रेडियोनामा पर मेरे चिट्ठों की संख्या ने दो अंकों में प्रवेश किया है। आज मैं अपना दसवां चिट्ठा लिख रही हूं। इस मौके पर मैनें सोचा कि क्यों न थोड़ा सा खुश हो लिया जाए, हंसा जाए, मुस्कुराया जाए।
तो चलिए हम आपको एक चुटकुला सुनाते है। ओफ़्फ़फ़फ़ो ! सुनाते नहीं लिखते है। यह चुटकुला भी रेडियो से ही संबंधित है -
चुटकुला कुछ यूं है -
एक किसान के खेत में फसल खूब अच्छी हुई। फसल लेकर वह शहर गया बेचने। आमदनी भी खूब हुई सो किसान ने शहर में खरीददारी भी की।
बहुत सी चीज़े खरीदी। एक ट्रांसिसटर भी खरीदा। दुकानदार ने बजा कर बताया। किसान इतना खुश हुआ कि रेडियो के प्रोग्राम सुनते हुए ही गांव पहुंचा। सबको दिखाया, सुनाया।
लगातार बजते-बजते बैटरी डाउन हो गई। आवाज़ पहले कम हुई फिर बन्द हो गई। अब किसान को तो कुछ मालूम नहीं। मालूम होगा भी कैसे ? उसने दुकानदार को कुछ कहने का मौका ही कहां दिया ? वह तो ट्रांसिसटर की आवाज़ आनी शुरू होते ही खुशी से झूमने लगा था।
अब वह परेशान कि आवाज़ आनी बन्द हो गई। फिर उसे गुस्सा आ गया और उसने ज़ोर से ट्रांसिसटर को पटक दिया। पटकते ही ट्रांसिसटर टूट गया और मशीनरी, बैटरी बाहर निकल आए जिसको देख कर उसने कहा -
गाने वाले तो भाग गए पर बाजे-गाजे यहीं छोड़ गए।
क्यों आया न मज़ा। अरे भई यह चुटकुला ओरिजिनल मेरा नहीं है। मैनें भी यह चुटकुला रेडियो से ही सुना।
रेडियो सिलोन के प्रायोजित कार्यक्रम मराठा दरबार की महकती बातें कार्यक्रम में यह चुटकुला तबस्सुम ने सुनाया था जिसका विज्ञापन अमीन सयानी करते थे -
मराठा दरबार अगरबत्ती तीन अलग-अलग खुशबुओं में - ताज़े गुलाबों की खुशबू वाली मराठा गुलाब अगरबत्ती, मोगरे की सुगन्ध वाली मराठा मोगरा अगरबत्ती और केवड़े की महक वाली मराठा केवड़ा अगरबत्ती।
यहां देखिए गुलाब, मोगरा और केवड़े के लिए अलग-अलग और सही शब्द चुने गए।
और इसी खुशबू के साथ मैं ले रही हूं अल्पविराम। आपसे भेंट होगी नवरात्रि के बाद। आप सबको -
ईद और दशहरा मुबारक !
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6 comments:
बहुत अच्छे अनुपमा जी, दरअसल अमीन जी और तब्बसुम को सुनना का अनुभव कुछ और ही होता था
मराठा दरबार अगरबत्ती-बहुत बरसों पीछे ले गईं आप तो..जब इसे सुना करते थे.
आपको भी ईद और दशहरे की मुबारकबाद.
पत्नी और रेडियो
पत्नी बोली, क्यों जी, क्यों मुझे बैर करते है?
मेरे आते ही कमरे में, रेडियो बंद करते हैं।
रेडियो बंद करते हैं, क्यों? मुझको बतलाइए।
पति बोला, एक बार में, एक ही सुनना चाहिए।
बोली पत्नी, मेरी बोली, क्या इतनी खलती है?
नहीं प्रिये! रेडियो से ज़्यादा, अच्छी लगती है।
( हरि बिंदल की रचनाएँ हास्य व्यंग्य में )
अन्नपूर्णा जी ,
आपकी पोस्ट पढ कर अच्छा लगा और ये कविता याद आयी -
कुछ दिनोँ पहले हरि जी से मुलाकात हुई थी
अन्न्पूर्णा दी.
अगरबत्ती के इश्तेहारों की महक मन के उन गलियारों में उतर आईं जिनमें रेडियो सिलोन मनकता था.क्या ग़ज़ब की बेक़रारी होती थी इन प्रोग्राम्स को सुनने की. सिलोन रेडियो मेरे शहर और मेरे ट्रांज़िस्टर में बडी़ खरखराहट के साथ बजता था फ़िर भी सुनने में सुरीला सुनाई देता था.आज एफ़ एम के नाम पर की टेक्नीकल सुविधाओं से लैस रेडियो चैनल बज रहे हैं उनमें बोली जा रही भाषा और बज रहे संगीत की खरखराहट रेडियो सिलोन की खरखराहट से ज़्यादा कर्कश है.
जाने कहाँ गए वो दिन !
आदरणीय श्री अन्नपूर्णाजी,
रेदियो सिलोन की यादें ताझा होने से मन को बहोत प्रसन्नता होती है । यह जानने की उत्सूकता रहेगी, कि आप और उपर टिपणी लिखने वाले सभी लोग कौन कौन से सालसे रेडियो सिलोन सुनते है । क्या आपको याद है । फिल्म वोन्टेड के रेदियो कार्यक्रमो जिसमें जोनी वोकर (होम प्रोड्यूसर) श्रोताओं के प्रश्नों के अपने मजाकिया लहेजेमें उत्तर देते थे । क्या आपको याद है श्री अमीन सायानी साहब द्वारा जीप टोर्च और सेल्स के निर्माता द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम जोहर के जवाब ? और मोडेला निटींग वूल के उत्पादक द्वारा प्रायोजित ’शोला सिंगार’ ? श्री अमीन सायानी द्वारा मेह्मूद के साथ प्रस्तूत फिल्म छोटे नवाब के विज्ञापन और रेडियो प्रोग्राम्स ? आज किशोर कूमारजी की पूण्य तिथी पर श्री अमीन सायानी साहब और श्री ब्रिज भूषणजी द्वारा संयूक्त विज्ञापन और हर बुधवार बिनाका के बाद रत्री ९ बजे श्री अमीन सायानी द्वारा प्रस्तूत इसी फ़िल्म के रेडियो प्रोग्रम्स और हर रविवार इसी फ़िल्म के रेडियो कार्यक्रम्स ब्रिज भूषणजी की आवाझमें और इन दोनो द्वारा प्रस्तूत झूमरू फिल्म के रेडियो कार्यक्रम का समापन इसी शब्दोंमें होता था कि ’फ़िल्म झूमरू देखने झूम झूम जाईए’ उसके बाद में हूँ झूम झूम झूमरू गीत की प्रथम पंक्ती जो कार्यक्रमोंकी शुरूआतमें भी बजती थी । अभी भी बहोत कुछ याद आ रहा है, पर आपके इसी प्रकारके कुछ और पोस्ट पर टिपणी करने के लिये दिमागमें ही रखता हूँ ।
पियुष महेता ।
संजीव सारथी जी, उड़न तश्तरी जी, लावण्या जी, संजय पटेल जी और पीयुश मेहता जी, मेरे चिट्ठे पर पधारने के लिए धन्यवाद्।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।