समाचार सुनने की वास्तविक शुरूवात कब से हुई यह कहना कठिन है क्योंकि जब मुझे ठीक से समझ में भी नहीं आता था केवल सुना करती थी तब से ही सुनती रही -
ये आकाशवाणी है, अब आप देवकीनन्दन पाण्डेय से समाचार सुनिए
धीरे-धीरे समझ में आने लगा तब समाचारों का समय अच्छा नहीं लगता था क्योंकि इस समय गाने सुनने को नहीं मिलते थे, पर सुनते-सुनते समाचार सुनने की भी आदत सी हो गई।
बचपन से ही सवेरे आठ बजे और रात में पौने नौ बजे के दो मुख्य समाचार बुलेटिन रोज़ सुने। इसके अलावा शाम में 5:50 से क्षेत्रीय समाचार - उर्दू ख़बरें और फिर पाँच-पाँच मिनट के अँग्रेज़ी और हिन्दी में दिल्ली से प्रसारित होने वाले समाचार बुलेटिन सुने जाते थे। कभी कभार शाम के समाचार नहीं भी सुने जाते पर सुबह और रात के समाचार कभी नाग़ा नहीं हुए थे।
दूरदर्शन से राष्ट्रीय प्रसारण की शुरूवात फिर उसके बाद केबल नेटवर्क आने के बाद रात के समाचार सुनना तो बन्द हो गया पर सुबह के समाचार आज भी निरन्तर सुने जा रहे है।
पिछले लगभग पाँच सालों से सुबह 6 बजे के समाचार भी नियमित सुने जाते है। रात के समाचारों के बदले शाम 7 बजे का बुलेटिन रोज़ सुना जाता है।
बचपन से ही रोज़ सुनने से कई आवाज़ों से परिचय हुआ - देवकीनन्दन पाण्डेय, राजेन्द्र चुग, विनोद कश्यप, पँचदेव पाण्डेय, इन्दु वाही, अखिल मित्तल, आशुतोष जैन, चन्द्रिका जोशी, लोचनीय अस्थाना, कनकलता, आशा द्विवेदी और भी कुछ नाम। ये आवाज़े घर के सदस्य की आवाज़े लगती है।
बहुत ही साफ उच्चारण के साथ समाचार पढे जाते है। कई विदेशियों के नाम चाहे यूरोपीय देशों के हो या एशियाई देशों के, पाश्चात्य नामों के अलावा खाड़ी देशों के व्यक्तियों के नाम जो उच्चारण में बहुत ही कठिन होते है, इतनी स्वाभाविकता से पढे जाते है जैसे कोई अपने भारतीय नाम हो।
समाचारों की भाषा भी आकाशवाणी में इतनी सरल रखी जाती है कि कम पढे लिखे लोग भी आसानी से समझ सकते है। आजकल टेलीविजन के समाचार चैनलों में ऐसी मुहावरेदार भाषा का प्रयोग होता है कि समझना कठिन हो जाता है।
मेरा मानना है कि जो अख़बार नहीं पढ सकते और जो शिक्षित भी नहीं है वे अगर रेडियो के समाचार बुलेटिन रोज़ सुन लें तो देश-दुनिया में क्या हो रहा है, इसकी अच्छी जानकारी मिल जाएगी।
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2 comments:
अन्नपूर्णा जी,
अगर मैं कहूं कि मैंने समाचारों पर ध्यान देना कब शुरू किया तो ये प्रश्न मुझे कई बरस पीछे ले जाएगा.
याद आता है इंदिरा गांधी की हत्या का वो मनहूस दिन, 31october 1984. गानों के जगह पर वो मातमी धुन रेडियो पर बजने लगे थे. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि सारे प्रोग्राम्स छोड़कर सिर्फ़ ये धुन ही क्यूं बज रही है? तभी रात में पापा ने पौने नौ का समाचार लगाया और मुझे इसकी जानकारी दी कि हमारी प्रधान मंत्री की हत्या हो गयी है, ( वो मार दी गयी हैं.) और इसीलिए ये मातमी धुन बज रही है और ये पूरे तीन दिन बजेगा.
तभी से समाचार सुनना धीरे धीरे मेरी आदत में शुमार होता चला गया.
सुबह की शुरुआत तो 6:00 बजे के समाचार से ही होती थी. उसके पहले पापा राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से भजन सुनते थे फिर आकाशवाणी भागलपुर से चिंतन मनन, और फिर भजन.
धन्यवाद.
हम तो आज भी दिन के पहले समाचार ऑल इंडिया रेडियो पर ही सुनते हैं, सुबह सुबह 7 बजे…:)
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