नावेल यानि उपन्यास जिसे पढना बहुत अच्छा लगता है। एक कोने में बैठ कर आप उपन्यास पढिये और आनन्द लीजिए, लेकिन एक व्यक्ति उपन्यास पढे और लाखों लोग इसे सुने तो सभी एक साथ आनन्द ले सकते है।
आज एक ऐसे ही कार्यक्रम की मैं चर्चा कर रही हूं जो आकाशवाणी हैदराबाद केन्द्र का बहुत ही लोकप्रिय कार्यक्रम रहा है - नावेलों की दुनिया
इस कार्यक्रम की शुरूवात हुई अस्सी के दशक में। वर्ष 1981 में प्रेमचन्द के जन्मदिन पर कई कार्यक्रमों का आयोजन हिन्दी से जुड़े संस्थान कर रहे थे। तभी आकाशवाणी हैदराबाद केन्द्र से गोदान पढना शुरू किया गया। यह उर्दू विभाग द्वारा दैनिक उर्दू कार्यक्रम नयरंग में रात 9:30 बजे 10 मिनट के लिए पढा जाने लगा।
प्रेमचन्द शुरू में उर्दू में लिखा करते थे और गोदान उपन्यास उर्दू और हिन्दी दोनों में है। गोदान पढने के बाद तो जैसे ताँता लग गया। सप्ताह मे 5-6 दिन नियमित एक के बाद एक उपन्यास पढे जाने लगे।
कार्यक्रम उर्दू का होने से सभी उर्दू उपन्यास पढे गए। इनमें एक ओर तो जिलानी बानो का उपन्यास एवाने ग़ज़ल शामिल रहा तो दूसरी ओर इब्नोद वक़्त जैसे नावेल भी शामिल किए गए यहां तक कि मशहूर नावेल उमराव जान अदा भी पढा गया।
उर्दू और हिन्दी में सिर्फ़ लिपि का ही फ़र्क है इसीलिए उर्दू नहीं जानने वाले हिन्दी के श्रोता भी इन उपन्यासों का आनन्द लेने लगे।
हिन्दी कार्यक्रमों में केवल एक ही पुस्तक पढी गई - डिस्कवरी आँफ इंडिया का हिन्दी संस्करण।
उर्दू में युववाणी कार्यक्रम में भी नावेल पढे जाने लगे। इन नावेलों को पढने वाले थे उर्दू के उदघोषक और कार्यक्रम अधिकारी - मोहन सिन्हा, महजबीं रानी, शुजात अलि राशिद और ज़ाफर अलि खाँ
पहले इन नावेलों को सिर्फ़ पढा जाता था। बाद में हल्का सा नाट्य रूपान्तर किया जाने लगा यानि पढते-पढते जब संवाद आ जाते तब ये संवाद महिला और पुरूष की आवाज़ों में बोले जाने लगे। बाद में नाटकों की तरह डबिंग भी की जाने लगी। कुछ ख़ास दृश्यों में संगीत संयोजन भी किया जाने लगा। अब समय भी १० से १५ मिनट हो गया।
लगभग बीस साल तक चला ये सफ़र अब कुछ थम सा गया है। पिछले लगभग चार सालों से ये कार्यक्रम प्रसारित नहीं हो रहा है।
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Wednesday, February 13, 2008
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