विविध भारती की चर्चा में हमेशा दो बातें सामने रही - इसके आरंभ से ही पंडित नरेन्द्र शर्मा जैसे साहित्यकार इससे जुड़े रहे और जयमाला, हवामहल कार्यक्रम शुरू से लेकर अब तक जारी है।
जयमाला फ़ौजी भाइयों का कार्यक्रम है जिसके लिए जयमाला बहुत ही उचित और कलात्मक नाम रहा है। हवामहल में जिस तरह से रोचकता बनी रहती है और मनोरंजन के लिए कभी-कभार ऐसे विषयों को भी चुना जाता है जो सामान्य नहीं होते। इन्हीं सब बातों से हवामहल नाम भी सार्थक होने के साथ-साथ कलात्मक भी है।
अब देखते है उन कार्यक्रमों के नामों को जो इसके बाद शुरू हुए और जिनमें से कुछ अब भी जारी है और कुछ बन्द हो चुके है। इनमें से बहुत से नाम ऐसे है जो प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाओं के नाम है जैसे -
रसवन्ती - रामधारी सिंह दिनकर, गुंजन - सुमित्रानन्दन पंत, सांध्य गीत - महादेवी वर्मा, मिलन यामिनी - हरिवंश राय बच्चन
सच कहें तो ये नाम कभी-कभी कार्यक्रम की प्रकृति से मेल नहीं खाते थे जैसे मिलन यामिनी, इस कर्यक्रम में एक कहानी को संवाद के साथ प्रस्तुत किया जाता था और साथ ही मेल खाते फ़िल्मी गीत बजते थे।
कुछ नाम बहुत ही सही रखे गए जैसे फ़रमाइशी गीतों के कार्यक्रम मनोरंजन और मन चाहे गीत लेकिन ये नाम कलात्मक नहीं है।
कुछ नाम सार्थक भी है और कलात्मक भी जैसे - संगीत सरिता, स्वर सुधा, अपना घर, वन्दनवार, उदय गान, छाया गीत, अनुरंजिनी, गुलदस्ता, मंजूषा
अब उन नामों पर नज़र डालते है जो आजकल चल रहे है। आजकल मुझे दो ही नाम सही और कलात्मक लगते है - मंथन और सखि-सहेली।
सेहतनामा नाम से ऐसे लगता है जैसे कोई सेहत की डायरी बता रहा हो कि सुबह हल्का सरदर्द था, दिन चढते बुख़ार हो गया, शाम में खांसी हो गई रात में जाड़ा चढ गया।
कुछ नाम है - हैलो फ़रमाइश, क्या इस नाम को जयमाला संदेश की तरह आकर्षक नहीं रखा जा सकता। और इस नाम में तो हद ही हो गई - यूथ एक्सप्रेस।
ऐसा लगता है कि आजकल की पीढी के लिए ऐसे नाम रखे जा रहे है। लेकिन विविध भारती क्या यह नहीं देख पा रही है कि आजकल लड़के लड़कियों के नाम ऐसे जो हिन्दी तो क्या सीधे संस्कृत से लिए गए है - करण कुणाल नेहा श्वेता रूद्र
क्या पहले की तरह नामों की कलात्मकता को बनाए नहीं रखा जा सकता। हां नाम कार्यक्रम के अनुरूप जरूर होने चाहिए।
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Wednesday, February 27, 2008
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4 comments:
अन्नपूर्णा जी कह तो आप ठीक रही है।
समय के साथ नाम बदल गए है।अब जब रेडियो मिर्ची जैसा नाम हो सकता है तो कुछ भी हो सकता है।
यहाँ भी कुछ ऐसे ऐसे ही नाम हैं...सॉल्ट ऐण्ड पिपर ... !
ये "हेल्लो " ना जाने कैसे इतना प्रचलित हो गया है !! क्या कहें ? फोन पर भी यही ...हेलो..हेलो '
हाँ, रेडियो कार्यक्रमों के नाम आप सही याद करवा रही हैं उसके लिए आभार !
अन्नपूर्णा जी हैलो फ़रमाईश और'यूथ एक्सप्रेस'के नाम इन कार्यक्रमों की प्रकृति के अनुरूप ही तो हैं । जब विविध भारती ने फोन इन फरमाईशों के कार्यक्रम के नाम 'हैलो फरमाईश' और 'आपके अनुरोध पर' रखा तो बाकी स्टेशनों की छुट्टी हो गयी । आजकल हैलो भोपाल, हैलो सिटी टाईप नाम हैं । और जहां तक यूथ एक्सप्रेस की बात है तो जवान पीढ़ी के लिए रफ्तार भरे कार्यक्रम का नाम इससे बेहतर शायद नहीं हो सकता था । वक्त के साथ थोड़े बहुत बदलाव करना ज़रूरी होता है ।
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