मसालेदार संगीत यानि म्यूज़िक मसाला
ज़ाहिर है कि जब नाम म्यूज़िक मसाला है तो गाने भी नए होंगे। नए गानों का मतलब है कान-फोड़ू संगीत, अक्सर ऊलजलूल बोल, सुरीली बेसुरीली चीखती हुई किसी भी तरह की आवाज़ में गाना।
सिर्फ़ हम ही नहीं बहुत से लोग नए गानों का यही मतलब निकालते है। इसीलिए पहले जब दोपहर बाद विविध भारती पर म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम प्रसारित होता था तब हमने कभी सुना नहीं था। वैसे भी ये समय हमारे लिए गाने सुनने के लिए सुविधाजनक नहीं होता था।
अब दोपहर में एक बजे से डेढ बजे तक अनुरंजनि के स्थान पर यह कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है तो पहले तो हमें लगा कि यह क्या हो गया है, फिर सोचा चलो सुनते है। पहला जो गीत मैनें सुना वो था अभिजीत का - हे मुन्नी हाय मुन्नी
गीत सुनने में अच्छा ही लगा। वैसे इस गीत के बारे में हमने पहले सुना था कि यह शायद अंग्रेज़ी गीत हैलो बेबी ! हाय बेबी का हिन्दी अनुवाद है पर गीत पहली बार विविध भारती पर ही सुना।
फिर हमने दूसरे दिन भी यह कार्यक्रम सुना फिर तीसरे दिन, अब तो रोज़ ही सुन लेते है। गाने अब हमें ठीक ही लग रहे है। जैसे समीर का गीत सुनिधि चौहान की आवाज़ में ऐरा ग़ैरा नत्थू ख़ैरा अलबम से - जियो मगर हँस के
हालाँकि इसके बोलों में कोई ख़ास बात नहीं है जैसे देखो जी देखो ज़माना है बुरा - लेकिन कुल मिला कर गीत ठीक ही है।
कुछ एलबमों में ख़ास नाम भी है जैसे जावेद अख़्तर, अलका याज्ञिक और हरिहरन। गीत है -
तुम जो मिले तो रोशनी मिल गई चाँदनी मिल गई
कुछ एक ही कलाकार द्वारा तैयार एलबमों के गीत भी है जैसे कमाल ख़ान जो गीतकार, संगीतकार और गायक भी है।
फ़ाल्गुनी पारिख़ का ये गीत भी अच्छा है -
कोई ये तो बताए मुझे ये क्या हुआ है
मेरा दिल क्यों मचला जाए
रागेश्वरी का गाया दुनिया एलबम का ये गीत भी अच्छा लगा जिसका गीत और संगीत त्रिलोक लाम्बा का है - कल की न फ़िकर करो
साजिद वाजिद के संगीत में तेरा इंतज़ार एलबम के इस गीत की शुरूवात लोक संगीत सी लगती है -
माहि आवे सोणा माहिआ
फिर बहुत धीमा शुरू होता है गीत -
मौसम के देखो इशारे कितने हसीं है नज़ारे
वास्तव में होता ये था कि पहले टेलीविजन के चैनल बदलते समय एलबमों के गीतों पर नज़र पड़ जाती थी पर कभी ऐसा लगा नहीं था कि रूक कर सुने। लगता है विविध भारती चुने हुए एलबमों के चुने हुए गीत प्रस्तुत कर रही है इसीलिए सुनना अच्छा लग रहा है।
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Saturday, April 26, 2008
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1 comment:
नमस्कार यूनुस भाई,
मैं एक संगीतप्रेमी होने के कारण बचपन से ही रेडियो का दीवाना रहा हूँ और ख़ुद को आपके सरोकारों से जुड़ा पाता हूँ. भिखारी ठाकुर एक ऐसा दीवाना था जो संगीत से समाजवाद लाना चाहता था और कभी-कभी मेरे भी मन में ऐसा ही कुछ आता है की लोग सुनने के बाद गुनने भी क्यों न लगें. उसी कड़ी में आपसे अनुरोध है की जब भोजपुरी गीत-संगीत को फूहड़ता का पर्याय समझा जा रहा है तो भिखारी ठाकुर की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले भरत शर्मा व्यास का दो गाना संगीत प्रेमियों को जरूर सुनवाएं.
१. रोवां तुटिहें गरीब के तो परबे करी
कहीं बिजली गिरी कहीं जरबे करी
२. गवनवा के साडी ससुरा से आइल (निर्गुण)
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया
आपका अजीत
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