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Thursday, October 4, 2007

जब सिर्फ़ आवाज़ ही पहचान थी

कल विविध भारती के स्वर्ण जयंती समारोह का विशेष प्रसारण सुना। कुछ पुरानी आवाज़ें गूंजी - मोना ठाकुर, भारती व्यास, यतीन्द्र श्रीवास्तव, किशन शर्मा। मन अनायास ही पीछे बहुत दूर चला गया जहां की यादें बहुत धुंधली है और हम तुलना करनें लगें तब और अब के प्रसारण में।

अब विविध भारती पर कार्यक्रम कुछ ऐसे शुरू होता है -

मैं हूं आपका दोस्त अमरकांत, कार्यक्रम वही आपका मन मीत भूले-बिसरे गीत
दोस्तों मैं हूं यूनुस ख़ान, अब से लेकर एक घण्टे तक आप मेरे साथ है
मैं निम्मी मिश्रा लाई हूं आप के मन चाहे गीत
मैं कमल शर्मा हाज़िर हूं जयमाला संदेश लेकर
मैं हूं आपकी रेडियो सखी ममता सिंह
मैं शहनाज़ अख़्तरी
कांचन जी नमस्कार, कमलेश जी नमस्कार और सभी सखी-सहेलियों को हमारा नमस्कार
श्रोताओं नमस्कार मैं कमल शर्मा और मैं रेणु बंसल

मुद्दा ये कि कार्यक्रम बाद में शुरू होता है पहले हम ये जान लेते है कि कौन हम तक ये कार्यक्रम पहुंचा रहा है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था।

पहले विविध भारती के किसी उदघोषक का नाम नहीं पता था। हालांकि उस समय रेडियो सिलोन पर उदघोषक अपना नाम बताते थे - विजयलक्ष्मी, मनोहर महाजन, शशि मेनन।

इन्हीं दिनों पत्रावली में श्रोताओं ने पत्र लिख कर उदघोषकों के नाम बताने का आग्रह किया जो टाल दिया गया। बहुत आग्रह होने पर नाम बता दिए गए और श्रोता सोचते रह गए किस नाम की कौन सी आवाज़ है।

उसी समय रविवार रात नौ बजे से सवा नौ तक एक कार्यक्रम शुरू हुआ - चतुरंग। जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है चार रंगों के गीत इसमें बजते थे - गीत, भजन, ग़ज़ल, कव्वाली। इनके गायक, संगीतकार, गीतकार और फ़िल्म का नाम बताया जाता था पर किसी एक गीत के लिए एक नाम नहीं बताया जाता था जो श्रोताओं के लिए पहेली होती थी। श्रोता पत्र लिखते आगामी अंकों में सही नाम बताया जाता।

इस कार्यक्रम का अंत एक ही वाक्य से होता था - अब चन्द्र कान्ता माथुर को अनुमति दीजिए। इस तरह हमने जाना पहला नाम चन्द्रकान्ता माथुर। उस समय हमारे पड़ोस में एक माथुर परिवार रहता था। वे इस कार्यक्रम को ऐसे सुनते जैसे उन्हीं के परिवार की बिटिया बोल रही हो।

इस समय शायद अपना घर कार्यक्रम में मौजीराम जी के साथ तीन महिला स्वर सुनाई देते जिनके नाम बताए जाते छाया जी, माया जी, रफ़िया जी । पता नहीं ये नाम असली थे या मौजीराम की तरह ही छ्द्म नाम थे।

फिर पत्रावली कार्यक्रम से एक और नाम की पुष्टि हुई - कान्ता गुप्ता।

तब हवामहल के बाद ९३० से १०३० तक मन चाहे गीत बजते थे। फिर ९३० बजे प्रायोजित कार्यक्रम आरंभ हुए और मन चाहे गीत कभी ९४५ तो कभी १० बजे से बजने लगे। फिर शुरू हुआ १० बजे से छायागीत।

वास्तव में छायागीत ही ऐसा पहला कार्यक्रम रहा जिससे श्रोताओं ने उदघोषकों के नाम जाने- बृज भूषण साहनी, चन्द्र भारद्वाज, एम एल गौड़, राम सिंह पवार, विजय चौधरी, अहमद वसी, कब्बन मिर्ज़ा और यह सिलसिला जारी है।

एक आवाज़ जो ग़ायब हो गई - अनुराधा शर्मा

एक आवाज़ जो हम सुनना चाहते है पर बहुत कम सुनाई देती है - शहनाज़ खान

4 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वाह! बीते जमाने को तो आपने सामने ही ला खड़ा किया.

Sagar Chand Nahar said...

इनमें से बहुत से नाम हमने सुने हैं और एक दो दिनों में स्टार न्यूज और एन डी टी वी पर कुछेक आवाजों के मालिकों को पहली बार देखा भी, जी हाँ यूनुस भाई और ममता जी को भी।

Manish Kumar said...

शुक्रिया ये संस्मरण यहाँ बाँटने के लिए !

पारुल "पुखराज" said...

ये कुछ ऐसे नाम है।जो बचपन याद दिला देते है…बहुत धन्यवाद

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