मेरे संग खेलोगे?
बचपन में याद है न हम सब ने न जाने कितनी दुपहरियां टीचर-टीचर, डाक्टर-डाक्टर, मम्मी-पापा और न जाने क्या क्या खेलते हुए बिताई थी। मम्मी सो रही होती थी और हम चुपके से तार पर सूखती उनकी साड़ी खींच कर ले आते थे , उलटी सीधी जैसी लपेटी जाती लपेट ली जाती( मैं आज तक नहीं समझ पाई ये साड़ी इतनी लंबी क्युं बनाई जाती है, लपेटते ही जाओ, लपेटते ही जाओ…अजीत जी को पूछना पड़ेगा ये हिन्दी का मुहावरा "लपेट लिया" और साड़ी लपेटने का कोई संबध है क्या?…:)) और फ़िर अलमारी खोलते ही भड़ भड़ करते हमारे छोटे छोटे किचन के खिलौने बर्तन जमीन पर फ़ैल जाते थे। आवाज सुन कर मम्मी समझ तो जाती थीं कि उनकी धुली साड़ी फ़िर से धोनी पड़ेगी पर नींद में वहीं से डांट लगा कर गुस्से की इतिश्री कर देती थीं। हम भी अपने साजो सामान लपेटे बाहर बरामदे निकल लेते थे और फ़िर शुरु होता था घर-घर का खेल्। कल्पना के पंख लगते ही मन पता नहीं क्या क्या खुराफ़ातें करने को मचल जाता था।
अरे लेकिन हम ये सब क्युं याद कर रहे हैं। इसके लिए यूनुस भाई जिम्मेदार हैं। न वो हमें रेडियोनामा का खिलौना हाथ में पकड़ाते, न वो इतने मजेदार प्रोग्राम बनाते, न हमारा खुराफ़ाती दिमाग शरारत करने को मचलता, पर अब पछ्ताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत्। अब तो हम खेलने को बैठ ही गये। (यूनुस भाई को लगे कि हम तो अपनी हद पार कर रहे हैं तो मेरी मम्मी की तरह वो भी एक बंदर घुड़की दे लें, जी हम उतना ही डर जाएगें जितना तब डरते थे। )
हाँ तो आज दोपहर को बैठे बैठे खुराफ़ात हमारे दिमाग में ये आई कि क्युं न यूनुस - यूनुस खेला जाए…हम्म्म्म्म्म तो बस दिमाग ने प्लान बनाना शुरु कर दिया। अचानक दिमाग के नीचे दिल में एक बत्ती जली कि क्युं न हम भी विविध भारती की पचासवीं जन्म तिथी अपने तरीके से मनाएं, बचपन में जैसे हमें घर- घर खेलने के लिए आटे की जरुरत होती थी तो दबे पावं फ़्रिज को रेड किया जाता था और आटा, टमाटर, पनीर जो हाथ आ जाता उठा लिया जाता था, इसी प्रकार हमने विविध भारती का टॉपिक चुराया, कुछ माल इनके रेडियो से ही चुराया और लगा दिया अपना तड़का। खा के देखिए और बताइए तो कैसा बना है?
पचास साल की उम्र में विविध भारती परोस रहा है "प्यार" वो भी फ़िल्मी गीतों की चाशनी लगा कर। सही है जी, प्यार से किसको है इंकार। प्यार है तो जहां है, तो हो जाएं कुछ बातें प्यार की ।
पचास साल की उम्र में विविध भारती परोस रहा है "प्यार" वो भी फ़िल्मी गीतों की चाशनी लगा कर। सही है जी, प्यार से किसको है इंकार। प्यार है तो जहां है, तो हो जाएं कुछ बातें प्यार की ।
हमारे आज के खास कार्यक्रम का नाम है
"प्यार रे प्यार तेरा रंग कैसा"
प्यार से मुलाकात हो इस मंशा से हमने सबको पूछना शुरु किया क्या आप ने प्यार को देखा है, क्या आप प्यार को जानते है, कैसा है रूप उसका कैसी उसकी गंध,कैसा है स्पर्श उसका कैसा उसका रंग?
बड़े बड़े नामी प्यार के खिलाड़ियों से पूछा और नये नये अनाड़ियों से पूछा, बंदे अनेक पर जवाब एक प्यार तेरे कितने रंग, प्यार तेरे कितने ढंग ?
