अमीन सायानी रेडियो की दुनिया की सबसे निराली और यादगार आवाज़ हैं ।
उनका ट्रेडमार्क स्टाइल है जो लोगों के दिलों पर छा चुका है । जब वो ख़ास अदा में 'बहनो और भाईयो' बोलते हैं तो लोग फौरन समझ जाते हैं कि ये कौन बोल रहा है ।
कल अन्नपूर्णा जी ने रेडियोनामा पर बिनाका गीतमाला का जिक्र किया तो मुझे लगा कि अमीन सायानी के इस पुराने साक्षात्कार को छापने का सही वक्त आ गया है । मुंबई के एक अख़बार के लिए ये बातचीत रीमा गेही ने की थी । जिसका अनुवाद यहां प्रस्तुत है ।
अमीन साहब दो महीने पहले करांची के अमेच्योर मेलोडीज़ ग्रुप के आपके एक दोस्त सुल्तान अरशद ने आपको करांची बुलवाया था, कैसा रहा वो अनुभव
अरे भई सुल्तान अरशद कमाल के शख्स हैं । उन्हें पुरानी फिल्मों के गीतों का अथाह ज्ञान है, उनका एक ग्रुप हुआ करता था पुराने गानों के शौकीन लोगों का । वो अपने छोटे छोटे आयोजन भी करते थे । अनिल बिस्वास, ओ पी नैयर और सलिल चौधरी इन आयोजनों का हिस्सा रह चुके हैं । पर विभाजन के बाद वो करांची चले गये और वहां भी उन्होंने इसी तरह का एक ग्रुप बनाया । उन्होंने मुझे पाकिस्तान इसलिए बुलाया था ताकि मेरे रेडियो प्रोग्राम गीतमाला के लिए मुझे सम्मानित कर सकें । मैं एक हफ्ते करांची में रहा और ये देखकर दंग रह गया कि वहां के लोगों को अभी तक गीतमाला की याद है । 1952 से रेडियो सीलोन के ट्रांस्मीटरों के ज़रिए मेरा प्रोग्राम गीतमाला पूरे एशिया में सुना जाता रहा है । ये सिलसिला क़रीब 1988 तक जारी रहा । मुझे पाकिस्तान में बहुत प्यार मिला । ऐसा नहीं लगा कि मैं दूसरे मुल्क में हूं ।
आजकल आप क्या कर रहे हैं अमीन साहब
देखिए आजकल मैं वही कर रहा हूं जो जिंदगी भर किया है । रेडियो प्रोग्राम बना रहा हूं । जिंगल बना रहा हूं । और उन्हें सऊदी अरब, अमेरिका, न्यूजीलैन्ड और कनाडा के रेडियो स्टेशनों को भेज रहा हूं । कोशिश यही है कि जल्दी ही साउथ अफ्रीका, मॉरीशस और फिजी में भी दोबारा मेरे प्रोग्राम शुरू हो जाएं । हाल के दिनों में भारत में और विदेशों में मेरा एक शो काफी लोकप्रिय रहा है, जिसका नाम है 'संगीत के सितारों की महफिल' । मैं उसे दोबारा शुरू करना चाहता हूं । सच कहूं तो आज रेडियो की दशा ठीक नहीं है । वैसे रेडियो दुनिया का सबसे चमकीला, सबसे दिलकश माध्यम रहा है, वो भी दुनिया भर में । आप चाहें तो रेडियो के प्रोग्राम दिल लगा कर सुन सकते हैं और चाहें तो रेडियो पृष्ठभूमि में बजता रहे और आप अपना काम करते रहें । अगर ठीक से इसे संभाला जाये तो रेडियो पर आपको अनगिनत रंग दिखेंगे । बेमिसाल खुशबुएं मिलेंगी । और दिलकश आवाजें मिलेंगी ।
आजकल 'गीतमाला' जैसे शो क्यों नहीं हो रहे हैं
आज के ज़माने में गीतमाला जैसा शो कहीं नहीं चल सकता । इसकी वजह ये है कि लगभग हर रेडियो स्टेशन अपना काउंट-डाउन या हिट परेड चलाता है । इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि किस चैनल या किस शो की रेटिंग सही हैं । लेकिन मैं गीतमाला के 'रिट्रोस्पेक्टिव' के बारे में सोच रहा हूं । हो सकता है कि आप जल्दी ही इसे सुनें ।
