सबसे नए तीन पन्ने :

Friday, October 26, 2007

हिट गीतों की परेड

शीर्षक से ही बहुत से पाठक समझ गए होंगें आज मैं चर्चा कर रही हूं रेडियो सिलोन से प्रसारित होने वाले बहुत ही लोकप्रिय कार्यक्रम बिनाका गीत माला की।

जब बातें हो रेडियो की और बात न हो बिनाका गीत माला की यह तो हो ही नहीं सकता। जिनका बचपन अस्सी के दशक के पहले का है वे भूले नहीं होंगें हर बुधवार रात 8 से 9 हिट गीतों की परेड।

जी हां ! इस कार्यक्रम की हर बात निराली रही। सबसे बड़ी निराली बात ये है कि बिनाका गीत माला और अमीन सयानी एक दूजे के लिए बनें। रेडियो कार्यक्रमों के इतिहास में मैनें एक भी ऐसा कार्यक्रम नहीं देखा जिसे एक ही व्यक्ति ने प्रस्तुत किया हो।

इस कार्यक्रम को दो बार मनोहर महाजन और एक बार मधुर ने प्रस्तुत किया। हालांकि उन दिनों मनोहर महाजन की सिलोन के उदघोषक के रूप में लोकप्रियता बहुत थी। जहां तक मधुर जी की बात करें तो यह कहना न होगा कि आम तौर पर रेडियो प्रस्तुति में महिलाओं की आवाज़ अच्छी मानी जाती है पर यहां यह जादू भी नहीं चला। अमीन सयानी के अलावा ये कार्यक्रम किसी और की आवाज़ में अच्छा ही नहीं लगा। गला बैठ जाने पर भी अमीन सयानी की आवाज़ ही सुनी गई।

आवाज़ के साथ-साथ उनका अंदाज़ भी बहुत खास था। उनका बहनों और भाइयों कहने का जो अंदाज़ था, कसम से ये अंदाज़ मैनें किसी और में आज तक नहीं देखा। जबकि उनके श्रोताओं में १२-१५ साल से लेकर साठ साल से बड़ी उम्र वालें भी शामिल रहे। कहते है न कि दिल से कही गई हर बात अच्छी लगती है।

खास अंदाज़ के साथ उनकी भाषा भी खास रही जो न शुद्ध हिन्दी थी और न ही खालिस उर्दू। हमेशा उन्होनें सही शब्दों का प्रयोग किया। तभी तो इस एक घण्टे के कार्यक्रम को श्रोता मंत्र-मुग्ध हो सुनते थे।

एक घण्टे में सोलह गीत सुनाए जाते जिनका चयन रिकार्डों की बिक्री के आधार पर होता था। तभी तो वो इसे हिट गीतों की परेड कहते थे।

पिछले सप्ताह हुई रिकार्डों की बिक्री के अनुसार गीतों का क्रम बनता था यानि जिस गीत के रिकार्ड सबसे ज्यादा बिकते वह गीत सप्ताह का सबसे अधिक लोकप्रिय गीत माना जाता। इस तरह सोलह गीतों का क्रम होता।

जो गीत क्रम में सोलहवें नंबर पर होता वह कार्यक्रम के शुरू में यानि 8 बजे बजता उसके बाद क्रम से गीत बजते और नंबर एक पर जो गीत होता वो 9 बजे सुनाया जाता। इस क्रम को अमीन सयानी पायदान कहते जो उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है सीढी।

वो इसे लोकप्रियता की सीढी भी कहते। हर सप्ताह ज़रूरी नहीं होता की क्रम वहीं रहे जिसके लिए वो कहते ये गीत लोकप्रियता की सीढी पर चढा या उतरा।


कभी कोई गीत कोई सप्ताह सोलह गीतों के क्रम से बाहर हो जाता और बाद में आगे किसी सप्ताह फिर से शामिल हो जाता तो इसके लिए कहा जाता कि गीत ने पुनर्प्रवेश किया है जो हिन्दी का शब्द है।

इसी तरह जब पहली बार गीत बजता तो कहा जाता गीत ने प्रवेश किया है। इन्हीं गीतों में से एक गीत और कभी कभी दो या ज्यादा से ज्यादा तीन गीत बहुत लोकप्रिय हो जाते तो इन्हें सरताज गीत कहा जाता और ये गीत बजाने से पहले एक विशेष धुन बजाई जाती जिसे सरताज गीत का बिगुल कहा जाता।

कभी सरताज गीत ही नंबर 1 पर होता और कभी सरताज गीत का क्रम अलग होता यानि सरताज गीत लोकप्रिय गीत तो होता पर ज़रूरी नहीं कि उसके रिकार्ड सबसे अधिक बिके हो।

25 बार बजने के बाद गीत रिटायर हो जाता क्योंकि दूसरे गीतों को भी तो शामिल किया जाना होता है। यह भी ज़रूरी नहीं की एक फ़िल्म का एक ही गीत बजें। रिकार्डों की बिक्री के अनुसार अधिक गीत भी बजते।

साल के अंत में दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह बजने वाले १६-१६ हिट गीत साल के सबसे अधिक लोकप्रिय गीत माने जाते और साल के अंतिम बुधवार ९ बजे बजने वाला गीत होता साल का सबसे सुपर हिट गीत।

