मेरे एक अज़ीज़ दोस्त हैं सुबोध होलकर। संगीत,साहित्य,कविता और उर्दू शायरी के क़द्रदाँ।
३ अक्टूबर को विविध भारती की पचासवीं सालगिरह के मौक़े पर मैने अपने कई मित्रों को एस एम एस कर सूचित किया कि आज हमारे सबसे प्रिय रेडियो चैनल अपनी स्थापना का पचासवाँ वर्ष पूर्ण कर रहा है।जितना भी मुमकिन हो सके आज विविध भारती ज़रूर ट्यून करके रखें।कई मित्रों ने मेरे एस एम एस का जवाब एस एम एस से ही दिया और कईयों ने फ़ोन कर शुक्रिया अदा किया मेरी सूचना के लिये।
सुबोध भाई ज़रा निराले ही हैं
उन्होने न फ़ोन किया न एस एम एस
उन्होने मुझे एक प्यार भरी चिट्ठी लिखी
मज़मून कुछ इतना प्यारा था कि लगा रेडियोनामा के ज़रिये उसे आप तक पहुँचाऊँ
इसकी भी ख़ास वजह थी
वह यह कि एक संजीदा इंसान विविध भारती जैसी प्रतिष्ठित प्रसारण संस्था को किस नज़रिये
देखता है वह वाक़ई आनंददायक अनुभूति है
इस चिट्ठी को जस का तस यहाँ लिख रहा हूँ।
अक्टूबर/५/०७
प्रिय संजय भैया...
तुम ज़िन्दगी में नहीं होते
तो ये जीवन अधूरा सा रह जाता
अब कैसा भरा भरा सा लगता है
परसों सुबह की मानिंद तुम्हारा एस एम एस मिला
दिन धन्य हो गया
दिन भर विवध भारती सुनता -देखता रहा
काम जो थे वो सेकेन्ड्री थे, सो वैसे ही निपटते रहे
एक बात फ़िर शिद्दत से महसूस हुई कि
विविध भारती सिर्फ़ संगीत नहीं
साहित्य भी है
कविता है
दिल है
दर्द है
आंसू है
बाबूजी (सुबोध का इशारा संगीतकार सुधीर फ़ड़के की ओर है)
के एक गाने पर तो आँसुओं से कहीं आगे चली गई बात
रोऊँ तो समंदर हूँ
चुप हूँ तो सहरा
सुबोध
ऐसी दीवानगी वाली चिट्ठी के लिये वाचाल मीमांसा ज़रूरी है क्या ?
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Saturday, October 13, 2007
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2 comments:
प्यारी पोस्ट...
सच कहा है सुबोध भाई ने विविद भरती संगीत ही नही , साहित्य है, काव्य है, बचपन की याद है, बीते लम्हों का साज है ..... भावनत्मक सम्बन्ध है जिसकी मन पर अमिट छाप है
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