जिस तरह पिछले दो महिनों में रेडियो मिर्ची का स्वागत पटनावासियों ने किया है, इसमें कोई शक नहीं कि राँची में भी यहाँ के किशोरों और युवाओं में ये लोकप्रिय हो जाएँगे। पिछली बार जब पटना गया था तो देखा कि पान का नुक्कड़ हो या मोहल्ले में इस्त्री करने वाला धोबी सभी के ट्रांजिस्टर पर रेडिओ मिर्ची ही बज रहा है। ये भी नहीं है कि ये निजी चैनल बेहद उम्दा प्रोग्रामिंग करते हैं पर सबसे बड़ी बात है कि वो आम जनता की नब्ज़ पर ज्यादा बेहतर नज़र रखते हैं।
निजी चैनलों की बढ़ती लोकप्रियता से ये भी लगता है कि कहीं ना कहीं रेडियो में फिल्म संगीत के माध्यम से समाज के हर वर्ग को स्वस्थ मनोरंजन देने में विविध भारती पूर्ण रूप से सक्षम नहीं रही है।
इससे पहले मैं बात आगे बढ़ाऊँ, विविध भारती से अपने मोह भंग की कहानी जरूर बताना चाहूँगा। बचपन से ही रेडिओ मेरा बेहद प्यारा दोस्त हुआ करता था। विविध भारती के कार्यक्रम बहनें सुना करती थीं तो मैंने भी सुनना शुरु किया।
संगीत सरिता, भूले बिसरे गीत, समाचार, चित्रलोक, अनुरोध गीत....और फिर मन चाहे गीत, रंग तरंग, रविवारीय जयमाला, युवावाणी, चित्रशाला, एक से अनेक, साज और आवाज़, हवा महल, प्रायोजित कार्यक्रम, छाया गीत और आप की फर्माइश की बँधी बधाई फेरहिस्त मैंने अपने स्कूल के दिनों में बारहा सुनी।
हवा महल उन दिनों का हमारा सबसे पसंदीदा कार्यक्रम हुआ करता था जिसे हम सब बड़े चाव से सुनते थे। पर जैसे जैसे संगीत के प्रति मेरी अभिरुचि बढ़ी मैंने ये पाया कि विविध भारती नए गीतों को अपने कार्यक्रम में शामिल नहीं करती। नए गीतों को सुनने के लिए हमें अमीन सयानी की बिनाका गीत माला पर निर्भर रहना पड़ता था। और उसके प्रसारण को पाने के लिए शार्ट वेव के २५ मीटर बैंड पर हमें कितनी जद्दोज़हद करनी पड़ती थी वो हमीं जानते थे।
उम्र बढ़ी और ग़ज़लों में मेरी विशेष रुचि हुई, मैं नियमित रूप से रंग तरंग कार्यक्रम सुनने लगा और वो मेरा पसंदीदा बन गया। ये वो ज़माना था जब फिल्म संगीत अपने पराभव पर था और अनूप जलोटा, पंकज उधास और जगजीत सिंह के रिकार्डस खूब बिक रहे थे पर विविध भारती से कभी नई ग़ज़लों के एलबम सुनने को मैं तरस गया। विविध भारती से जुड़े अपनी जिंदगी के उन दस वर्षों में मैंने ना कोई बदलाव देखा और ना प्रस्तुतिकरण में कोई नयापन। और उसके बाद रेडियो तो बहुत ट्यून किया पर बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, हिंदी सर्विस, रेडिओ पाकिस्तान और ए आई आर का नेशनल चैनल ही मेरे पसंदीदा चैनल रहे।
१९९३ में जब पहली नौकरी के लिए फरीदाबाद पहुँचा तो वहाँ देश का पहला निजी चैनल टाइम्स एफ एम आ चुका था और उसने फिर से मुझे रेडिओ से नियमित रूप से जोड़ दिया। अपनी जिंदगी की पहली कमाई से मैंने एफ एम के साथ टू इन वन खरीदा। टाइम्स एफ एम ने शीघ्र ही अपनी प्रस्तुतिकरण शैली से मेरा मन मोह लिया और वो हमारे अविवाहित जीवन की दिनचर्या बन गया था। इधर जब से यूनुस भाई से परिचय हुआ है छुट्टी के दिनों में विविध भारती के कुछ कार्यक्रम को सुनना शुरु किया है। वैसे भी हमारी पीढ़ी और हमसे बड़े लोगों को प्रसन्न करने के लिए विविध भारती के पास बहुत कुछ है.....
