रेडियो सिर्फ़ फ़िल्मी गानों के लिए ही नहीं हैं, यह बात हमें बताई थी हमारे पूज्य पिताश्री ने जिनको हम हैदराबादी तहज़ीब के अनुसार अब्बा कहते हैं।
पहले रेडियो में हमें विविध भारती, सिलोन और आकाशवाणी हैदराबाद केन्द्र से प्रसारित होने वाले फ़िल्मी गीत ही अच्छे लगते थे। साथ ही अन्य कार्यक्रमों के नाम पर हवामहल और क्षेत्रीय केन्द्र से ढोलक के गीत पसन्द थे।
जब समाचारों का समय होता तब हमें बहुत बुरा लगता था। सवेरे 8 बजे और रात में 8:45 पर दिल्ली से प्रसारित होने वाले समाचार बुलेटिन अब्बा पाबन्दी से सुनते थे। जब इन समयों पर हमें रेडियो ट्यून करना होता तब बहुत ख़राब लगता था।
जब देश-विदेश की कोई विशेष बात होती तो अब्बा हमें बताते और कहते - तुम लोग भी समाचार सुना करो न। और हम बुरा सा मुंह बना लेते।
हमारे लिए समाचार का मतलब सवेरे आप ही के गीत और बुधवार की रात बिनाका में हफ़्ते के शीर्ष तीन-चार गीत मिस करना होता। जैसे-तैसे कर बुधवार का समझौता हो ही गया था।
बात तो तब और भी बिगड़ जाती जब छुट्टियों के दौरान क्रिकेट मैच होता। उन दिनों टेलीविजन पर मैच का सीधा प्रसारण नहीं होता था। केवल रेडियो से आँखों देखा हाल प्रस्तुत होता था। तब घर में दो टीमें बन जाती थी - एक भाइयों की जिन्हें कमेन्ट्री सुननी है और दूसरी टीम बहनों की जिन्हें गाने सुनने है।
कभी-कभी शरारत इतनी बढ जाती कि मेन स्विच भी बन्द हो जाता फिर झड़प हो जाती। इन सबके बावजूद भी अब्बा ने कभी दूसरा ट्रांज़िस्टर ख़रीदने की सहमति नहीं दी क्योंकि वो जानते थे कि जिस दिन दूसरा ट्रांज़िस्टर घर में आएगा वह समाचार के लिए उन्हीं के पास रह जाएगा और मैच के दौरान भाइयों के पास रहेगा और बहनें अपने गानों मे ही मगन रहेगी।
नतीजा ये होगा कि हम कभी क्रिकेट के बारे में नहीं जान पाएगें और समाचारों की दुनिया अकेले अब्बा की रह जाएगी। आज लगता है कितना सही था उनका ये सोचना।
घर में एक ही रेडियो होने की वजह से कानों में पड़ते-पड़ते हम क्रिकेट की भी जानकारी रखने लग गए हालांकि आज भी हमें क्रिकेट मे कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है मगर क्रिकेट से हम अनजान नहीं हैं।
रही बात समाचारों की, तो समाचारों से हम सभी धीरे-धीरे जुड़ने लगे। फिर विविध भारती पर शुरूवात हुई शाम में सात बजे पांच मिनट के समाचार बुलेटिन की। कुछ समय के लिए यह सिर्फ़ खेल समाचार ही थे। अब तो नियमित सामान्य समाचार बुलेटिन प्रसारित होते है।
पिछले लगभग पांच वर्षों से सवेरे भी 6 बजे पांच मिनट का समाचार बुलेटिन होता है। यह 5-5 मिनट के दोनों समाचार बुलेटिन हमारे दैनिक जीवन का एक भाग हो गए है। केवल ये दो बुलेटिन ही हमें पर्याप्त है रोज़ की देश-दुनिया की गतिविधियों को जानने के लिए।
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Friday, February 1, 2008
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7 comments:
अन्नपूर्णा जी,
आपने हम सबों के बचपन की यादें ताज़ा कर दीं. जब क्रिकेट से मेरा जुडाव नहीं हुआ था, तब दिन भर आती कमेंट्री बोर कर जाती थी. अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को न सुन पाने की खीज कैसी होती है मैं समझ सकता हूँ.
पर सुबह छः बजे का समाचार तो एक अरसे से आ रहा है, हो सकता है आपके हैदराबाद से यह पिछले ५ सालों से ही आता हो.
धन्यवाद.
क्रिकेट कमेंट्री रेडियो पर सुनने का अपना एक अलग ही मजा होता था।
सच उस समय तो समाचार किसी बला से कम नही लगते थे। :)
puuraney din yaadaa gaye
मेरी बड़ी बहन वासवी पापा को जापान से जो Transistor रेडियो मिला था उस पे कब्जा जमाये रहती थी -
वो दिन याद आ गए --
अजीत जी, ममता जी, पारूल जी, लावण्या जी मुझे ख़ुशी है कि मैं आपको सुनहरी दुनिया में ले गई।
चिट्ठे पर आने का शुक्रिया !
अजीत जी, ममता जी, पारूल जी, लावण्या जी मुझे ख़ुशी है कि मैं आपको सुनहरी दुनिया में ले गई।
चिट्ठे पर आने का शुक्रिया !
सचमुच उन दिनों समाचार सुनना किसी सज़ा भुगतने से कम नहीं लगता था।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।