तो चलिए जी अपनी विविध भारती की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम “प्यार रे प्यार तेरे कितने रंग” में आज हम पता लगाते हैं कि ये प्यार कितने रंग लिए है, इंद्रधनुषी है या और भी कई रंग लिए है।
अब प्यार के बारे में गीतकार से ज्यादा कौन जानकार होगा जी तो आज हमने यहां इस दौर के चोटी के दो गीतकारों को आमंत्रित किया है मिलिए जनाब जावेद अख्तर जी से, ये न सिर्फ़ गीतकार हैं प्यार के क्षेत्र के भी अनुभवी खिलाड़ी हैं। तालियाँ। जावेद जी विविध भारती की ओर से, हमारे श्रोताओं की ओर से आप का तहे दिल से स्वागत करता हूँ( जी हाँ, करता हूँ, मैं तो युनुस हूँ न इस समय) इस प्रोग्राम में जिसका नाम है "प्यार रे प्यार तेरे कितने रंग"।
बहनों और भाइयों हमारे आज के दूसरे मेहमान बहुत ही सोफ़्ट स्पोकन है यानि के बहुत ही धीमा बोलते हैं, लेकिन कलम इनकी उतनी ही बुलन्द है, बाहर से धीर गंभीर दिखने वाले , पर बहुत ही मधुर सुकोमल गीतों के रचियता, जी हां मैं बात कर रहा हूँ एक और हमारे जमाने के मशहूर फ़नकार गुलजार जी की। गुलजार जी आप का स्वागत है हमारे इस कार्यक्रम में।
गुलजार जी मैं सबसे पहले आप से ही शुरुआत करता हूँ। आप बताइए आप को क्या लगता है प्यार का एक ही रंग एक ही रूप होता है या अनेक?
गुलजार-मुझे तो लगता है प्यार एक ऐसी महान भावना है कि इसे एक रंग या रूप में बांधा ही नहीं जा सकता
यूनुस -जी जी, जावेद जी आप क्या कहेगें क्या प्यार के अनेक रंग रूप हैं
जावेद- तुम्हारा सवाल सरासर गलत है।
यूनुस- जी?
जावेद- जी, प्यार क्या दिखाई देता है, और जो दिखाई नहीं देता उसके रंग और रूप कहां से दिखाई पड़ेगें। मैने तो आज तक प्यार को देखा नहीं , हाँSS महसूस जरूर किया है तो प्यार एक ज़ज्बा हैं, प्यार खुदा है, जो सब जगह है जिसे हम महसूस कर सकते हैं पर देख नहीं सकते।
यूनुस - जी बिल्कुल सही यहां मुझे खामोशी फ़िल्म का एक गीत याद आ रहा है
"हमने देखी है इन आखों की महकती खुशबू …। प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो। आइए सुनते हैं
"हमने देखी है इन आखों की महकती खुशबू …। प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो। आइए सुनते हैं
13 comments:
बहुत खूब!
बड़ी फुरसतिया पोस्ट है। तभी फुरसतिया जी की टिप्पणी भी सबसे पहले है!
Superb aunty ji..
Awesome.. i don't have any words.. lijiye aapaki tarafadaari bhi kar de raha hun.. Yunus ji aap meri aunty ji ko daant mat pilaayiyega.. :D
ये खेल हमें अचछा लगा । आज पढ़ा कल फिर पढ़ेंगे परसों भी पढ़ेंगे । आप खेलती रहिए ।
सच है..बार बार पढेगे और आनन्द लेगे..
खेल खेल में कर दिया कमाल।
अब रेडियो वाले आपको पकड ले जायेंगे। तैयार रहिये। :)
आंटी,
नतमस्तक हूं मैं. क्या खूब लिखा है आपने. हमने सच में एक नये निराले प्रोग्राम में जिसमें विविध भारती है भी और नहीं भी. यूनुस भाई हैं भी और नहीं भी. गुलज़ार और जावेद साहब हैं भी और नहीं भी. अब मैंने तो इसे अपनी कल्पना में यूनुस जी की आवाज़ में सुन भी लिया. कितना अच्छा हो कि इस आलेख का पोडकास्ट यूनुस जी तैयार करें.अब उन दो गीतकारों का इंतज़ाम वो कहां से करेंगे ये तो वो ही जानें.
आप सब का आभार
इसे कहते हैं संगति का असर ,देख ल्यो युनूस साहिब,
क्या खूब बहुत खूब लिखा है अनीता जी ने, एकदम शानदार!!
मान गए इनकी कल्पना शक्ति को!!
शैली इतनी बढ़िया है लिखने की मानो यह सब वाकई में हुआ हो और अनिताजी ने रेकॉर्ड करने के बाद इसे यहाँ चेपा हो।
:)
संजीत जी , सागर जी हमें तो इसी बात की खुशी है कि यूनुस जी ने हमारे मौज लेने का बुरा नहीं माना, आप दोनों का आभार
प्यार के रंगों से लबालोब सुंदर रचना ।
घुघूती बासूती
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।