पर आज भी, मुझे नहीं लगता कि किशोरों और युवाओं की पहली पसंद विविध भारती है, खासकर वहाँ, जहाँ कोई और विकल्प मौजूद है। ये हम सभी जानते हैं कि जब कोई बच्चा संगीत सुनना शुरु करता है तो पहले वो धुन और ताल की ओर ज्यादा ध्यान देता है। बाद में जब इसी बच्चे की संगीत समझ बढ़ती है वो गीत के बोलों और संगीत की बारीकियों को ज्यादा अच्छी तरह से समझता है। अगर विविध भारती शुरु से ही इस वर्ग को अपने साथ ले कर नहीं चलेगी, तो आगे चलकर संगीत सुनने के इतने विकल्पों के बीच क्या वो उसे सुनना पसंद करेगा?
इसमें तो कोई शक ही नहीं कि हमारे स्वर्णिम अतीत के यादगार गीतों और कलाकारों को पेश करने में विविध भारती का कोई सानी नहीं है, पर इस धरोहर को वो पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँचाती रहे इसके लिए ये जरूरी है कि वो हर आयु वर्ग के दर्शकों को अपने साथ बाँध कर चलती रहे।
कुछ बातें जो मुझे आज भी विविध भारती के बारे में खटकती हैं, वो हैं
- गीत के साथ गीतकार और संगीतकार का नाम बताना तो विविध भारती कि वो खूबी है जो उसे निजी चैनल से ऊपर खड़ा करती है, पर क्या हर गीत के पहले फर्माइश करने वालों की फेरहिस्त पढ़ने की पुरानी परंपरा का निर्वहन करना आवश्यक है? इस समय का प्रयोग उद्घोषक क्या कुछ जानकारियों के साथ अर्थपूर्ण बातचीत में नहीं लगा सकता ?
- पुराने कर्णप्रिय संगीत का तो विविध भारती के पास अच्छा खासा भंडार है। पर अक्सर वो ही गीत बजते हैं जो पहले से सुने होते हैं।
- क्या विविध भारती के का बजट इतना होता है कि उसके पास नए फिल्मी और गैर फिल्मी एलबम्स के सभी सीडी समय से उपलब्ध हो। अक्सर जब भी किसी नए अच्छे गीत को सुनने कि तलब होती है वो पहले निजी चैनल पर ही सुनाई देते हैं।
- विविध भारती ने सूचना तकनीक के इस युग में आज तक अपनी एक वेब साइट भी नहीं बनाई, जहाँ कम से कम कार्यक्रम सूची हो। क्या अपने आप को भारत का सबसे ज्यादा सुने जाने वाले चैनल के लिए ये गर्व की बात है?
- विविध भारती में क्या इसके उद्घोषकों को वो पारिश्रमिक मिल रहा है जो निजी चैनलों के आस पास हो। इतने गुणी उद्घोषकों के रहते हुए भी मुझे नहीं लगता कि उनकी प्रतिभा का पूरा उपयोग विविध भारती कर रही है।
15 comments:
मनीषभाई...आपने बात पते की कही है.प्रसार भारती विविध भारती को बहुत हल्के से ले रहा है. विविध भारती की वैबसाईट बनाने से ज़्यादा ज़रूरी है कि वह वैब रेडियो की तरह लाइव सुनना शुरू हो जाए. जल्द ही विविध भारती को राष्ट्रीय प्रसारण की रात्रिकालिन सेवा के खरखरे प्रसारण से हटा कर एफ़ पर ही पूरी रात प्रसारण शुरू करने चाहिये. रात को ये भी हो सकता है कि किसी अनाउंसर की ज़रूरत न रहे...बस सुमधुर संगीत बजता रहे..कुछ अच्छे प्रायोजक भी मिल जाएंगे इस नेक काम के लिये. दर-असल विविध भारती के हुक़्मरान उसकी ताक़त से बेख़बर हैं.दूरदर्शन वाली हालत तो होगी ही ये भी हो सकता है कि किसी भी दिन इसे कोई उद्योगपति टेकओवर कर ले.
