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Friday, February 29, 2008

आज पहली बार सुना ग़ुलाम मोहम्मद का गाया गीत

आज सुबह भूले-बिसरे गीत में जब उदघोषक ने कहा कि अब सुनिए ग़ुलाम मोहम्मद और साथियों का गाया गीत फ़िल्म हीरा-मोती से तो मैं हैरान हो गई। गीत सुनने पर लगा कि इस आवाज़ मे गीत पहली बार सुन रही हूं।

ग़ुलाम मोहम्मद का नाम मैनें पहली बार सुना पाकीज़ा फ़िल्म के गीतों में। क्या यह वही ग़ुलाम मोहम्मद है जिनका गीत आज सुनवाया गया ? ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई। ख़ैर… इस तरह की जानकारियां देना जरूरी नहीं होता है।

यह दूसरी चौकाने वाली बात थी मेरे लिए। पहली बार यूनुस जी ने भरत व्यास का गाया गीत सुनवाया था नवरंग फ़िल्म से।

आज की बात करे… ग़ुलाम मोहम्मद के गीत के बाद आशा भोसलें का गीत बजा तो अच्छा नहीं लगा। कुछ समय पहले ही तो आशा भोंसले की आवाज़ पर फ़िल्म रंगीला में उर्मिला ने ठुमका लगाया था -

जोर लगा के नाचे रे

जिसके बाद सभी युवाओं को पछाड़ कर आशा भोंसले ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एवार्ड लिया था।

आशा भोंसले के गीत के बाद शमशाद बेगम फिर लता मंगेशकर और तलत महमूद का युगल गीत सुनवाया गया। मतलब कि भूले-बिसरे गीत में ज़िक-ज़ैक चलता रहा। ऐसा पिछले कुछ दिनों से हो रहा है। तो आइए आज चर्चा करते है भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के बदलते (बिगड़ते) माहौल की।

कुछ दिनों से पचास के दशक के गीत इसमें सुनवाए जा रहे है। इसीलिए लता रफ़ी की आवाज़े गूँज रही है। साथ ही नूरजहाँ और शमशाद बेगम जैसी आवाज़े भी सुनाई दे रही है। अंत में अनिवार्य रूप से कुन्दनलाल सहगल का गीत बजता है। इस तरह कुल मिलाकर कार्यक्रम पुराने फ़िल्मी गीतों का तो लगता है पर भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम नहीं लग रहा।

भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में आवाज़े भी भूली-बिसरी होनी चाहिए। इन आवाज़ों में गीत पचास के दशक के पहले के है और पचास के दशक के शुरूवाती दौर के है। आवाज़े इनकी होनी चाहिए -

नूरजहाँ सुरैया राजकुमारी उमा देवी शमशाद बेगम मुबारक बेगम सुधा मल्होत्रा अमीरी बाई सरस्वती रानी सुमन कल्याणपुर कमल बारोट गीता दत्त

पंकज मलिक सी रामचन्द्र केसी डे मन्ना दे तलत महमूद पहाड़ी सान्याल

यानि वो आवाज़े जो बरसों से फ़िल्मी गीतों से दूर हो गई है।

यह सच है कि अच्छा लगता है लता को तलत महमूद के साथ सुनना फिर नए गानों के कार्यक्रम में उदित नारायण के साथ सुनना। लेकिन जिस लता ने बैजू बावरा में मीना कुमारी को अपनी आवाज़ दी वही लता लगातार गाते हुए मैनें प्यार किया फ़िल्म में भाग्यश्री को भी अपनी आवाज़ देती है। अब सलमान खान की यह फ़िल्म तो युवाओं की पसन्दीदा फ़िल्म है फिर उसी लता की आवाज़ भूले-बिसरे गीत जैसे कार्यक्रम में क्यों ?

3 comments:

mamta said...

जहाँ तक भूले बिसरे गीत की बात है तो हमारे ख़्याल से गीत पुराना होना जरुरी है(५०-७०-और एक हद तक ८० के दशक के गीत) गायक या गायिका से कोई फर्क नही पड़ता है। अब लता के इतने सारे अनगिनत पुराने गाने है जिन्हें भूले-बिसरे गीत की श्रेणी मे रखना ठीक है ।

annapurna said...

ममता जी बात पुराने गीतों की नहीं है बात है भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के कल्चर की।

इस कार्यक्रम में शीर्षक के अनुसार वही गीत अच्छे लगते है जो भूली-बिसरी आवाज़ों में हो। लता रफ़ी आशा की आवाज़े भूली-बिसरी आवाज़े नहीं है।

सागर नाहर said...

अन्नपूर्णाजी
वि. भा ने भूले बिसरे गीत सुनवाने का जिम्मा मुझे दे दिया है। क्या आप गीतों की महफिल पर भूले बिसरे गीत नहीं सुनती?
:( :D

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