आज सवेरे ७ बजे जब भूले बिसरे गीत की शुरूवात हुई तब लग रहा था कि विविध भारती शायद मौसम के अनुसार बसन्त मनाती है इसीलिए देश भर में फैले सर्द मौसम और बूँदा-बाँदी से बसन्त का स्वागत नहीं करना चाहती।
तभी गूँजी भीमसेन जोशी की आवाज़ -
केतगी गुलाब जूही चंपक बन फूले
और लगा भई वसन्त तो तिथि के अनुसार आता है। यह एक ही गीत था वसन्त का जो इस कार्यक्रम में सुनवाया गया।
मुझे स्त्री फ़िल्म का महेन्द्र कपूर और साथियों का यह गीत भी याद आ रहा है जिसे सुने बहुत समय बीत गया -
वसन्त है आया रंगीला
एक और गीत - अशोक कुमार और देविका रानी पर फ़िल्माए गए लोकप्रिय गीतों में से एक -
अमवा की डाली-डाली झूम रही है बाली
मतवाले मतवाले मतवाले
मैं चाल चलूं मतवाली
इस गीत के अलावा और भी कुछ गीत ऐसे है जिसे बहुत समय से नहीं सुना।
फ़िल्म दिल्लगी के दूसरे गीत तो बजते है पर सुरैया और श्याम का ये गीत नहीं सुना -
तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी
तू मेरा राग मैं तेरी रागिनी
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
नहीं दिल का लगाना कोई दिल्लगी कोई दिल्लगी
इसी तरह बाबुल फ़िल्म का ये युगल गीत जो तलत महमूद और शमशाद बेगम की आवाज़ों में है -
मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया अफ़साना किसी का
वैसे तो भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में वो गीत सुनवाए जाते है जो कम लोकप्रिय है यानि जो भूले बिसरे है लेकिन ये लोकप्रिय गीत भी बहुत समय से सुने नहीं गए तो ये गीत भी तो भूले बिसरे ही हो रहे है।
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Monday, February 11, 2008
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1 comment:
धन्यवाद अन्न्पूर्णा जी। केतकी गुलाब जूही.. बहुत ही संदर गीत है और वसंत का मधुर संकेत भी । हाल ही में एक यहाँ न्यू जर्सी में हमारी एक परिचिता नें अपनी बेटी का नामकरण केतकी किया है ( इस गीत से प्रेरणा लेकर)।
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