वेब रेडिओ तो और अच्छा सुझाव है। वैसे ये विषय मैंने रेडियोनामा पर इसलिए उठाया है कि इस पर व्यापक बहस हो ताकि हमारी अपेक्षाएँ सामने आ सकें। साथ ही ये भी पता चले कि प्रसार भारती की छत्र छाया में चलने वाले विविध भारती को किन समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है जिससे उनके प्रतिद्वंदी नहीं होते।
मित्रो मैं यह कहना चाहता हूं कि खुद प्रसार भारती के लोग आकाशवाणी की विभिन्न सेवाओं के साथ सैबोटाज में लगे हैं इसलिये अगर आप भोलेमोहन नहीं है तो कृपया इस सच को स्वीकार करें और कई अनहोनियों के लिये तैयार रहें.जय बोर्ची.
मनीष जी आपकी बात से मैं सहमत नहीं हूं क्योंकि विविध भारती केवल मनोरंजन नहीं एक संस्कृति है।
समय कोई भी हो जब बात संस्कृति की जाए तो केवल युवा वर्ग को ही ध्यान में नहीं रखा जा सकता।
क्या कोई चैनल आपके दिन की शुरूवात वन्दन्वार जैसे शान्त, मधुर कार्यक्रम से करता है ?
क्या हास्य की गरिमा को बनाए रखने वाला हवामहल कहीं आप सुनते है ?
क्या छाया गीत जैसा गीतों की प्रस्तुति का गरिमामय कार्यक्रम आपने सुना है ?
क्या कोई चैनल आपको घर बैठे संगीत सरिता की तरह शास्त्रीय संगीत की जानकारी दे पाएगा ?
मनोरंजन के लिए कोई भी चैनल सुनिए पर संस्कृति की रक्षा तो विविध भारती से ही होगी। ये बात सिर्फ़ मेरी नहीं लाखों के दिल की है लेकिन सभी के विचार आप तक नहीं पहुंच पाते इसीलिए आप नहीं जान पा रहे।
मैं भी कई सालों के बात अब इंटरनेट के माध्यम से यह कह पा रही हूं।
मेरी समझ में विविध भारती में किसी परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं है।
इरफ़ान भाई अगर विविध भारती के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है तो उस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि ऐसा क्यों किया जा रहा है?
अनाम मुझे अच्छा लगा कि आप ने यहाँ आपने विचार व्यक्त किए। पर नाम के साथ करतीं तो मुझे आपको संबोधित करने में आसानी होती। आपने कहा कि आप मुझसे सहमत नहीं है पर ऐसा मुझे तो नहीं लगा, क्योंकि मेरे इस कथन को आपने कहीं नहीं नकारा कि किशोरों और युवाओं की पहली पसंद विविध भारती नहीं हैं जहाँ भी कोई विकल्प मौजूद है, और यही मेरे लेख का मूल बिंदु था।
हाँ, आपने विविध भारती के मौजूदा स्वरूप को ना बदलने की हिमायत की है क्योंकि आपके मतानुसार इसका मूल उद्देश्य हमारी सांगीतिक संस्कृति की धरोहर बनना है। फिर आपने कहा
मनोरंजन के लिए कोई भी चैनल सुनिए पर संस्कृति की रक्षा तो विविध भारती से ही होगी।
विविध भारती के कार्यक्रमों (गैर फर्माइशी) और उसके उद्घोषकों की गुणवत्ता पर ना मुझे कोई संदेह था ना अभी है पर आप जिस संस्कृति की बात कर रही हैं उसकी नींव बचपन से ही पड़ती है जैसी हमलोग की पड़ी थी। और जब आज के बच्चे और युवा इसकी अच्छाईयों के बावज़ूद अगर इससे कटे रहेंगे तो बड़े होकर अपनी इस धरोहर को सुनने आएँगे इसमें मुझे पर्याप्त संदेह है।
मनीष जी जिस तरह इस बात पर चर्चा नहीं होती कि जब प्रायवेट टीवी के ज़रिये न्यूज़ आप तक पहुंच सकती है तो प्रायवेट रेडियो पर न्यूज़ प्रतिबंधित क्यों है, जब शराब पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है तो शराब की सरकारी दुकान क्यों होती है? जब बच्चे इम्तेहानों के दबावों में अपनी जान दे देते हैं तो इम्तेहानों का स्वरूप दबावमूलक क्यों है? जब सभी धर्म बराबर हैं तो स्कूलों में कुछ ख़ास धर्मों की प्रार्थनाओं से ही सुबह की शुरुआत क्यों होती है? जब विकास से बेरोज़गारी बढ़ रही है तो हम विकास का ढ़िंढोरा क्यों पीटते हैं...और जब....