भारत की आज़ादी के साठ साल हो चुके हैं, मैंने सुना है कि आपका परिवार आज़ादी की लड़ाई से गहरा जुड़ा रहा था । इस बारे में बताईये ना ।
जब भारत की आज़ादी की लड़ाई चल रही थी तो मैं बहुत छोटा था, बहुत उत्साही था । मेरा जन्म ऐसे परिवार में हुआ जिसमें देशभक्ति और देश के विकास की भावना कूट कूट कर भरी थी । मुझे उस ज़माने के तमाम महान नेताओं को सुनने का सौभाग्य मिला । चाहे वो महात्मा गांधी हों या पंडित जवाहर लाल नेहरू या फिर सरदार पटेल और मौलाना आज़ाद ।
बी जी खेर, मोरारजी देसाई और अरूणा आसफ अली जैसे लोग भी हमारे घर आया करते थे । क्योंकि मेरे मां गांधी जी की शिष्या थीं और समाज-सेवा करती थीं । बचपन में मुझे भी समझ में आ रहा था कि देश में बदलाव हो रहा है । आज़ादी मिलने वाली है । फिर जब मैं मुंबई में न्यू ईरा स्कूल और ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में पढ़ने गया तब हमारे भीतर ये जज़्बा आया कि हम नये भारत के नौजवान हैं ।
आपके काम पर आपके परिवार का क्या असर रहा है
मेरी मां गांधीजी से जुड़ी थीं और वयस्क नव साक्षरों के लिए एक पाक्षिक पत्रिका निकालती थीं जो हिंदुस्तानी ज़बान में होती थी । इस पत्रिका का सारा काम हमारे घर से होता था । इससे मुझे सरल ज़बान में, जनता की ज़बान में अपनी बात रखने के संस्कार मिले । और मैंने जिंदगी भर इसी ज़बान में अपनी बात कही है ।
क्या ये सही है कि बचपन में आप गायक बनने की तमन्ना रखते थे
जी हां । स्कूल के दिनों में मैं 'कॉयर' में गाया करता था । मैंने शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली । लेकिन तेरह साल का होते होते मेरी आवाज़ फट गयी । और फिर तो एक भी सुर ठीक से नहीं लगता था । जब भी गाने की कोशिश करता तो कोई ना कोई टोक देता । लोग बेसुरा कहते । बस इसके बाद मेरे गाने पर रोक लग गयी । लेकिन मुझे संगीत से प्यार तो था ही इसलिए ऐसे पेशे में आ गया जिसका ताल्लुक संगीत से ही था ।
आजकल आप स्टेज पर ज्यादा नज़र नहीं आते, क्यों
जी हां लंबा वक्त हो गया मैंने किसी स्टेज शो का संचालन नहीं किया । हालांकि मैंने तमाम तरह के कार्यक्रमों का संचालन किया है । फिर चाहे वो संगीत के कार्यक्रम हों, वेरायटी शो हों या फैशन शो और अवॉर्ड फंक्शन । लेकिन इनमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है । आज भी मैं दस से बारह घंटे काम करता हूं । लेकिन पचहत्तर साल का हो चुका हूं । इसलिए ज़रा आराम करना चाहता हूं । बस यही वजह है कि आजकल मैं श्रोताओं में बैठकर दूसरों की पेशकश देखता रहता हूं ।
रेडियो की दुनिया में विज्ञापनों की जो भरमार है उसके बारे में आपका क्या कहना है
देखिए आज निजी रेडियो स्टेशनों की भरमार हो गयी है । इसलिए दिक्कत ये हो गयी है कि रेडियो स्टेशनों को खुद को जिंदा रखने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है । सबको ऐसे कार्यक्रम करने हैं जो दूसरों से अलग हों । पर हो ये रहा है कि सबके सब एक जैसे कार्यक्रम कर रहे हैं । स्टाइल एक जैसा है । इसलिए उन्हें ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है ।
रेडियो की दुनिया में अच्छी आवाज़ होना कितना जरूरी है ।
मुझे नहीं लगता कि बहुत ज्यादा जरूरी है । मेरी आवाज कोई बहुत अच्छी नहीं है । हां ये जरूर है कि मैंने हमेशा साफ, दिलचस्प और सही बात कहने की कोशिश की है । गुजराती और अंग्रेज़ी ज़बानों की पृष्ठभूमि रही है मेरी । इसलिए शुरूआत में सही हिंदी बोलने में काफी परेशानी होती थी । मुझे अपनी भाषा और लहजे को साफ़ बनाने में कई साल लग गये और बड़ी मेहनत करनी पड़ी ।
रेडियो की दुनिया के नये लोगों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे
देखिए पहले तो उन्हें ये बात दिमाग़ में बैठा लेनी चाहिये कि रेडियो अनाउंसर स्टार नहीं होता । वो श्रोताओं के परिवार का हिस्सा बन जाता है । इसलिए जब आप बोलें तो आपकी विश्वसनीयता होनी चाहिये । ऐसा ना लगे कि आप झूठ बोल रहे हैं । जब तक आप ईमानदार नहीं होंगे और जो कह रहे हैं उस पर आपको खुद भरोसा नहीं होगा, लोगों पर आपकी बात का असर नहीं होगा । रेडियो दुनिया का अकेला ऐसा माध्यम है जहां आधा काम आपके श्रोता करते हैं । आप अपनी पूरी कोशिश करते हैं, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं, फिर हर श्रोता अपनी कल्पना और अपनी भावनाओं से आपकी एक तस्वीर रचता है और आपसे जुड़ता है । ये कमाल की बात है ।
आभार--रीमा गेही । हिंदुस्तान टाइम्स मुंबई ।
ये तस्वीरें स्वर्ण जयंती के अवसर पर मैंने विविध भारती में खींची थीं ।
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: ameen-sayani, binanca-geet-mala, अमीन-सायानी, radio,
11 comments:
धन्यवाद यूनुस भाई इतने अच्छे साक्षात्कार को प्रस्तुत करने के लिए. जब मैं इसे पढ़ रहा था तब साथ-साथ ये अहसास भी हो रहा था की अमीन सयानी साहब अभी इस लहजे में बोल रहे होंगे या अभी इस टोन में कह रहे होंगे. क्या कोई रेडियो interview नहीं है उनका?
वो आवाज़, वो शैली, वो बोलने का सलीका किसी और में न देखा न सुना!!
शुक्रिया इसे यहां उपलब्ध करवाने के लिए!
बहुत-बहुत धन्यवाद युनूस जी इस साक्षात्कार को यहां प्रस्तुत करने के लिए।
कल जब मैनें चिट्ठा लिखा था तब सोचा भी नहीं था कि ऐसा असर होगा।
रीमा जी ने अमीन सयानी के जीवन की उन बातों की भी चर्चा की जिससे हम कुछ लोग अनजान थे।
अगर आपने नाम रीमा गेही लिखा है तो मैं बता दूं कि मेरा पूरा नाम भी अन्नपूर्णा गेही है।
मेरे चिट्ठे पर टिप्पणी में पीयूष जी ने बताया कि अमीन सयानी का जन्म दिन 21 दिसम्बर है। क्या हम उन्हें सीधे शुभकामना भेजने के लिए उनका ई-मेल पता जान सकते है ?
चलते-चलते एक बात बता दूं फोटो में लग रहा है दादा जी का आशीर्वाद मिल रहा है आपको ।
बहुत-बहुत धन्यवाद युनूस जी इस साक्षात्कार को यहां प्रस्तुत करने के लिए।
कल जब मैनें चिट्ठा लिखा था तब सोचा भी नहीं था कि ऐसा असर होगा।
रीमा जी ने अमीन सयानी के जीवन की उन बातों की भी चर्चा की जिससे हम कुछ लोग अनजान थे।
अगर आपने नाम रीमा गेही लिखा है तो मैं बता दूं कि मेरा पूरा नाम भी अन्नपूर्णा गेही है।
मेरे चिट्ठे पर टिप्पणी में पीयूष जी ने बताया कि अमीन सयानी का जन्म दिन 21 दिसम्बर है। क्या हम उन्हें सीधे शुभकामना भेजने के लिए उनका ई-मेल पता जान सकते है ?
