इतिहास हमेशा से ही फ़िल्मकारों, साहित्यकारों का प्रिय विषय रहा है। मुग़ले आज़म से लेकर जोधा अकबर तक हर दौर में फ़िल्मकारों ने इतिहास से विषय लिए है। कितने ही उपन्यासों, कहानियों, नाटकों और कविताओं का विषय ऐतिहासिक घटनाएं और पात्र रहे है।
इसी तरह टेलिविजन और रेडियो में भी इतिहास से विषय लिए गए है। और क्यों न लिए जाए ? इतिहास में सब कुछ होता है - युद्ध की विभीषिका, प्रेम प्रसंग, गीत-संगीत का पूरा अवसर, राजनीति-कूटनीति और समाज के लिए किए जाने वाले कल्याणकारी कार्य।
इन दिनों टेलिविजन पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों में एक ही ऐतिहासिक धारावाहिक है - स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला पृथ्वीराज चौहान। आजकल ये संयोगिता के स्वयंवर की ओर बढ रहा है।
ऐसे में मुझे याद आ रही है हवामहल में बहुत समय पहले सुनी गई झलकी - स्वयंवर। इस झलकी में जयचन्द के दिल्ली से रिश्तों के साथ स्वयंवर की झलक थी। किस तरह पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति को द्वारपाल की जगह रखा देखकर सभी आमंत्रित राजा उपहास करते है और फिर एक-एक कर राजाओं के पास से गुज़रती हुई संयोगिता उस मूर्ति के गले में वरमाला डालती है फिर पृथ्वीराज चौहान सामने आ कर उसे हर ले जाते है।
छोटी सी झलकी में पूरे विषय को अच्छी तरह संपादित किया गया था। शायद संयोगिता की सखि का नाम चन्द्रिका बताया गया था जबकि धारावाहिक में वैशाली बताया जा रहा है, खैर… इतिहास की इतनी जानकारी तो हमें नहीं है।
और हां, हवामहल कार्यक्रम के स्वभाव के अनुरूप एक ऐसी ही हास्य झलकी भी प्रसारित हुई थी जिसमें आधुनिक लड़की स्वयंवर रचाती है।
बात इतिहास की करें तो हमारी जानकारी में हवामहल में प्रसारित होने वाली यह एक ही झलकी है जो ऐतिहासिक विषय पर है। इसके लेखक, प्रस्तुतकर्ता और कलाकारों के नाम हमें याद नहीं आ रहे है।
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Monday, February 18, 2008
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2 comments:
अन्नपूर्णा जी,
आपने स्वयंवर विषय को बिल्कुल अच्छी तरह पोस्ट में रखा है. मैंने पहली झलकी तो नहीं सुनी पर दूसरी लगता है सुनी है.
रेडियो तो मुझे लगता है ज्यादा प्रामाणिकता से इतिहास को प्रस्तुत करता है.
धन्यवाद.
पहले वाली हवा महल की झलकी स्वयंवर तो हमने भी सुनी थी ।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।