सवालों का सिलसिला लंबा हो सकता है और जवाब ये है कि चूंकि सरकार और व्यवस्था जनोन्मुखी नहीं है इसलिये उसकी चिंताओं में हमारी विविध भारती ्या ऐसी कोई चीज़ नहीं है जो हमें कोमल और संवेदनशील बनाए रखने में मदद करती हो. जय बोर्ची.
मनीष जी युवा वर्ग के लिए भी विविध भारती में कार्यक्रम है जैसे जिज्ञासा और नए गीतों का कार्यक्रम है। मुझे लगता है इतना पर्याप्त है।
अन्नपूर्णा
मनीष
इस बहस में मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूं ।
लेकिन अलग से और बाद में कहूंगा ।
ये ज़रूर कह दूं कि मौजूं विषय पर काफी कुछ सही कहा है आपने ।
मेरे पास भी कुछ विविध भारती के काफी़ लोगोके बहोत अच्छे पर कुछ लोगो के थोडे से नकारत्मक रवैये के बारें में, विविध भारतीके स्थानिक केन्द्रों के विविध भारती की केन्द्रीय सेवा के कार्यक्रमों के प्रति नकारत्म्क रवैये के बारेमें आकाशवाणी के केन्द्रीय बिक्री एकांश (सेन्ट्रल सेल्स युनिट ) के सरकारी विज्ञापनो और सरकार या सरकारी एजन्सीयोँ द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों (हकीकतमें प्रज़योजित कार्यक्रम के नाम ५ से लेकर ३० मिनिट तक के समयावधी वाले विज्ञापन) जो केन्द्रीय विविध भारती सेवा को पता लगे विना ही स्थानिक केन्द्रों के लिये खल नायिक साबित होने के बारेमें और आकशवाणी के तक़्निकी विभाग द्वारा विविध भारती के दो पहर के लधू-तरंग प्रसारणमें २.५ घंटे की सालोंसे डाली हुई रूकावट के बारेमें कई कई बातें बताने के लिये दिमागमें है । आप पाठक गण क्या वह जानना पसंद करेंगे क्या ? अगर हाँ, तो समय समय पर मेरे विविध भारती और आकाशवाणी के सवोच्च अधिकारीयों के साथ किये गये पत्र व्यवहार को मैं जरूरत के मुताबिक रख़ सकता हूँ, पर टिपणी के रूपमें नहीं पर पोस्ट के रूपमें सही रहेगा ।
पियुष महेता ।
Piyushji,kripaya bataayein.
यूनुस भाई मैं आप की टिप्पणी की प्रतीक्षा कर रहा था। क्यूंकि मेरा तो रेडियो से सिर्फ श्रोता भर का नाता है। बहुत कुछ जो बाहर से बेहद सरल दीखता है उस तंत्र के अंदर काम करने वाला ही उसके ना होने की वज़ह बता सकता है। आपकी छोटी टिप्पणी से निराशा हुई पर मुझे ये भी लगा कि हो सकता है कि बहुत सी बातें जानते हुए भी इस तरह के फोरम में आपका कहना कठिन रहा होगा।
खैर आप के उद्गारों की प्रतीक्षा रहेगी।
इरफ़ान भाई आपने कुछ ना कह कर भी इशारों में काफी कुछ समझा दिया ।
पियूष जी बिलकुल आप एक अलग पोस्ट में इस बात को रखें.।
mujhe nahi lagta ki vivdh bharti me naye gane nahi sunate...aur jahan tak udhghoshak ki baat hai vividh bharti jaise prastootkarta mene meri jindagi abhi tak to nahi sune.Itni suarli aur gyanvardhak baate aapko niji channlo par shayad hi mil payengi.
हर चीज का एक वक्त होता है , विविध भारती का कभी वक्त था | अब नहीं है , विविध भारती की कमी यही थी कि अच्छे गानों के लिए लोग तरस जाते थे | चूँकि सभी प्रोग्राम पहले से रिकॉर्ड होते थे तो ऐसी विधा तब तक ही अच्छी चली जब तक उसके विकल्प नहीं आ गए | लोगों का ये भी कहना है की गाने सुनवाने में सिफारिश और अन्य बुराईयों का समावेश हो गया था | शाम पौने 6 से सवा 6 तक वही भजन दोहराए जाते थे | विविध भारती की विविधता प्रायोजित गानों से रही जो समय के खत्म हो गयी |
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