सबसे नए तीन पन्ने :

Sunday, February 3, 2008

विविध भारती की जुबली-झंकार की झनझनाहट सुनी क्या ?


अभी अभी विविध भारती की जुबली -झंकार के अंतर्गत पेश किया गया प्रोग्राम प्यार-हुया इकरार हुया सुन कर हटा हूं। कुछ दिन पहले अनिता जी ने इस के बारे में अपनी एक ब्लोग पोस्ट में लिखा था। लिखा क्या था…एक बढ़िया सा ट्रेलर पेश किया था। सो, इसे सुनने की काफी उत्सुकता थी। लेकिन शायद , फिर इस को सुनना भूल जाता अगर अनिता जी ने कल ही की अपनी पोस्ट में एक बार फिर इस का टाईम हम सब को याद न दिलाया होता ।

प्रोग्राम बहुत अच्छा लगा। इसे प्रस्तुत करने का ढंग भी बहुत बढिया था। ऑडियो-विज़ुयल मीडियम की कितनी ही ऐसी लिमिटेशन्स होंगी जिन को बखूबी ओवरकम किया गया…और वह भी बहुत ही प्रभावपूर्ण एवं क्रियेटिव ढंग से। प्रोग्राम बढ़िया था….इस का सब से बड़ा सबूत तो यही है कि इस ने हमें अपने रेडियो के साथ तीन घंटे तक जोड़े रखा….और वह भी उस दौर में जब एक मिनट के बाद अगर टीवी के चैनल को अगर न बदला जाए तो बोरियत महसूस होने लगती हैऔर हाथों में खुजली होनी शुरू हो जाती है। लेकिन अफसोस यही कि पांच बजे के समाचारों के बाद अगले लगभग बीस -पच्चीस मिनट तक तो यह मेरे रेडियो सैट से गायब हो गया …..पता नहीं क्या कारण था…..बस, जब फिर से लगा तो इस प्रोग्राम के विजेताओं के नाम घोषित किए जा रहे थे। वह पार्ट भी अच्छा लगा। बहरहाल हम तो इस को लगभग अढ़ाई घंटे ही सुन पाये।

इस प्रोग्राम के बारे में मैं यह टिप्पणी एक ऐसे इंसान की हैसियत से दे रहा हूं जिस ने रेडियो के गीत सुनते ही होश संभाला, रेडियो की दुनिया के साथ ही विचरते हुए कुछ सपने बुन डाले,. कुछ पूरे हो गयें, कुछ अभी बाकी हैं…..कहने का भाव यह कि सारी लाइफ ही हो गई इस रेडियो को सुनते हुये। एंटरटेनमेंट के सब साधन उपलब्ध हैं,लेकिन पता नहीं इस कमबख्त डिब्बे में ऐसी क्या बात है कि गाने इस पर सुनकर जितना आनंद आता है , उतना कहीं भी नहीं आता।

§ सब से पहले तो प्रोग्राम के परिचय से ही करते हैं…शायद यह परिचय महेंन्द्र जी ने दिया है। बेहद उम्दा ढंग था , आवाज़ का जादू भी उतना ही बढिया…….कितने सशक्त ढंग से उन्होंने विविध भारती की इस प्रस्तुति को वसंत-पर्व एवं वेलेंन्टाइन -डे के साथ जोड़ दिया । बेहतरीन…..नहीं तो मेरे जैसा एक औसत दर्शक तो यही समझ रहा होता कि यार , अब इस जुबली झंकार से चार-जोड़ों का क्या संबंध…लेकिन प्रोग्राम की इंट्रो से सब कुछ स्पष्ट हो गया। इतना ही नहीं, ऊपर से यूनुस जी( डा अजित कुमार जी, देखिए अब मैं यूनुसजी एवं यूसुफ जी के नाम को कंफ्यूज़ करने की गुस्ताखी नहीं कर रहा हूं…वैसे एक बात सचसच बताऊं कि यह आप की उस दिन आईआईटी वाली पोस्ट पर दी गईटिप्पणी रूपी फटकार का ही असर है….आप का बहुत बहुत आभार) ने वह तूफानी गाना भी बजा दिया……..मोहब्बत है क्या चीज़ , हम को बताओ………बस सारे श्रोताओं को खींच कर रेडियो के सैट के पास लाने के लिय़े यह काफी था।

§ इस के बाद इस प्रोग्राम में भाग लेने वाले जोड़ों एवं संचालकों एवं निर्णायक मेहमानों को भी बेहद बेहतरीन ढंग से श्रोताओं के सामने पेश किया गया। हिमानी शिवपुरी एवं सुधीर दलवी जी को उन की फिल्मों के आडियो क्लिप्स के ज़रिये इंट्रोड्यूस करवाना बहुत इन्नोवेटिव एवं इफैक्टिव था। अब आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है…वाला गीत चल रहा हो और सारे देशवासियों के मन में उस फिल्म में वो गीत गाने वाले बाबा और उस के साथ उस प्यारी सी बच्ची की तसवीर न आए….ऐसा कभी हो सकता है।