लोकप्रियता के इस क्रम को सभी संगीत प्रेमियों ने माना यहां तक कि फ़िल्म वालों ने भी। फ़िल्मों में भी इसकी चर्चा की गई याद कीजिए फ़िल्म अभिमान का वो सीन जहां असरानी कहते है जया भादुड़ी (बच्चन) से - मुबारक हो भाभी आपके चार गीत बिनाका गीत माला में आ गए।

आश्चर्य की बात है कि इतने सालों तक चले इस कार्यक्रम को एक ही व्यक्ति द्वारा पहचान मिली। गीतों को क्रम से प्रस्तुत करना बीच-बीच में बिनाका टूथ पेस्ट और टूथ ब्रश के विज्ञापन सुनवाना और साथ ही देश भर के श्रोताओं द्वारा भेजे गए पत्रों में से कुछ पत्र पढना, सभी कुछ पूरी निष्ठा और लगन से करते थे अमीन सयानी।

रेडियो और टेलीविजन के प्रायोजित कार्यक्रमों के इतिहास में बिनाका टूथ पेस्ट , टूथ पाउडर और टूथ ब्रश बनाने वाली कंपनी द्वारा प्रायोजित बिनाका गीत माला जैसा कार्यक्रम शायद कोई दूसरा नहीं।

5 comments:

Ashish Maharishi said...

जय हो बिनाका गीत माला की।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

आदरणीय श्रीमती अन्नपूर्णाजी,

बिनाका गीतमाला के बारेमें बहोत सारी बातें बताई । श्री अमीन सायानी साहबकी आवाझ तो दुनियाकी नं १ आवाझोमेंसे एक है । उनकी भाषा हालाकी उनकी पढा़ई बहोत ही उच्च कक्षाकी रही पर फि़र भी उन्होंने अपनी तराहकी फि़र भी आम इन्सानकी भाषा प्रायोजी, इस लिये वे सबसे अधिक चहिते तो बनने ही वाले थे । वे जब भी बम्बई छोड कर जाते थे तो कुछ रेकोर्डिंग, जैसे कार्यक्रम की शुरूआत (जिसमें वे कार्यक्रममें दूसरे साथीको शामिल करनेका कारण बताते थे, इतनी रेकोर्डिंग करके बम्बई छोड़ कर जाते थे ।) करते थे और बादमें एक दो बार श्री ब्रिज भूषणजीने गानों का क्रम बताते हुए पेश किये थे। शायद एक बार उनके साथी और सहायक गीतकार अख़्तर रोमानीजीने भी अपनी आवाझ दी थी । पर बादमें ऐसी व्यवस्था की गयी की कार्यक्रम की रेकोर्डिंग दो हप्ते पहेले होने लगी । इसी कारण कार्यक्रम शृंखला की समाप्ती तक उन्होंने ही कार्यक्रम पेश किये । कुछ साल यही कार्यक्रम सिबाका गीतमाला हो गया था । और इसी कार्यक्रमको आधे आधे गीत बजा कर आधे घंटे के लिये शुरूमें विविध भारती के विज्ञापन प्रसारण सेवाके स्थानिक केन्द्रों से और बादमें दोनों लघू-तरंग केन्द्रो से सीबाका संगीतमाला के नामसे भी प्रस्तूत किया गया था । मूझे खुशी इस बातकी भी है, की मेरी जो कुछ रेडियो ब्रोडकास्टर्स से कुछ हद तक निजी़ जान पहचान बनी है, उन नामों में श्री अमीन सायानी साहबका नाम भी शामिल है । अगली २१ डिसम्बर को वे ७५ साल पुरे करने वाले है । आज एक खाश बात यह भी बताता हूँ, कि रेडियो श्री लंका की हिन्दी सेवा की उद्दघोषिका श्रीमती ज्योतिजी (परमार)की आज साल गिराह है । कई श्रोताओंने ता, २४-१०-२००७ के सजीव फोन-इन कार्यक्रममें उनको एडवान्स बधाई दी, उसमें मैं भी एक था ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.

Anonymous said...

बिनाका गीतमाला की सालाना प्रस्तुति की चर्चा भी होनी चाहिए।दिसम्बर के आखिरी बुधवारों को साल भर में सर्वाधिक हिट हुए गीत सुनाये जाते थे ।

Manish Kumar said...

अमीन सयानी की गीतमाला हमेशा से मेरी पसंदीदा कार्यक्रम रही और विविध भारती से कहीं ज्यादा ये ही कार्यक्रम था जिसने रेडिओ से मुझे जोड़ा रखा। ये अमीन साहब का ही असर है कि हर साल के अंत में मैं अपने चिट्ठे पर अपने पसंद के गीतों को अंतिम पायदान से पहली पायदान तक वार्षिक संगीतमाला के रूप में पेश करता हूँ।

annapurna said...

पीयूष मेहता जी धन्यवाद ! मैनें अमीन सयानी की वेबसाइट देख ली है और ई-मेल भी भेज दूंगी।

आशीष जी जयजयकार का शुक्रिया। आप की भी जय हो।

अफ़लातून जी अंत से चौथा पैरा आप देखिए जहां मैने सालाना प्रस्तुति की चर्चा की।

मनीष जी आपके चिट्ठे की वार्षिक संगीतमाला अब तक तो नहीं देखी अब देखूंगी।

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें