जैसा की यूनुस भाई ने कुछ दिन पहले जिक्र किया था की तीन अक्तूबर को विविध भारती के पचास साल पूरे हो रहें है। यूं तो हम बचपन से ही रेडियो सुनते आ रहे है पर इस बात पर कभी ध्यान ही नही दिया था कि विविध भारती कि शुरुआत कब हुई थी पर इस बार ब्लॉगिंग के परिवार से जुड़कर पता चला कि जिस विविध भारती को हम लोग इतने सालों से सुनते आ रहे है वो आज पचास साल का हो गया है।
यूं अब रेडियो सुनना काफी कम हो गया है पर फिर भी जब भी मौका मिलता है सुन ही लेते है।
कितनी ही यादें जुडी हुई है जिन्हे यूं यहां गिनवाने लगे तब तो कोई अंत ही नही होगा। पर फिर भी कुछ ऐसी बातें होती है जिन्हे हम कभी भी भूल नही पाते है। कितने कार्यक्रम है जैसे छायागीत,पिटारा ,आप की फरमाइश जो आज तक चले आ रहे है पर कुछ पुराने कार्यक्रम बंद हुए है जैसे चलचित्र की कहानियाँ तो कुछ नए कार्यक्रम शुरू भी हुए जैसे सखी सहेली ।
वैसे आजकल विविध भारती का रुप भी कुछ बदल गया है पर वो कहते है ना की समय के साथ बदलना अच्छा होता है । अब आप ये तो नही सोच रहे की विविध भारती तो बदला ही नही है पर ऐसा नही है ।विविध भारती के पुराने श्रोता जानते होंगे कि पहले तो सुबह की सभा साढे नौ बजे ख़त्म हो जाती थी फिर बारह बजे दोपहर की सभा शुरू होती थी पर अब विविध भारती की सुबह की सभा साढे नौ बजे ख़त्म नही होती है बल्कि उस पर कुछ अच्छे और मनोरंजन से भरपूर कार्यक्रम आते है। अभी हाल ही मे हमने एक दिन सुबह पिटारा कार्यक्रम सुना हालांकि बीच मे से ही सुना था पर काफी ज्ञानवर्धक लगा ।
विविध भारती की एक खास बात है कि इस पर आने वाले कार्यक्रम हर उम्र के लोगों को ध्यान मे रखकर बनाए जाते थे और जाते है। बच्चों से लेकर युवा ,तो महिलाओं से लेकर बडे-बुजुर्गों तक के लिए कार्यक्रम और संगीत तो लाजवाब ही होता है। पर अब वो signature tune जो हर सभा के शुरू मे बजती थी वो अब शायद बजना बंद हो गयी है क्यूंकि अब तो सभा भंग ना होकर चलती ही रहती है।
रेडियो कभी-कभी हमारे जीवन मे कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसका हमे अनुमान ही नही होता है। और कई बार ऐसी स्थिति या हालत होते है जब कोई भी communication का साधन नही होता है उस समय ये रेडियो ही होता है जिससे हम लोगों तक पहुंच सकते है। आज हमे २६ दिसम्बर २००४ मे अंडमान मे आयी सुनामी से जुडी बात याद आ रही है। जब सुनामी आयी थी तो कुछ समय बाद माने एक-दो घंटे बाद वहां सारे communication के साधन बंद हो गए थे ना फ़ोन काम कर रहे थे और ना ही बिजली थी कि टी.वी.देखा जा सके जिससे कुछ हालात के बारे मे पता चल सके पर एक साधन जो उस समय भी लोगों तक पहुंच पाने मे सफल हुआ वो था रेडियो। रेडियो ही एकमात्र सहारा था जिसके द्वारा लोग दूसरे द्वीपों मे रहने वाले अपने रिश्तेदारों को अपनी खैरियत की खबर देते थे और उनकी खैरियत की खबर लेते थे। सारा - सारा दिन सिर्फ लोगों के संदेश ही पढे जाते थे।हालांकि ये एक तरह से अँधेरे मे तीर चलाने वाली ही बात थी क्यूंकि सुनामी ने जैसी तबाही मचाई थी वो तो हम सभी जानते है। पर फिर भी ये तीर निशाने पर लगा था मतलब की जब दूसरे द्वीप पर रहने वाले संदेश सुनकर अपना संदेश देते थे की वो सही-सलामत है तो आप अंदाजा लगा सकते है की इस रेडियो ने उस समय कितने ही परिवारों को उनके प्रियजनों से मिलवाया था। उस सुनामी के समय मे अगर रेडियो नही होता तो शायद वहां के लोगों को अपने परिवार वालों की खैरियत के बारे मे जानने मे और समय लगता।
चलते-चलते विविध भारती के सभी श्रोताओं को और विविध भारती मे कार्यरत सभी लोगों को विविध भारती के पचास साल पूरे करने की बधाई और शुभकामनायें।
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1 comment:
ममता जी पहले सवेरे का प्रसारण सुबह साढे नौ बजे समाप्त होता था फिर सवा दस बजे शुरू होता था जिसमें शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम और ग़ैर फ़िल्मी गीत बजते थे और 11 बजे से 1230 तक डेढ घण्टे के लिए फरमाइशी गीतों का कार्यक्रम मन चाहे गीत बजता था जिससे सभा समाप्त होती थी।
इसके बाद 2 बजे से रंग-तरंग कार्यक्रम से सभा शुरू होती थी जिसमे ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़ल और गीत बजते थे फिर 230 से फर्माइशी गीतों का कार्यक्रम मनोरंजन होता था 330 तक एक घ्ण्टे के लिए जिसके बाद लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम 4 बजे तक फिर 630 बजे से शाम की सभा शुरू होती थी सांध्य गीत से जिसमे फ़िल्मी भजन बजते फिर 645 पर स्वर सुधा होता था जो संगीत सरिता जैसा था उसके बाद जयमाला।
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