§ सारे जोड़ों का भी तारूफ इतने अच्छे से करवाना अच्छा लगा-- डा.अनपढ़ जी ( क्योंकि वह एमए पीएचडी किए हुये थे) ने यह खूब कहा कि ढाई आखर प्रेम के पढ़ने के लिए किसी एमए पीएचडी की डिग्री नहीं चाहिए। वैसे सभी जोड़ों ने अपनी इंट्रो के दौरान भी श्रोताओं का खूब मन लगाए रखा।

§ 15-20 मिनट की अच्छी -खासी इंट्रो के बाद वह शपथ ग्रहण समारोह भी अच्छा लगा।

§ मुझे तो प्रोग्राम में सुनाए गये सारे गाने बेहद पसंद आये। वैसे यह बात तो माननी पड़ेगी कि इस में भी विविध भारती ने लगभग सभी आयुवर्गों की पसंद का पूरा ध्यान रखा।

§ प्रोग्राम को इतने बेहतरीन इंफार्मल स्टाइल में पेश किया गया कि हर श्रोता को शायद मेरी तरह यह ही लगा होगा कि वह किसी प्रोग्राम को नहीं सुन रहा….ये सब लोग उस के आंगन में ही इक्ट्ठे हो कर बस कुछ हल्की फुल्की बातें कर रहे हैं। ऐसे में भला किसे अपने रेडियो सैट से तीन घंटे जुड़े रहना अखरा होगा।

§ प्रोग्राम के अंत में जब धन्यवाद का समय आया तो पता चला कि जोड़ों के इलावा स्टूडियो में कुल छःमेहमान ही थे , लेकिन फिर भी बीच बीच में यूनुस जी का कहना कि ज़रा मुझे रास्ता दो, मुझे मेहमानों तक पहुंचने दो…..इस बात ने भी कार्यक्रम को रोचकता प्रदान की क्योंकि इस से श्रोताओं के मन में एक खूब बड़े हाल की तस्वीर उभर कर आती है। शायद मैं ही ऐसा सोच रहा हूं…पता नहीं। और हां, सभी मेहमानों को अपने मोबाइल बंद रखने को कहना भी बहुत नैचुरल लगा..इससे श्रोताओं के सामने प्रोग्राम की एक तस्वीर बनाने में मदद मिलती है।

§ दूसरे सैग्मेंट में सभी जोड़ों को एक फार्म भरने के लिए कहा गया……तब तक श्रोताओं को गाने सुनने के लिए कहा गया। इन छोटे छोटे प्रयासों से प्रोग्राम इंटरैस्टिंग बनता है। मैं तो उस समय यही सोच रहा था कि एक-सवा घंटे के बाद यह भी कहा गया होता तो अच्छा होता कि ….अच्छा , अब आप सब लोग गर्मागर्म चाय का लुत्फ उठाएं, तब तक श्रोता भी चाहें तो चाय की चुस्कियां ले लें। उस दौरान ऐसे ही कुछ बातें या गीत वीत चलते रहते….एक इंटरवल का माहौल सा बन जाता। पता नहीं मैं ठीक कह रहा हूं कि नहीं, लेकिन यह भी प्रयोग आगे किसी प्रोग्राम में करने का एक तुच्छ सा सुझाव दे रहा हूं…..।

§ प्रोग्राम के विभिन्न सेग्मेंट्स के शीर्षक भी बहुत उपर्युक्त लगे। जब-वी-मेट एवं प्यार का बैरोमीटर वाले आइडिया भी अच्छे थे।

§ वह प्यार का बैरोमीटर तो विविध भारती ने आज सारे देश के श्रोताओं के हाथ ही में थमा दिया…जब हम यह सुन रहे थे कि किसी को अपनी स्पोउज़ का चश्मे का नंबर नहीं पता, किसी की अपने जीवन साथी की वेट ठीक नहीं पता और यहां तक किसी को अपने लाइफ-पार्टनर की हाइट ठीक पता नहीं थी……यह शायद किसी श्रोता को अजीब नहीं लगा होगा..क्योंकि इस बैरोमीटर ने श्रोताओं के रूप में बैठे विविध भारती के लाखों अन्य जोड़ों को भी काफी कुछ सोचने पर मजबूर किया होगा….एक तरह से हम सब के लिए एक इंट्रोस्पेक्शन का भी यही टाइम था।

§ वैसे डा.अनपढ़ जी ने बातें बहुत बढिया कीं…..प्यार के चश्मे का कोई नंबर नहीं होता।

§ जाते जाते एक दो बातें और करना चाहूंगा कि मन में यह जानने की उत्सुकता है कि जिस जोड़े में एक अम्माजी जो कि 69साल की बताई गईं थीं…क्या उन की आवाज़ में थोड़ी कंपन उम्र की वजह से ही थी….अगर ऐसा था तो मैं ऐसा प्रश्न करने के लिए भी उन से दंडवत हो कर क्षमा का याचक हूं। लेकिन अगर उन्होंने इस प्रोग्राम में अपनी उम्र के अनुसार इस तरह की आवाज़ जानबूझ कर निकाली है तो भी हम उन के इस टेलेंट को बार-बार सेल्यूट करते हैं। जुग-जुग जियो अम्मा जी।

§ हां, एक बात और यह है कि यूनुसजी , आप ने प्रोग्राम में तो बिल्कुल सही फरमा दिया कि आदरणीय विनोद कुमार जी को हिंदी बोलने में थोड़ी मुश्किल है, इसलिए वे मिश्रित भाषा ही बोलेंगे….और आगे यह भी कहा कि इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन यूनुस जी, शायद किसी दूर गांव में बैठे किसी श्रोता को इस से थोड़ी आपत्ति हो……( ऐसे ही मज़ाक कर रहा हूं….सीरियस्ली न लें) , लेकिन चूंकि आप भी बंबई में ही रहते हैं और विनोदजी इतनी पापुलर हिंदी बलोगर के पति हैं ,इसलिए हम उन को हिंदी में और भी सहज महसूस करवाने की जिम्मेदारी आप को सौंपते हैं, वैसे हमें तो उन की हिंदी में किसी तरह की कमी नज़र आई नहीं। तो, शुरूआत आज ही करें …उन्हें रोज़ाना विविध भारती प्रोग्राम सुनने के लिए कहें…..हिंदी पर पकड़ सरिये से भी मजबूत हो जायेगी और दूसरा सुझाव है कि वे भी हिंदी बलोगिंग जगत में प्रवेश करें.।

§ अब मलाल इस का ही है कि पांच बजे से आधे घंटे तक प्रोग्राम में क्या हुया …चलिए ,कल अनिता जीअपनी पोस्ट में किसी पोड-कासट की बात कर रही थीं, देखेंगे अगर उधरसुन गया तो।

प्रोग्राम की रेटिंग***** ( 5-Star)

PS…..चूंकि आज भी यमुनानगर में इतनी ज्यादा ठंड है, इसलिए आज तो इस प्रोग्राम को मैंने अपने स्टडी-रूम में ही सुना ताकि तबीयत भी न बिगडे और न ही टिप्पणी गड़बड़ा जाए। पहले ही से सचेत करने के लिए धन्यवाद।।

6 comments:

अफ़लातून said...

विनोदजी और आभाजी को बधाई ।

डॉ. अजीत कुमार said...

प्रवीण सर,
मैंने इस कार्यक्रम को तो 4:30 से 5:30 तक सुना. बाकी न सुन पाने का मलाल था, और इंतज़ार में था की कब रवि जी की पोडकास्ट आए और मैं पूरे कार्यक्रम को फिर से सुनूं. पर आपकी पोस्ट ने वो कमी काफी हद तक पूरी कर दी है और मेरे मन में ये प्रोग्राम एक रूप लेता जा रहा है. वैसे मैं अभी देख पा रहा हूँ कि रवि जी अपनी कोशिश में लगे हुए हैं.
टिप्पणी रूपी फटकार वाली बात आपने खूब कही.:).
धन्यवाद.

डॉ. अजीत कुमार said...

और लीजिये, रवि जी ने पोस्ट चढ़ा दी है. अब तो उसे ही सुनना है.

रवि रतलामी said...

डॉ अजित कुमार जी, वाह क्या बात है! धन्यवाद. चलिए, मेरी मेहनत सफल हो गई. आपने मेरी पोस्ट चढ़ाते ही सुन जो लिया. ये प्रोग्राम तो वाकई लाजवाब, बारंबार सुनने लायक है. डाउनलो़ड कर अपने मोबाइल एमपी3 प्लेयर में सुनें व प्यार में रम जाएँ...

Anita kumar said...

प्रवीण जी आप को प्रोग्राम अच्छा लगा, धन्यवाद,आप के सुझाव भी विचारणीय है, आशा है युनुस जी उन पर गौर करेगें, रवि रतलामी जी का खास तहे दिल से शुक्रिया करना चाहुंगी जिन्होंने इतनी मेहनत से पॉड कास्ट तैयार किया, उस पर सुनने का मजा ही कुछ और था, बार बार सुन सके।

सागर नाहर said...

रवि जी द्वारा तैयार किये गये पॉडकास्ट को तो अब सुनेंगे पर उससे पहले आपकी यह पोस्ट पढ़ कर बहुत मजा आया।
आपने इतने ध्यान से कार्यक्रम को सुना कि आवाज के कम्पन्न को भी महसूस किया.. बहुत बढ़िया।
धन्यवाद डॉ साहब

:)

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें