूटिंग नही होगा
क्यों
हीरो हीरोइन लखानी मांगता

Anonymous said...

सही है अब तो शायद ही कोई पुरा विज्ञापन देखने के बाद याद रहे

annapurna said...

प्रभात जी, दीपक जी शुक्रिया।

अनाम जी, सोनी का जिंजल याद दिलाने का बहुत-बहुत शुक्रिया। आपने अगर नाम से टिप्पणी की होती तो अच्छा होता।

Yunus Khan said...

मुझे याद हैं निरमा के विज्ञापन । इसके अलावा वीको के विज्ञापन जो आज तक चल रही हैं । वीको टरमरिक नहीं कॉस्‍मेटिक । ये दोनों विज्ञापन बरसों पुराने होकर भी जारी हैं । और वो ये बेचारा काम के बोझ का मारा इसे चाहिये हमदर्द का सिंकारा । या फिर अमीन साहब के फिल्‍मी विज्ञापन । अमजद शक्ति कादर अरूणा, सब हैं खतरों के खिलाड़ी । कुछ विज्ञापन हमें बहुत हंसाते थे । जैसे छायागीत के प्रायोजक हैं विल्‍किंसन स्‍वोर्ड । या फिर लिप्‍टन का विज्ञापन । लिप्‍टन टाईगर चाय । जिसमें शेर की दहाड़ सुनाई देती थी । टैगलाईन थी दमदार जवानों के लिए लिप्‍टन टाइगर चाय । साडि़यों के कई विज्ञापन थे । फिर वो विज्ञापन याद है--सफेदी की चमकार ज्‍यादा सफेद । विनोद शर्मा की आवाज थी जिसमें ।
लखानी का विज्ञापन तो किसी ने याद दिलाया ही है । बहुत बहुत सारे जिंगल भी याद आ रहे हैं किसी दिन फिर बताते हैं । टिंग टॉन्‍ग ।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री अन्नपूर्णाजी,
सादर नमस्कार,
नायलेक्स और टेट्रेक्स साडीयोँ के वि्ज्ञापन के अलावा इन साडियों के निर्माता टोरे इन्डस्ट्रीझ (जापान) द्वारा प्रायोजित एक १५ मिनीट का कार्यक्रम भी रेडियो श्री लंका से हर बृहस्पतिवार के दिन रात्री ८.०० बजे आता था (नाम याद नहीं आता है) जो ब्रिज भूषणजी प्रस्तूत कार्ते थे, जिसमें कोई एक फिल्म निर्देषक अपनी कोई भी दो फिल्मो के एक एक गाने के बारें में अपनी तरहका फ़िल्मांकनकी कल्पना कैसे अपनी कल्पनामें आयी, वो बात बताते थे । श्री ब्रिज भूषणजी के बम्बईसे दिल्ही जाने पर बीचमें दो किस्तें श्री अमीन सायानी साहबने प्रस्तूत की थी । सोनी के अलवा नेशनल के विज्ञापन भी आते थे । जरम्स कटर का विज्ञापन श्री अमीन सायानी साहब इन्ग्लिशमें करते थे । ग्लायकोडीन का विज्ञापन श्री अमीन सायानी साहब हिन्दीमें और उनके बडे भाई स्व. श्री हमीद सयानीजी इंग्लिशमें करते थे । मरठा दरबार अगरबत्ती के विज्ञापन श्री अमीन सायानी करते थे और उनके प्रयोजित कार्यक्रम भी वे ही करते थे पर उनकी अन्तीम शृन्खला श्री मनोहर महाजन साहबने मोना अजी़ज़ के साथ और श्री अमीन सायनीजी के विज्ञापन के साथ की थी ।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री युनूसजी,
एक विज्ञापन फ़िल्म कटीपतंग का सी.बी.एस. मुम्बई. पूणॆ और नागपूर के लिये स्व. बाल गोबिन्द श्री वास्तवजी और श्रीमती कमल बारोटजी प्रस्तूत करते थे ’मस्ताना बना देगी, दिवाना बनादेगी कटी पतंग’ शक्ती सामंत और राजेष खन्नाजी की मुम्बई टेरीटरी के लिये काम करने वाली संयूक्त हिस्सेदार वितरण कम्पनी शक्तीराज डिस्ट्रीब्यूटर्स की और से आता था । दूसरी और सी. बी. एस. दिल्ही पर वहाँकी कोई और वितरण कम्पनी का विज्ञापन श्री अमीन सायानी साहबकी आवाझमें था । तब तीसरी और रेडियो श्रीलंका से निर्माता शक्ति फ़िल्म्स की और से श्री मनोहर महाजन साहब प्रस्तूत करते थे ।
पियुष महेता
सुरत-३९५००१.

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

१९६८ में फिल्म ब्रह्मचारी आयी थी ।उन दिनों वि. प्र. सेवा-मुम्बई, पूणे और नागपूर से इस फ़िल्म का विज्ञापन होता था, जिसमें शुरूमें स्व. शील कूमारजी बोलते थे - बाराह बच्चों का बाप और ब्रह्मचारी ! और इसी विज्ञापन के अन्तमें श्री सोहाग दिवान बोलते थे- शम्मी कपूर और जी. पी. सीप्पी का नया निराला वित्र ब्रह्मचारी ।
बहीं दूसरी और रेडियो श्री लंका हिन्दी सेवा से इसी फिल्म का विज्ञापन श्री अमीन सायानी साहब प्रस्तूत करते थे ।

Anonymous said...

आप में से कोई नयी रेडियो जिंगल बना सकता है क्या? अगर हाँ तो उसे बना के यही पर आज शाम तीन बजे तक यही पोस्ट करे धन्यवाद

Anonymous said...

आप में से कोई नयी रेडियो जिंगल बना सकता है क्या? अगर हाँ तो उसे बना के यही पर आज शाम तीन बजे तक यही पोस्ट करे धन्यवाद

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