चलते-चलते एक बात बता दूं फोटो में लग रहा है दादा जी का आशीर्वाद मिल रहा है आपको ।
बहुत-बहुत धन्यवाद युनूस जी इस साक्षात्कार को यहां प्रस्तुत करने के लिए।
कल जब मैनें चिट्ठा लिखा था तब सोचा भी नहीं था कि ऐसा असर होगा।
रीमा जी ने अमीन सयानी के जीवन की उन बातों की भी चर्चा की जिससे हम कुछ लोग अनजान थे।
अगर आपने नाम रीमा गेही लिखा है तो मैं बता दूं कि मेरा पूरा नाम भी अन्नपूर्णा गेही है।
मेरे चिट्ठे पर टिप्पणी में पीयूष जी ने बताया कि अमीन सयानी का जन्म दिन 21 दिसम्बर है। क्या हम उन्हें सीधे शुभकामना भेजने के लिए उनका ई-मेल पता जान सकते है ?
चलते-चलते एक बात बता दूं फोटो में लग रहा है दादा जी का आशीर्वाद मिल रहा है आपको ।
शुक्रिया इस प्रस्तुति का !
यूनुस भाई, इस साक्षात्कार को पढ़कर अच्छा लगा। प्रस्तुतिकरण के लिये धन्यवाद!
श्री युनूसजी आपतो जानते ही होगे पर
श्रीमती अन्न्पूर्णाजी के लिये बता दूँ कि श्री अमीन सायानी साहब की वेब साईट
www.ameensayani.com
और उनका ई मेईल पता
sayani@vsnl.com
है । एक बात तो है कि, अपने आपको स्टार नहीं मानकर आम जनता का ही एक हिस्सा मानते हुए कार्यक्रमों और विज्ञापनो को प्रस्तूत करने की उनकी शैलीने ही उनको आम जनतामें ब्रोडकास्टींगके सर्वोच्च स्टार कुदरती रूपसे ही बनाया है । मेरा तो पिछले करीब ७ ८ सालों से उनसे थोडा निजी सम्पर्क रहा है और अनुभव है कि, अगर वे कुछ दूसरे निश्चीत समयावधीमें पूरे करने जरूरी काममें लगने वाले होते है तो भी बहोत ही विनय विवेकसे यह बात बताते है ।मैं जब भी मुम्बई जाता हूँ, और उनको थोडा जल्दी बता देता हूँ, तब मेरे लिये कुछ समयकी तो वे व्यवस्था रखते ही रखते है । और उनके बेटे या कर्मचारी गण सभी हो यह जानकारी रहती है ।
अमीन अंकल ने न जाने कितनो को इस देश में सहज बोलने की तमीज़ सिखाई. वे ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे जो आम आदमी की समझ की सीमा में हों . अमीन साहब की क़ामयाबी में उनकी दिवंगत पत्नी का बड़ा योगदान रहा है. अमीन साहब के बारे एक बात और ख़ास तौर पर कहना चाहूँगा कि उन्होने आवाज़ के व्यावासायिकरण के क्षेत्र में तब कार रखा जब इसके बारे में कोई विधिवत प्रशिक्षण के संस्थान मौजूद नहीं थे...उन्होने खु़द अपने परिश्रम से ये मुकाम हासिल क्या . इसलिये दीगर प्रसारणकर्ताओं से अमीन सायानी साहब का क़द मेरी नज़रों थोड़ा अलहदा या कहूँ ऊँचा है.
आवज़ के क्षेत्र में जब क़दम रखा की जगह कार हो गया है ...माफ़ करें और ठीक पढ़ लेवें.
अमीन साहब की आवाज़ के लिये भी ये कि,
"उनकी आवाज़ ही पहचान है " और सुननेवाले सारे श्रोता, उनके आजीवन प्रशँशक बन गये हैँ -
उपरवाला उन्हेँ स्वस्थ रखे और वे अपना पसँदीदा
काम करते रहेँ इस दुआ के साथ..
-- लावण्या
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।