हमारे परिवार में रोज़ दिन की शुरूवात वन्दनवार से होती है। यह मैनें बचपन से सुना, उस समय से जब मुझे कुछ ठीक से समझ में भी नहीं आता था।
पहले कुछ समय के लिए सुबह का प्रसारण 6:30 से शुरू होता था। कुछ समय के लिए वन्दनवार का नाम भी सुमंगलम था।
विविध भारती के पहले प्रसारण की signature tune हमारे घर में दिन का आग़ाज़ करती है। फिर वन्देमातरम, मंगल ध्वनि जिसके बाद पहले होता था चिन्तन लेकिन पिछले लगभग 5 वर्षों से यहां 5 मिनट के लिए समाचार भी होने शुरू हो गए।
फिर बजता है वन्दनवार का सुमधुर संगीत। उसके बाद चिन्तन जिसमें कम शब्दों में बोधगम्य बात बताई जाती है, कोई न कोई ऐसा संदेश जो जीवन में आशा जगाता है। फिर शुरू होता है सिलसिला भजनों का।
सच बताऊं इससे दिन की शुरूवात बहुत शान्त और शुभ होती है। सभी भजन अच्छे होते है। रचना, गायकी और संगीत बेजोड़।
नए भजन सुनना भी अच्छा लगता है। परन्तु पुरानी कुछ ऐसी भक्ति रचनाएं है जिन्हें सुने एक लम्बा समय बीत गया। जैसे जुतिका राय के मीरा भजन, हरिओम शरण के राम भक्ति गीत, केसरी डे के गाए भजन, रसखान की कृष्ण भक्ति रचनाएं जैसे -
मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन
युगल पुरूष स्वर में बहुत ही सुंदर रचना। ऐसे ही स्वरों में आल्हा छंद में रसखान के कुछ दोहे जोड़ कर एक गीत तैयार किया गया था जिसमें एक पंक्ति बार-बार आती थी -
ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पे नाच नचावे
साथ के कुछ दोहे इस तरह है -
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावै
जाहि अनादि अनन्त अखंड अछेद अभेद सुभेद बतावै
आठहुं सिद्धि नवो निधि को सुख नन्द की धेनु चराए बिसारौं
रसखान कबौं इन आखिन सों बृज के बन बाग तड़ाग
ऐसे ही कबीर के भी कुछ दोहों से भक्ति रचनाएं है।
एक शबद गुरूशरण कौर तथा एक और महिला के स्वर में जो शायद संत गुरूनानक की रचना है -
तुम शरणाई आया साई
तुम शरणाई आया
एक और रचना -
सतगुरू नानक परकटया
क्या ही अच्छा हो कि जिस तरह से भूले-बिसरे गीत में अंत में के एल सहगल का गीत सुनवाया जाता है उसी तरह वन्दनवार में भी अंत में एक पुराना भक्ति गीत सुनवाया जाए।
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Tuesday, October 30, 2007
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4 comments:
कई दिनों से 'मानुस हो तो वही रसखान' खोज रहा हूं । मिल ही नहीं रहा है ।
कोशिश जारी है । आपने अच्छे भजन याद दिलाए हैं ।
अच्छा याद दिलाया ।
annapurna...
aapne vividh bharti ke subah prasaran se hone waali aapke ghar ki din charya ka ullekh kiya hai...
kya aap kripya mere liye signature tune aur mangal dhwani ko computerise karke e-patri dhwara bhej sakti hai...
aapki badi meherbaani hogi...
dhanyawaad
likhitan
Shri Shah
e-mail: to6479@yahoo.com
annapurna,
what are the chances? aapne jo jo bhi likha woh sab aisey yaad aa gaya jaise kal hi guzra ho. Papajee ke saath bitaye kai sundays ki yaadon mein aaj bhi rasakhan ki yeh panktiyan jaise dimaag ke kisi chhipe huay koney se uchchal uchchal kar bahar aa jaati hain.Thank you sp much
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।